हितचिन्‍तक- लोकतंत्र एवं राष्‍ट्रवाद की रक्षा में। आपका हार्दिक अभिनन्‍दन है। राष्ट्रभक्ति का ज्वार न रुकता - आए जिस-जिस में हिम्मत हो

Wednesday 20 June, 2007

कम्युनिज्म पर डॉ. राम मनोहर लोहिया के विचार- 5


डा. राम मनोहर लोहिया एक ऐसे समाजवादी महापुरूष थे, जो समाजवाद की भारतीय आत्मा के पोषक थे। वह एक कर्मठ स्वतंत्रता सेनानी, मौलिक चिंतक तथा लेखक थे। वे भारतीय संस्कृति के पोषक एक ऐसे व्यक्ति थे, जो मानव की सहानुभूति तथा अनुभूति से परिपूर्ण थे।

सन् 1952 में पहली बार राम मनोहर लोहिया ने भारतीय संदर्भ में एक 'गैर-कम्युनिस्ट सोशलिज्म' की विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत की थी। उसमें उन्होंने 'कम्युनिज्म' को बर्बर तथा हिंसक विचार बतलाया। उसे एशिया के विरूध्द यूरोप का हथियार बताया तथा देशद्रोह की ओर अग्रसर करनेवाला एवं अनैतिकता से पूर्ण कहा।

भारतीय कम्युनिस्टों के बारे में-
"Were robbed of all self-respect and minimum of pride, which holds the personality together... They had during the open rebellion of 1942, associated with foreign rule in treacherous suppression of their own people, they had intermittently dishonored the national flag and had thought to abuse Mahatma Gandhi."
(Giresh Mishra, B.K.Pandy, 'Ram Manohar Lohia : The Man and his Ism')p.93

सोवियत नेताओं के बारे में-
"(Stalin as) one of the great criminals of world history...the present leaders of Russia have all been accomplices in Stalin's crimes; they are, in fact, little jackals to the lion Stalin. Their denunciation of Stalin when they took part in everyone of his black deeds is patent gibberish."

कम्युनिज्म के बारे में-
"I consider Communism as very evil-as evil as the status quo. But I would like to issue a warning. The American mind is obsessed with the bogey of communism. Whenever any thing happened, the American ruling powers say it is the big communist beast. Beast he may be, but he is not so big as the communism won in china, but there is a long story and you are party responsible for that. But communism is not winning in Burma or in India."
- R.M. Lohia in (Harris Wofford, Jr. Lohia and America Meet) pp 28-30

Tuesday 19 June, 2007

कम्युनिज्म पर डॉ. अंबेडकर के विचार- 4


डॉ. अंबेडकर उन राष्ट्रीय महान पुरूषों में से थे जिन्होंने राष्ट्रीय एकात्मता, भारतीयता, प्रखर राष्ट्रभक्ति तथा भारतीय जनमानस को आगे बढने की प्रेरणा दी।

कम्युनिस्टों ने अपने मकसद में डॉ. अंबेडकर को अवरोध मानते हुए समय-समय पर उनके व्यक्तित्व पर तीखे प्रहार किए। पूना पैक्ट के बाद कम्युनिस्टों ने डा. अंबेडकर पर 'देशद्रोही', 'ब्रिटीश एजेंट', 'दलित हितों के प्रति गद्दारी करनेवाला', 'साम्राज्यवाद से गठजोड़ करनेवाला' आदि तर्कहीन तथा बेबुनियाद आक्षेप लगाए। इतना ही नहीं, डा. अंबेडकर को 'अवसरवादी', 'अलगाववादी' तथा 'ब्रिटीश समर्थक' बताया।

(गैइल ओंबवेडन, 'दलित एंड द डेमोक्रेटिक रिवोल्यूशन: डॉ. अंबेडकर एंड दी दलित मूवमेंट इन कॉलोनियल इंडिया')

कम्युनिज्म पर डॉ. अंबेडकर के विचार-

'मेरे कम्युनिस्टों से मिलने का प्रश्न ही नहीं उठता। अपने स्वार्थों के लिए मजदूरों का शोषण करनेवाले कम्युनिस्टों का मैं जानी दुश्मन हूं।'

'माक्र्सवाद तथा कम्युनिस्टों ने सभी देशों की धार्मिक व्यवस्थाओं को झकझोर दिया है। माक्र्स और उसके कम्युनिस्ट का पूरा उत्तर बुध्द के विचारों में है। बौध्द धर्म को मानने वाले देश, जो कम्युनिज्म की बात कर रहे हैं, वे नहीं जानते कि कम्युनिज्म क्या है। रूस के प्रकार का जो कम्युनिज्म है, वह रक्त-क्रांति के बाद ही आता है। बुध्द का कम्युनिज्म रक्तहीन क्रांति से आता है। पूर्व के एशियाई देशों को रूस के जाल में फंसने से सावधान रहना चाहिए।'

'संविधान की भर्त्सना ज्यादातर दो हल्कों से है-कम्युनिस्ट पार्टी तथा समाजवादी पार्टी से। वे संविधान को क्यों बुरा कहते हैं। क्या इसलिए कि यह वास्तव में एक बुरा संविधान है। मैं कहना चाहता हूं-नहीं। कम्युनिस्ट चाहते है कि संविधान सर्वहारा की तानाशाही के सिध्दांतों पर आधारित होना चाहिए। वे संविधान की आलोचना इसलिए करते है कि क्योंकि यह संसदीय लोकतंत्र पर आधारित है। समाजवादी दो चीजें चाहते है। प्रथम- यदि वे सत्ता में आएं तो संविधान को बिना किसी क्षतिपूर्ति के व्यक्ति संपत्ति के राष्ट्रीयकरण या समाजीकरण की स्वतंत्रता होनी चाहिए। दूसरे- समाजवादी चाहते है कि संविधान में वर्जित मूल अधिकार पूर्ववत् हों और बिना किसी नियंत्रण के हों, क्योंकि यदि उनकी पार्टी सत्ता में नहीं आई तो उन्हें केवल आलोचनाओं की नहीं, बल्कि राज्य को पलटने की भी हो।'

Monday 18 June, 2007

साम्यवाद (communism) पर नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के विचार


दुनिया भर के प्रमुख विचारकों ने भारतीय जीवन-दर्शन एवं जीवन-मूल्य, धर्म, साहित्य, संस्कृति एवं आध्यात्मिकता को मनुष्य के उत्कर्ष के लिए सर्वोत्कृष्ट बताया है, लेकिन इसे भारत का दुर्भाग्य कहेंगे कि यहां की माटी पर मुट्ठी भर लोग ऐसे हैं, जो पाश्चात्य विचारधारा का अनुगामी बनते हुए यहां की परंपरा और प्रतीकों का जमकर माखौल उड़ाने में अपने को धन्य समझते है। इस विचारधारा के अनुयायी 'कम्युनिस्ट' कहलाते है। विदेशी चंदे पर पलने वाले और कांग्रेस की जूठन पर अपनी विचारधारा को पोषित करने वाले 'कम्युनिस्टों' की कारस्तानी भारत के लिए चिंता का विषय है। हमारे राष्ट्रीय नायकों ने बहुत पहले कम्युनिस्टों की विचारधारा के प्रति चिंता प्रकट की थी और देशवासियों को सावधान किया था। आज उनकी बात सच साबित होती दिखाई दे रही है। सच में, माक्र्सवाद की सड़ांध से भारत प्रदूषित हो रहा है।


सुभाष चन्द्र बोस का जीवन देशप्रेम की एक अद्वितीय गाथा, संघर्षों की अपूर्व कहानी एवं बलिदानी जीवन का अमर संदेश है।


साम्यवाद (communism) पर नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के विचार-

25 जनवरी 1928 को कलकत्ता में अखिल भारतीय युवक सम्मेलन में उन्होंने कहा- मैं उन लोगों में से नहीं हूं जो जो आधुनिकता के जोश में अतीत के गौरव को भूल जाते हैं। हमें भूतकाल को अपना आधार बनाना है। भारत की संस्कृति को सुनिश्चित धाराओं में विकसित करते जाना है। विश्व को देने के लिए हमारे पास दर्शन, साहित्य, कला आदि बहुत कुछ है। हमें नए और पुराने का मेल करना है।

उनका कहना था कि व्यक्ति केवल रोटी खाकर ही जीवित नहीं रहता, उसके लिए नैतिक और आध्यात्मिक खुराक की भी आवश्यकता होती है।

कम्युनिज्म किसी भी ढंग से राष्ट्रवाद के बारे में सहानुभूति नहीं रखता और न ही यह भारतीय आंदोलन को एक राष्ट्रीय आंदोलन मानता है।
(शिशिर कुमार घोष, नेताजी सलेक्टेड वक्र्स, भाग-2 पृष्ठ 351)

साम्यवाद तथा फासिज्म के बारे में सुभाष बाबू का कहना था- दोनों में समानताएं है, दोनों व्यक्ति पर राज्य की प्रभुता को मानते है। दोनों ही पार्लियामेंटरी प्रजातंत्र को नकारते है। दोनों पार्टी शासन को, पार्टी के अधिनायकवाद को मानते है तथा समस्त असहमत अल्पसंख्यकों के दमन के पक्ष में है।
(शिशिर कुमार घोष, नेताजी सलेक्टेड वक्र्स, भाग-2 पृष्ठ 352)

''यदि आज कार्ल माक्र्स जीवित होते तो वे रूस की वर्तमान दशा को देखकर कितना सुखी होते, इसमें मुझे संदेह है। कारण? मुझे लगता है कि वह विश्वास करते थे कि उनका सामाजिक आदर्श रूपांतरित न होकर सभी देशों में समान रूप से प्रतिष्ठित होना चाहिए। इन सब बातों का उल्लेख मैं इसलिए कर रहा हूं, क्योंकि मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि मैं दूसरे देश के आदर्श या प्रतिष्ठान को आंखें मूंदकर अनुकरण करने का विरोधी हूं।''

'समाजवाद कार्ल माक्र्स के ग्रंथों से नहीं जनमा। इसका उद्गम भारत के विचारों एवं संस्कृति से हुआ है।''
(30 मार्च, 1929 रंगपुर राजनीतिक सम्मेलन में दिए गए भाषण से)

''इसके प्रमाण के रूप में मैं यह कह सकता हूं कि साम्यवाद की विश्वव्यापी तथा मानवीय अपील के बाद भी साम्यवाद भारत में कोई स्थान नहीं बना पाया है, मुख्यत: क्योंकि उनके द्वारा अपनाए गए तरीके एवं युक्तियां ऐसे हैं, जो दुश्मन बनाते हैं, न कि मित्रों तथा सहयोगियों को जीतते हैं।''
(5 अप्रैल, 1931 अखिल भारतीय नवयुवक भारत सभा कराची में भाषण से)

Saturday 16 June, 2007

नक्सलियों की शौर्य-गाथा


'नक्सली ही सच्चे क्रांतिकारी है' ऐसे जुमले हम वातानुकूलित कमरों या सेमिनारों में बहस करने वाले कुछ मुट्ठी भर तथाकथित प्रतिबध्द बुध्दिजीवियों के मुंह से सुनते रहते है। ऐसे प्राणी हिन्दी ब्लॉग पर भी मौजूद है। अपना सम्पूर्ण जीवन माँ भारती के चरणों में समर्पित करने वाले जयप्रकाश नारायण ने कहा था, "हिंसा का सहारा वे लेते हैं जिन्हें जनता का विश्वास प्राप्त नहीं होता।" भारत में मजदूरों की तानाशाही लाने का सपना देखने वाले ये नक्सलवादी मजदूरों, किसानों का शोषण कर, मेहनतकश लोगों के हाथ-पैर और गला काटकर सरेआम उनकी हत्या कर, बैंकों और रेलवे स्टेशन को लूटकर वैभवपूर्ण जीवन जी रहे हैं। सच में ये रक्तपिपासु हैं। इनका विचार खोखला हैं, अन्यथा ये हिंसा का सहारा न लेकर लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होते। कायर लोग हिंसावादी होते हैं। आतंकवादियों से नक्सलियों के रिश्ते जगजाहिर है। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आई.एस.आई., उल्फा और लिट्टे से इनकी सांठगांठ है। ये राष्ट्रद्रोही है। दरअसल यौन शोषण और निर्दोष लोगों की हत्या ही तो नक्सली क्रांति का असली रूप है।

आज के राष्ट्रीय सहारा में नक्सलियों का घिनौना चेहरा फिर एक बार उजागर हुआ है।

नक्सली भी करते है नक्सलियों का शोषण
रमेश शर्मा, सहारा न्यूज ब्यूरो, रायपुर, 15 जून

बंदूक की जोर पर शोषक दुनियां को बदलने वाले का दावा करने वाले नक्सली अपनी आइडियोलाजी को बेशक सही ठहराए लेकिन उनके चंगुल में फंसे युवक-युवतियां शोषण की एक अलग चक्की में पिसते नजर आते है। नक्सली दल में शामिल युवतियों की जबरिया नसबंदी कराके उनके साथ दुष्कृत्य किए जाने के आरोप भी सामने आए है। राजनांदगांव क्षेत्र में पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण करने वाले देवकी दलम के पूर्व नक्सली ने बयान दिया है कि छत्तीसगढ में आंध्रप्रदेश के नक्सली अपना रूतबा जमाए हुए है और प्रत्येक क्षेत्र के दलम में उनका वर्चस्व कायम है। शंकर गोंड़ नामक इस नक्सली के मुताबिक नई भर्ती वाले नक्सलियों से पहले कुली की तरह काम कराया जाता है और रात में संतरी का काम लेने के अलावा रसोई पकाने के काम में भी रगड़ा जाता है।

शंकर गोंड़ ने यह भी बताया है कि प्रत्येक दल (नक्सली समूह) में महिलाएं भी रखी जाती हैं जो दल में शामिल किए जाते ही पत्नी बना ली जाती हैं और उनका शारीरिक शोषण किया जाता है। बच्चे पैदा न हो जाएं इस खातिर औरतों की नसबंदी करा दी जाती है। शंकर के मुताबिक उसकी आंखों के सामने कई महिला नक्सलियों के साथ दुर्व्यवहार किया गया। नक्सली गांव की तेजतर्रार और मिलिट्री कदकाठी वाली युवतियों को जबरन या बहका कर अपने साथ रख लेते है। उनके एजेंट गांव-गांव में है।
शंकर का कहना है कि बड़ी-बड़ी बातों के आकर्षण में फंस कर उसने नक्सली बन बंदूक तो उठा ली लेकिन यह समझ में नहीं आया कि नक्सली आखिर चाहते क्या है। उसकी राय में नक्सली केवल गांव-गाव में घूमकर अपना दबदबा बनाए रखना चाहते है। कोई नक्सली युवक अपने परिवार से मिलने जाना चाहे तो उसको झड़क दिया जाता है। दसरी ओर छत्तीसगढ़ पुलिस के आला अधिकारी इस बात से चितिंत हैं कि गांव-कस्बों में अपराधियों की एक नई फौज खड़ी हो रही है।

साम्यवाद (Communism) पर जवाहर लाल नेहरु के विचार


दुनिया भर के प्रमुख विचारकों ने भारतीय जीवन-दर्शन एवं जीवन-मूल्य, धर्म, साहित्य, संस्कृति एवं आध्यात्मिकता को मनुष्य के उत्कर्ष के लिए सर्वोत्कृष्ट बताया है, लेकिन इसे भारत का दुर्भाग्य कहेंगे कि यहां की माटी पर मुट्ठी भर लोग ऐसे हैं, जो पाश्चात्य विचारधारा का अनुगामी बनते हुए यहां की परंपरा और प्रतीकों का जमकर माखौल उड़ाने में अपने को धन्य समझते है। इस विचारधारा के अनुयायी 'कम्युनिस्ट' कहलाते है। विदेशी चंदे पर पलने वाले और कांग्रेस की जूठन पर अपनी विचारधारा को पोषित करने वाले 'कम्युनिस्टों' की कारस्तानी भारत के लिए चिंता का विषय है। हमारे राष्ट्रीय नायकों ने बहुत पहले कम्युनिस्टों की विचारधारा के प्रति चिंता प्रकट की थी और देशवासियों को सावधान किया था। आज उनकी बात सच साबित होती दिखाई दे रही है। सच में, माक्र्सवाद की सड़ांध से भारत प्रदूषित हो रहा है। आइए, इसे सदा के लिए भारत की माटी में दफन कर दें।

कम्युनिस्टों के ऐतिहासिक अपराधों की लम्बी दास्तां है-

• सोवियत संघ और चीन को अपना पितृभूमि और पुण्यभूमि मानने की मानसिकता उन्हें कभी भारत को अपना न बना सकी।

• कम्युनिस्टों ने 1942 के 'भारत-छोड़ो आंदोलन के समय अंग्रेजों का साथ देते हुए देशवासियों के साथ विश्वासघात किया।

• 1962 में चीन के भारत पर आक्रमण के समय चीन की तरफदारी की। वे शीघ्र ही चीनी कम्युनिस्टों के स्वागत के लिए कलकत्ता में लाल सलाम देने को आतुर हो गए। चीन को उन्होंने हमलावर घोषित न किया तथा इसे सीमा विवाद कहकर टालने का प्रयास किया। चीन का चेयरमैन-हमारा चेयरमैन का नारा लगाया।

• इतना ही नहीं, श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपने शासन को बनाए रखने के लिए 25 जून, 1975 को देश में आपातकाल की घोषणा कर दी और अपने विरोधियों को कुचलने के पूरे प्रयास किए तथा झूठे आरोप लगातार अनेक राष्ट्रभक्तों को जेल में डाल दिया। उस समय भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी श्रीमती इंदिरा गांधी की पिछलग्गू बन गई। डांगे ने आपातकाल का समर्थन किया तथा सोवियत संघ ने आपातकाल को 'अवसर तथा समय अनुकूल' बताया।

• भारत के विभाजन के लिए कम्युनिस्टों ने मुस्लिम लीग का समर्थन किया।

• कम्युनिस्टों ने सुभाषचन्द्र बोस को 'तोजो का कुत्ता', जवाहर लाल नेहरू को 'साम्राज्यवाद का दौड़ता कुत्ता' तथा सरदार पटेल को 'फासिस्ट' कहकर गालियां दी।
ये कुछ बानगी भर है। आगे हम और विस्तार से बताएंगे।

साम्यवाद (Communism) पर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु के विचार-



''मैं कोई साम्यवादी नहीं हूं, क्योंकि मैं उनके साम्यवाद को एक पवित्र धर्म मानने की प्रवृत्ति का विरोधी हूं। मैं यह पसंद नहीं करता कि मुझे कोई इसका आदेश दे कि मुझे क्या सोचना और क्या करना चाहिए। मैं यह भी आभास करता हूं कि साम्यवादी कार्यप्रणाली में अत्यधिक हिंसा का महत्व है। मेरा विश्वास है कि साधनों को साध्यों से अलग नहीं किया जा सकता है।''
- पं. नेहरू का जान गुंथर से वार्तालाप

"The Indian Communists are certainly not patriots. They are not interested in the well-being of Indian people, whatever other cause they may be seeking to serve. They speak about the country in a derogatory manner abroad. They preach violence which can only lead to a disastrous civil war."

"Now the problem of the Communist party is that all though it is functioning in the present day, its conditioning sometimes prevents it and often it isolates it from the rest of Indian humanity... if the majority of people in India... became communists. I am quite convinced that it would not be India; then it would be something else.
And I do not want that to happen... I do rule out being uprooted from India and may be made into some kind of a hot house plant which may be beautiful to look at but has in roots anywhere in the country."
(Speech in Rajya Sabha on 25 August, 1959)

Thursday 14 June, 2007

साम्यवाद (Communism) पर महात्मा गांधी के विचार


दुनिया भर के प्रमुख विचारकों ने भारतीय जीवन-दर्शन एवं जीवन-मूल्य, धर्म, साहित्य, संस्कृति एवं आध्यात्मिकता को मनुष्य के उत्कर्ष के लिए सर्वोत्कृष्ट बताया है, लेकिन इसे भारत का दुर्भाग्य कहेंगे कि यहां की माटी पर मुट्ठी भर लोग ऐसे हैं, जो पाश्चात्य विचारधारा का अनुगामी बनते हुए यहां की परंपरा और प्रतीकों का जमकर माखौल उड़ाने में अपने को धन्य समझते है। इस विचारधारा के अनुयायी 'कम्युनिस्ट' कहलाते है। विदेशी चंदे पर पलने वाले और कांग्रेस की जूठन पर अपनी विचारधारा को पोषित करने वाले 'कम्युनिस्टों' की कारस्तानी भारत के लिए चिंता का विषय है। हमारे राष्ट्रीय नायकों ने बहुत पहले कम्युनिस्टों की विचारधारा के प्रति चिंता प्रकट की थी और देशवासियों को सावधान किया था। आज उनकी बात सच साबित होती दिखाई दे रही है। सच में, माक्र्सवाद की सड़ांध से भारत प्रदूषित हो रहा है। आइए, इसे सदा के लिए भारत की माटी में दफन कर दें।

कम्युनिस्टों के ऐतिहासिक अपराधों की लम्बी दास्तां है-

• सोवियत संघ और चीन को अपना पितृभूमि और पुण्यभूमि मानने की मानसिकता उन्हें कभी भारत को अपना न बना सकी।

• कम्युनिस्टों ने 1942 के 'भारत-छोड़ो आंदोलन के समय अंग्रेजों का साथ देते हुए देशवासियों के साथ विश्वासघात किया।

• 1962 में चीन के भारत पर आक्रमण के समय चीन की तरफदारी की। वे शीघ्र ही चीनी कम्युनिस्टों के स्वागत के लिए कलकत्ता में लाल सलाम देने को आतुर हो गए। चीन को उन्होंने हमलावर घोषित न किया तथा इसे सीमा विवाद कहकर टालने का प्रयास किया। चीन का चेयरमैन-हमारा चेयरमैन का नारा लगाया।

• इतना ही नहीं, श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपने शासन को बनाए रखने के लिए 25 जून, 1975 को देश में आपातकाल की घोषणा कर दी और अपने विरोधियों को कुचलने के पूरे प्रयास किए तथा झूठे आरोप लगातार अनेक राष्ट्रभक्तों को जेल में डाल दिया। उस समय भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी श्रीमती इंदिरा गांधी की पिछलग्गू बन गई। डांगे ने आपातकाल का समर्थन किया तथा सोवियत संघ ने आपातकाल को 'अवसर तथा समय अनुकूल' बताया।

• भारत के विभाजन के लिए कम्युनिस्टों ने मुस्लिम लीग का समर्थन किया।

• कम्युनिस्टों ने सुभाषचन्द्र बोस को 'तोजो का कुत्ता', जवाहर लाल नेहरू को 'साम्राज्यवाद का दौड़ता कुत्ता' तथा सरदार पटेल को 'फासिस्ट' कहकर गालियां दी।
ये कुछ बानगी भर है। आगे हम और विस्तार से बताएंगे।


भारतीय कम्युनिस्ट भारत में वर्ग-संघर्ष पैदा करने में विफल रहे, परंतु उन्होंने गांधीजी को एक वर्ग-विशेष का पक्षधर, अर्थात् पुजीपतियों का समर्थक बताने में एड़ी-चोटी का जोड़ लगा दिया। उन्हें कभी छोटे बुर्जुआ के संकीर्ण विचारोंवाला, धनवान वर्ग के हित का संरक्षण करनेवाला व्यक्ति तथा जमींदार वर्ग का दर्शन देने वाला आदि अनेक गालियां दी। इतना ही नहीं, गांधीजी को 'क्रांति-विरोधी तथा ब्रिटीश उपनिवेशवाद का रक्षक' बतलाया। 1928 से 1956 तक सोवियत इन्साइक्लोपीडिया में उनका चित्र वीभत्स ढंग से रखता रहा। परंतु गांधीजी वर्ग-संषर्ष तथा अलगाव के इन कम्युनिस्ट हथकंडों से दुखी अवश्य हुए।

साम्यवाद (Communism) पर महात्मा गांधी के विचार-


महात्मा गांधी ने आजादी के पश्चात् अपनी मृत्यु से तीन मास पूर्व (25 अक्टूबर, 1947) को कहा-

'कम्युनिस्ट समझते है कि उनका सबसे बड़ा कत्तव्य, सबसे बड़ी सेवा- मनमुटाव पैदा करना, असंतोष को जन्म देना और हड़ताल कराना है। वे यह नहीं देखते कि यह असंतोष, ये हड़तालें अंत में किसे हानि पहुंचाएगी। अधूरा ज्ञान सबसे बड़ी बुराइयों में से एक है। कुछ ज्ञान और निर्देश रूस से प्राप्त करते है। हमारे कम्युनिस्ट इसी दयनीय हालत में जान पड़ते है। मैं इसे शर्मनाक न कहकर दयनीय कहता हूं, क्योंकि मैं अनुभव करता हूं कि उन्हें दोष देने की बजाय उन पर तरस खाने की आवश्यकता है। ये लोग एकता को खंडित करनेवाली उस आग को हवा दे रहे हैं, जिन्हें अंग्रेज लगा लगा गए थे।'