दुनिया भर में प्राचीन विरासत की हिफाजत के लिए हरसम्भव प्रयास किए जा रहे है। चाहे मिश्र का पीरामिड हो, चीन की महान दीवार हो या पीसा की मीनार। इन सभी ऐतिहासिक धरोहरों को जीवंत बनाने के लिए वहां की सरकार तत्पर रहती है। जाहिर सी बात है कि सांस्कृतिक विरासत एक प्रकाश-स्तंभ की तरह कार्य करता है, जो देशवासियों के मन में गर्व का बोध कराता है और जिससे प्रेरणा लेकर लोग आगे बढते है। यह सुस्थापित बात है कि जो राष्ट्र अपने पूर्वजों की थाती पर गर्व नहीं करता, वहां मजबूत भविष्य के प्रति निराशा का वातावरण छाया रहता है। महज भौतिक सम्पन्नता ही किसी देश के लिए जरूरी नहीं होती। इसीलिए दुनिया भर में बड़ी तेजी से हर देश अपनी सांस्कृतिक धरोहरों और परम्पराओं को अक्षुण्ण रखने की कोशिश में जुटा हुआ है। लेकिन भारत सरकार और छद्म सेकुलरिस्टों का रवैया इस दिशा में बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।
ताजा विवाद सेतु समुद्रम पोत नहर परियोजना को लेकर उपजा है। ध्यातव्य है कि इस परियोजना को पूरा करने के लिए संप्रग सरकार ने भगवान श्रीराम द्वारा रामेश्वरम् से श्रीलंका तक निर्मित श्रीरामसेतु को तोड़ने का कार्य प्रारम्भ कर दिया है। यह अजीब विडंबना है कि कुतुब मीनार की रक्षा के लिए सरकार मैट्रो रेल मार्ग को बदल सकती है, महज 500 वर्ष पुराना ताजमहल की सुरक्षा हेतु उद्योगों को बन्द कर सकती है लेकिन करोड़ों हिन्दुओं के आस्था केन्द्र श्रीराम सेतु को बचाने के लिए परियोजना के मार्ग को परिवर्तित नहीं करा सकती है। यह गौर करने वाली है कि जबसे कांग्रेसनीत संप्रग सरकार का शासन आया है, साजिश के तहत हिंदू प्रतीकों को निशाना बनाया जा रहा हैं। पिछले दिनों जैसे ही श्रीराम सेतु को तोड़ने का समाचार प्रकाश में आया, देशभर में लोग एकजुट होकर इसके विरोध में सड़कों पर उतर आए। आज संपूर्ण देशवासी श्रीराम सेतु पर आसन्न खतरे को लेकर चिंतित हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने देशवासियों की चिंता को जायज ठहराया है। कल (31 अगस्त, 2007) को सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक आदेश में प्राचीनतम राम सेतु को तोड़ने पर रोक लगा दी है। आज के अखबारों में यह समाचार प्रमुखता से प्रकाशित हुई है। प्रस्तुत है दैनिक समाचार-पत्र 'अमर उजाला' की खबर-
सेतुसमुद्रम परियोजना के तहत बंगाल की खाड़ी से अरब सागर की ओर जाने के लिए बनाए जा रहे समुद्री मार्ग के रासते में पड़ने वाले प्राचीनतम राम सेतु को तोड़ने पर रोक लगा दी है। कोर्ट के इस आदेश से केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना को गहरा धक्का लगा है।
राम सेतु भारत के अंतिम छोर रामेश्वरम् को श्रीलंका से जोड़ता है। धार्मिक पुस्तकों के अनुसार अयोध्या के राजा राम ने श्रीलंका पर चढ़ाई करने के लिए वानर सेना से यह पुल बनवाया था। खंडपीठ ने यह आदेश जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रह्मण्यम स्वामी की याचिका पर दिया। स्वामी ने याचिका में आरोप लगाया कि सरकार जानबूझकर राम सेतु को ही विस्फोटों से उड़ा रही है ताकि कोर्ट के किसी आदेश से पहले मुद्दे को ही समाप्त कर दिया जाए। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार ने राम सेतु के पुरातात्विक महत्व पर आज तक कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं करवाया है। इस बात को अतिरिक्त सालिसिटर जनरल गोपाल सुब्रह्मण्यम ने भी स्वीकार किया। लगभग एक घंटा चली सुनवाई में सरकार कोर्ट को बताने में विफल रही कि परियोजना के अंतर्गत समुद्र से मिट्टी निकालने के दौरान सेतु को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि यदि पुल ही ध्वस्त हो गया तो कोर्ट किस मुद्दे पर फैसला देगा।
कोर्ट ने केंद्र के इस तर्क को खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ता के पास कोई ठोस वैज्ञानिक डाटा नहीं है जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि यह अयोध्या के राजा राम द्वारा बनाया गया पुल है।
ताजा विवाद सेतु समुद्रम पोत नहर परियोजना को लेकर उपजा है। ध्यातव्य है कि इस परियोजना को पूरा करने के लिए संप्रग सरकार ने भगवान श्रीराम द्वारा रामेश्वरम् से श्रीलंका तक निर्मित श्रीरामसेतु को तोड़ने का कार्य प्रारम्भ कर दिया है। यह अजीब विडंबना है कि कुतुब मीनार की रक्षा के लिए सरकार मैट्रो रेल मार्ग को बदल सकती है, महज 500 वर्ष पुराना ताजमहल की सुरक्षा हेतु उद्योगों को बन्द कर सकती है लेकिन करोड़ों हिन्दुओं के आस्था केन्द्र श्रीराम सेतु को बचाने के लिए परियोजना के मार्ग को परिवर्तित नहीं करा सकती है। यह गौर करने वाली है कि जबसे कांग्रेसनीत संप्रग सरकार का शासन आया है, साजिश के तहत हिंदू प्रतीकों को निशाना बनाया जा रहा हैं। पिछले दिनों जैसे ही श्रीराम सेतु को तोड़ने का समाचार प्रकाश में आया, देशभर में लोग एकजुट होकर इसके विरोध में सड़कों पर उतर आए। आज संपूर्ण देशवासी श्रीराम सेतु पर आसन्न खतरे को लेकर चिंतित हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने देशवासियों की चिंता को जायज ठहराया है। कल (31 अगस्त, 2007) को सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक आदेश में प्राचीनतम राम सेतु को तोड़ने पर रोक लगा दी है। आज के अखबारों में यह समाचार प्रमुखता से प्रकाशित हुई है। प्रस्तुत है दैनिक समाचार-पत्र 'अमर उजाला' की खबर-
सेतुसमुद्रम परियोजना के तहत बंगाल की खाड़ी से अरब सागर की ओर जाने के लिए बनाए जा रहे समुद्री मार्ग के रासते में पड़ने वाले प्राचीनतम राम सेतु को तोड़ने पर रोक लगा दी है। कोर्ट के इस आदेश से केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना को गहरा धक्का लगा है।
राम सेतु भारत के अंतिम छोर रामेश्वरम् को श्रीलंका से जोड़ता है। धार्मिक पुस्तकों के अनुसार अयोध्या के राजा राम ने श्रीलंका पर चढ़ाई करने के लिए वानर सेना से यह पुल बनवाया था। खंडपीठ ने यह आदेश जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रह्मण्यम स्वामी की याचिका पर दिया। स्वामी ने याचिका में आरोप लगाया कि सरकार जानबूझकर राम सेतु को ही विस्फोटों से उड़ा रही है ताकि कोर्ट के किसी आदेश से पहले मुद्दे को ही समाप्त कर दिया जाए। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार ने राम सेतु के पुरातात्विक महत्व पर आज तक कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं करवाया है। इस बात को अतिरिक्त सालिसिटर जनरल गोपाल सुब्रह्मण्यम ने भी स्वीकार किया। लगभग एक घंटा चली सुनवाई में सरकार कोर्ट को बताने में विफल रही कि परियोजना के अंतर्गत समुद्र से मिट्टी निकालने के दौरान सेतु को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि यदि पुल ही ध्वस्त हो गया तो कोर्ट किस मुद्दे पर फैसला देगा।
कोर्ट ने केंद्र के इस तर्क को खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ता के पास कोई ठोस वैज्ञानिक डाटा नहीं है जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि यह अयोध्या के राजा राम द्वारा बनाया गया पुल है।
3 comments:
डा. सुब्रामणियम स्वामी निश्चय ही धन्यवाद एवम बधाई के पात्र हैं.
राम सेतु के प्रश्न पर उच्चतम न्यायालय का आदेश अत्यंत महत्वपूर्ण है.
डॉ. स्वामी अपने प्रयास हेतु निश्चय ही बधाई के पात्र हैं। यह फैसला कांग्रेस-वाम सरकार के कुत्सित इरादों की कलई खोलता है।
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