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Friday, 30 November 2007

अब खुद को वामपंथी कैसे कहूं- गौतम घोष

नंदीग्राम घटना हमें देश की शासन व्यवस्था पर विचार करने का मौका देती है। हर घटना हमें सोचने के लिए विवश करती है, बशर्ते हम उसकी तह में जाएं। राजनीतिक पार्टियां आजकल विचारधारा से भटक गई हैं। उन्हें लोगों से ज्यादा कुर्सी की चिंता है। लोकतंत्र में कोई सरकार 30 वर्षों तक सत्ता में रहेगी, तो निष्चित रूप से बेपरवाह हो जाएगी। बंगाल में माकपा 30 वर्षों से सत्ता में है। आखिर यह कैसे हुआ। सिर्फ इसलिए कि बंगाल में विपक्षी दलों में एकता नहीं है, एक मंच पर आने को कोई तैयार नहीं। इसी का लाभ माकपा को मिला। मैं खुद वामपंथी हूं और इस विचारधारा से मुझे बेहद लगाव है, लेकिन आज मैं अपने को वामपंथी नहीं कह सकता। माकपा को विचारधाारा से मतलब नहीं रहा। कुछ वर्ष पहले पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने मुझसे कहा था कि अब लोगों को विचारधाारा से परिचित कराने के लिए माकपा में कक्षाएं नहीं लगतीं। कैडर से जुड़ने वालों की संख्या बढ़ रही है, जबकि विचारधारा से कोई जुड़ाव नहीं। मेरी राय में विचारधाारा अपनाकर यहां राजनीति करने कोई नहीं आता, बल्कि लोगों को पद, पैसे और प्रतिष्ठा की चिंता है। विचारधाारा से जुड़े नेताओं की संख्या घट रही है। नतीजतन नंदीग्राम में माकपा कैडर विपक्ष पर भारी पड़ा। जब तक विपक्ष ताकतवर था, उससे लोग त्रस्त रहे और जब माकपा की शक्ति बढ़ी, उसने नंदीग्राम पर कब्जा कर लिया। दोनों स्थितियों में निर्दोष जानें गई। राजनीति में बाहुबल का जोर है। जो कमजोर है, उसके लिए राजनीति नहीं। चुनाव जीतने के लिए अपराधाी उतारे जाते हैं। कोई किसी से कम नहीं। यही स्थिति नंदीग्राम में थी। लोकतंत्र में तभी राजनीतिक विचारधारा कायम रह सकती है, जब उस पर चर्चा हो, गलतियां दूर करने की कोशिश हो लेकिन बंगाल की स्थिति दूसरी है। यह देखकर मैं दुखी हूं। सरकार को संवेदनशील होना चाहिए। सरकार ही अपराधिायों और हिंसा का सहारा ले, तो लोकतंत्र के लिए यह शुभ संकेत नहीं। सबसे दुखद यह कि सरकार अपनी आलोचना सुनने के लिए तैयार नहीं। ऐसी सरकार से हम क्या उम्मीद करें। बुध्दिजीवियों ने सरकार की आलोचना की, तो उन्हें दुश्मन समझ लिया गया। सरकार किसी की बात सुनने के लिए तैयार नहीं। आप देखें पिछले 10.15 वर्षों में बंगाल के विकास के लिए कुछ नहीं किया गया। केवल कुछ लोग सत्ता का फायदा उठाते रहे। माकपा आत्ममंथन से पीछे हटेगी, तो वह दिन दूर नहीं जब लोग उसे सबक सिखा देंगे। नंदीग्राम और गुजरात की घटनाओं पर हमें आत्ममंथन की जरूरत है कि हम कहां जा रहे हैं। हम सत्ता के दम पर लोगों के जीवन से खेलें या मिलकर काम करें, विकल्प हमारे सामने है।

(गौतम घोष प्रसिध्द फिल्मकार हैं)
प्रस्तुति : निर्भय देवयांश

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