-संजीव कुमार सिन्हा
पूरा देश आजादी की साठवीं वर्षगांठ मना रहा है। हालांकि साठ वर्ष का कालखण्ड भारत जैसे सनातन राष्ट्र के लिए अधिक महत्व का नहीं है लेकिन विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के नाते आजादी की साठवीं वर्षगांठ मनाना हम सबके लिए गौरव का विषय है और वह भी ऐसे समय में जब हमारे पड़ोसी मुल्कों में कहीं राजतंत्र है, तानाशाही है तो कहीं फौजी शासन। यदि आपातकाल के थोड़े से कालखण्ड को छोड़ दे तो भारत में लोकतंत्र निरंतर अपनी जडें मजबूत करता हुआ दिखाई दे रहा है। विश्व के अनेक बुध्दिजीवियों का मानना है कि भारत में लोकतंत्र एक नई इबारत लिख रहा है और आजादी के 60 वर्षों में भारत की यह सबसे बड़ी उपलब्धि है।
पिछले साठ वर्षों में अपने देश में खासे बदलाव हुए हैं, जिनसे कभी हमारा सीना चौड़ा होता है तो वहीं हम अपनी नाकामियों पर शर्मिंदगी भी महसूस करते हैं। एक ओर देश विकास की नई परिभाषाएं गढ़ रहा है तो वहीं दूसरी ओर व्यवस्था का विद्रूप आलम हमें खिझाता है।
अब भारत का विकास दर लगभग चीन के बराबर तक पहुंच गया है। हमारा निर्यात निरंतर बढ़ रहा है। विदेशी मुद्रा भंडार भी ऊंचाई पर है। डालर के मुकाबले रूपया मजबूत हो रहा है। हमारे बुनियादी ढांचा में भी तेजी से सुधार हो रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हमारा डंका बज रहा है। सॉफ्टवेयर का निर्यात अरबों डालर तक पहुंच चुका है। तीन दशक पहले हमें अनाज आयात करना पड़ता था वहीं अब गोदामों में अनाज भरे पड़े हैं। अरबपतियों की संख्या दनादन बढ़ रही है। मोबाइल क्रांति के अनोखे चमत्कार हुए हैं। शेयर के दाम उछल रहे हैं। भारत के कॉल सेंटर विश्वभर में दबदबा कायम कर रहे हैं। कल्पना चावला और सुनीता विलियम जैसी भारत की बेटियों ने देश का नाम रौशन किया है। सानिया मिर्जा टेनिस की बुलंदियों को छू रही है। सचिन तेंदुलकर ने विश्व क्रिकेट को एक नई पहचान दी है। आध्यात्मिक विभूतियां-मां अमृतानंदमयी, आसाराम बापू, मोरारी बापू, श्रीश्री रविशंकर, बाबा रामदेव जैसे अनगिनत संत-साध्वी विश्व को शांति और प्रेम का पाठ पढ़ा रहे हैं। दुग्ध क्रांति का विस्तार इस कदर हुआ है कि आज हम सालाना करोड़ों लीटर दूध का उत्पादन कर रहे हैं।
वहीं विकास की इस चकाचौंध में आज भी अनेक समस्याएं मुंह बाए खड़ी है। गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, जातिवाद, क्षेत्रवाद, वंशवाद, बालश्रम, भुखमरी, कुपोषण, किसानों की आत्महत्या, धर्मांतरण, घुसपैठ, अशिक्षा, शिक्षा का व्यावसायीकरण, बढ़ता आतंकवाद, साम्प्रदायिक दंगे, बेलगाम महंगाई, बेहतर सड़क-बिजली-पानी के अभाव से देश की स्थिति भयावह हो रही है। उदारीकरण और वैश्वीकरण से आम आदमी को फायदा नहीं हुआ है, अलबत्ता कॉरपोरेट जगत जरूर फले-फूले हैं। स्थिति की भयावहता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लोगों की आय, स्वास्थ्य, शिक्षा के आधार पर तैयार किए जाने वाले मानव विकास सूचकांक में 2004 में 177 देशों की सूची में भारत का स्थान 126 वां था। 11वीं पंचवर्षीय योजना में यह उल्लेख किया गया है कि 2004-05 में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों का प्रतिशत 27.8 अनुमानित था। भारत एक कृषि प्रधान देश है। आज भी 70 प्रतिशत आबादी कृषि व्यवसाय के सहारे अपना जीवन गुजार रहे हैं लेकिन परिस्थितियां ऐसी बन गई हैं कि 40 प्रतिशत किसान, किसानी छोड़ना चाहता है। जीडीपी में कृषि क्षेत्र का हिस्सा 2005-06 में घटकर 20 फीसदी रह गया। यह अजीब विडंबना है कि लोगों का पेट भरने वाला अन्नदाता किसान मौत को गले लगाने पर मजबूर हो रहा है। हाल ही में देश ने देखा कि मजदूरों के हित का राग अलापने वाले माकपा-भाकपा ने किस तरह अपना हक मांग रहे किसानों पर बर्बर जुल्म ढाए। वर्तमान में राजनीति से लोगों का भरोसा उठ रहा है। पिछले 60 साल में 50 साल देश पर शासन करने वाली कांग्रेस ने देशवासियों को गुमराह किया है। पूरे समाज की चिंता करने की बजाए सभी दलों में वोट-बैंक के चक्कर में मुस्लिम तुष्टिकरण की होड़ लगी है। यह राष्ट्रीय एकता के लिए खतरनाक है। शैक्षिक परिदृश्य की बात करें तो देशवासियों के माथे पर चिंता की लकीरें उभरना स्वाभाविक है। केन्द्र सरकार यौन शिक्षा के बहाने भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर प्रहार कर रही है। शिक्षा अब बाजार की वस्तु बन गई है। शुल्कों में बेतहाशा वृध्दि हो रही है। देश में शिक्षा व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है। एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक देश के 32 हजार विद्यालयों में शिक्षक नहीं है। आजादी के 60 सालों के बाद देश की यह स्थिति चिंताजनक है। इस अंधकार के खिलाफ तमाम जनसंगठन और सामाजिक कार्यकर्ता मशाल थामे हुए हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, वनवासी कल्याण आश्रम, सेवा भारती, विद्या भारती, विद्यार्थी परिषद, गायत्री परिवार, स्वाध्याय परिवार जैसे अनेक राष्ट्रवादी संगठनों के साथ-साथ श्री अन्ना हजारे, श्री नानाजी देशमुख, श्री राजेन्द्र सिंह, बाबा आमटे, इला भट्ट जैसी सामाजिक कार्यकर्ता भारत की प्रगति के लिए अपना सर्वस्व अर्पण कर रहे हैं।
भारत एक सनातन राष्ट्र है, विचारधारा है, दुनिया के लिए प्रकाशस्तंभ है। विगत साठ वर्षों में हमने नेहरूवादी और समाजवादी मॉडल अपनाकर देखा। समाज के अंतिम आदमी तक विकास की किरणें नहीं पहुंच पाई। अब सबको समझ में आने लगा है कि 2020 में समृध्दिशाली भारत का सपना तभी साकार हो सकता है जब हम पाश्चात्य देशों का नकल छोड़कर अपनी ही तासीर के मुताबिक विकास प्रक्रिया को आगे बढ़ाएं।
पिछले साठ वर्षों में अपने देश में खासे बदलाव हुए हैं, जिनसे कभी हमारा सीना चौड़ा होता है तो वहीं हम अपनी नाकामियों पर शर्मिंदगी भी महसूस करते हैं। एक ओर देश विकास की नई परिभाषाएं गढ़ रहा है तो वहीं दूसरी ओर व्यवस्था का विद्रूप आलम हमें खिझाता है।
अब भारत का विकास दर लगभग चीन के बराबर तक पहुंच गया है। हमारा निर्यात निरंतर बढ़ रहा है। विदेशी मुद्रा भंडार भी ऊंचाई पर है। डालर के मुकाबले रूपया मजबूत हो रहा है। हमारे बुनियादी ढांचा में भी तेजी से सुधार हो रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हमारा डंका बज रहा है। सॉफ्टवेयर का निर्यात अरबों डालर तक पहुंच चुका है। तीन दशक पहले हमें अनाज आयात करना पड़ता था वहीं अब गोदामों में अनाज भरे पड़े हैं। अरबपतियों की संख्या दनादन बढ़ रही है। मोबाइल क्रांति के अनोखे चमत्कार हुए हैं। शेयर के दाम उछल रहे हैं। भारत के कॉल सेंटर विश्वभर में दबदबा कायम कर रहे हैं। कल्पना चावला और सुनीता विलियम जैसी भारत की बेटियों ने देश का नाम रौशन किया है। सानिया मिर्जा टेनिस की बुलंदियों को छू रही है। सचिन तेंदुलकर ने विश्व क्रिकेट को एक नई पहचान दी है। आध्यात्मिक विभूतियां-मां अमृतानंदमयी, आसाराम बापू, मोरारी बापू, श्रीश्री रविशंकर, बाबा रामदेव जैसे अनगिनत संत-साध्वी विश्व को शांति और प्रेम का पाठ पढ़ा रहे हैं। दुग्ध क्रांति का विस्तार इस कदर हुआ है कि आज हम सालाना करोड़ों लीटर दूध का उत्पादन कर रहे हैं।
वहीं विकास की इस चकाचौंध में आज भी अनेक समस्याएं मुंह बाए खड़ी है। गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, जातिवाद, क्षेत्रवाद, वंशवाद, बालश्रम, भुखमरी, कुपोषण, किसानों की आत्महत्या, धर्मांतरण, घुसपैठ, अशिक्षा, शिक्षा का व्यावसायीकरण, बढ़ता आतंकवाद, साम्प्रदायिक दंगे, बेलगाम महंगाई, बेहतर सड़क-बिजली-पानी के अभाव से देश की स्थिति भयावह हो रही है। उदारीकरण और वैश्वीकरण से आम आदमी को फायदा नहीं हुआ है, अलबत्ता कॉरपोरेट जगत जरूर फले-फूले हैं। स्थिति की भयावहता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लोगों की आय, स्वास्थ्य, शिक्षा के आधार पर तैयार किए जाने वाले मानव विकास सूचकांक में 2004 में 177 देशों की सूची में भारत का स्थान 126 वां था। 11वीं पंचवर्षीय योजना में यह उल्लेख किया गया है कि 2004-05 में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों का प्रतिशत 27.8 अनुमानित था। भारत एक कृषि प्रधान देश है। आज भी 70 प्रतिशत आबादी कृषि व्यवसाय के सहारे अपना जीवन गुजार रहे हैं लेकिन परिस्थितियां ऐसी बन गई हैं कि 40 प्रतिशत किसान, किसानी छोड़ना चाहता है। जीडीपी में कृषि क्षेत्र का हिस्सा 2005-06 में घटकर 20 फीसदी रह गया। यह अजीब विडंबना है कि लोगों का पेट भरने वाला अन्नदाता किसान मौत को गले लगाने पर मजबूर हो रहा है। हाल ही में देश ने देखा कि मजदूरों के हित का राग अलापने वाले माकपा-भाकपा ने किस तरह अपना हक मांग रहे किसानों पर बर्बर जुल्म ढाए। वर्तमान में राजनीति से लोगों का भरोसा उठ रहा है। पिछले 60 साल में 50 साल देश पर शासन करने वाली कांग्रेस ने देशवासियों को गुमराह किया है। पूरे समाज की चिंता करने की बजाए सभी दलों में वोट-बैंक के चक्कर में मुस्लिम तुष्टिकरण की होड़ लगी है। यह राष्ट्रीय एकता के लिए खतरनाक है। शैक्षिक परिदृश्य की बात करें तो देशवासियों के माथे पर चिंता की लकीरें उभरना स्वाभाविक है। केन्द्र सरकार यौन शिक्षा के बहाने भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर प्रहार कर रही है। शिक्षा अब बाजार की वस्तु बन गई है। शुल्कों में बेतहाशा वृध्दि हो रही है। देश में शिक्षा व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है। एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक देश के 32 हजार विद्यालयों में शिक्षक नहीं है। आजादी के 60 सालों के बाद देश की यह स्थिति चिंताजनक है। इस अंधकार के खिलाफ तमाम जनसंगठन और सामाजिक कार्यकर्ता मशाल थामे हुए हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, वनवासी कल्याण आश्रम, सेवा भारती, विद्या भारती, विद्यार्थी परिषद, गायत्री परिवार, स्वाध्याय परिवार जैसे अनेक राष्ट्रवादी संगठनों के साथ-साथ श्री अन्ना हजारे, श्री नानाजी देशमुख, श्री राजेन्द्र सिंह, बाबा आमटे, इला भट्ट जैसी सामाजिक कार्यकर्ता भारत की प्रगति के लिए अपना सर्वस्व अर्पण कर रहे हैं।
भारत एक सनातन राष्ट्र है, विचारधारा है, दुनिया के लिए प्रकाशस्तंभ है। विगत साठ वर्षों में हमने नेहरूवादी और समाजवादी मॉडल अपनाकर देखा। समाज के अंतिम आदमी तक विकास की किरणें नहीं पहुंच पाई। अब सबको समझ में आने लगा है कि 2020 में समृध्दिशाली भारत का सपना तभी साकार हो सकता है जब हम पाश्चात्य देशों का नकल छोड़कर अपनी ही तासीर के मुताबिक विकास प्रक्रिया को आगे बढ़ाएं।
5 comments:
यह खुशी की बात है कि तमाम समस्यायों के बावजूद भारत का भविष्य उज्ज्वल दिख रहा है। यदि बारीकी से अध्ययन करें तो भारत की तीन-चौथाई समस्यायें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से नेहरू की पैदा की हुई हैं। निम्नलिखित समस्याओं का कारण, कारक या कर्ता कौन है?
भारत का विभाजन
काश्मीर की समस्या
भारत में जेहादी समस्या का पुन:-स्थापन
लाइसेन्स-कोटा राज
अंगरेजी की समस्या तथा हिन्दी और भारतीय भाषाओ की उपेक्षा
वंशवाद का बीज नेहरू बोकर गये
भारतीय इतिहास का पक्षपतपूर्ण लेखन
वोट बैंक की राजनीति
चीन द्वारा भारत पर आक्रमण और भारत के विशाल भू-भाग पर कब्जा
चीन को राष्ट्र-संघ में स्थान दिलाना और भारत को उससे वंचित रखना
मार्क्सवादी आर्थिक विचारधारा को प्रोत्साहन, जिससे भारत अपेक्षित आर्थिक विकास नही कर पाया और गरीबी नहीं मिटी।
भारत को चूसने के लिये निर्मित समूची ब्रिटिश व्यवस्था को बिना किसी फेरबदल के देश के सिर पर चढ़ाये रखना
शासन का स्वरूप 'अरिस्टोक्रैटिक' करने का सूत्रपात
आदि
आपका लेख और विचार विचारोत्तेजक है। भारत 2020 तक विश्व का अग्रणी देश अवश्य बनेगा, इसमें कोई सन्देह नहीं। आपके सुझाव में दम है कि हमें अपनी व्यवस्था दूसरे देशों की नकल द्वारा नहीं अपनी और अपनी आवश्यकतानुसार विकसित करनी होगी।
नेहरू जी के दो और योगदान गिनाना चाहता हूँ:
१. गाँधीवादी मार्ग को अघोषित रूप से बन्द करना
२. नेताजी सुभाष को खोजवाने में कोताही और लीपापोती
Aaj Bharat Desh ki Unnati thik Prakar se nahi hui Kyu ki 50 saal congres ne Raj kiya,Lakin kya Dusri Party thik Kar pati.Mujhe lagta hai ki desh ki sari Political Partyes ne Logo ke Sath Dhokha hi kiya hai.
Desh ko agar koi Power full bana Sakta hai to Wo hai Common-Man.Isliye is Independence Day par logo ko Apne Desh ke liye Kuch karne ki kasam khani Chaiye.
ek choti si chinta...delhi ke log yamuna kinare akshardham mandir mein to jaate hain lekin ussi mandir ke piche delhi ke logo ki hi pyaas ke khilaf ladia ladne waale jal-manav rajender singh ji ka haal puchne ki fursat kisi ke paas nahin hain....kya delhi mein sirf wahi ek akela pyasa hai....
gaur kijiye ki azzadi ki ladai bhi akele nahin ladi gayi thi
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