लेखक- डॉ. रणजीत
समाचार है कि चीन के दक्षिणी प्रान्त गुआंगदोंग में बच्चों को गुलाम बनाकर सब्जियों की तरह बेचने का व्यापार इस कदर चल रहा है कि सरकार को उसके खिलाफ एक अभियान चलाना पड़ रहा है। यह खबर रूस या अन्य पूर्व समाजवादी किसी देश के बारे में होती तो समता को एक मानवीय मूल्य मानने वाले किसी व्यक्ति को आश्चर्य न होता। आखिर सभी पूंजीवादी, सामंतवादी समाजों में मानवाधिकारों के इस प्रकार के हनन होते ही रहते हैं। पर अपने आपको अब भी बाकायदा साम्यवादी दल कहने वाले एक सत्ताधारी वर्ग के शासन में यह हो रहा है, यह पढ़कर मन अवसादग्रस्त हो उठता है।
ऐसे में लगता यह है कि कोई भी दल हो, उसे लंबे समय तक अबाध शासन करने का अवसर मिले तो उसकी सारी सैध्दांतिक संवेदनशीलताएं समाप्त हो जाती हैं। दूसरे यह कि सोच-समझ कर और तय करके अपने देश को पूंजीवादी विकास के पथ पर ले चलने के ऐसे ही तो परिणाम होंगे? शहरी इलाके समृध्द होंगे, ग्रामीण गरीब होंगे, उद्योग विकसित होंगे, कृषि पिछड़ेगी, आंतरिक उपनिवेश स्थापित होंगे, अरबपतियों की संख्या बढ़ेगी; वेश्यावृति, बेरोजगारी, बंधुआ मजदूरी, बाल मजदूरी बढ़ेगी। जब आप पूंजीवादी विकास की राह पर चलेंगे तो पूंजीवाद के अभिशापों से अपने आप को कैसे बचाएंगे? क्या केवल तानाशाही शासन से? यह संभव नहीं है मित्रों!
मक्र्सवाद और साम्यवाद के नाम पर स्तालिन, चाउसेस्की और पोलपोट ने जो कुछ किया वह दूसरी ही कहानी है, जो बहुत कुछ इतिहास का अंग बन गई है; पर अपने आपको अब भी साम्यवादी कहने वाले चीन में तिब्बतियों के साथ जो किया जा रहा है और कड़े परिवार नियोजन के बाद भी जन्मे हुए बदकिस्मत गरीब बच्चों के साथ जो किया जा रहा है और हमारे अपने माक्र्सवादी सिंगुर और नन्दीग्राम में जो कर चुके हैं, उसे देखते हुए तो लगता है कि मार्क्स आज जिन्दा होते तो शर्मिंदा होकर एक बार फिर कहते - ईश्वर को धन्यवाद कि मैं मार्क्सवादी नहीं हूं! 'थैंक गॉड आइ ऍम नॉट ए मार्क्सिस्ट!' (साभार : सामयिक वार्ता/जुलाई 2008)
2 comments:
"मार्क्स आज जिन्दा होते तो शर्मिंदा होकर एक बार फिर कहते - ईश्वर को धन्यवाद कि मैं मार्क्सवादी नहीं हूं! 'थैंक गॉड आइ ऍम नॉट ए मार्क्सिस्ट "
"एक बार फ़िर कहते "मतलब पहले एक बार कह चुके है क्या ? सन्दर्भ देते तो अच्छा रहता .यदि उन्होंने ने ये कहा है तो ये मार्क्सवादी सुन नही पाय होंगे .वैसे इनको भारत के ग़रीब केवल गरीबी पर बहस के लिए फुल मार्क्स देती है .बस इसी मार्क्स को लेकर चलरहे हैं .
सचमुच अब यह विचारधारा अप्रासंगिक है।
***राजीव रंजन प्रसाद
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