प्रमोद महाजन। यह नाम ही कई गुणों का समुच्चय है। भारतीय राजनीति में आधुनिकता और परंपरा के अद्भुत समन्वयकर्ता। राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रबल आग्रही। प्रभावी वक्ता। कुशल संगठनकर्ता। चुनावी प्रबंधन में महारत। प्रयोगधर्मी। गंठबंधन की राजनीति के आधारस्तंभ और सबसे बढ़कर एक बड़ा मन वाला व्यक्ति। यदि हम यह कहे कि उन्होंने भारतीय राजनीति को एक नई दिशा दी तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी।
ऐसे गुणों के धनी प्रमोद जी को काल के क्रूर हाथों ने हमसे असमय ही छीन लिया। गत वर्ष 22 अप्रैल को उन्हें गोली लगी थी। देशभर में जैसे ही यह शोक समाचार फैला कि लोग स्तब्ध रह गए। जगह-जगह उनके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के लिए लोग पूजा-अर्चना करने लगे। मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा, गिरिजाघर सभी में 'प्रमोद जी जल्द स्वस्थ हों' की प्रार्थना होने लगी। लोगों ने उपवास रखे। लगभग दो हफ्तों तक अप्रतिम साहस और जीवट के धनी प्रमोद जी अस्पताल में जिंदगी और मौत से संघर्ष करते रहे। लेकिन, नियति के आगे किसी का वश नहीं चलता। 3 मई 2006 को प्रमोद जी हम सबसे बिछुड़ गए। अब एक वर्ष बीत गया है। उन्होंने मात्र 58 वर्ष जीवन जीया। लेकिन, इन वर्षों में ही उन्होंने जिन ऊंचाइयों को छूआ वह असाधारण बात है। वे किसी खास परिवार से नहीं थे। राजनीति उन्हें विरासत में नहीं मिली थी, न ही वे धनाढय परिवार में जन्मे थे। एक निम्न मधयमवर्गीय परिवार से निकलकर उन्होंने देश के सर्वोच्च पंक्ति में अपना विशिष्ट स्थान बनाया। उनका पूरा जीवन संघर्ष-यात्रा है। अपनी मेहनत और सूझबूझ से वे सीढ़ी दर सीढ़ी सफलता के सोपान को छूते रहे। वे निरंतर आगे बढ़ते रहे, कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
30 अक्टूबर, 1949 को महबूबनगर में प्रमोदजी का जन्म हुआ। उन्होंने एमए (राजनीति शास्त्र) की शिक्षा प्राप्त की। वे बचपन में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आए। संघ में उन्होंने अनेक दायित्वों का कुशलतापूर्वक निर्वहन किया। उनके मन पर संघ का काफी प्रभाव पड़ा। शाखा में सहज ही ग्रहण किए गए राष्ट्रप्रेम, संस्कार और अनुशासन का निष्ठापूर्वक जीवनभर पालन किया। इसके पश्चात् वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के सदस्य बने। राजनीति में उनका पदार्पण भारतीय जनसंघ के माध्यम से हुआ। अपने प्रभावी व्यक्तित्व और संघर्षशील छवि के कारण बहुत ही जल्द वे जनसंघ में लोकप्रिय हो गए। जनसंघ में उन्होंने पूर्णकालिक कार्यकर्ता के नाते कुशलतापूर्वक कार्य किया। बाद में जब जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हुआ तो वे जनता पार्टी, महाराष्ट्र प्रदेश के महासचिव बनाए गए। सन् 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आदेश पर जब देश के ऊपर आपातकाल थोपा गया और भारतीय लोकतंत्र पर आंच आने लगी तो प्रमोद जी ने आपातकाल के विरोध में हुए आंदोलन में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया।
बाद में दोहरी सदस्यता के सवाल पर जब जनता पार्टी में जनसंघ नेताओं पर दबाव बनाया गया कि वे पार्टी में रहते राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबंध नहीं रख सकते तो जनसंघ नेताओं ने साफतौर पर कहा कि हम रा.स्व.संघ से अपना नाता नहीं तोड़ सकते और उन्होंने जनता पार्टी से अलग होकर सन् 1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन किया।
भाजपा में उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण पदों पर कार्य करते हुए संगठन को मजबूत बनाया। वे भाजपा के राष्ट्रीय सचिव बनाए गए। भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे और लगभग 10 वर्षों तक भाजपा के अखिल भारतीय महामंत्री के रूप में पार्टी को सर्वव्यापी बनाने में अथक परिश्रम किया। संगठन के विभिन्न पदों पर रहते हुए उन्होंने समाज के सभी वर्गों को पार्टी से जोड़ा। कटक से अटक तक और कश्मीर से कन्याकुमारी तक अथक प्रवास करते हुए भाजपा को एक अखिल भारतीय पार्टी के रूप में पहचान बनाने में प्रमुख योगदान दिया। वे कार्यकर्ताओं के दुख-सुख में समान रूप से साथ होते थे। देशभर में आयोजित पार्टी की बैठकों, अभ्यास वर्गों, सम्मेलनों में जाकर वे कार्यकर्ताओ का उत्साह बढ़ाते थे, उनका मार्गदर्शन करते थे, उन्हें आगे बढ़ने के गुर सिखाते थे, चुनौतियों का मुकाबला करने की प्रेरणा देते थे। नई-नई योजना बनाना और फिर उसे अमली-जामा पहनाना, इस नाते वे देशभर में जाने जाते थे।
प्रमोद जी ने कुशल जन-प्रतिनिधि और प्रशासक के तौर पर भी काफी यश अर्जित किया। वे 1986, 1992, 1998, 2004 में राज्यसभा सांसद चुने गए। उनकी काबिलियत का यह स्पष्ट उदाहरण है कि सन् 1996 में जब भाजपा की सरकार बनी तो उन्हें केन्द्रीय रक्षा मंत्री का दायित्व सौंपा गया। 11वीं लोकसभा में सांसद निर्वाचित हुए। अटलजी ने प्रमोद जी को कई मंत्रालयों का दायित्व सौंपा। वे केन्द्र में सूचना प्रसारण मंत्री, संसदीय कार्यमंत्री, सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री और संचार मंत्री बनाये गए। उन्होंने देश में संचार क्रांति का सूत्रपात किया। उनके नेतृत्व में विश्वभर में तकनीकी रूप से भारत एक ताकत के रूप में उभरा।
प्रमोद जी मीडिया जगत के पंसदीदा व्यक्तित्व थे। किसी घटना पर उनकी बाइट लेने के लिए पत्रकारों में होड़ मची रहती थी। इसका कारण था उनकी सटीक और सार्थक टिप्पणी। वे तरूण भारत में उपसंपादक भी रहे। समय-समय पर अखबारों में लेख लिखते थे। प्रमोद जी को गोली लगने और अस्पताल में जीवन-मौत के बीच संघर्ष करने के दौरान जिस तरह से देश के सभी समाचार-पत्रों और स्तंभकारों ने उनको याद किया, उनके व्यक्तित्व के बारे में लिखा ऐसा सदियों में किसी के साथ होता है। उनको मीडिया जगत का अपार स्नेह मिला।
प्रमोद जी की जो दूसरी सबसे बड़ी विशेषता थी वह थी कुशल चुनाव प्रबंधक। वे अनेक राज्यों के चुनाव प्रभारी बनाए गए। जिस भी राज्य के वे प्रभारी बनाए जाते थे वहां के विरोधी दलों के नेताओं को पसीने छूट जाते थे। राज्यों के विभिन्न आंकड़े तो मानो प्रमोद जी की अंगुलियों पर नाचते थे। पिछले सालों में किस पार्टी को कितनी सीटें मिली है, कितने मत प्रतिशत मिले, उम्मीदवारों का बैकग्राउंड क्या है, क्या समीकरण बनाने से फायदा होगा ? किन मुद्दों को प्रमुखता देने से हमारे पक्ष में माहौल होगा ? विरोधियों को कैसे घेरा जाए ? आदि तमाम बातों पर उनकी रणनीति फिट बैठती थी। प्रमोद जी को व्यवस्था का पर्याय माना जाता था।
सन् 1998 में जब श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राजग की सरकार बनी तो अनेक दलों से मधुर संबंध बनाने में प्रमोद जी की भूमिका उल्लेखनीय रही। सभी दलों के अंदर प्रमोद जी की विशेष पहचान थी। भाजपा के तो वे अनुपम और सर्वमान्य नेता है ही लेकिन, अन्य दलों में भी उनके शुभचिंतक और प्रशंसक नेताओं की लम्बी कतार है। उन्हें संकट मोचक कहा जाता था। पार्टी को जब भी जरूरत होती थी प्रमोद जी नई तरकीबें लेकर सामने आते थे, और सभी लोग उसे सहज स्वीकार भी कर लेते थे।
पता नहीं, क्यों भगवान प्रतिभाशाली लोगों को जल्दी अपने पास बुला लेते है। प्रमोद जी ने ''भारत और भाजपा'' को बहुत कुछ दिया। नई सोच दी। युवाओं को प्रेरणा दी। देश को प्रगति के पथ पर दौड़ाया। आज उनकी कमी खल रही है। सबको ऐसा विश्वास है कि वे काया से भले ही हमारे बीच न हो लेकिन, उनकी छाया सदैव हमारे साथ रहेगी। उनका जीवन हमें प्रेरणा देता रहेगा। उनके प्रति यही सच्ची श्रध्दांजलि होगी कि भाजपा को हम और सर्वव्यापी बनाए। गांव-गांव में पार्टी का जनाधार मजबूत करें क्योंकि मजबूत भाजपा ही सशक्त भारत की नियति है।
15 comments:
Sanjiv ji i have read your article. Its very good. Your Blog mind blowing.
Please carry on.
oottam-oottam-oottam bhai.
sunder-sunder-sunder bhai.
Hi Sanjeev ,
I really appreciate what a perfect blend of words you have used . I am confused now whether I appriciate Mr Pramod mahajan for what his achievements are or appriciate the writer who has written all those jobs..
Well done Happy writing.
Dipankar
KUCHH DOSTON NE ORKUT PER APNA VICHAR PRASTUT KIYA HAIN. YAHAN MAIN USE EK JAGAH PRAKASHIT KAR RAHA HUN.
....SANJEEV SINHA
Manish...........:
bahut achha lekh hai.
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Brajendra:
bahut badhiya bhai....tarif to suni thi apki ki aap bahut achha likhte hai lekin aaj maine khud dekh liyaa...kuch aur ho to link bheja kijiyeee....aur haan dukh hua is baat ka ki aap office ke niche se nikal gaye aur yaad tak nahi kiya....khair apse mulakat hoti to achha lagta....lucknow se kab lautna haiiiiiiiiiiiiii
baki sab yaha thik haiii....bye n take care
Gaurav:
sahi hai guru.
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Chandan:
Hello Sanjeev sir,
Maine socha ki mai bhi koochh samajik sewa kar loo. Maine blog mai http://helpthehungry.blogspot.com likha hai ki kaise bina dhan aur apna amulya smay lagaye bhookhe logo ke madad ki ja sakti hai. Aasha hai aapko pasand aayega aur aap eese aagey forward karenge.
Ashok:
Sinha sahab bilkul Satya likha hai apne Promod Mahajan jaise insan bahut kaam paida hote hai,,waha mere bhi priye neta mein sey ek the.
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Satish:
great piece of writing sinhaji...he really was a great leader.
Satish said...
Sinhaji,This is great. He really was a great leader and everybody in our generation knows what he has done for indian politics and society in general.
Your piece of writing is a great work too.
We alll are proud of you. You are another great leader in making !!
May 4, 2007 11:21 PM
प्रिय संजीव जी, आपका लेख पढ़कर प्रमोद जी के व्यक्तित्व के साथ आपकी लेख्ननी की सश्क्ताता का भी पता चलता है...
आपका अनुज- उमाशंकर मिश्र
हिन्दी चिट्ठाजगत् में आपका स्वागत व अभिनंदन.
नियमित लेखन हेतु शुभकामनाएँ.
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है।
प्रमोद महाजन सचमुच ही एक प्रतिभासम्पन्न राजनीतिज्ञ थे।
sanjiv ji pramod ji ne khud ko sabit kar diya...ab baari aapki hai...apke 50 janmdin per mai aapke baare me apke hi iss lekh ko prerna maan kar likhoo aise hardik iccha hai...ab tarif me shabd jutana surya ko diya dikhane ke saman hai..
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है संजीव जी। नियमित लेखन हेतु मेरी तरफ से शुभकामनाएं।
नए चिट्ठाकारों के स्वागत पृष्ठ पर अवश्य जाएं।
ई-पंडित
संजीव जी; आपके आने से यहां कुछ और रंग बिखरेगा, एसी कामना है
भैया,
हिन्दी में लिख्नना सिख गए हो! भारत भैया ने मुझे भी सिखाया है।
i was trying to realise the sentiment of your article whether there were any political smell or words from more of a nationalist individual!
I am more happy to realise that you have not changed your individual thoughts in order to please any person or group of people!!! people like us ( Rightist & BJP supporters) would always support your article!
But what matters more is that the common man of the street with nationalist activism should approve your words and feelings. Even I, as an individual assamese youth would like to supplement your words by saying that even most people of my state fondly remember Pramod ji as a great visionary and an enormously skilled politician & strategist, with honour and sincere love to the departed leader.
He, within such a small period of time was accepted by the people of assam and because of his words & activities.... he was acknowledged as an ASSAMESE.... leave aside the reality!
It will surely take time and a lot of effort to fill up the vaccum that his absence has made to our nationalist movements in the BJP as well as the nation!
Anyways, all the best to you and i always knew and were confident that a person of your calibre will never stay behind!!!
keep on bringing in innovative ideas and efforts to your field of activities.... and make a meaningful and beautiful difference to the world at large...
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