-संजीव कुमार सिन्हा
......13 मई को जयपुर में बम धमाके हुए......25 जुलाई को बेंगलुरू थर्रा उठा......और अब 26 जुलाई को अहमदाबाद दहल उठा। विगत तीन महिने में तीन भयानक आतंकी हमला। अहमदाबाद में एक के बाद एक हुए 17 क्रमिक बम विस्फोटों में 50 से अधिक लोगों की मौतें हुईं जबकि 150 से ज्यादा लोग घायल हुए। मणिनगर, इसनपुर, बापूनगर, हाटकेश्वर, सरनागपुर ब्रिज, सरखेज, रायपुर, जुहापुर, कुरियर मन्दिर आदि इलाकों में तबाही का मंजर था। बसों, साइकिलों, मोटरसाइकिलों के परखच्चे उड़ गए बापू की धरती खून से लाल हो गईं। आखिर कब तक यह सिलसिला चलता रहेगा? कब तक बेगुनाहों की लाशें ढ़ेर होती रहेंगी? कब तक हमारी सरकारें कुंभकर्णी नींद में सोयी रहेंगी? कब तक नेताओं के तोतारटंत बयानों की रस्म अदायगी होती रहेंगी? '''हम आतंकी हमला बर्दाश्त नहीं करेंगे'', ''हम आतंकवादियों को नहीं छोड़ेंगे'', ''आतंकवाद को जड़ समेत उखाड़ फेकेंगे'', ''आतंकवाद मानवता का दुश्मन हैं''। देश के गृहमंत्री को अब ये प्रलाप बंद कर देना चाहिए। बहुत हो चुका।
गौरतलब है कि भारत में आतंकवाद का प्रमुख स्रोत पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और बंगलादेशी घुसपैठिए हैं। तथाकथित सेकुलर दलों द्वारा वोट-बैंक की राजनीति के चक्कर में बंगलादेशियों को झुग्गी-झोपड़ियों में बसाने, उन्हें राशन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र दिलवाने के गंभीर खामियाजा देश को भुगतने पड़ रहे हैं। अब आतंकवाद केवल जम्मू-कश्मीर तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि पूरे देश में यह पैर पसार चुका है। आतंकवाद की आग में दक्षिण के राज्य सुलग रहे हैं। पूर्वोत्तर जल रहा है। ऐसा प्रतीत होता है मानों पूरा देश बारूद के ढ़ेर पर बैठा हैं। याद रहे कि इस समय पूरी धरती पर इराक के बाद भारत में ही सबसे अधिक आतंकवादी हमले हो रहे है। गौर करने वाली बात है कि अब तक भारत में हुए आतंकवादी हिंसा में 70,000 से अधिक बेगुनाहों के प्राण चले गए, जबकि पाकिस्तान तथा चीन के साथ जो युध्द हुए हैं, उनमें 8,023 लोगों की मौतें हुई। अमेरिका के राज्य विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर और नक्सलवादियों द्वारा किए गए आक्रमणों में सन् 2007 में कुल 2,300 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है।
आतंकवाद घृणित मानसिकता की उपज है। यह कायराना कृत्य है। अब यह कहना कि अशिक्षा, गरीबी और बेरोजगारी आतंकवाद का कारण है, बेमानी हो चुका है। आज का आतंकवादी शिक्षित हैं, कंप्यूटर योग्यता वाला है और संपन्न परिवार से ताल्लुक रखनेवाला है। आतंकवादियों का कोई मजहब नहीं होता। लेकिन यह दुर्भाग्य है कि हूजी, सिमी, लश्कर-ए-तोयबा आदि आतंकी संगठन जिहाद के नाम पर इस्लाम को बदनाम करने पर तुले हुए है। आतंकवाद से निपटने में संप्रग सरकार में इच्छाशक्ति का अभाव दिखता है। इस सरकार ने सत्तासीन होते ही सबसे पहला काम यही किया कि आतंकवाद विरोधी कानून पोटा को वापिस ले लिया। उसके बाद से आतंकवादियों का दुस्साहस लगातार बढ़ता ही जा रहा है। पोटा कानून लागू होना समय की मांग है। लगातार हो रहे आतंकी हमलों ने भारतीय खुफिया तंत्र की कार्य-प्रणाली को भी कठघरे में खड़ा कर दिया है। राजनेताओं की भी अजीब कहानी है। विपक्ष में होते है तो आतंकवाद के विरूध्द आग उगलते है और सत्ता में आते ही मानो उन्हें सांप सूंघ जाता है।
अभी थोड़े दिन नेताओं के बयानों के दौर चलेंगे। सत्ता पक्ष और विपक्ष आरोप-प्रत्यारोप में उलझेंगे। हमारी खुफिया एजेंसी थोड़ी सक्रियता दिखाएगी और चंद दिनों के बाद सब कुछ ठंडा पड़ जाएगा। कब जागेंगे हम? कब यह देश आतंकवाद को मुंहतोड़ जवाब देगा? कब पूरा देश आतंकवाद के खिलाफ एक साथ उठ खड़ा होगा? आज देश के नियंताओं और नागरिकों के सम्मुख यह यक्ष प्रश्न मुंह बाएं खड़ा है।
(फोटो याहू जागरण से साभार)
7 comments:
संजीवजी आप दुरस्त फ़र्मा रहे हैं.
गरीबों की दुनियां लुटी जा रही है.
हुकूमत के अँधोंको नींद आ रही है.
aap sahi hai..
भारत में आतंकवाद के फलने-फूलने के जिम्मेदार हैं सेकुलर दलों की अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की नीतियां। दुर्भाग्य से चंद मुसलमान इस्लाम को बदनाम कर रहे हैं। संप्रग सरकार आतंकवादियों पर इसलिए कार्रवाई नहीं कर रही है कि मुसलमान न कहीं नाराज हो जाए, यह दुर्भाग्यपूर्ण है।
संजीव जी,
आतंकवाद को ले कर आपकी दुश्चिंतायें जायज हैं। इतनी मौतें किसी युद्ध में भी इस राष्ट्र नें नहीं देखीं....क्या हमारे कर्णधार कभी जागेंगे?
***राजीव रंजन प्रसाद
www.rajeevnhpc.blogspot.com
आज की सरकार की मौकापरस्ती को कहा ही क्या जाये, मुस्लिम तुष्टिकरण के नाम पर जो कुछ कर रही है वह आंतकवाद को बढ़ावा ही देती है।
आतंक को अब ख़त्म होना ही चाहिए, वो बंबई के दंगे हों या गुजरात के या फिर कश्मीर के बुरे हालात हों. बहुत अच्छा लिखते हैं आप.
desh mae aatankwaad se jura mudda ho yaa phir koi aur.rastrahit ke lea karya kar rahee chand neta agar. nabalik ladkyoon ka yoon soshaan kare ,ghotalee karee toh ish desh ka kya kalyaan hoga...apne jo likha woh jan jan ko jaganee ke ek jaryaa hai............
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