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Monday, 22 October 2012

संवाद करें और साथ चलें


संजीव कुमार सिन्हा

बाएं से दाएं – भारत भूषण, संजीव सिन्‍हा (प्रवक्‍ता डॉट कॉम), आशीष झा (इसमाद डॉट कॉम), अमलेंदु उपाध्‍याय (हस्‍तक्षेप डॉट कॉम), यशवंत सिंह (भड़ास4मीडिया डॉट कॉम), जयराम विप्‍लव (जनोक्ति डॉट कॉम), संजय तिवारी (विस्‍फोट डॉट कॉम)
सन् 2006 में मैं कंप्यूटर, कहते हैं आग और पहिया के बाद इसी ने मानव सभ्यता को बदलने में सबसे उल्लेखनीय भूमिका निभाई है, की संगति में आया। हिंदी में सर्च के दौरान मशहूर ब्लॉगर रवि रतलामी के ब्लॉग पर पहुंच गया और खेल-खेल में अपना ब्लॉग भी बना लिया। (अभी थोड़ी देर पहले ब्लॉगर डॉट कॉम पर अपने प्रोफाइल की पड़ताल की तो पता चला नवम्बर 2006 में हितचिन्तक डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम बना लिया था। यानी, नेट पर सक्रिय रूप से काम करते हुए मुझे 6 वर्ष हो गए) हालांकि हितचिन्तक पर सक्रियता में तेजी आई मई 2007 से। तब से लेकर मई 2009 तक जमकर ब्लॉगिंग किया। ब्लॉगजगत की अनेक खट्टी-मीठी यादें मन में ताजा हैं। इसी बीच मित्रवर भारत भूषण के सौजन्य से 16 अक्टूबर 2008 को प्रवक्ता डॉट कॉम की स्थापना हो चुकी थी। और हम बड़े फलक पर अपने काम में जुट गए। काम में जुटने के पीछे जो उद्देश्य थे वह यह कि हम चाहते थे कि 80 करोड़ लोगों की भाषा हिंदी नेट पर समृद्ध हो और इस भाषा में विचार-विमर्श हो। साथ ही लोगों में राष्ट्रीय चेतना का प्रवाह हो।

गौरतलब है कि भारत में इंटरनेट की शुरुआत 1995 में वीएसएनएल के द्वारा हुई। इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ के आंकड़ों के मुताबिक इस वक्त देश में तकरीबन 14 करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं और यह संख्या बड़ी तेजी से बढ़ रही है। 22 सितम्बर 1999 को हिंदी की पहली वेबसाइट ‘वेबदुनिया डॉट कॉम’ की शुरुआत हुई। यानी हिंदी वेबमीडिया की सक्रियता के 13 साल हो गए हैं। तबसे लेकर हजारों वेबसाइटें बन चुकी हैं। हमें इसका अंदाजा नहीं था कि इतनी जल्दी वेबमीडिया का विस्तार इस हद तक हो जाएगा। जब हिंदी की दुनिया में पाठकों की कमी का स्‍यापा चारों तरफ चल रहा हो ऐसे में ’प्रवक्ता’ को ही देखें तो आज इसे प्रतिदिन 44 हजार 382 हिट्स मिल रही है। लोकप्रियता के मामले में भड़ास4मीडिया डॉट कॉम ने तो खैर इतिहास ही रच डाला। इसी तरह विस्फोट डॉट कॉम, मोहल्लालाइव डॉट कॉम, जनोक्ति डॉट कॉम, हस्तक्षेप डॉट कॉम, नेटवर्क6 डॉट इन, इसमाद डॉट कॉम आदि विषयवस्तु और गुणवत्ता की दृष्टि से बेहतरीन कार्य कर रहे हैं। वर्तमान समय में आज सभी प्रमुख समाचार-पत्रों की वेबसाइटें हैं। लोकतांत्रिक प्रकृति, प्रिंट, रेडियो और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की खासियत को अपने में समेटे, समय सीमा और भौगोलिक सीमा से मुक्त, कभी भी अर्काइव देख लेने की सुविधा, कम लागत, पर्यावरण के अनुकूल आदि सुविधाओं के चलते वेबमीडिया का भविष्य उज्ज्वल है और यही मुख्यधारा का मीडिया बनता जा रहा है। ब्रिटेन और अमेरिका में प्रिंट और इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया को वेबमीडिया कड़ी टक्‍कर दे रहा है और कई प्रतिष्ठित अखबारों का मुद्रण भी बंद हो चुका है।

वेबमीडिया के व्यापक विस्तार के पश्चात् यह जरूरी हो गया है कि अब इस पर कायदे से बात होनी चाहिए। क्योंकि प्रिंट मीडिया की समस्याओं को लेकर ‘प्रेस काऊंसिल ऑफ इंडिया’ गंभीर दिखता है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए बीइए संस्था है। लेकिन वेबमीडिया की चिंता करनेवाली कोई संस्था नहीं हैं। प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए आचारसंहिता पर विस्तार से चर्चा हुई है लेकिन वेबमीडिया को लेकर इस तरह की कोई पहल नहीं हुई है। चाहे वेबमीडिया की भाषा और विषयवस्तु का सवाल हो या फिर आर्थिक मॉडल की, इस पर ढंग से विचार नहीं किया गया। सरकारों द्वारा वेबपत्रकारों को अधिमान्यता नहीं मिल रही है तो वेबपत्रकारों पर हमले बढ़ रहे हैं। वेबमीडिया पर गाहे-बगाहे सवाल उठते रहते हैं कि यह गंभीर नहीं है और सरकार भी इस पर अपनी नजरें टिकाए हुई है। इसलिए वेबपत्रकारों को चाहिए कि वह स्वनियमन की पहल करें। कहने का अर्थ यह है कि वेबमीडिया बहुत ‘बड़ा’ हो गया है, लेकिन इसे ‘अच्छा’ बनने की दिशा में निरंतर प्रयासरत होना चाहिए।

कुछ महीने पहले एक दिन संजय तिवारी जी का फोन आया। उन्होंने कहा कि सभी वेबसाइटों को एक साथ आना चाहिए और एक मंच बनना चाहिए। और पहल करते हुए उन्होंने विस्फोट पर हस्तक्षेप, प्रवक्ता समेत कुछ साइटों का लिंक भी प्रस्तुत किया। परन्तु कुछ दिनों बाद साइट के सज्जाकरण के पश्चात् वह लिंक दिखना बंद हो गया। लेकिन मुझे लगा कि यह पहल आगे बढ़नी चाहिए। और इसी बीच एक अवसर भी आ गया प्रवक्ता डॉट कॉम की चौथी सालगिरह का। हमने सोचा इस अवसर का लाभ उठाते हुए प्रमुख साइट प्रमुखों को बुलाकर इस पर बात करनी चाहिए। सबसे पहले हमने प्रवक्ता के प्रबंधक भारत जी को फोन किया। हमेशा की तरह उन्होंने हामी भर दी। जगह के लिए हमने सोचा कि कोई मध्य दिल्ली का स्थान हो। और कांस्टिट्यूशन क्लब से अच्छा क्या हो सकता है? पता किया तो हमें यह स्थान मिल गया। इसके बाद हमने सूची बनाई और कुल 11 लोगों के नाम सामने आए। अविनाश जी (मोहल्लालाइव डॉट कॉम) को फोन लगाया और निवेदन किया कि 16 अक्टूबर को प्रवक्ता के चार साल पूरे हो रहे हैं और इस अवसर पर चाय-कॉफी के साथ वेबमीडिया की दशा और दिशा पर बात करना चाहते हैं। सो आप आइए। उन्होंने हमारा उत्साह बढ़ाते हुए कहा कि संजीवजी, चाय-कॉफी ही नहीं आपको समोसे की भी व्यवस्था करनी होगी। उन्होंने कहा कि वो जरूर आएंगे। लेकिन उस दौरान बुखार से पीडि़त हो जाने के कारण वह बैठक में उपस्थित नहीं हो सके। फिर हमने संजय जी (विस्फोट डॉट कॉम) को याद किया। उन्होंने भी कहा कि आएंगे। इसके बाद यशवंत जी (भड़ास4मीडिया डॉट कॉम) को कॉल किया तो उन्होंने कहा कि संजीव, यह जरूरी काम है। मैं रहूंगा बैठक में। फिर अमलेंदु जी (हस्तक्षेप डॉट कॉम) को सूचना दी। उन्होंने भी हामी भर दी। आवेश तिवारी जी (नेटवर्क6 डॉट इन) से बात की। उन्होंने भी उपस्थित रहने को आश्वस्त किया, लेकिन वो नहीं आ पाए। फिर हमने आशीष जी (इसमाद डॉट कॉम) को फोन किया। उन्होंने भी कहा, आएंगे। इसके पश्‍चात् हमने पुष्कर जी (मीडियाखबर डॉट कॉम) को कॉल किया। उन्होंने कहा कि इस वक्त वो अपने गांव (बिहार) में हैं, सो बैठक में उपस्थित नहीं रह पाने का उन्हें अफसोस रहेगा। इसके बाद जयराम जी (जनोक्ति डॉट कॉम) को फोन लगाया। कहा, आएंगे। फिर हमने ब्रजेश जी को फोन किया। उन्होंने भी कहा, आएंगे लेकिन ऐन समय पर जरूरी बैठक के कारण वो नहीं आ सके। फिर हमने अफरोज साहिल (बियोंडहेडलाइन्स डॉट इन) को फोन किया। उन्होंने भी उपस्थित रहने की बात कही लेकिन अस्वस्थ हो जाने के कारण मौजूद नहीं हो सके।

बैठक वाले दिन 16 अक्टूबर को मैं ठीक 3 बजे कांस्टिट्यूशन क्लब पहुंच गया। और प्रथम तल पर स्थित बैठक स्थल पर जाकर आसन जमा लिया। इसी बीच साढ़े तीन बजे भारत जी पहुंचे। और चार बजने में कुछ मिनट बाकी थे तो आशीष जी पहुंचे। ठीक चार बजे यशवंत जी और अमलेंदु जी, राकेश जी (वेब तकनीकी जानकार) के साथ पहुंचे। भारतजी यशवंत जी के साथ तकनीकी ज्ञान बघार रहे थे तो संजय जी और जयराम जी का आगमन हुआ। इसी बीच भारत जी के सौजन्य से अल्पाहार का अवसर आया। सैंडविच, पेस्ट्री और चाय का स्वाद लेते हुए तकनीकी चर्चाएं होती रहीं। अल्पाहार के बाद परिचय का दौर चला। वैसे तो सब एक दूसरे को जानते ही थे लेकिन परिचय का क्रम काफी देर तक चला। सबने अपने बारे में विस्तार से बताया। यशवंत जी ने बताया कि वे पढ़ाई के दौरान वामपंथी छात्र संगठन ‘आइसा’ से जुड़े रहे और पत्रकारिता की पढ़ाई के बाद दैनिक जागरण और अमर उजाला में काम किया। जयराम जी ने कहा कि उन्होंने जामिया मिलिया इस्लामिया से पत्रकारिता में डिप्लोमा किया और उसके बाद मुख्यधारा की पत्रकारिता में जाने की बजाए वैकल्पिक मीडिया पथ पर चलना स्वीकारा और जनोक्ति की शुरुआत की। हमने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् में सक्रियता से काम करने के बाद इन दिनों कमल संदेश से जुड़ा हूं और गत चार वर्षों से प्रवक्ता का संपादन कर रहा हूं। अमलेंदु जी ने अपना परिचय देते हुए कहा कि वो उत्तर प्रदेश में एआईएसएफ के सचिव रहे हैं और लम्बे समय से पत्रकारिता से जुड़े हैं। उन्होंने बताया कि वह राष्ट्रीय सहारा के ‘हस्तक्षेप’ परिशिष्ट के लिए दो साल तक काम कर चुके हैं। आशीष जी ने अपने बारे में बताते हुए कहा कि उन्हें मीडिया के तमाम विधाओं का अनुभव प्राप्त है। वह फोटोग्राफर रहे। प्रभात खबर, दैनिक जागरण और आज समाज में काम किया और वर्तमान में सौभाग्य मिथिला चैनल के न्यूज हेड का दायित्व संभाल रहे हैं।

परिचय के उपरांत वेबसाइट के आर्थिक पहलू पर बात हुई। यह विषय प्रमुखता से उभरा कि गूगल विज्ञापन के मामले में भारतीय भाषाओं के साथ भेदभाव करता है। इस बात पर चिंता प्रकट की गई कि वेबमीडिया को अस्तित्व में आए कई वर्ष हो गए लेकिन इसका कोई आर्थिक मॉडल विकसित नहीं हो पाया है। सबने माना कि वेबसाइट के संचालन के लिए आर्थिक ढांचे पर ध्यान देना जरूरी है और जिस तरह स्मॉल न्यूजपेपर एसोसिएशन सरकार पर विज्ञापन के लिए दबाव बनाते हैं हमें भी इस ओर सामूहिक पहल करनी होगी।

इसके पश्चात् बैठक में हमने यह विषय रखा कि संजय जी ने एक बार न्यूमीडिया के लिए एक मंच बनाने का विचार रखा था लेकिन वह आगे बढ़ नहीं सका। तो क्या इसे आगे बढ़ाया जा सकता है? सबसे पहले यशवंत जी अपने विचार रखते हुए कहा कि यह स्वागतयोग्य पहल है और एक ग्रूप बनना चाहिए। जयराम जी ने बताया कि हम सबको एक साथ आना ही चाहिए और इस पर वह काफी समय से सोच भी रहे हैं। अमलेंदु जी ने भी इसे समयोचित माना। संजय जी ने भी कहा कि स्वार्थ छोड़कर समूह बनाना चाहिए। आशीष जी ने कहा कि यह मंच तो बनना ही चाहिए साथ ही एडिटर्स गिल्ड जैसे संगठन के बारे में भी सोचना चाहिए। इसके पश्चात् बैठक में संगठन के लिए चार-पांच नाम आए और सर्वसम्मति से ‘भारतीय वेब पत्रकार संघ’ नामक संगठन के गठन पर सहमति बनी।

बैठक में यह भी तय हुआ कि इस संस्था को रजिस्टर्ड कराया जाए। फेसबुक, ब्लॉग और वेबसाइट बनाकर इससे सैकड़ों वेबपत्रकारों को जोड़ा जाए।

ठीक सवा 6 बजे बैठक समाप्त हो गई यानी पूरे दो घंटे तक बैठक चली। इस बैठक की यह खासियत रही कि बड़े ही आत्मीय माहौल में और सहज तरीके से चर्चा हुई। कांस्टिट्यूशन क्लब से बाहर निकलते समय गेट पर ग्रूप फोटो लिए गए।

एक-दूसरे के अभिवादन के साथ सब विदा हुए।

Wednesday, 11 July 2012

दिल्‍ली में सिनेमा दर्शन

काफी दिनों से श्रीमती जी की इच्‍छा थी कि दिल्‍ली में सिनेमा साथ नहीं देखा, हमें चलना चाहिए। और यह इच्‍छा गत 8 जुलाई को पूरी हुई। हिंदी के दस राष्‍ट्रीय समाचार-पत्र अपन प्रतिदिन देखते हैं लेकिन पढ़ते जनसत्ता हैं। इस अखबार में 'नगर में आज' नाम से एक स्‍तंभ  है जिसमें उस दिन होने वाले कार्यक्रमों की सूचना होती है। इसी से हमें दिल्‍ली में आयोजित सेमिनार, संगोष्‍ठी और प्रदर्शनों की जानकारियां मिलती हैं। और हम समय निकाल कर अकसर जाते हैं। इसी स्‍तंभ से पता चला कि राजघाट स्थित राष्‍ट्रीय गांधी संग्रहालय में सायं 4 बजे से शनिवार को अंग्रेजी और रविवार को हिंदी फिल्‍म दिखाई जाती है। 8 जुलाई को रविवार था। हमने श्रीमती जी को कहा कि चलो तैयार हो जाओ। ठीक साढ़े तीन बजे निकलना है। उनको सहसा विश्‍वास नहीं हुआ। लेकिन मेरी गंभीरता देख वह तैयार हो गई। तो अपने डेढ़ वर्षीय पुत्र के साथ हम राजघाट पहुंचे। जब हम पहुंचे तो फिल्‍म चल रही थी। हॉल में लगभग 50 लोगों के बैठने की व्‍यवस्‍था है लेकिन वहां बमुश्किल 15 लोग थे। फिल्‍म का नाम था- 'बापू ने कहा था..'। 1962 में श्‍वेत और श्‍याम के कैनवास पर बनी इस फिल्‍म के निर्देशक थे विजय भट्ट, इन्‍होंने ही मशहूर फिल्‍म बैजू बावरा निर्देशित की थी। अपन गांधीजी के भक्‍त हैं इसलिए फिल्‍म का नाम जानकर मन प्रफुल्लित हो गया। पांच मिनट फिल्‍म चली होगी कि 'सार्थक' ने अपना करतब दिखाना शुरू कर किया। वह बगल में पड़ी खाली कुर्सियों पर उधम-कूद मचाने लगा। श्रीमती जी गुस्‍सायीं। हमने कहा, ऐसा करो कि बगल में ही राजघाट है। यहीं बापू की समाधि है तब तक उसे देख आओ। वह 'सार्थक' को गोद में लेकर बाहर निकल गई। फिल्‍म में मैं गांधीजी के अवतरित होने का इंतजार कर रहा था लेकिन वे प्रारंभ के दस मिनट तक दिखाई नहीं दिए। मैं भी बाहर निकला। वहां के विक्रय केंद्र में खड़ी एक महिला से पूछा, 'बापू ने कहा था..' फिल्‍म कहां लगी ? महिला ने उसी हॉल की ओर इशारा किया। मैं फिर जाकर वहीं बैठ गया। देखता हूं कि सिनेमा में मोरारजीभाई एक जनसभा में बच्‍चों को उपदेश दे रहे हैं। वे बता रहे थे, 'बच्‍चों, गांधी जी सच बोलते थे और कहते थे हमेशा सच बोलना। चोरी नहीं करना। किसी को कष्‍ट नहीं पहुंचाना।' दरअसल यह फिल्‍म गांधीवादी आदर्शों की पृष्‍ठभूमि में बनी है। इस फिल्‍म में चार-पांच नटखट बच्‍चे हैं। एक बार वे लोग पटाखे चलाते हैं और इसकी लुत्ती एक व्‍यक्ति की झोपड़ी पर पड़ती है। झोपड़ी धू-धूकर जल जाती है। इसे लेकर पंचायत बैठती है तो उसमें ये बच्‍चे शरारती हरकत करते हुए किसी और व्‍यक्ति का नाम लगा देते हैं। जिसका घर जला है उसके साथ एक सेठ छल रचता है। सेठ उससे कहता है कि हम तुम्‍हें घर बनवाने के लिए 300 रुपए देते हैं, इसके बदले यहां (स्‍टाम्‍प लगे सादे कागज पर) अंगूठा लगा दो, हम ये रुपए उस व्‍यक्ति से, जिसने तुम्‍हारा घर जलाया है उससे बात हो गई, ले लेंगे। और इस तरीके से सेठ उससे अंगूठे का निशान लगवाकर उसकी सारी जमीनें अपने नाम कर लेता है। चार-पांच जो नटखट बच्‍चे हैं उसमें से एक सेठ का भी बेटा है और यह बालक अपने पिता की कारस्‍तानी को अपनी आंखों से देखता है। उसे रात में नींद नहीं आती है। वो सोचता है। मोरारजी भाई द्वारा गांधीजी के कहे एक-एक शब्‍द उसके दिमाग में घूमने लगते हैं। वो तय करता है कि अपने पिता के इस कृत्‍य का विरोध करेगा। जब सेठ अपने दल-बल सहित, जिसका घर जला है, उसके जमीन पर हल चलाने पहुंचता है तो सेठ का बेटा सामने आकर खड़ा हो जाता है। वह जिद्द करता है कि पिताजी आपने गलत किया। हमने आपके छल-प्रपंच को अपनी आंखों से देखा है। उसके पिता नाराज होते हैं और घर लौट जाते हैं। बालक वहीं खेत में ही सत्‍याग्रह पर बैठ जाता है। उसके सभी नटखट दोस्‍तों को भी अपनी गलती का आभास होता है और वे भी उसके साथ हो जाते हैं। धीरे-धीरे गांव के और भी लोग बालक का साथ देने आ जाते हैं। सेठ पिता जमीन छोड़ने पर मजबूर होता है और इस तरह सच की जीत होती है। सत्‍यमेव जयते। ध्‍यान में आया कि यही तो भारत की परंपरा है। नचिकेता ने भी श्रेष्‍ठ आचरण परंपरा की अक्षुण्‍णता के लिए पिता से जिद किया था। परमात्‍मा से यही प्रार्थना है कि हमें नचिकेता और गांधीजी के प्रेरक पाथेय पर चलने की शक्ति दी। 

फिल्‍म समाप्‍त होने से दो मिनट पहले श्रीमती जी हॉल में आ गईं। उन्‍हें साफ-सुथरा बापू की समाधि ने प्रेरित किया। फिर हमने अपने सैमसंग मोबाइल से केन्‍द्र के परिसर में लगी बापू की मूर्तियों के सान्निध्‍य में तस्‍वीरें खिंचवायीं। घर आने के बाद श्रीमती जी ने कहा, 'बापू की समाधि, वहां का शांतिमय प्रेरक वातावरण, उनके चित्र, उनकी मूर्तियों को देखकर अच्‍छा लगा। थैंक यू।'