संजीव कुमार सिन्हा
गौरतलब है कि भारत में इंटरनेट की शुरुआत 1995 में वीएसएनएल के द्वारा हुई। इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ के आंकड़ों के मुताबिक इस वक्त देश में तकरीबन 14 करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं और यह संख्या बड़ी तेजी से बढ़ रही है। 22 सितम्बर 1999 को हिंदी की पहली वेबसाइट ‘वेबदुनिया डॉट कॉम’ की शुरुआत हुई। यानी हिंदी वेबमीडिया की सक्रियता के 13 साल हो गए हैं। तबसे लेकर हजारों वेबसाइटें बन चुकी हैं। हमें इसका अंदाजा नहीं था कि इतनी जल्दी वेबमीडिया का विस्तार इस हद तक हो जाएगा। जब हिंदी की दुनिया में पाठकों की कमी का स्यापा चारों तरफ चल रहा हो ऐसे में ’प्रवक्ता’ को ही देखें तो आज इसे प्रतिदिन 44 हजार 382 हिट्स मिल रही है। लोकप्रियता के मामले में भड़ास4मीडिया डॉट कॉम ने तो खैर इतिहास ही रच डाला। इसी तरह विस्फोट डॉट कॉम, मोहल्लालाइव डॉट कॉम, जनोक्ति डॉट कॉम, हस्तक्षेप डॉट कॉम, नेटवर्क6 डॉट इन, इसमाद डॉट कॉम आदि विषयवस्तु और गुणवत्ता की दृष्टि से बेहतरीन कार्य कर रहे हैं। वर्तमान समय में आज सभी प्रमुख समाचार-पत्रों की वेबसाइटें हैं। लोकतांत्रिक प्रकृति, प्रिंट, रेडियो और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की खासियत को अपने में समेटे, समय सीमा और भौगोलिक सीमा से मुक्त, कभी भी अर्काइव देख लेने की सुविधा, कम लागत, पर्यावरण के अनुकूल आदि सुविधाओं के चलते वेबमीडिया का भविष्य उज्ज्वल है और यही मुख्यधारा का मीडिया बनता जा रहा है। ब्रिटेन और अमेरिका में प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को वेबमीडिया कड़ी टक्कर दे रहा है और कई प्रतिष्ठित अखबारों का मुद्रण भी बंद हो चुका है।
वेबमीडिया के व्यापक विस्तार के पश्चात् यह जरूरी हो गया है कि अब इस पर कायदे से बात होनी चाहिए। क्योंकि प्रिंट मीडिया की समस्याओं को लेकर ‘प्रेस काऊंसिल ऑफ इंडिया’ गंभीर दिखता है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए बीइए संस्था है। लेकिन वेबमीडिया की चिंता करनेवाली कोई संस्था नहीं हैं। प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए आचारसंहिता पर विस्तार से चर्चा हुई है लेकिन वेबमीडिया को लेकर इस तरह की कोई पहल नहीं हुई है। चाहे वेबमीडिया की भाषा और विषयवस्तु का सवाल हो या फिर आर्थिक मॉडल की, इस पर ढंग से विचार नहीं किया गया। सरकारों द्वारा वेबपत्रकारों को अधिमान्यता नहीं मिल रही है तो वेबपत्रकारों पर हमले बढ़ रहे हैं। वेबमीडिया पर गाहे-बगाहे सवाल उठते रहते हैं कि यह गंभीर नहीं है और सरकार भी इस पर अपनी नजरें टिकाए हुई है। इसलिए वेबपत्रकारों को चाहिए कि वह स्वनियमन की पहल करें। कहने का अर्थ यह है कि वेबमीडिया बहुत ‘बड़ा’ हो गया है, लेकिन इसे ‘अच्छा’ बनने की दिशा में निरंतर प्रयासरत होना चाहिए।
कुछ महीने पहले एक दिन संजय तिवारी जी का फोन आया। उन्होंने कहा कि सभी वेबसाइटों को एक साथ आना चाहिए और एक मंच बनना चाहिए। और पहल करते हुए उन्होंने विस्फोट पर हस्तक्षेप, प्रवक्ता समेत कुछ साइटों का लिंक भी प्रस्तुत किया। परन्तु कुछ दिनों बाद साइट के सज्जाकरण के पश्चात् वह लिंक दिखना बंद हो गया। लेकिन मुझे लगा कि यह पहल आगे बढ़नी चाहिए। और इसी बीच एक अवसर भी आ गया प्रवक्ता डॉट कॉम की चौथी सालगिरह का। हमने सोचा इस अवसर का लाभ उठाते हुए प्रमुख साइट प्रमुखों को बुलाकर इस पर बात करनी चाहिए। सबसे पहले हमने प्रवक्ता के प्रबंधक भारत जी को फोन किया। हमेशा की तरह उन्होंने हामी भर दी। जगह के लिए हमने सोचा कि कोई मध्य दिल्ली का स्थान हो। और कांस्टिट्यूशन क्लब से अच्छा क्या हो सकता है? पता किया तो हमें यह स्थान मिल गया। इसके बाद हमने सूची बनाई और कुल 11 लोगों के नाम सामने आए। अविनाश जी (मोहल्लालाइव डॉट कॉम) को फोन लगाया और निवेदन किया कि 16 अक्टूबर को प्रवक्ता के चार साल पूरे हो रहे हैं और इस अवसर पर चाय-कॉफी के साथ वेबमीडिया की दशा और दिशा पर बात करना चाहते हैं। सो आप आइए। उन्होंने हमारा उत्साह बढ़ाते हुए कहा कि संजीवजी, चाय-कॉफी ही नहीं आपको समोसे की भी व्यवस्था करनी होगी। उन्होंने कहा कि वो जरूर आएंगे। लेकिन उस दौरान बुखार से पीडि़त हो जाने के कारण वह बैठक में उपस्थित नहीं हो सके। फिर हमने संजय जी (विस्फोट डॉट कॉम) को याद किया। उन्होंने भी कहा कि आएंगे। इसके बाद यशवंत जी (भड़ास4मीडिया डॉट कॉम) को कॉल किया तो उन्होंने कहा कि संजीव, यह जरूरी काम है। मैं रहूंगा बैठक में। फिर अमलेंदु जी (हस्तक्षेप डॉट कॉम) को सूचना दी। उन्होंने भी हामी भर दी। आवेश तिवारी जी (नेटवर्क6 डॉट इन) से बात की। उन्होंने भी उपस्थित रहने को आश्वस्त किया, लेकिन वो नहीं आ पाए। फिर हमने आशीष जी (इसमाद डॉट कॉम) को फोन किया। उन्होंने भी कहा, आएंगे। इसके पश्चात् हमने पुष्कर जी (मीडियाखबर डॉट कॉम) को कॉल किया। उन्होंने कहा कि इस वक्त वो अपने गांव (बिहार) में हैं, सो बैठक में उपस्थित नहीं रह पाने का उन्हें अफसोस रहेगा। इसके बाद जयराम जी (जनोक्ति डॉट कॉम) को फोन लगाया। कहा, आएंगे। फिर हमने ब्रजेश जी को फोन किया। उन्होंने भी कहा, आएंगे लेकिन ऐन समय पर जरूरी बैठक के कारण वो नहीं आ सके। फिर हमने अफरोज साहिल (बियोंडहेडलाइन्स डॉट इन) को फोन किया। उन्होंने भी उपस्थित रहने की बात कही लेकिन अस्वस्थ हो जाने के कारण मौजूद नहीं हो सके।
परिचय के उपरांत वेबसाइट के आर्थिक पहलू पर बात हुई। यह विषय प्रमुखता से उभरा कि गूगल विज्ञापन के मामले में भारतीय भाषाओं के साथ भेदभाव करता है। इस बात पर चिंता प्रकट की गई कि वेबमीडिया को अस्तित्व में आए कई वर्ष हो गए लेकिन इसका कोई आर्थिक मॉडल विकसित नहीं हो पाया है। सबने माना कि वेबसाइट के संचालन के लिए आर्थिक ढांचे पर ध्यान देना जरूरी है और जिस तरह स्मॉल न्यूजपेपर एसोसिएशन सरकार पर विज्ञापन के लिए दबाव बनाते हैं हमें भी इस ओर सामूहिक पहल करनी होगी।
इसके पश्चात् बैठक में हमने यह विषय रखा कि संजय जी ने एक बार न्यूमीडिया के लिए एक मंच बनाने का विचार रखा था लेकिन वह आगे बढ़ नहीं सका। तो क्या इसे आगे बढ़ाया जा सकता है? सबसे पहले यशवंत जी अपने विचार रखते हुए कहा कि यह स्वागतयोग्य पहल है और एक ग्रूप बनना चाहिए। जयराम जी ने बताया कि हम सबको एक साथ आना ही चाहिए और इस पर वह काफी समय से सोच भी रहे हैं। अमलेंदु जी ने भी इसे समयोचित माना। संजय जी ने भी कहा कि स्वार्थ छोड़कर समूह बनाना चाहिए। आशीष जी ने कहा कि यह मंच तो बनना ही चाहिए साथ ही एडिटर्स गिल्ड जैसे संगठन के बारे में भी सोचना चाहिए। इसके पश्चात् बैठक में संगठन के लिए चार-पांच नाम आए और सर्वसम्मति से ‘भारतीय वेब पत्रकार संघ’ नामक संगठन के गठन पर सहमति बनी।
बैठक में यह भी तय हुआ कि इस संस्था को रजिस्टर्ड कराया जाए। फेसबुक, ब्लॉग और वेबसाइट बनाकर इससे सैकड़ों वेबपत्रकारों को जोड़ा जाए।
ठीक सवा 6 बजे बैठक समाप्त हो गई यानी पूरे दो घंटे तक बैठक चली। इस बैठक की यह खासियत रही कि बड़े ही आत्मीय माहौल में और सहज तरीके से चर्चा हुई। कांस्टिट्यूशन क्लब से बाहर निकलते समय गेट पर ग्रूप फोटो लिए गए।
एक-दूसरे के अभिवादन के साथ सब विदा हुए।