भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, राज्यसभा सदस्य एवं मध्यप्रदेश प्रभारी डॉ. विनय सहस्रबुद्धे से नई दिल्ली स्थित उनके आवास पर लोकसभा चुनाव एवं वैचारिक विषयों पर कमल संदेश के सहायक संपादक संजीव कुमार सिन्हा ने बातचीत की। प्रस्तुत हैं मुख्य अंश :
भाजपा ने इस बार 2014 के लोकसभा चुनाव से भी बड़ी जीत हासिल की। इस जीत के क्या कारण रहे?
मुझे लगता है कि देश की राजनीति ने एक दृष्टि से करवट बदली है। चुनावी राजनीति का जो पारंपरिक व्याकरण था उसमें भी एक आमूलचूल परिवर्तन आने की दिशा में ये चुनाव परिणाम संकेत करते हैं। आमतौर पर चुनाव लड़े जाते थे लोकलुभावन वादों के आधार पर। किसी भावनात्मक विषय को एकदम से ऊपर उठाते हुए या फिर अस्मिता से जुड़े, पहचान या परिचय से जुड़े विषयों को आगे लाते हुए भारत में चुनाव सामान्य तौर पर लड़े जाते हैं।
इस समय जो देख रहा हूं या जो समझ में आ रहा है वो मैं वर्णन करूंगा कि एक तरीके से जैसे डेवलपमेंट इकॉनोमिक्स होता है, डेवलपमेंट एडमिनिस्ट्रेशन नाम की एक नई ज्ञान-शाखा चली आई है। वैसे इस चुनाव की देन है कि इसने डेवलपमेंट नेशनलिज्म को आकार दिया है। तो यह एक ‘विकास राष्ट्रवाद’ है। इसको कोई ‘राष्ट्र विकासवाद’ भी कह सकता है, जिसमें राष्ट्रीय अस्मिता के, राष्ट्रीय स्वाभिमान के, राष्ट्र की विश्व में जो पहचान है, पहचान के और देश के विकास के; और विकास में सामाजिक न्याय भी है, अंत्योदय भी है, गरीबी उन्मूलन भी है, सारी चीजें हैं। इन सारे विषयों का एक मिला–जुला रसायन बना है। जिस रसायन ने एक बहुत बड़ा परिवर्तन इस चुनाव में सिद्ध किया है। तो उस दृष्टि से मैं पहले मुद्दे पर आता हूं कि यह चुनाव एक दृष्टि से राजनीति की बदलती हुई करवट का परिचायक है और बदले हुए व्याकरण का एक चिह्न है, उसको चिन्हित करने वाला, उसको निर्देशित करने वाला ये चुनाव है।
आपके पास मध्य प्रदेश भाजपा के प्रभारी का भी दायित्व है। इस प्रदेश में लोकसभा चुनाव में भाजपा ने बड़ी जीत दर्ज की। हालांकि कुछ महीने पूर्व हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को अपेक्षित सफलता नहीं मिली। लोकसभा चुनाव में इतनी जल्दी भाजपा ने शानदार जीत कैसे हासिल की?
–देखिए, मध्य प्रदेश के बारे में मैं यह कहूंगा कि वहां पर तीन कारण सबसे महत्वपूर्ण रहे। पहली बात ये रही कि वहां के मतदाताओं को शिवराज सिंह सरकार के अपदस्थ होने का एक पछतावा था, उनको छोटी–मोटी नाराजगी पन्द्रह साल रही सरकार के बारे में होना स्वाभाविक है, मगर नाराजगी इतनी भी नहीं थी कि वो सरकार को हटते हुए देखे, मगर सरकार मात्र 4 सीटों के लिए सत्तासीन नहीं हो पाई तो उसके कारण पश्चाताप से दग्ध, ऐसा मध्य प्रदेश का जनमानस था। वो भूल सुधारने की कोशिश उन्होंने बड़े जबरदस्त तरीके से इस चुनाव में की हुई दिखाई दे रही है, ये एक बात है।
दूसरी बात है कि कमलनाथ सरकार के सत्तासीन होने के बाद जो वहां के गर्वनेंस का स्वरूप रहा है, वो भी बहुत निराशाजनक है और किसी भी आश्वासन की प्रतिपूर्ति में कोई कारगर कदम नहीं उठाए गए। कानून व्यवस्था चरमरा गई है। भ्रष्टाचार के नए–नए किस्से लोग एक–दूसरे को बता रहे हैं। अपने अनुभव के आधार पर, स्वयं उनके निजी सचिव के दफ्तर में करोड़ों की संपदा पाई गई है और इनके जो तीन शीर्षस्थ नेता हैं, इसके आपस दिक्कतों के चलते भी वहां की राजनीति में एक अस्थिरता आई है, तो ऐसी स्थिति में लोगों को उस सरकार के पक्ष में वोट देने का एक भी कारण कमलनाथ सरकार ने दिया नहीं है, तो लोग क्यों वोट देंगे। और तीसरी बात, जो पूरे देश के लिए मायने रखती है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी को पुन: सत्ता में प्रतिस्थापित करने के प्रति लोगों में जबरदस्त उत्साह और अनुकूलता की भावना थी, तो इन तीन कारणों से हम मध्यप्रदेश का चुनाव जीत पाए हैं।
अब कुछ वैचारिक प्रश्न। भाजपा और कांग्रेस में क्या अंतर है?
कांग्रेस–भाजपा में अंतर तो काफी है। हमारी भारतीय जनता पार्टी की अपनी जो विशिष्ट पहचान है, वो संगठन के कारण है, विचारधारा के कारण है, और मैं मानता हूं कि विचारधारा इसमें अहम है। इस विचारधारा का प्रतिबिंब हमारे संगठन शैली में भी है, और हमारे गवर्नेंस में भी है, मगर मूल अंतर विचारों का है।
सबसे पहली बात है कि कांग्रेस समेत बहुत सारे राजनीतिक दलों ने जो विचारों का मार्ग स्वीकार किया है, वो मुख्यत: भारत के बाहर जन्मी हुई विचारधाराओं का है, भारतीय विचारधारा जिसको हम कहेंगे स्वदेशी विचारधारा, इस देश की मिट्टी का सुगंध रखनेवाली विचारधारा, उसके आधार पर काम करने वाला विचारधारा कोई है, जो पूर्णरूपेण विचारधारा अधिष्ठित दल है तो वो भाजपा है। दूसरा है कि कम्युनिस्टों का अपवाद छोड़िए तो बहुत सारे दल ऐसे हैं जो एक घराने पर केंद्रित हैं और भारतीय जनता पार्टी देश के सभी क्षेत्रों में उपस्थित होने के बावजूद भी यहां पर न राष्ट्रीय स्तर पर, न राज्य स्तर पर किसी एक घराने की चलती है। हमारे यहां प्रदेश का, जिले का या देश का राष्ट्रीय अध्यक्ष पार्टी का कौन बनेगा, इसके बारे में कोई बता नहीं सकता, जबकि अन्यान्य दलों में लोग बता पाते हैं कि इनका बेटा होगा, इनका पोता होगा, या नाती होगा या ये होगा। तो भारतीय जनता पार्टी संगठन के संदर्भ में पूर्ण लोकतांत्रिक तरीके से चलने वाली पार्टी है और वो भी विचारधारा का अंग है। तीसरी बात है कि बाकी बहुत सारे दल वोट–बैंक की राजनीति के कारण समाज में विभेद उत्पन्न करने पर तुले हुए होते हैं। समाज जितना ज्यादा विभाजित उतनी उनकी जीत की संभावना अधिक, ये गणित रहता है, जबकि यहां हम सामाजिक एकता के कारण पर चुनाव लड़ते हैं। हम पार्टी को किसी एक वर्ग विशेष तक सीमित रखने के विरोध में हैं जबकि देश में कई राजनीतिक दल हैं, जिनका एक समाज विशेष के साथ इतना गहरा रिश्ता बन गया है कि उसके अतिरिक्त लोग उनके बारे में सोच ही नहीं सकते हैं। एक समीकरण सा बन गया है कि एक्स पार्टी यानी ये समाज, वाई पार्टी यानी ये समाज, ऐसा भाजपा के बारे में कोई नहीं कह पाएगा। चौथा महत्वपूर्ण बिन्दु है जो विचारधारा को ही परिलक्षित करता है। हम कहते हैं कि राष्ट्र प्रथम, दल उसके पश्चात् और व्यक्ति उसके बाद तो इसी विचार की परछाई हमारी गवर्नेंस में भी दिखती है।
प्रधानमंत्री मोदीजी हों या हमारे विभिन्न मुख्यमंत्री हों, इन्होंने गवर्नेंस यानी शासकता में एक उद्देश्यपूर्णता लाई है, जो लगभग निष्कासित हो चुकी थी और इसलिए सरकार में काम करना यानी केवल लालबत्ती की कार में बैठना, सरकार में काम करना यानी लेटरहेड या विजिटिंग कार्ड छपवाना, सरकार में काम करना यानी अफसरशाही पर नकेल कसना, इतना मात्र नहीं होता है, या रौब जमाना है या गार्ड ऑफ ऑनर लेना है, इतना मात्र नहीं होता, सरकार में बैठना यानी एक दायित्व निभाना है और दायित्व के पीछे उद्देश्यपूर्णता के आधार पर उस दायित्व को निभाना ये होता है और इसका परिचय मुझे लगता है कि भारतीय जनता पार्टी अपने सरकारों के माध्यम से देती रही है।
आपने कहा कि कांग्रेस का संबंध विदेशी विचारधारा से है। इसका आधार क्या है?
कांग्रेस की विचारधारा विदेशी मतलब क्या, मूलत: कांग्रेस की जो विचारधारा थी वो स्वाधीनता आंदोलन तक तो भारत को स्वाधीन करना, इतनी ही थी। मगर स्वाधीनता आंदोलन के बाद देश के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरूजी के ऊपर साम्यवाद का एक आकर्षण था और इसीलिए सोवियत रूस का मॉडल उन्हें बेहद पसंद था, जिसके कारण हमारे यहां प्लैंड इकॉनोमी, योजना आयोग, ये सारा विषय आया और 1956–57 में मद्रास के निकट आवडी में जब कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था, उसमें उन्होंने समाजवादी धारा को अपना लिया।
हम कहते हैं कि पहले तो हमारा जनतंत्र आध्यात्मिक जनतंत्र है, बाद में वो राजनीतिक है और अब बाबासाहेब अंबेडकर के सपनों के अनुसार हमें सामाजिक और आर्थिक जनतंत्र की ओर बढ़ना है। मगर इन्हें सेकुलरिज्म का मोह इतना हो गया, जो एक विशिष्ट परिस्थिति के कारण ब्रिटेन में पनपी हुई विचारधारा थी, हमारे यहां कभी भी पंथ के आधार पर सत्ता नहीं थी, तो ये सारी चीजें इसी को परिलक्षित करती हैं कि कांग्रेस की विचारधारा भी धीरे–धीरे विदेश के संदर्भ में जानी जाने लगी।
भाजपा नया भारत बनाने की बात कहती है। पार्टी के पास नए भारत के लिए क्या विजन है?
देखिए, भाजपा का विजन हमारे सनातन संस्कृति के सूत्र वाक्य से ही है। और वो है– सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:। सभी सुखी हों, सभी को निरामय जीवन का लाभ हो और इसलिए अंत्योदय का जो दर्शन है, वो हमारा एक दृष्टि से प्राणतत्व है। हम प्रेरणा राष्ट्रवाद या राष्ट्रभक्ति से लेते हैं, अंत्योदय हमारा लक्ष्य है। उसको पाने के लिए हमारे जो साधन हैं, उसका नाम है– सुशासन और विकास।
सुशासन और विकास ये कोई केवल फ्लाईओवर्स के माध्यम से या बुलेट ट्रेन के माध्यम से नहीं होता है, बुलेट ट्रेन, फ्लाईओवर्स, अच्छी परिवहन व्यवस्थाएं, ये तो बहुत महत्वपूर्ण इसलिए हो जाता है, क्योंकि उसके आधार पर हमारी अर्थव्यवस्था को गति मिलती है, अर्थव्यवस्था को गति मिलती है तो समाज के निचले तबके तक विकास का रिसाव होता है। संसाधन वहां भी पहुंचते हैं और लोग सपने देखने लगते हैं, जब लोग आकांक्षावान हो जाते हैं, तब वो और तरक्की करते हैं, तो यही हमारी धारणा है। ये कोई किसी को एनटाइटलमेंट के आधार पर कि कोई उसके नाम से जमीन करो, उसको फलाना पैसे दे दो, इसके माध्यम से नहीं होता, हमने अगर जनकल्याण के कार्यक्रम किए हैं, तो वो भी सशक्तिकरण के लिए किए हैं, ताकि वो अपने पैरों पर खड़ा हो पाए।
अंबेडकरजी ने जो कहा था उस समय कि नौकरी मांगने वाले मत रहो, देने वाले बनो, इसको अमल में लाने के लिए मोदीजी को सत्ता हाथ में लानी पड़ी। उसके पहले क्या अंबेडकरजी का नाम किसी ने नहीं लिया था, लिया तो था मगर केवल नाम लिया था, काम तो भूल गए थे तो हमने वो किया है।