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Saturday 16 June, 2007

नक्सलियों की शौर्य-गाथा


'नक्सली ही सच्चे क्रांतिकारी है' ऐसे जुमले हम वातानुकूलित कमरों या सेमिनारों में बहस करने वाले कुछ मुट्ठी भर तथाकथित प्रतिबध्द बुध्दिजीवियों के मुंह से सुनते रहते है। ऐसे प्राणी हिन्दी ब्लॉग पर भी मौजूद है। अपना सम्पूर्ण जीवन माँ भारती के चरणों में समर्पित करने वाले जयप्रकाश नारायण ने कहा था, "हिंसा का सहारा वे लेते हैं जिन्हें जनता का विश्वास प्राप्त नहीं होता।" भारत में मजदूरों की तानाशाही लाने का सपना देखने वाले ये नक्सलवादी मजदूरों, किसानों का शोषण कर, मेहनतकश लोगों के हाथ-पैर और गला काटकर सरेआम उनकी हत्या कर, बैंकों और रेलवे स्टेशन को लूटकर वैभवपूर्ण जीवन जी रहे हैं। सच में ये रक्तपिपासु हैं। इनका विचार खोखला हैं, अन्यथा ये हिंसा का सहारा न लेकर लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होते। कायर लोग हिंसावादी होते हैं। आतंकवादियों से नक्सलियों के रिश्ते जगजाहिर है। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आई.एस.आई., उल्फा और लिट्टे से इनकी सांठगांठ है। ये राष्ट्रद्रोही है। दरअसल यौन शोषण और निर्दोष लोगों की हत्या ही तो नक्सली क्रांति का असली रूप है।

आज के राष्ट्रीय सहारा में नक्सलियों का घिनौना चेहरा फिर एक बार उजागर हुआ है।

नक्सली भी करते है नक्सलियों का शोषण
रमेश शर्मा, सहारा न्यूज ब्यूरो, रायपुर, 15 जून

बंदूक की जोर पर शोषक दुनियां को बदलने वाले का दावा करने वाले नक्सली अपनी आइडियोलाजी को बेशक सही ठहराए लेकिन उनके चंगुल में फंसे युवक-युवतियां शोषण की एक अलग चक्की में पिसते नजर आते है। नक्सली दल में शामिल युवतियों की जबरिया नसबंदी कराके उनके साथ दुष्कृत्य किए जाने के आरोप भी सामने आए है। राजनांदगांव क्षेत्र में पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण करने वाले देवकी दलम के पूर्व नक्सली ने बयान दिया है कि छत्तीसगढ में आंध्रप्रदेश के नक्सली अपना रूतबा जमाए हुए है और प्रत्येक क्षेत्र के दलम में उनका वर्चस्व कायम है। शंकर गोंड़ नामक इस नक्सली के मुताबिक नई भर्ती वाले नक्सलियों से पहले कुली की तरह काम कराया जाता है और रात में संतरी का काम लेने के अलावा रसोई पकाने के काम में भी रगड़ा जाता है।

शंकर गोंड़ ने यह भी बताया है कि प्रत्येक दल (नक्सली समूह) में महिलाएं भी रखी जाती हैं जो दल में शामिल किए जाते ही पत्नी बना ली जाती हैं और उनका शारीरिक शोषण किया जाता है। बच्चे पैदा न हो जाएं इस खातिर औरतों की नसबंदी करा दी जाती है। शंकर के मुताबिक उसकी आंखों के सामने कई महिला नक्सलियों के साथ दुर्व्यवहार किया गया। नक्सली गांव की तेजतर्रार और मिलिट्री कदकाठी वाली युवतियों को जबरन या बहका कर अपने साथ रख लेते है। उनके एजेंट गांव-गांव में है।
शंकर का कहना है कि बड़ी-बड़ी बातों के आकर्षण में फंस कर उसने नक्सली बन बंदूक तो उठा ली लेकिन यह समझ में नहीं आया कि नक्सली आखिर चाहते क्या है। उसकी राय में नक्सली केवल गांव-गाव में घूमकर अपना दबदबा बनाए रखना चाहते है। कोई नक्सली युवक अपने परिवार से मिलने जाना चाहे तो उसको झड़क दिया जाता है। दसरी ओर छत्तीसगढ़ पुलिस के आला अधिकारी इस बात से चितिंत हैं कि गांव-कस्बों में अपराधियों की एक नई फौज खड़ी हो रही है।

6 comments:

संजय बेंगाणी said...

सुन्दर लेख. धन्यवाद यहाँ रखने के लिए.

Sanjeet Tripathi said...

हकीकत!!

धन्यवाद

ePandit said...

सच्चाई को दर्शाता सही और सटीक लेख, धन्यवाद!

Shaktistambh said...

आप ने नक्सलवाद का असली चेहरा सामने लाकर पाठकों की बड़ी सेवा की है। आज तो नक्सलवाद के प्रणेता चारू मजूमदार भी 40 वर्ष बाद यह मानने पर मजबूर हो गये हैं कि हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं बन सकती। महिलाओं की आपबीती से पता चलता है कि किस प्रकार महिलाओं को फुसला कर इस रास्ते पर डाल दिया जाता है और बाद में उनका बुरी तरह शोषण किया जाता है। शोषण के विरूध्द हथियार उठाने वाले स्वयं शोषण करने लगते हैं-यह क्या विडम्बना है और कितना अत्याचार है। यह तो अपने सिध्दान्तों से ही विश्वासघात है।

राजीव रंजन प्रसाद said...

संजीव जी

अक्षरक्ष: सत्य कहा है आपनें। केवल नक्सली ही राष्ट्रद्रोही नहीं हैं अपितु आपके शब्दों में "तथाकथित प्रतिबध्द बुध्दिजीबी" भी राष्ट्रद्रोही है बल्कि कहीं अधिक दोषी।

इत्तफाकन इसी विषय पर मेरी एक व्यंग्यात्मक कविता "कलम घसीटों तुम्हें नमन है" मंगलवार को www.hindyugm.com पर प्रकाशित हो रही है। आपकी प्रतिकृया वहाँ चाहूँगा।

*** राजीव रंजन प्रसाद

बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण said...

जयप्रकाश नारायण ने कहा था, "हिंसा का सहारा वे लेते हैं जिन्हें जनता का विश्वास प्राप्त नहीं होता।"

सवाल यह उठता है, राम ने रावण के प्रति हिंसा का सहारा क्यों लिया?

जरा इस पर अपने विचार रखने का कष्ट करेंगे?