हितचिन्‍तक- लोकतंत्र एवं राष्‍ट्रवाद की रक्षा में। आपका हार्दिक अभिनन्‍दन है। राष्ट्रभक्ति का ज्वार न रुकता - आए जिस-जिस में हिम्मत हो

Thursday 14 June, 2007

साम्यवाद (Communism) पर महात्मा गांधी के विचार


दुनिया भर के प्रमुख विचारकों ने भारतीय जीवन-दर्शन एवं जीवन-मूल्य, धर्म, साहित्य, संस्कृति एवं आध्यात्मिकता को मनुष्य के उत्कर्ष के लिए सर्वोत्कृष्ट बताया है, लेकिन इसे भारत का दुर्भाग्य कहेंगे कि यहां की माटी पर मुट्ठी भर लोग ऐसे हैं, जो पाश्चात्य विचारधारा का अनुगामी बनते हुए यहां की परंपरा और प्रतीकों का जमकर माखौल उड़ाने में अपने को धन्य समझते है। इस विचारधारा के अनुयायी 'कम्युनिस्ट' कहलाते है। विदेशी चंदे पर पलने वाले और कांग्रेस की जूठन पर अपनी विचारधारा को पोषित करने वाले 'कम्युनिस्टों' की कारस्तानी भारत के लिए चिंता का विषय है। हमारे राष्ट्रीय नायकों ने बहुत पहले कम्युनिस्टों की विचारधारा के प्रति चिंता प्रकट की थी और देशवासियों को सावधान किया था। आज उनकी बात सच साबित होती दिखाई दे रही है। सच में, माक्र्सवाद की सड़ांध से भारत प्रदूषित हो रहा है। आइए, इसे सदा के लिए भारत की माटी में दफन कर दें।

कम्युनिस्टों के ऐतिहासिक अपराधों की लम्बी दास्तां है-

• सोवियत संघ और चीन को अपना पितृभूमि और पुण्यभूमि मानने की मानसिकता उन्हें कभी भारत को अपना न बना सकी।

• कम्युनिस्टों ने 1942 के 'भारत-छोड़ो आंदोलन के समय अंग्रेजों का साथ देते हुए देशवासियों के साथ विश्वासघात किया।

• 1962 में चीन के भारत पर आक्रमण के समय चीन की तरफदारी की। वे शीघ्र ही चीनी कम्युनिस्टों के स्वागत के लिए कलकत्ता में लाल सलाम देने को आतुर हो गए। चीन को उन्होंने हमलावर घोषित न किया तथा इसे सीमा विवाद कहकर टालने का प्रयास किया। चीन का चेयरमैन-हमारा चेयरमैन का नारा लगाया।

• इतना ही नहीं, श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपने शासन को बनाए रखने के लिए 25 जून, 1975 को देश में आपातकाल की घोषणा कर दी और अपने विरोधियों को कुचलने के पूरे प्रयास किए तथा झूठे आरोप लगातार अनेक राष्ट्रभक्तों को जेल में डाल दिया। उस समय भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी श्रीमती इंदिरा गांधी की पिछलग्गू बन गई। डांगे ने आपातकाल का समर्थन किया तथा सोवियत संघ ने आपातकाल को 'अवसर तथा समय अनुकूल' बताया।

• भारत के विभाजन के लिए कम्युनिस्टों ने मुस्लिम लीग का समर्थन किया।

• कम्युनिस्टों ने सुभाषचन्द्र बोस को 'तोजो का कुत्ता', जवाहर लाल नेहरू को 'साम्राज्यवाद का दौड़ता कुत्ता' तथा सरदार पटेल को 'फासिस्ट' कहकर गालियां दी।
ये कुछ बानगी भर है। आगे हम और विस्तार से बताएंगे।


भारतीय कम्युनिस्ट भारत में वर्ग-संघर्ष पैदा करने में विफल रहे, परंतु उन्होंने गांधीजी को एक वर्ग-विशेष का पक्षधर, अर्थात् पुजीपतियों का समर्थक बताने में एड़ी-चोटी का जोड़ लगा दिया। उन्हें कभी छोटे बुर्जुआ के संकीर्ण विचारोंवाला, धनवान वर्ग के हित का संरक्षण करनेवाला व्यक्ति तथा जमींदार वर्ग का दर्शन देने वाला आदि अनेक गालियां दी। इतना ही नहीं, गांधीजी को 'क्रांति-विरोधी तथा ब्रिटीश उपनिवेशवाद का रक्षक' बतलाया। 1928 से 1956 तक सोवियत इन्साइक्लोपीडिया में उनका चित्र वीभत्स ढंग से रखता रहा। परंतु गांधीजी वर्ग-संषर्ष तथा अलगाव के इन कम्युनिस्ट हथकंडों से दुखी अवश्य हुए।

साम्यवाद (Communism) पर महात्मा गांधी के विचार-


महात्मा गांधी ने आजादी के पश्चात् अपनी मृत्यु से तीन मास पूर्व (25 अक्टूबर, 1947) को कहा-

'कम्युनिस्ट समझते है कि उनका सबसे बड़ा कत्तव्य, सबसे बड़ी सेवा- मनमुटाव पैदा करना, असंतोष को जन्म देना और हड़ताल कराना है। वे यह नहीं देखते कि यह असंतोष, ये हड़तालें अंत में किसे हानि पहुंचाएगी। अधूरा ज्ञान सबसे बड़ी बुराइयों में से एक है। कुछ ज्ञान और निर्देश रूस से प्राप्त करते है। हमारे कम्युनिस्ट इसी दयनीय हालत में जान पड़ते है। मैं इसे शर्मनाक न कहकर दयनीय कहता हूं, क्योंकि मैं अनुभव करता हूं कि उन्हें दोष देने की बजाय उन पर तरस खाने की आवश्यकता है। ये लोग एकता को खंडित करनेवाली उस आग को हवा दे रहे हैं, जिन्हें अंग्रेज लगा लगा गए थे।'

6 comments:

Pratik Pandey said...

जो तथ्य आपने यहाँ दिए हैं वे अगर वाक़ई सही हैं, तो इनसे भारतीय कम्यूनिस्ट्स का बहुत ही विकृत रूप उभरता है।

अनुनाद सिंह said...

सबसे महत्वपूर्ण बातें तो आप लिखते-लिखते रह गये। पश्चिम बंगाल जो आजादी के समय सबसे अग्रणी राज्य था, उसे सबसे पिछड़े राज्यों में ला खड़ा कर दिया। दूसरा भारत की कार्य संस्कृति को स्थायी रूप से पंगु बना दिया(पूरा वेतन आदा काम)। तीसरा, देश में नकली बुद्धिजीवी बनाने की मशीन लगा दी और जो लोग इनके उत्पादों को घटिया मानते हैं उनपर 'काम्युनल' का ठप्पा लगाने का एक प्रोजेक्ट भी चला दिया।

और नवीनतम काम जो उन्होने आरम्भ किया है वह है हर अच्छी छीज का विरोध। भारतीयता का विरोध। मुस्लिम आतंकवाद का मूक समर्थन। बांग्लादेशियो को बसाओ और जीतते रहो आदि..

ePandit said...

अच्छे आंकड़े प्रस्तुत किए आपने। कम्युनिस्टों का तो इतिहास ही षडयंत्र, मौकापरस्ती और देश से गद्दारी का रहा है।

खैर, एक दिन कम्युनिज्म भारत की माटी में दफन होकर रहेगा।

Shaktistambh said...

यह तो आपने अच्छा ही किया कि इस ब्लाग के माध्यम से पाठकों को साम्यवादियों का असली चेहरा दिखा दिया। साम्यवाद ने तो जन्म ही विदेशी धरती पर लिया और उसकी विचारधारा को इस देश की माटी से कुछ लेना-देना नहीं है। साम्यवादी भारत की धरती से जुड़े व्यक्ति नहीं है। उनकी सोच तो रूस और चीन के पास गिरवी है। यदि कभी भारत और किसी साम्यवादी देश के बीच किसी प्रकार का टकराव हो जाये तो साम्यवादी अपने देश के साथ नहीं अपने साम्यवादी भाई के साथ खड़े हो जाते हैं। चीन के साथ सीमा विवाद पर भी साम्यवादी भारत के साथ नहीं चीन ही के पिछलग्गू बन कर रह जाते हैं। अभी हाल ही में जब भारत और चीन के बीच सीमा विवाद उठा और युध्द तक हो गया तो हमारे अंतरंग मित्र तत्कालीन सोवियत संघ ने भी यही कहा कि यह हमारे भाई अर्थात् चीन और हमारे मित्र यानी भारत के बीच झगड़ा है। तब सोवियत संघ भी हमारे साथ इस संघर्ष में खड़ा न होने में ही अपना राष्ट्रीय हित समझा।

Anonymous said...

sorry friend's right now i have not hindi editor so i am writing i english with little shame as i have to be in hindi but topic is serious so language does not matters.
"i am totally agree with GANDHIJI'S
point that we have to show mercy communists,but as for as today's scenario is concern,they are playing important role in politics and government so we have to be very careful of them.finally i want to say that all of us must understand the policy of these chineese men and stop them.

Jeetesh said...

कम्यूनिस्टों ने कभी देश का भला नहीं चाहा, उन्होंने तो केवल चीन का ही दामन थामा, लेकिन चीन भी है तो अभागा क्योंकि उसने कम्यूनिस्टों को ही गले लगाया। जिसने अपने घर आंगन में कभी कोई पौधा नहीं लगाया उसने कभी प्यार किसी का नहीं पाया।