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Monday, 30 September 2013

नमो-नमो.....आंखों ने जो देखा !

अपन गांधी, लोहिया और दीनदयाल उपाध्याय को आदर्श राजनेता मानकर राजनीति में सक्रिय हैं। सादगी, शुचिता, विनम्रता, अध्ययनशीलता...ये सब गुण ऐसे हैं, जो ज्यादा आकर्षित करते हैं। ज्यादा तड़क-भड़क मुझे नहीं भाते। अटलजी-आडवाणीजी के भी इसलिए प्रशंसक हैं कि ये दोनों नेता छह दशकों से नैतिकता, शुचिता और प्रामाणिकता के पर्याय बने हुए हैं। 

मैं स्वेच्छा से स्वीकारी हुई गरीबी का जीवन जीता हूं और इसमें आनंदित रहता हूं, और जिनका जीवन इस तरह का है, उनसे प्रेरित होता हूं। यानी 'सादा जीवन – उच्च विचार' अपना पाथेय है। गत एक दशक से भारतीय राजनीति में नरेंद्र मोदी जिस तरीके से लगातार आगे बढ़ रहे हैं वह आश्चर्यजनक है। गुजरात को उन्होंने समृद्धि की उस ऊंचाई पर पहुंचा दिया, जहां तक किसी भी मुख्यमंत्री के लिए अपने राज्य को पहुंचाना सपना जैसा है। तो मेरे मन में स्वेच्छा से स्वीकारी हुई गरीबी और चरम समृद्धि में द्वंद्व जैसा चला। बहुत ज्यादा मैं मोदी जी का प्रशंसक नहीं हो पाया। इसे लेकर लगातार मित्रों से बहस होती रही।



परसों मित्रवर नितिन शर्मा जी का कॉल आया कि कल यानी 29 सितम्बर को दिल्ली में आयोजित नरेंद्र मोदी जी की रैली में चलो। रैली के दिन सुबह-सुबह 9 बजे वो मित्र नीरज आर्य और विजय शर्मा के संग अपनी कार से मेरे निवास पहुंचे। हम भी उनके साथ हो लिए। होर्डिंग, बैनर, पार्टी के झंडे से पूरा रास्ता पटा पड़ा था। अधिकांश कारों, बसों और मिनी बसों में पार्टी के झंडे लगे थे और 'नरेंद्र मोदी जिन्दाबाद' के नारे से यात्रा-मार्ग गुंजायमान हो रहा था। 10 बजे के करीब हम रिठाला मेट्रो स्टेशन के आसपास पहुंचे। मित्र विजय शर्मा आइजीएल के अधिकारी थे तो उन्होंने जुगाड़ लगाई और हमने गाड़ी वहीं आईजील स्टेशन पर खड़ी कर दी। और वहीं से पैदल चल पड़े। चार-पांच किलोमीटर पैदल चलना पड़ा। रास्ते भर में लोगों का रेला जारी था। ऐसा लग रहा था कि हम धार्मिक परिक्रमा कर रहे हों। नारे तो गूंज ही रहे थे, लोगों के वर्ग भी विविधता लिए हुए थे। युवाओं की फौज, 80 साल के वृद्ध, गांव के गरीब और किसान, कॉरपोरेट क्षेत्र की महिलाएं और पुरूष, सब पसीने से तर-बतर लेकिन उत्साह और उम्मीद के सहारे पैदल ही रैली स्थल की ओर चले जा रहे, स्वयं की प्रेरणा से जा रहे....अपने 36 साल के जीवन में किसी राजनीतिक रैली में ऐसा उत्साह अपनी आंखों से मैं पहली बार देख रहा था। साढ़े 10 बजे हम रैली स्थल यानी रोहिणी स्थित जैपनीज पार्क पहुंचे। पूरा पंडाल खचाखच भरा हुआ। लोगों का उत्साह देखते ही बन रहा था। जब हम रैली से करीब सवा एक बजे विदा हुए तो भी रास्ते में लोगों का काफिला आता ही रहा। भारी भीड़। जितनी संख्या पंडाल में उतनी ही उसके बाहर, वह भी सतत्। 



एक कमरे में बंद होकर, एसी रूम में, लैपटॉप-डेस्कटॉप के सहारे मैं जो अपने मित्रों से बहस करता था, वह हकीकत से कोसों दूर था। आखिर जब राजनीति में विश्वसनीयता का संकट चरम पर हो, राजनीतिक रैलियों में दिहाड़ी पर भीड़ जुटाए जाते हों, आम आदमी सहज कहते पाएं जाते हों कि सब नेता चोर हैं.....ऐसे में नरेंद्र मोदी को लेकर जन-विश्वास का देशभर में जगह-जगह ऐसा व्यापक प्रकटीकरण होना, इसमें जरूर कुछ न कुछ विशेष बात है। नरेंद्र मोदी की चुस्त प्रशासनिक क्षमता, ईमानदार राजनेता और उनकी प्रखर राष्ट्ररवादी विचारधारा समकालीन भारतीय राजनीति में उन्हें विशिष्ट बनाता है, इसमें कोई दोमत नहीं है। 

जब भारत को भ्रष्टाचार का महारोग जर्जर किए जा रहा हो, जब देश के प्रधानमंत्री अपने पिलपिले व्यवहार से करोड़ों भारतीयों के साथ छल कर रहे हों, जब तुष्टिकरण की राजनीति देश में अलगाव पैदा कर रही हो तो ऐसे में नरेंद्र मोदी के पक्ष में खड़ा होना राष्‍ट्रीय कर्तव्य है और तटस्थ रहना राष्ट्रीय अपराध। 

(फोटो : विजय शर्मा)

Thursday, 26 September 2013

हिंदी चिट्ठाकारिता को मिला नवजीवन

म.गां.अं.हिं.वि.वि., वर्धा में 20 एवं 21 सितम्‍बर 2013 को 'हिंदी ब्लॉगिंग एवं सोशल मीडिया' संगोष्ठी संपन्न

संजीव कुमार सिन्‍हा की रपट

पिछले महीने जब इंटरनेट पर विचर रहा था तो अचानक 'हिंदी ब्लॉगिंग और सोशल मीडिया' विषयक संगोष्ठी का संदर्भ आया। मैं रूक गया। दिलचस्पी जगी। पूरी पोस्ट पढ़ गया। फिर दूसरी पोस्ट भी संदर्भित थी। तो उसे भी पढ़ गया। यह ब्लॉग सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी का था। मेरा उनसे परिचय नहीं था।

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संगोष्ठी‍ में भाग लेने की इच्छा प्रबल हो उठी।

मैंने सिद्धार्थ जी को मेल किया, ''मैं सन् 2006 से हिंदी ब्लॉ़गिंग की दुनिया में सक्रिय हूं। 2006 से 2008 तक हितचिन्तक ब्लॉग को लेकर सक्रिय था। 2008 से प्रवक्ता डॉट कॉम का संपादन कर रहा हूं।''

''रुचि लेने के लिए धन्यवाद। सेमिनार में प्रतिभाग के लिए सबको अवसर है, बशर्ते वह इसमें गंभीर रुचि प्रदर्शित करे। आपको करना यह भर हैं कि इस सेमिनार में आप जो बातें रखना चाहते हैं उनको संक्षेप में आलेखबद्ध करके तत्काल उपलब्ध करा दें ताकि वि.वि. द्वारा आपके आमंत्रण की औपचारिक स्वीकृति प्राप्त कर सकूँ।'' – सिद्धार्थजी ने जवाबी मेल में कहा।

कुछ दिनों बाद फिर सिद्धार्थजी का मेल आया, ''लंबी प्रतीक्षा के बाद भी आपका आलेख नहीं आया।''

दरअसल, इसी बीच मैं एक किताब के संपादन में व्यस्त हो गया था।

समय निकालकर मैंने उन्हें ''2007 में हिंदी ब्लॉगिंग के परिदृश्‍य'' पर एक संक्षिप्त आलेख मेल किया।

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और इस तरह से मुझे कार्यक्रम में सहभागिता के लिए औपचारिक निमंत्रण मिला।

कार्यक्रम में सहभागिता हेतु मैं इसलिए उत्सुक था कि एक तो ब्लॉगिंग की दुनिया से खास लगाव रहा है। और दूसरा, इस संगोष्ठी में अनूप शुक्ल, अनिल रघुराज, आलोक कुमार, विपुल जैन जैसे वरिष्ठ ब्लॉगर आने वाले थे।

इसी बीच पता चला कि माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के प्रकाशन अधिकारी व ब्लॉगर मित्रवर डॉ. सौरभ मालवीय भी संगोष्ठी में पधारने वाले हैं। उनसे बातचीत हुई। और उन्होंने अपने साथ मेरा भी वर्धा आने-जाने का टिकट आरक्षित करा लिया। हालांकि, बाद में अपरिहार्य कारणवश वे नहीं जा सके।

19 सितम्बर को प्रात: 11.30 बजे नई दिल्ली से केरला एक्सप्रेस से मैं सेवाग्राम के लिए रवाना हुआ। रात्रि 9.30 पर ट्रेन भोपाल पहुंची और सौरभ जी आगे की यात्रा और वापसी का टिकट मुझे देने आए।

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प्रात: साढ़े छह बजे के करीब केरला एक्सप्रेस सेवाग्राम स्टेशन पर पहुंची। मैं जैसे ही ट्रेन से उतरा। अविनाश वाचस्पति दिख गए। उनके साथ दो सज्जन और भी थे। मैंने पहचान लिया था। अविनाशजी ने परिचय कराया, ये हैं अनूप शुक्ल और ये संतोष त्रिवेदी। बाद में प्लेटफॉर्म नम्बर-1 पर कार्तिकेय मिश्र मिले। स्टेशन के मुख्य द्वार पर आते ही आयोजक की ओर से हमें लेने के लिए बंधु मिले। हम उनके साथ कार से महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्विविद्यालय, वर्धा परिसर स्थित 'नागार्जुन सराय' पहुंचे।

सुबह साढ़े सात बजे नागार्जुन सराय पहुंचा। आयोजक की ओर से बताया गया कि आपको कक्ष संख्यान 213 अलॉट किया गया है। मैंने गेट खटखटाया। सामने मित्रवर पंकज झा मिले। फेसबुक के चर्चित यूजर और दीपकमल, रायपुर के संपादक। हम जानते थे कि झा साहब देर रात तक जागते हैं क्योंकि वे फेसबुक पर खूब समय बिताते हैं। और इसके चलते सुबह देर तक सोते हैं। सो, दो मिनट राम-राम हुआ और वे झट से सो गए। मैं भी दूसरे बेड पर पसर गया। साढ़े आठ बजे जग गया। नित्य क्रिया से निवृत्त हुआ। इसके बाद झा जी भी फ्रेश हुए।

जलपान के लिए बुलावा आया। हम दोनों साथ गए। जलपान-कक्ष में नामी-गिरामी ब्लॉगरों को देखकर मन गद्गद हो गया।

प्रात 10 बजे. उद्घाटन कार्यक्रम। हबीब तनवीर सभागृह। कार्यक्रम की शुरूआत विवि के कुलगीत से हुआ। बताया गया कि यह नरेश सक्सेना जी द्वारा रचित है। संगोष्ठी के संयोजक सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कार्यक्रम की भूमिका रखी। संचार एवं मीडिया अध्येयन केंद्र के निदेशक प्रो. अनिल कुमार राय ने स्वागत भाषण दिया। इसके बाद ब्लॉगिंग की महत्ता पर युनूस खान की मधुर आवाज में रवि रतलामी की ऑडियो-विजुअल प्रस्तुति प्रस्तुत की गई। कार्तिकेय मिश्र ने कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की और प्रवीण पांडेय ने अपने वक्तव्य में हिंदी ब्लॉगिंग के लिए सांस्थानिक समर्थन पर बल दिया। म.गां.अं.हिं.वि.वि. के प्रतिकुलपति अरविंदाक्षन ने भी संबोधित किया।

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कुलपति श्री विभूति नारायण राय ने कहा कि विश्वविद्यालय नवाचारी पाठ्यक्रमों के पक्ष में रहा है, यह संगोष्ठी उसी का परिणाम है। उन्होंने आगे कहा कि हिंदी ब्लॉगिंग के लिए एग्रीगेटर की व्यवस्था होनी चाहिए और इसमें हम भूमिका निभाएंगे।

प्रथम सत्र। ''ब्लॉग, फेसबुक और ट्विटर की तिकड़ी : एक दूसरे के विकल्प या पूरक।'' वक्ता थे – बलिराम धाप्से, अनूप शुक्ल , प्रवीण पांडे, अरविंद मिश्र, संतोष त्रिवेदी, सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी, अविनाश वाचस्पति।

द्वितीय सत्र। तकनीकी सत्र। आलोक कुमार, विपुल जैन और अनूप शुक्ल ने विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को ब्लॉग खाता बनाने की संक्षिप्त प्रक्रिया बताई।

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तृतीय सत्र। ''सोशल मीडिया और राजनीति।'' संचालक- हर्षवर्धन त्रिपाठी। वक्तागण-संजीव सिन्हा, पंकज झा, संजीव तिवारी, अनूप शुक्लत, अनिल रघुराज, शंकुतला शर्मा, कार्तिकेय मिश्र।

पहले दिन रात्रिभोजन के उपरांत सांस्‍कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया। इसका कुशल संचालन अरविंद मिश्र ने किया। कुलपति श्री विभूति नारायण राय की उपस्थिति उल्‍लेखनीय रही। अरविंद मिश्र, प्रवीण पांडेय, शकुंतला शर्मा, सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी, हर्षवर्धन त्रिपाठी ने अपनी कविता सुनाकर सबको मंत्रमुग्‍ध कर दिया।

दूसरा एवं अंतिम दिन। चौथा सत्र। 'हिंदी ब्लॉगिंग और साहित्य।' संचालक- इष्टदेव सांकृत्यायन। वक्‍तागण - अविनाश वाचस्‍पति, अरविंद मिश्र, ललित शर्मा, शंकुतला शर्मा, डॉ. प्रवेश चोपड़ा, वंदना अवस्थी दूबे। इस सत्र में इस बात पर चर्चा हुई कि साहित्य के कितने आयामों को छू रहा है ब्लॉग? अविनाश वाचस्पति ने सटीक बात कही कि ब्लॉग घर का खाना है और सोशल मीडिया फास्‍ट फूड।

तकनीकी चर्चा। आलोक कुमार एवं विपुल जैन ने विकीपीडिया के बारे में विस्तार से बताया कि कैसे यहां अपना खाता बनाकर या बिना खाता बनाए आप अपना योगदान देते हुए हिंदी को समृद्ध कर सकते हैं। शैलेष भारतवासी तकनीकी जिज्ञासाओं की पूर्ति के लिए मंचासीन हुए।

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खुली चर्चा और समापन सत्र। अतिथि थे - कुलपति श्री विभूति नारायण राय, संचार एवं मीडिया अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रो. अनिल कुमार राय, मनीषा पांडेय, संचालन किया सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने। मनीषा पांडेय ने जेंडर मुद्दे पर विचार रखे। कुलपति जी ने अपने समापन वक्‍तव्‍य में ब्लॉगरों से लेखन में विविधता लाने का मुद्दा उठाते हुए कानून, स्वास्‍थ्‍य और विज्ञान से जुड़े मसले पर लेखन की आवश्‍यकता जताई। संचार एवं मीडिया अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रो. अनिल कुमार राय ने कहा कि 15 अक्टूरबर तक हम एग्रीगेटर का काम पूरा कर लेंगे।
विचार-बिंदु

'हिंदी ब्लॉंगिंग एवं सोशल मीडिया' विषयक संगोष्ठी में प्रमुख रूप से निम्न विषय उठे :

1. ब्लॉग बनाम सोशल मीडिया – वक्ताओं ने कहा कि ब्लॉग बनाम सोशल मीडिया का बहस उछालना ठीक नहीं है। यह एक-दूसरे का पूरक है। यह अवश्य है कि अपने विचारों को समग्रता में प्रस्तुत करने के लिए ब्लॉगिंग अधिक रचनात्मक और गंभीर है। लेकिन फेसबुक तकनीकी रूप से सबसे अधिक सक्षम है।

2. ब्लॉग सोशल मीडिया में आएगा या नहीं ? – इस पर भी खूब चर्चा हुई और अंत में यह उभरकर आया कि ब्लॉग रचनात्मक लेखन के लिए है जबकि सोशल मीडिया लोगों के बीच सामाजिक नेटवर्क और सामाजिक संबंध बनाने के लिए।

3. ब्लॉग विधा है या माध्‍यम ? – इस पर जमकर विवाद हुए। अंत में यह माना गया कि ब्लॉग निश्चित रूप से माध्यम है। जैसे प्रिंट एक माध्यम है और उसमें कविता, कहानी, लेख प्रस्तुत होते हैं।

4. आत्मानुशासन एवं स्वनियंत्रण का मसला – उद्घाटन सत्र में कुलपति श्री विभूति नारायण राय ने यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि सोशल मीडिया में जिस तरीके से गाली-गलौज और सामाजिक वैमनस्यता फैलाने की बात हो रही है उसे देखते हुए आत्मनियंत्रण-आत्मानुशासन की जरूरत है। और यह पहल न्यूमीडिया से जुड़े लोगों को स्‍वयं करना चाहिए। अन्यथा यह काम सरकार कर देगी।

5. 'चिट्ठासमय' एग्रीगेटर - यह सर्वविदित तथ्‍य है कि नारद, चिट्ठाजगत और ब्‍लॉगवाणी के बंद हो जाने का हिंदी चिट्ठाकारिता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। सो, लम्‍बे समय से एक एग्रीगेटर की आवश्‍यकता रेखांकित हो रही थी। वर्धा संगोष्ठी की सबसे बड़ी उपलब्धि रही कि म.गां.अं.हिं.वि.वि. की ओर से कहा गया कि 15 अक्टू़बर 2013 तक 'चिट्ठाजगत' एग्रीगेटर का काम संपन्न हो जाएगा।
सेवाग्राम आश्रम भ्रमण

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संगोष्ठी के दूसरे दिन प्रात: सवा सात बजे हम लोग बस में सवार होकर सेवाग्राम, वर्धा के लिए रवाना हुए। महात्मा गांधी मेरे आदर्श हैं। पंकज झा साथ में थे, सो इतिहास बताते जा रहे थे कि यहीं 1942 में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में भारत छोड़ो प्रस्ताव स्वीकृत हुआ। गांधीजी का आश्रम वास्तव में प्रेरणास्पद लगा। रचनात्मक कार्य करने की प्रेरणा जगी। मित्रवर राकेश कुमार सिंह उम्दा फोटोग्राफर हैं, सो उन्होंने हम सबकी ढ़ेरों तस्वींरें खींच डालीं।
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संघ कार्यालय, नागपुर दर्शन

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वापसी का टिकट वर्धा/सेवाग्राम से न कराकर नागपुर से करा लिया था। अपन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक हैं। नागपुर हर स्वयंसेवक के लिए प्रेरक नगर है। यहां संघ का मुख्यालय है और परमपूज्य सरसंघचालक का केंद्र।
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यहीं संघ के संस्थापक परमपूज्य डॉ. केशवराव हेडगेवार और द्वितीय सरसंघचालक श्रीगुरुजी की स्‍मृति मंदिर भी है। राष्ट्रवाद के प्रखर केंद्र का दर्शन कर मन में त्यापग, तपस्या और बलिदान की भावना प्रबल हुई।

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महिला सशक्तिकरण

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नागपुर में भोजन के लिए श्री गोगा कृपा भोजनालय जाना हुआ। यह देखकर मैं दंग रह गया कि भोजनालय में सारी व्‍यवस्‍थाएं महिलाओं ने संभाली हुई है। मैं सोचने लगा कि हमारे बिहार में कब ऐसी स्थिति निर्मित होगी जब महिलाएं आत्‍मनिर्भर बन सकेंगी।

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नागुपर से 22 सितम्बर को दोपहर एक बजे गोंडवाना एक्सप्रेस से नई दिल्ली के लिए रवाना हुआ। जब ट्रेन भोपाल पहुंची तो सौरभजी का स्नेह मुझे फिर मिला, रात्रि-भोजन का पैकेट लिए वे स्टेशन पर खड़े थे।
झलकियां

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• म.गां.अं.हिं.वि.वि., वर्धा परिसर की रचना अद्भुत है। आधुनिक वास्तुशिल्प अनूठा है। यह पहाड़ पर स्थित है। इतने पेड़-पौधे हैं कि शीतल एवं स्‍वच्‍छ हवा चलती रहती है। यह आपको ताजगी से भर देता है। सुंदर घास, विविध फूलों की क्यारियां मनोहारी दृश्य निर्मित करते हैं।

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• दोनों दिनों का मौसम बारिश की रिमझिम फुहारों के बीच सम्पन्न हुआ यानी प्राकृतिक छटाएं देखते ही बनती थी।

• जहां हम ठहरे थे 'नागार्जुन सराय', उसके कमरे अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस थे। एसी, गिजर, आलमारी, टीवी...से युक्‍त।

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• पूरे देश में जहां राजनेताओं की स्मृति में नामकरण की प्रथा रूढ़ हो चुकी है ऐसे में साहित्यकारों के नाम पर हॉस्टल, मार्ग, प्रतिमा, भवन...यह सब देखकर किसका न मन प्रफुल्लित होगा!

• 'सोशल मीडिया एवं राजनीति' वाले सत्र के विषय में ही राजनीति शब्द है तो राजनीति की बात होनी ही थी। तृतीय सत्र में जब संजीव तिवारी बोलने के लिए आए तो वे फेसबुक पर पंकज झा की सक्रियता की तारीफ के क्रम में यह बोल गए, 'भाजपा मेरे दिल में है।'' इस बात पर श्रोताओं ने आपत्तियां दर्ज कीं। इसके पूर्व पंकज झा ने भी अपने वक्तव्य में कह दिया था कि छुपी हुई प्रतिबद्धताएं खतरनाक होती हैं और हम भाजपा से हैं, यह कहने में गर्व है। जब मेरी बारी आई तो संचालक महोदय ने मेरे परिचय में जोड़ दिया कि आप कमल संदेश के सहायक संपादक हैं। तो ऐसा संदेश चला गया कि भाजपा की बातें हो रही हैं। जबकि ऐसा था नहीं। यह सब अनायास ही हुआ।
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• आलोक कुमार से मिलना मेरे लिए रोमांचकारी रहा। हिंदी के आदि चिट्ठाकार। उनके साथ फोटों भी खिंचवाई।

News

• विश्वविद्यालय में एम.फिल. की पढ़ाई कर रहे एक मित्र ने जानकारी दी कि कार्यक्रम के दोनों दिन अखबार में आप सबका नाम छपा है, यह देखकर मन फूला न समाया।
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• सब जगह नमो-नमो। जब आलोक जी विकीपीडिया के बारे में बता रहे थे तो उस समय उदाहरणार्थ उन्होंने श्री नरेंद्र मोदी का ही पृष्ठ खोला।

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• मित्रवर पंकज झा सत्र समाप्ति पर विवि के मुख्यद्वार के निकट एक दुकान पर साथ ले जाते थे। वहां के दुकानदार दुनिया की सबसे मधुर भाषा में बात कर रहे थे। समझ गए होंगे आप, मैथिली भाषा में। बिहार की अखिल भारतीय उपस्थिति वर्धा में भी सिद्ध हुई।

• और अंत में धर्म भ्रष्ट होने का वाकया... ''मुझ पारम्परिक ब्राह्मण के साथ वर्धा में बहुत अन्याय हुआ। पैंतालीस साल के जीवन में हमेशा शाकाहारी बना रहा, अंडा व केक से भी दूर रहा पर वहाँ गलती से चिकन चख लिया। हम जिस कान्यकुब्ज परिवार से हैं, यह कृत्य घोर राक्षसी माना जाता है। हमारे मन में यह धारणा बचपन से ही पुष्ट है कि ऐसा करना घोर अधर्मी काम है। हालाँकि मैं अब समझता हूँ कि खाने-पीने से नहीं कर्मों से व्यक्ति धर्मी-अधर्मी होता है। पर क्या करें, दिल मानता नहीं। श्रीमतीजी भी बहुत दुखी हैं। यह सब बापू और विनोबा की धरती पर हुआ। यह सोचकर संतोष कर लेता हूँ कि निराला भी माँसाहारी थे, इस नाते गाँधी और निराला की जमात में शामिल हो गया हूँ:-( - संतोष त्रिवेदी के फेसबुक वाल से।

अंत में, यह लिखना आवश्यक है। इतने सुंदर और विचारशील संगोष्‍ठी के लिए इसके आयोजक कुलपति श्री विभूति नारायण राय एवं संयोजक श्री सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी को हार्दिक धन्यवाद।
हिंदी चिट्ठाकारिता संक्रमण काल से गुजर रहा है। इससे मुक्ति के लिए बस एक मुकम्मल एग्रीगेटर की जरूरत है। 'चिट्ठासमय' के आगमन से रौनक पुन: वापस लौटेगी और हिंदी में विचारों की दुनिया समृद्ध होगी। तब वर्धा संगोष्ठी-2013 निश्चित रूप से हिंदी चिट्ठाकारिता के लिए 'मील का पत्थर' माना जाएगा।

राष्ट्रीय मीडिया चौपाल–2013 : एक अवलोकन

मीडिया के सभी माध्यमों में 'वेब मीडिया' सबसे तेजी से आगे बढ़ रहा है। ऐसा इसलिए हो रहा है कि इसने पत्रकारिता का लोकतांत्रिकरण किया है। मुख्यधारा के मीडिया से लोग हताश और निराश हैं। सो, बड़े पैमाने पर लोग सोशल साइट्स, ब्लॉग और वेबसाइट के जरिए अपने विचार अभिव्यक्त कर रहे हैं। यहां वे स्वयं ही लेखक, संपादक और मालिक हैं। यह कम खर्चीला मीडिया माध्यम है। इसके लिए कागज की जरूरत नहीं, सो पर्यावरण के अनुकूल भी है। समय सीमा और भौगोलिक सीमा से मुक्त है। कोई समाचार अपलोड करते ही एक सेकेण्ड में पूरी दुनिया में फैल जाता है। कभी भी इसका अर्काइव देखा जा सकता है। अब लोग खबर के लिए समाचार-पत्र, रेडियो और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर निर्भर नहीं हैं। फेसबुक और वेबसाइट से लोग आसानी से समाचार पा रहे हैं। अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में अन्य सभी मीडिया माध्यमों को वेबमाध्यम से कड़ी टक्कर मिल रही है। वहां के कई प्रमुख समाचार-पत्र बंद हो चुके हैं।

वेबमीडिया दिनोंदिन सशक्त हो रहा है और यह परिवर्तनकामी भूमिका भी निभा रहा है। समाजसेवी अन्ना हजारे की अगुआई में चले भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में सोशल मीडिया ने प्रभावी भूमिका निभाई, यह हम सब जानते ही हैं। अब सभी राजनीतिक दल सोशल मीडिया पर विशेष प्रकोष्ठ भी बना रहे हैं।

उपरोक्त विशेषताएं होने के बाद भी वेबमीडिया की राह में कई चुनौतियां हैं। आर्थिक प्रारूप का अभाव। विज्ञापन के मामले में गूगल द्वारा भारतीय भाषाओं के साथ भेदभाव। असंसदीय भाषा का धड़ल्‍ले से प्रयोग। वेब मीडिया के लिए किसी आचारसंहिता का न होना। बिजली की दिक्कत, सो बहुसंख्यक आबादी तक इंटरनेट का ना पहुंच पाना।

यह सही है वेबमीडिया लगातार अपनी पहुंच व्यापक करता जा रहा है लेकिन उस पर विश्वसनीयता और प्रामाणिकता के प्रश्‍नचिन्ह लग रहे हैं। इसके साथ ही यह सवाल भी उठ रहे हैं कि मीडिया और राजनीति के अलावे क्या समाज-जीवन के अन्य क्षेत्रों की चर्चा वेबमीडिया पर हो रही है? वेबमीडिया में साहित्य, कला, संस्कृ्ति, विज्ञान आदि का क्या परिदृश्य है?

Rashtriya Media Chaupal 2013लोगों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित हो और नया मीडिया में विज्ञान को जगह मिले.. इसको लेकर "जन-जन के लिए विज्ञान, जन-जन के लिए मीडिया" थीम पर केंद्रित गत 14 एवं 15 सितम्बर को भोपाल में राष्ट्रीय मीडिया चौपाल-2013 का आयोजन सम्पन्न हुआ। पिछले साल भी यह चौपाल लगा था। अनिल सौमित्र जी, जो स्पंदन संस्था चलाते हैं और ब्लॉगर हैं, की पहल पर मप्र विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद् तथा स्पंदन के संयुक्त तत्वावधान में यह चौपाल आयोजित हुआ। इस चौपाल में 6 तकनीकी सत्रों में गहन चर्चा हुई। देश के प्रमुख वैज्ञानिकों, तकनीकी विशेषज्ञों एवं वेब लेखकों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। देश भर से कुल 145 प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिसमें सर्वाधिक 35 प्रतिनिधि दिल्ली से रहे।

उद्घाटन सत्र। अतिथियों - भारत सरकार के वरिष्ठ वैज्ञानिक मनोज पटेरिया, विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान के निदेशक प्रो. प्रमोद वर्मा, वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा, वेबदुनिया के संपादक जयदीप कर्णिक, वरिष्ठ पत्रकार गिरीश उपाध्याय द्वारा दीप-प्रज्वलन से शुभारंभ। अपने वक्‍तव्‍य में प्रो. प्रमोद वर्मा ने इस तरह के कार्यक्रम को जन-जन तक पहुंचाने की जरूरत पर बल दिया। कार्यक्रम के आयोजक व स्पंदन संस्था से जुड़े अनिल सौमित्र ने संचालन करते हुए मीडिया चौपाल की भूमिका रखी और कहा कि यह सब प्रयास इसलिए हो रहा है ताकि वेब मीडिया के संचारकों की क्षमता में वृद्धि हो।

पहला सत्र। 'नया मीडिया, नई चुनौतियां।' मुख्य वक्ता वेबदुनिया के संपादक जयदीप कर्णिक ने कहा कि हम तथ्य की जांच किये बिना उसे जल्दबाजी में फेसबुक, ट्विटर और ब्लॉग पर अपलोड कर देते हैं, यह ठीक नहीं है। इसलिए सोशल मीडिया की प्रामाणिकता और विश्वसनीयता बनाये रखने पर जोर देना होगा। इस सत्र के दौरान वरिष्ठ पत्रकार गिरीश उपध्याय, पत्रकार अनुराग अन्वेषी, मुक्ता पाठक, पंकज कुमार झा, यशवंत सिंह, वर्तिका तोमर, संजीव कुमार सिन्हा, उमेश चतुर्वेदी आदि ने भी अपने विचार रखें। इस सत्र की अध्यक्षता मध्यप्रदेश एकता समिति के उपाध्यक्ष व वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा ने की एवं संचालन टीवी पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी ने किया।

दूसरा सत्र। 'विकास कार्य क्षेत्र और मीडिया अभिसरण (कन्वर्जेंस) की रूपरेखा।' इस सत्र में वरिष्ठ वैज्ञानिक और मध्यप्रदेश शासन के वैज्ञानिक सलाहकार प्रो. प्रमोद के वर्मा ने प्रजेंटेशन के माध्यम से बताया कि किस तरह सोशल मीडिया समाज में वैज्ञानिक चेतना और जागरूकता लाने में मदद कर सकता है। मध्यप्रदेश एकता समिति के उपाध्यक्ष श्री रमेश शर्मा ने कहा कि भारत में विज्ञान की महान परम्परा रही है। भारत सरकार के वरिष्ठ वैज्ञानिक श्री मनोज पटेरिया भी उपस्थित थे। वरिष्ठ् पत्रकार श्रीमती स्मिता मिश्रा ने भी अपने विचार रखे।

तीसरा सत्र। 'आमजन में वैज्ञानिक दृष्टि का विकास और जन माध्यम।' मुख्य वक्ता वरिष्ठ वैज्ञानिक मनोज पटेरिया ने कहा कि वर्तमान में मीडिया में विज्ञान की खबरों को लेकर पर्याप्त कवरेज नहीं मिल पा रहा है। अगर हमें लोगों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करना है तो विज्ञान की खबरों को भी महत्व देना होगा। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीके कुठियाला ने कहा कि भारत में हमेशा से विज्ञान प्रतिष्ठित रहा है। उन्होंने चेताते हुए कहा कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण के नाम पर पाश्चात्य देशों का अंधानुकरण न हो क्योंकि वहां तो और अंधविश्वास व्याप्त है।

चौपाल का दूसरा और अंतिम दिन।

चौथा सत्र। 'आपदा प्रबंधन और नया मीडिया।' मुख्य वक्ता विज्ञान प्रसार नई दिल्ली के पूर्व निदेशक डॉ. सुबोध मोहंती ने कहा कि मुख्य धारा के मीडिया के सहयोगी के तौर पर नया मीडिया को देखना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि स्थायी विकास (सस्टेनेबल डेवलपमेंट) को आपदा के साथ जोड़ना होगा। सामान्य तौर पर हम आपदा की अनदेखी करते हैं। 'देखा जाएगा' यह प्रवृत्ति त्यागनी होगी। उन्होंने 33 तरह के आपदाओं पर प्रकाश डाला। इस सत्र में उत्तराखंड में आई विभीषिका के दौरान न्यू मीडिया के द्वारा किए गए कार्यों पर चर्चा की गई। इस सत्र का संचालन श्री पंकज झा (दीपकमल, रायपुर) ने किया।

पांचवां सत्र। ''जनमाध्यमों का अंतर्संबंध और नया मीडिया।'' मुख्या वक्ता भारतीय जनसंचार संस्थान के पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष प्रो. हेमंत जोशी ने न्यू मीडिया के परिप्रेक्ष्य में 'जन माध्यमों का अंतर्संबंध' विषय पर विचार व्यक्त किए। उन्होंने 'सोशल मीडिया' नामकरण पर यह कहकर आपत्ति उठाई कि 'एंटी सोशल मीडिया' भी होता है क्या? उन्होंने आगे कहा कि ठीक है कि एक आंदोलन फेसबुक और ट्विटर से सफल हुआ और यदि वह विफल हुआ तो क्या इसका जिम्मा फेसबुक व ट्विटर को नहीं जाना चाहिए? लेखिका एवं शोधार्थी कायनात काजी ने 'समय की मांग-साहित्य में विज्ञान का समावेश' विषय पर प्रेजेंटेशन दिया। इस सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सुबोध माहंती ने की।

समापन सत्र। मुक्‍त चिंतन। मप्र शासन के वैज्ञानिक सलाहकार एवं परिषद के महानिदेशक प्रो. प्रमोद के वर्मा ने प्रतिभागियों को संबोधित किया। इस सत्र में 'नया मीडिया की विश्वसनीयता और प्रामाणिकता पर उठ रहे प्रश्‍नचिन्ह को देखते हुए क्या इस मीडिया में 'स्‍वनियमन' की आवश्यकता है', इस मुद्दे पर जमकर चर्चा हुई। इस सत्र का संचालन श्री अनिल पांडेय (द संडे इंडियन) ने किया एवं अध्‍यक्षता श्री उमेश चतुर्वेदी (टीवी पत्रकार एवं ब्‍लॉगर) ने की। विभिन्न सत्रों की कार्यवाहियों को मैपकोस्ट के वरिष्ठ वैज्ञानिक डीके पाण्डेय ने प्रस्तुत किया।

ये रहे उपस्थित : "मीडिया चौपाल-2013" में श्री हर्षवर्धन त्रिपाठी (टीवी पत्रकार और ब्लॉगर), श्री अनिल पाण्डेय (द संडे इंडियन), श्री यशवंत सिंह (भड़ासफॉरमीडिया डॉट कॉम), श्री संजीव सिन्हा (प्रवक्ता डॉट कॉम), श्री आशीष कुमार 'अंशु', श्री अनुराग अन्वेषी, श्री सिद्धार्थ झा, श्री पंकज साव, श्री उमेश चतुर्वेदी, श्री पंकज झा (दीपकमल, रायपुर), श्री शिराज केसर, सुश्री मीनाक्षी अरोड़ा (इंडिया वाटर पोर्टल), श्री चंद्रकांत जोशी (हिन्दी इन डॉट कॉम, मुम्बई), श्री लोकेन्द्र सिंह (ग्वालियर), श्री विकास दवे (कार्यकारी संपादक, देवपुत्र, इंदौर), श्री राजीव गुप्ता, सुश्री वर्तिका तोमर, ठाकुर गौतम कात्यायन (पटना), श्री अभिषेक रंजन, श्री अंकुर विजयवर्गीय (नई दिल्ली), श्री प्रवीण शुक्ला, श्री शिवानंद द्विवेदी 'सहर', श्री अवनीश सिंह (हिंदुस्थान समाचार), श्री आशुतोष झा, श्री विभय कुमार झा, श्री नीरज पाठक, श्री रामचंद्र झा, श्री प्रेम कुमार, श्री श्रवण कुमार शुक्ला, श्री राजेश रंजन...की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।

भोपाल से मीडिया चौपाल में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के प्राध्यापक पुष्पेन्द्र पाल, संजय द्वेदी, डॉ. सौरभ मालवीय, मोनिका वर्मा, लाल बहादुर ओझा, सुरेन्द्र पाल, वरिष्ठ पत्रकार गिरीश उपाध्याय, द बिजनेस स्टैंडर्ड के मध्यप्रदेश प्रभारी शशिकांत त्रिवेदी, द वीक के दीपक तिवारी, श्री अमरजीत कुमार, वेब पत्रकार हर्ष सुहालका, जय शर्मा केतकी, स्तंभ लेखक गोपाल कृष्ण छिब्बर, मुक्ता पाठक, शैफाली पाण्डेय, वरिष्ठ पत्रकार सुचान्दना गुप्ता, हरिअग्र हरी, सरमन नगले उपस्थित रहे।
मीडिया चौपाल-2013 के समापन सत्र में उठी प्रमुख बातें –

• न्यू मीडिया के लेखकों को एकजुट रहने के लिए किसी सक्रिय मंच की सख्त आवश्‍यकता। एक टीम बननी चाहिए। पत्रकारों के दमन के खिलाफ आवाज उठनी चाहिए। - यशवंत सिंह, सीइओ, भड़ासफॉरमीडिया डॉट कॉम।

• वेबपत्रकारों को मान्यता मिले। - हर्षवर्धन त्रिपाठी, टीवी पत्रकार एवं ब्लॉगर।

• न्यू मीडिया के लिए जो भी संगठन बने उनका अन्य मीडिया संगठनों से समन्वय हो। - स्मिता मिश्र, स्तंभ लेखिका।

• संगठन को सशक्त करने के लिए सदस्यता राशि - 1000 रुपए रखी जाय- संदीप

• मीडिया चौपाल के लिए एक वेबसाइट की जरूरत। कानूनी जागरूकता की आवश्यकता। - दामोदर

• मीडिया चौपाल का सांस्थानिक स्वूरूप ठीक नहीं। जब भी संगठन बनने की बात होने लगती है तो मुझे डर लगने लगता है। - आशीष कुमार 'अंशु', ब्लॉंगर।

• सांस्थानिक स्वरूप समय की मांग है। - अनुराग अन्वेषी, वरिष्‍ठ पत्रकार।

• खूब चर्चा करें, फिर इसे अगली बार साकार करें। - हेमंत जोशी, प्रोफेसर, आईआईएमसी।

• मीडिया चौपाल को संस्थागत स्वरूप दें लेकिन उसकी प्रवृत्ति चौपाल की ही हो।–प्रो. बीके कुठियाला, कुलपति, माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय

• आर्थिक प्रारूप कैसे विकसित हो, इस पर जोर दें। सहज विज्ञापन मिले, इस हेतु सरकार तक जाकर अपनी बात रखनी चाहिए। छत्तीसगढ़ से शुरूआत करें, मैं पहल के तैयार हूं। - पंकज झा, स्तंभ लेखक

• भारतीय भाषाओं के साथ गूगल का भेदभाव, पीआईबी में वेबपत्रकारों के लिए मान्यता, डीएवीपी में विज्ञापन के लिए जो शर्तें हैं, उस पर पुनर्विचार, वेबपत्रकारों को सरकारी मान्यता, इस सब विषयों पर हमारा कोई प्रतिनिधिमंडल संबंधित संस्था के पास जाकर अपनी बात रखें। - संजीव कुमार सिन्हा, संपादक, प्रवक्ता डॉट कॉम

• वेबमीडिया के लिए स्वनियमन की बात ठीक नहीं है। - उमेश चतुर्वेदी, टीवी पत्रकार एवं ब्‍लॉगर
(प्रस्‍तुति : संजीव कुमार सिन्‍हा)