मीडिया के सभी माध्यमों में 'वेब मीडिया' सबसे तेजी से आगे बढ़ रहा है। ऐसा इसलिए हो रहा है कि इसने पत्रकारिता का लोकतांत्रिकरण किया है। मुख्यधारा के मीडिया से लोग हताश और निराश हैं। सो, बड़े पैमाने पर लोग सोशल साइट्स, ब्लॉग और वेबसाइट के जरिए अपने विचार अभिव्यक्त कर रहे हैं। यहां वे स्वयं ही लेखक, संपादक और मालिक हैं। यह कम खर्चीला मीडिया माध्यम है। इसके लिए कागज की जरूरत नहीं, सो पर्यावरण के अनुकूल भी है। समय सीमा और भौगोलिक सीमा से मुक्त है। कोई समाचार अपलोड करते ही एक सेकेण्ड में पूरी दुनिया में फैल जाता है। कभी भी इसका अर्काइव देखा जा सकता है। अब लोग खबर के लिए समाचार-पत्र, रेडियो और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर निर्भर नहीं हैं। फेसबुक और वेबसाइट से लोग आसानी से समाचार पा रहे हैं। अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में अन्य सभी मीडिया माध्यमों को वेबमाध्यम से कड़ी टक्कर मिल रही है। वहां के कई प्रमुख समाचार-पत्र बंद हो चुके हैं।
वेबमीडिया दिनोंदिन सशक्त हो रहा है और यह परिवर्तनकामी भूमिका भी निभा रहा है। समाजसेवी अन्ना हजारे की अगुआई में चले भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में सोशल मीडिया ने प्रभावी भूमिका निभाई, यह हम सब जानते ही हैं। अब सभी राजनीतिक दल सोशल मीडिया पर विशेष प्रकोष्ठ भी बना रहे हैं।
उपरोक्त विशेषताएं होने के बाद भी वेबमीडिया की राह में कई चुनौतियां हैं। आर्थिक प्रारूप का अभाव। विज्ञापन के मामले में गूगल द्वारा भारतीय भाषाओं के साथ भेदभाव। असंसदीय भाषा का धड़ल्ले से प्रयोग। वेब मीडिया के लिए किसी आचारसंहिता का न होना। बिजली की दिक्कत, सो बहुसंख्यक आबादी तक इंटरनेट का ना पहुंच पाना।
यह सही है वेबमीडिया लगातार अपनी पहुंच व्यापक करता जा रहा है लेकिन उस पर विश्वसनीयता और प्रामाणिकता के प्रश्नचिन्ह लग रहे हैं। इसके साथ ही यह सवाल भी उठ रहे हैं कि मीडिया और राजनीति के अलावे क्या समाज-जीवन के अन्य क्षेत्रों की चर्चा वेबमीडिया पर हो रही है? वेबमीडिया में साहित्य, कला, संस्कृ्ति, विज्ञान आदि का क्या परिदृश्य है?
लोगों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित हो और नया मीडिया में विज्ञान को जगह मिले.. इसको लेकर "जन-जन के लिए विज्ञान, जन-जन के लिए मीडिया" थीम पर केंद्रित गत 14 एवं 15 सितम्बर को भोपाल में राष्ट्रीय मीडिया चौपाल-2013 का आयोजन सम्पन्न हुआ। पिछले साल भी यह चौपाल लगा था। अनिल सौमित्र जी, जो स्पंदन संस्था चलाते हैं और ब्लॉगर हैं, की पहल पर मप्र विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद् तथा स्पंदन के संयुक्त तत्वावधान में यह चौपाल आयोजित हुआ। इस चौपाल में 6 तकनीकी सत्रों में गहन चर्चा हुई। देश के प्रमुख वैज्ञानिकों, तकनीकी विशेषज्ञों एवं वेब लेखकों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। देश भर से कुल 145 प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिसमें सर्वाधिक 35 प्रतिनिधि दिल्ली से रहे।
उद्घाटन सत्र। अतिथियों - भारत सरकार के वरिष्ठ वैज्ञानिक मनोज पटेरिया, विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान के निदेशक प्रो. प्रमोद वर्मा, वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा, वेबदुनिया के संपादक जयदीप कर्णिक, वरिष्ठ पत्रकार गिरीश उपाध्याय द्वारा दीप-प्रज्वलन से शुभारंभ। अपने वक्तव्य में प्रो. प्रमोद वर्मा ने इस तरह के कार्यक्रम को जन-जन तक पहुंचाने की जरूरत पर बल दिया। कार्यक्रम के आयोजक व स्पंदन संस्था से जुड़े अनिल सौमित्र ने संचालन करते हुए मीडिया चौपाल की भूमिका रखी और कहा कि यह सब प्रयास इसलिए हो रहा है ताकि वेब मीडिया के संचारकों की क्षमता में वृद्धि हो।
पहला सत्र। 'नया मीडिया, नई चुनौतियां।' मुख्य वक्ता वेबदुनिया के संपादक जयदीप कर्णिक ने कहा कि हम तथ्य की जांच किये बिना उसे जल्दबाजी में फेसबुक, ट्विटर और ब्लॉग पर अपलोड कर देते हैं, यह ठीक नहीं है। इसलिए सोशल मीडिया की प्रामाणिकता और विश्वसनीयता बनाये रखने पर जोर देना होगा। इस सत्र के दौरान वरिष्ठ पत्रकार गिरीश उपध्याय, पत्रकार अनुराग अन्वेषी, मुक्ता पाठक, पंकज कुमार झा, यशवंत सिंह, वर्तिका तोमर, संजीव कुमार सिन्हा, उमेश चतुर्वेदी आदि ने भी अपने विचार रखें। इस सत्र की अध्यक्षता मध्यप्रदेश एकता समिति के उपाध्यक्ष व वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा ने की एवं संचालन टीवी पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी ने किया।
दूसरा सत्र। 'विकास कार्य क्षेत्र और मीडिया अभिसरण (कन्वर्जेंस) की रूपरेखा।' इस सत्र में वरिष्ठ वैज्ञानिक और मध्यप्रदेश शासन के वैज्ञानिक सलाहकार प्रो. प्रमोद के वर्मा ने प्रजेंटेशन के माध्यम से बताया कि किस तरह सोशल मीडिया समाज में वैज्ञानिक चेतना और जागरूकता लाने में मदद कर सकता है। मध्यप्रदेश एकता समिति के उपाध्यक्ष श्री रमेश शर्मा ने कहा कि भारत में विज्ञान की महान परम्परा रही है। भारत सरकार के वरिष्ठ वैज्ञानिक श्री मनोज पटेरिया भी उपस्थित थे। वरिष्ठ् पत्रकार श्रीमती स्मिता मिश्रा ने भी अपने विचार रखे।
तीसरा सत्र। 'आमजन में वैज्ञानिक दृष्टि का विकास और जन माध्यम।' मुख्य वक्ता वरिष्ठ वैज्ञानिक मनोज पटेरिया ने कहा कि वर्तमान में मीडिया में विज्ञान की खबरों को लेकर पर्याप्त कवरेज नहीं मिल पा रहा है। अगर हमें लोगों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करना है तो विज्ञान की खबरों को भी महत्व देना होगा। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीके कुठियाला ने कहा कि भारत में हमेशा से विज्ञान प्रतिष्ठित रहा है। उन्होंने चेताते हुए कहा कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण के नाम पर पाश्चात्य देशों का अंधानुकरण न हो क्योंकि वहां तो और अंधविश्वास व्याप्त है।
चौपाल का दूसरा और अंतिम दिन।
चौथा सत्र। 'आपदा प्रबंधन और नया मीडिया।' मुख्य वक्ता विज्ञान प्रसार नई दिल्ली के पूर्व निदेशक डॉ. सुबोध मोहंती ने कहा कि मुख्य धारा के मीडिया के सहयोगी के तौर पर नया मीडिया को देखना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि स्थायी विकास (सस्टेनेबल डेवलपमेंट) को आपदा के साथ जोड़ना होगा। सामान्य तौर पर हम आपदा की अनदेखी करते हैं। 'देखा जाएगा' यह प्रवृत्ति त्यागनी होगी। उन्होंने 33 तरह के आपदाओं पर प्रकाश डाला। इस सत्र में उत्तराखंड में आई विभीषिका के दौरान न्यू मीडिया के द्वारा किए गए कार्यों पर चर्चा की गई। इस सत्र का संचालन श्री पंकज झा (दीपकमल, रायपुर) ने किया।
पांचवां सत्र। ''जनमाध्यमों का अंतर्संबंध और नया मीडिया।'' मुख्या वक्ता भारतीय जनसंचार संस्थान के पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष प्रो. हेमंत जोशी ने न्यू मीडिया के परिप्रेक्ष्य में 'जन माध्यमों का अंतर्संबंध' विषय पर विचार व्यक्त किए। उन्होंने 'सोशल मीडिया' नामकरण पर यह कहकर आपत्ति उठाई कि 'एंटी सोशल मीडिया' भी होता है क्या? उन्होंने आगे कहा कि ठीक है कि एक आंदोलन फेसबुक और ट्विटर से सफल हुआ और यदि वह विफल हुआ तो क्या इसका जिम्मा फेसबुक व ट्विटर को नहीं जाना चाहिए? लेखिका एवं शोधार्थी कायनात काजी ने 'समय की मांग-साहित्य में विज्ञान का समावेश' विषय पर प्रेजेंटेशन दिया। इस सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सुबोध माहंती ने की।
समापन सत्र। मुक्त चिंतन। मप्र शासन के वैज्ञानिक सलाहकार एवं परिषद के महानिदेशक प्रो. प्रमोद के वर्मा ने प्रतिभागियों को संबोधित किया। इस सत्र में 'नया मीडिया की विश्वसनीयता और प्रामाणिकता पर उठ रहे प्रश्नचिन्ह को देखते हुए क्या इस मीडिया में 'स्वनियमन' की आवश्यकता है', इस मुद्दे पर जमकर चर्चा हुई। इस सत्र का संचालन श्री अनिल पांडेय (द संडे इंडियन) ने किया एवं अध्यक्षता श्री उमेश चतुर्वेदी (टीवी पत्रकार एवं ब्लॉगर) ने की। विभिन्न सत्रों की कार्यवाहियों को मैपकोस्ट के वरिष्ठ वैज्ञानिक डीके पाण्डेय ने प्रस्तुत किया।
ये रहे उपस्थित : "मीडिया चौपाल-2013" में श्री हर्षवर्धन त्रिपाठी (टीवी पत्रकार और ब्लॉगर), श्री अनिल पाण्डेय (द संडे इंडियन), श्री यशवंत सिंह (भड़ासफॉरमीडिया डॉट कॉम), श्री संजीव सिन्हा (प्रवक्ता डॉट कॉम), श्री आशीष कुमार 'अंशु', श्री अनुराग अन्वेषी, श्री सिद्धार्थ झा, श्री पंकज साव, श्री उमेश चतुर्वेदी, श्री पंकज झा (दीपकमल, रायपुर), श्री शिराज केसर, सुश्री मीनाक्षी अरोड़ा (इंडिया वाटर पोर्टल), श्री चंद्रकांत जोशी (हिन्दी इन डॉट कॉम, मुम्बई), श्री लोकेन्द्र सिंह (ग्वालियर), श्री विकास दवे (कार्यकारी संपादक, देवपुत्र, इंदौर), श्री राजीव गुप्ता, सुश्री वर्तिका तोमर, ठाकुर गौतम कात्यायन (पटना), श्री अभिषेक रंजन, श्री अंकुर विजयवर्गीय (नई दिल्ली), श्री प्रवीण शुक्ला, श्री शिवानंद द्विवेदी 'सहर', श्री अवनीश सिंह (हिंदुस्थान समाचार), श्री आशुतोष झा, श्री विभय कुमार झा, श्री नीरज पाठक, श्री रामचंद्र झा, श्री प्रेम कुमार, श्री श्रवण कुमार शुक्ला, श्री राजेश रंजन...की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
भोपाल से मीडिया चौपाल में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के प्राध्यापक पुष्पेन्द्र पाल, संजय द्वेदी, डॉ. सौरभ मालवीय, मोनिका वर्मा, लाल बहादुर ओझा, सुरेन्द्र पाल, वरिष्ठ पत्रकार गिरीश उपाध्याय, द बिजनेस स्टैंडर्ड के मध्यप्रदेश प्रभारी शशिकांत त्रिवेदी, द वीक के दीपक तिवारी, श्री अमरजीत कुमार, वेब पत्रकार हर्ष सुहालका, जय शर्मा केतकी, स्तंभ लेखक गोपाल कृष्ण छिब्बर, मुक्ता पाठक, शैफाली पाण्डेय, वरिष्ठ पत्रकार सुचान्दना गुप्ता, हरिअग्र हरी, सरमन नगले उपस्थित रहे।
मीडिया चौपाल-2013 के समापन सत्र में उठी प्रमुख बातें –
• न्यू मीडिया के लेखकों को एकजुट रहने के लिए किसी सक्रिय मंच की सख्त आवश्यकता। एक टीम बननी चाहिए। पत्रकारों के दमन के खिलाफ आवाज उठनी चाहिए। - यशवंत सिंह, सीइओ, भड़ासफॉरमीडिया डॉट कॉम।
• वेबपत्रकारों को मान्यता मिले। - हर्षवर्धन त्रिपाठी, टीवी पत्रकार एवं ब्लॉगर।
• न्यू मीडिया के लिए जो भी संगठन बने उनका अन्य मीडिया संगठनों से समन्वय हो। - स्मिता मिश्र, स्तंभ लेखिका।
• संगठन को सशक्त करने के लिए सदस्यता राशि - 1000 रुपए रखी जाय- संदीप।
• मीडिया चौपाल के लिए एक वेबसाइट की जरूरत। कानूनी जागरूकता की आवश्यकता। - दामोदर।
• मीडिया चौपाल का सांस्थानिक स्वूरूप ठीक नहीं। जब भी संगठन बनने की बात होने लगती है तो मुझे डर लगने लगता है। - आशीष कुमार 'अंशु', ब्लॉंगर।
• सांस्थानिक स्वरूप समय की मांग है। - अनुराग अन्वेषी, वरिष्ठ पत्रकार।
• खूब चर्चा करें, फिर इसे अगली बार साकार करें। - हेमंत जोशी, प्रोफेसर, आईआईएमसी।
• मीडिया चौपाल को संस्थागत स्वरूप दें लेकिन उसकी प्रवृत्ति चौपाल की ही हो।–प्रो. बीके कुठियाला, कुलपति, माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय
• आर्थिक प्रारूप कैसे विकसित हो, इस पर जोर दें। सहज विज्ञापन मिले, इस हेतु सरकार तक जाकर अपनी बात रखनी चाहिए। छत्तीसगढ़ से शुरूआत करें, मैं पहल के तैयार हूं। - पंकज झा, स्तंभ लेखक
• भारतीय भाषाओं के साथ गूगल का भेदभाव, पीआईबी में वेबपत्रकारों के लिए मान्यता, डीएवीपी में विज्ञापन के लिए जो शर्तें हैं, उस पर पुनर्विचार, वेबपत्रकारों को सरकारी मान्यता, इस सब विषयों पर हमारा कोई प्रतिनिधिमंडल संबंधित संस्था के पास जाकर अपनी बात रखें। - संजीव कुमार सिन्हा, संपादक, प्रवक्ता डॉट कॉम
• वेबमीडिया के लिए स्वनियमन की बात ठीक नहीं है। - उमेश चतुर्वेदी, टीवी पत्रकार एवं ब्लॉगर