अपन गांधी, लोहिया और दीनदयाल उपाध्याय को आदर्श राजनेता मानकर राजनीति में सक्रिय हैं। सादगी, शुचिता, विनम्रता, अध्ययनशीलता...ये सब गुण ऐसे हैं, जो ज्यादा आकर्षित करते हैं। ज्यादा तड़क-भड़क मुझे नहीं भाते। अटलजी-आडवाणीजी के भी इसलिए प्रशंसक हैं कि ये दोनों नेता छह दशकों से नैतिकता, शुचिता और प्रामाणिकता के पर्याय बने हुए हैं।
मैं स्वेच्छा से स्वीकारी हुई गरीबी का जीवन जीता हूं और इसमें आनंदित रहता हूं, और जिनका जीवन इस तरह का है, उनसे प्रेरित होता हूं। यानी 'सादा जीवन – उच्च विचार' अपना पाथेय है। गत एक दशक से भारतीय राजनीति में नरेंद्र मोदी जिस तरीके से लगातार आगे बढ़ रहे हैं वह आश्चर्यजनक है। गुजरात को उन्होंने समृद्धि की उस ऊंचाई पर पहुंचा दिया, जहां तक किसी भी मुख्यमंत्री के लिए अपने राज्य को पहुंचाना सपना जैसा है। तो मेरे मन में स्वेच्छा से स्वीकारी हुई गरीबी और चरम समृद्धि में द्वंद्व जैसा चला। बहुत ज्यादा मैं मोदी जी का प्रशंसक नहीं हो पाया। इसे लेकर लगातार मित्रों से बहस होती रही।
एक कमरे में बंद होकर, एसी रूम में, लैपटॉप-डेस्कटॉप के सहारे मैं जो अपने मित्रों से बहस करता था, वह हकीकत से कोसों दूर था। आखिर जब राजनीति में विश्वसनीयता का संकट चरम पर हो, राजनीतिक रैलियों में दिहाड़ी पर भीड़ जुटाए जाते हों, आम आदमी सहज कहते पाएं जाते हों कि सब नेता चोर हैं.....ऐसे में नरेंद्र मोदी को लेकर जन-विश्वास का देशभर में जगह-जगह ऐसा व्यापक प्रकटीकरण होना, इसमें जरूर कुछ न कुछ विशेष बात है। नरेंद्र मोदी की चुस्त प्रशासनिक क्षमता, ईमानदार राजनेता और उनकी प्रखर राष्ट्ररवादी विचारधारा समकालीन भारतीय राजनीति में उन्हें विशिष्ट बनाता है, इसमें कोई दोमत नहीं है।
जब भारत को भ्रष्टाचार का महारोग जर्जर किए जा रहा हो, जब देश के प्रधानमंत्री अपने पिलपिले व्यवहार से करोड़ों भारतीयों के साथ छल कर रहे हों, जब तुष्टिकरण की राजनीति देश में अलगाव पैदा कर रही हो तो ऐसे में नरेंद्र मोदी के पक्ष में खड़ा होना राष्ट्रीय कर्तव्य है और तटस्थ रहना राष्ट्रीय अपराध।
(फोटो : विजय शर्मा)
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