- अम्बा चरण वशिष्ठ
अपने उदारवादी, मानवाधिकार संरक्षक तथा बुध्दिजीवियों को समझ पाना कोई आसान काम नहीं। कई महानुभाव तो इतने सतर्क और उग्र हैं कि उन्हें किसी भी प्रदर्शन में सहज पाया जा सकता है, जहां उनके अनुसार व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता उन्हें खतरे में लगती है।
अभी हाल ही में गुजरात में एक गुमनाम चित्रकार चन्द्रमोहन ने हिन्दू देवी-देवताओं और भगवान यीशु के अश्लील, नंगे, भौडे चित्र बनाकर चित्रकार मुहम्मद फिदा हुसैन के दिखाये रास्ते पर चलकर विवाद का केन्द्र बन कर नाम कमाना चाहा। किसी शायर ने ठीक ही कहा है कि बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा? सच भी यही है। आज लोग बदनाम होकर ही तो नाम कमा रहे हैं। वस्तुत: आजकल बदनाम होने और नाम कमाने में अंतर ही समाप्त होता जा रहा है। विवाद में पड़कर चर्चा में आने को नाम कमाने और शोहरत अर्जित करने की संज्ञा दी जा रही है। यदि शिल्पा शेट्टी ने सरेआम गेरे को चुम्बन करने दिया और इसको अनुचित नहीं बताया, यही तो कारण है कि आज हर तीसरे दिन हर तीसरे अखबार या समाचार चैनल में किसी न किसी बहाने उनके चित्र के छपने के कारण उनकी नेकनामी को चार चांद लग रहा है। उदारवादी इसे उनकी अपना निजी और व्यक्तिगत मामला बताकर इसकी पैरवी कर रहे हैं। पर पता नहीं कल को इसी निजी और व्यक्तिगत मामले का संरक्षण प्राप्त करते हुए किसी दम्पत्ति या व्यस्क महिला पुरूष ने किसी शहर के चौराहे पर दिन-दहाड़े सबके सामने वह सब कुछ करना शुरू कर दिया जो वह अपने शयन कक्ष में दरवाजे बंद और रोशनी बुझा कर करते हैं तो पता नहीं ये उदारवादी उनकी भी स्वतंत्रता की उतनी ही पैरवी करेंगे जितनी कि शिल्पा शेट्टी की। वैसे देखा जाये तो किसी भी व्यस्क को इस स्वतंत्र देश में सब कुछ करने की स्वतंत्रता है जो उसका मन करे, चाहे किसी को अच्छा लगे या बुरा। सरकार को, न्यायालय को उससे क्या लेना देना?
और वह दम्पत्ति या जोड़ा एकाएक दुनिया भर में मशहूर हो जायेगा। समाचार पत्रों के प्रथम पृष्ठों पर फोटो सहित छा जायेगा। समाचार चैनलों की 'ब्रेकिंग न्यूज' बनेगा। उन पर विशेष लेख छपेंगे। उनके पक्ष व विरोध में प्रदर्शन होंगे। तो व्यक्ति के जीवन में और चाहिए भी क्या?
लाखों-करोड़ों लोग नाम कमाने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं, पर हाथ कुछ नहीं आता। देखा जाये तो आजकल नेकनामी और बदनामी में अंतर ही समाप्त होता जा रहा है। आज मशहूर हैं तो मात्र शिल्पा शेट्टी, राखी सावंत, चन्द्रमोहन, एम.एफ. हुसैन सरीखे बड़े लोग और नहीं।
पर हैरानी की बात यह है कि जो महानुभाव चन्द्रमोहन, एम.एफ. हुसैन और शिल्पा शेट्टी की व्यक्तिगत और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिये सड़कों पर छाती पीट रहे थे, वही महानुभाव अदृश्य हो गये थे, उनकी जुबान बन्द हो गई थी, वह बहरे हो गये थे जब विदेश में ही नहीं भारत में डेनमार्क के कार्टूनिस्ट के विरूध्द देश के विभिन्न भागों में हिंसक प्रदर्शन हो रहे थे। जब भारत के पत्रकार आलोक तोमर को जेल भेज दिया गया था क्योंकि उसने अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सहायता लेकर उन व्यंग चित्रों को छाप दिया था।
आज तक किसी उदारवादी बुध्दिजीवी चिंतक, विचारक ने हुसैन से यह पूछने की हिम्मत नहीं की कि आपने आज तक अपने धर्म की पवित्र हस्तियों के ऐसे ही चित्र बनाने में अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सहारा क्यों नहीं लिया? वह तो शायद इसका उत्तर न दे पर वास्तविकता यही है कि दूसरे की बीवी या मां से तो छेड़छाड़ अच्छी लगती है पर अपनी बीवी और मां से यदि यही व्यवहार हो तो शायद खून खराबा हो जाये।
चन्द्रमोहन तो कला में कल के छोकरे हैं, पर हुसैन तो एक विश्वविख्यात पेन्टर हैं। मेरा अपना ज्ञान क्षुद्र हो सकता है। मुझे आज तक ज्ञात नहीं कि कोई इतना महान भी कलाकार निकला है जिसने अपनी मां की नंगी तस्वीर बनाई हो। इन महान कलाकारों को तो शायद इतना पता अवश्य होगा कि भगवान यीशु मसीह करोड़ों-अरबों ईसाइयों के पिता हैं और हिन्दु देवियां भी भारतीयों की मां।
अरूंधति राय, नन्दिता दास, तैयब आदि अनेक जानी-मानी हस्तियां पिछले दिनों इस कलाकार की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के पक्ष में सड़कों पर उतरे थे। अगली बार इस प्रकार प्रदर्शन में भाग लेने से पूर्व सार्वजनिक रूप से उन्हें घोषणा करनी होगी कि कल को कोई कलाकार उनकी अपनी या उनकी मां की नंगी तस्वीर बनायेगा तो वे उसकी व्यक्तिगत तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए उसी प्रकार प्रखर होंगी जितनी कि हुसैन और चन्द्रमोहन के मामले में हुईं। अन्यथा उनका यह प्रदर्शन उनकी आस्था नहीं, मात्र ढोंग बनकर रह जायेगा।
12 comments:
आप हितचिन्तक है और चिन्ता के साथ समझाने आए हैं परन्तु आप नहीं जानते कि कुछ लोग हिटचिन्तक हैं उन्हें स्वयं के हिट होने की चिन्ता है इसलिए यह सब करते हैं।
साधो; कबीर तो ये विश्वास करता है कि हुसैन बाबा, साधु चन्द्रमोहन और शेष सभी एसी "महान कलाकृति" के समर्थक भी दुर्गा को अपनी मां ही जितना पवित्र मानते होंगे। कबीर यह भी विश्वास करता है कि वे अपनी सगी मां की एसी "महान कलाकृति" में भी इसी प्यार से कला देखेंगें। उन्हें देखकर उनका खून नहीं खोलेगा।
बल्कि ये मानिये कि सभी इन "महान कलाकृति" के समर्थक इन "महान कलाकृतियों" मे अपनी सगी मां को ही देख रहे हैं।
अच्छा है, विचारने योग्य
इनसे कहें कि यदि यों शोहरत बटोरने की इतनी तमन्ना है तो जरा... यीशू, मुहम्मद के भी ऐसे विचित्र चित्र बनाकर दिखाओ (बहादुर हों तो)... कहीं मौत का फतवा जारी न हो जाए... शायद ब्रिटेन और अमरीका भी शरण नहीं देगा...
अरुन्धती राय का नाम ऐसे ले रहे हैं आप जैसे वह भारतीयता/कला/संस्कृति पर बहुत बड़ी अथॉरिटी हों. ये सब अपना नाम चमकाऊ लोग हैं. जानते हैं कि लाइमलाइट में रह अपनी दुकान कैसे चलाई जाती है. बस.
आपके ब्लाग पर आ कर अच्छा लगा, अच्छे विचार प्रस्तुत किया है। मै आपके ब्लाग को काफी देर से जान सका, जल्द ही दोबारा आने की इच्छा है।
मेरी ओर ढेरों शुभकामनाऐं, आपकी लेखिनी सदैव असमताओं पर प्रहार करती रहे।
हुसैन, अरुन्धति, राजेन्द्र आदि सब पराजित कमीनिस्म के मारे लोग हैं। अब इनकी लकीर छोटी है तो दूसरों की बड़ी लकीर को मिटाकर अपने को महान बनाने की नकारात्मक कला का सहारा ले रहे हैं। इनके विरुद्ध देश को सावधान करते रहना चाहिये।
excellent
Bahut Badhiyan likha Amba ji. Aur Likhatai Rahiyai.
मैं पाठकों का धन्यवादी हूं कि उन्होंने मेरा लेख पढा और पसन्द किया। मैं विश्वास दिलाता हूं कि इन उदारवादियों और मानवाधिकारवादियों के ढोंग इसी प्रकार नंगे करता रहूंगा। पाठकों का सहयोग व समर्थन अवश्य चाहिये। यही तो किसी लेखक की प्रेरणा व ऊर्जा है।
अम्बा चरण वशिष्ठ
achha hai...likhte rahiye...lekin keval man ki bhadaas nikalne se behtar hai ki readers ko facts aur arguments bhi dijiye...baharhaal is mudde par mai aapke saath hoon...
vivek gupta
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