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Saturday 26 May, 2007

संघ का सच


-संजीव कुमार सिन्हा

हिन्दी ब्लॉग पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काफी दिनों से चर्चा के केन्द्र में है। संघ के बारे में तरह-तरह के विचार प्रस्तुत किए गए है लेकिन अधिकांश पूर्वाग्रह से प्रेरित कहे जा सकते है। आखिर कोई यह समझने का प्रयास क्यों नहीं करता कि क्या कारण है कि संघ विचार परिवार तमाम अवरोधों के बावजूद बढता ही जा रहा है। संघ ने विचार की धरातल पर जहां सभी वादों- समाजवाद, साम्यवाद, नक्सलवाद को पटखनी दी हैं वहीं राजनीतिक क्षेत्र में भी कांग्रेस के वर्चस्व को तोड़ा है। पहले भारतीय राजनीति गैर कांग्रेसवाद के आधार पर चलती थी अब यह गैर भाजपावाद हो गया है। संघ के सभी आनुषांगिक संगठन आज अपने-अपने क्षेत्र के क्रमांक एक पर है। भारतीय मजदूर संघ, विद्यार्थी परिषद्, विद्या भारती, स्वदेशी जागरण मंच, भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद् आदि...सेवा के क्षेत्र में वनवासी कल्याण आश्रम, सेवा भारती की सक्रियता प्रशंसनीय है। इस पर बहस होनी चाहिए कि कांग्रेस और वामपंथ का आधार क्यों सिकुड़ रहा है और संघ भाजपा के प्रति जन-समर्थन क्यों बढ़ रहा हैं। पिछले पंजाब और उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में माकपा-भाकपा और माले का खाता क्यों नहीं खुल पाया। कांग्रेस पिछले कई चुनावों से लगातार पराजय का मुंह क्यों देख रही है। देश की जनता अब समझदार हो गई है। वह देखती है कि कौन उसके लिए ईमानदारीपूर्वक काम कर रहा है और कौन केवल एयरकंडीशन कमरों में बैठकर महज जुगाली कर रहा है। समाजसेवा के नाम पर कांग्रेस-वामपंथियों की क्या उपलब्धि है। इस बात में दम है कि 'अंधेरे की शिकायत करते रहने से कहीं बेहतर है एक दिया जलाना'।

हम देखते हैं कि 1885 में स्थापित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जहां आंतरिक कलह और परिवारवाद के कारण दिन-प्रतिदिन सिकुड़ती जा रही है, वहीं 1925 में दुनिया को लाल झंडे तले लाने के सपने के साथ शुरू हुआ भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन आज दर्जनों गुटों में बंट कर अंतिम सांसें ले रहा है। इनके विपरीत 1925 में ही स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दिनोंदिन आगे बढ़ रहा है।

आज यदि गांधी के विचार-स्वदेशी, ग्राम-पुनर्रचना, रामराज्य-को कोई कार्यान्वित कर रहा है तो वह संघ ही है। महात्मा गांधी का संघ के बारे में कहना था- 'आपके शिविर में अनुशासन, अस्पृश्यता का पूर्ण रूप से अभाव और कठोर, सादगीपूर्ण जीवन देखकर काफी प्रभावित हुआ' (16.09.1947, भंगी कॉलोनी, दिल्ली)।

आज विभिन्न क्षेत्रों में संघ से प्रेरित 35 अखिल भारतीय संगठन कार्यरत हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, वैकल्पिक रोजगार के क्षेत्र में लगभग 30 हजार सेवा कार्य चल रहे हैं। राष्ट्र के सम्मुख जब भी संकट या प्राकृतिक विपदाएं आई हैं, संघ के स्वयंसेवकों ने सबसे पहले घटना-स्थल पर पहुंच कर अपनी सेवाएं प्रस्तुत की हैं।

संघ में बौध्दिक और प्रत्यक्ष समाज कार्य दोनों समान हैं। संघ का कार्य वातानुकूलित कक्षों में महज सेमिनार आयोजित करने या मुट्ठियां भींचकर अनर्गल मुर्दाबाद-जिंदाबाद के नारों से नहीं चलता है। राष्ट्र की सेवा के लिए अपना सर्वस्व होम कर देने की प्रेरणा से आज हजारों की संख्या में युवक पंचतारा सुविधाओं की बजाय गांवों में जाकर कार्य कर रहे हैं। संघ के पास बरगलाने के लिए कोई प्रतीक नहीं है और न कोई काल्पनिक राष्ट्र है। संघ के स्वयंसेवक इन पंक्तियों में विश्वास करते हैं-'एक भूमि, एक संस्कृति, एक हृदय, एक राष्ट्र और क्या चाहिए वतन के लिए?'

संघ धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव नहीं करता। इसके तीसरे सरसंघचालक बाला साहब देवरस ने उद्धोष किया कि 'अस्पृश्यता यदि पाप नहीं है तो कुछ भी पाप नहीं है।' बाबा साहब भीमराव आंबेडकर का कहना था- 'अपने पास के स्वयंसेवकों की जाति को जानने की उत्सुकता तक नहीं रखकर, परिपूर्ण समानता और भ्रातृत्व के साथ यहां व्यवहार करने वाले स्वयंसेवकों को देखकर मुझे आश्चर्य होता है' (मई, 1939, संघ शिविर, पुणे)।

संघ की दिनोंदिन बढ़ती ताकत और सर्वस्वीकार्यता देखकर उसके विरोधी मनगढ़ंत आरोप लगाकर संघ की छवि को विकृत करने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन हमें स्वामी विवेकानंद का वचन अच्छी तरह याद है: 'हर एक बड़े काम को चार अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है: उपेक्षा, उपहास, विरोध और अंत में विजय।' इसी विजय को अपनी नियति मानकर संघ समाज-कार्य में जुटा हुआ है।

18 comments:

dhurvirodhi said...

संजीव जी; लगता है कि आप मोहल्ले का जबाब लेकर आये हैं. आप अकेले ही हैं या एक दो ठौ और भी ब्लाग आपके साथ हैं?

आप कहते हैं कि "उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में माकपा-भाकपा और माले का खाता क्यों नहीं खुल पाया" भैय्या उनके खाते की बात करते हो, पर यूपी में आपके तो पूरी बैंक का भट्टा बैठ गया ? तवा कर्छुली को काली कैसे बोल रही है?

वैसे भली बात ये है कि आपने उन्हें ज्यादा गरियाया नहीं है, बल्कि अपने बारे में अच्छी अच्छी बातें ही बतायी हैं.

हम एक मोहल्ले की चींचींपोंपों से ही परेशान हैं, आपसे विनती है कि अपने ब्लाग को दूसरा मोहल्ला मत बनाना.

बाकी हम के संघ के बारे में भी और जानने की कोशिश करेंगे. अभी तक तो जितना सुनते आये हैं उससे डर ही लगता है.

Atul Sharma said...

सधे शब्दों में अच्छी जानकारी प्रस्तुत की है।

संजय बेंगाणी said...

अच्छा लिखा है. खुब.
आशा है यह किसी बाजारू चिट्ठे का जवाब नहीं है, अपना मौलिक लेखन करते रहें.
शुभकामनाएं.

Unknown said...

सपने मे है क्या जनाब, खैर कोइ बात नही आखिर आपका भी अपना स्वार्थ है. कामना करते है वह पुरा हो जाए. कौन नही जानता है कि क्या सच है और क्या ... ? कुछ बाहरी सफेदपोश भी आपके समर्थन मे है सच्चाई जानते हुए ,मगर उनका नाम नही लिया जा सकता उन्हे शर्म आती है.
फिर भी लगे रहिए क्योकि लोगो को स.. का सच कैसे पता लगेगा.

आदिविद्रोही said...

संजीव जी
नमस्कार। आपका लेख संघ का सच नहीं बल्कि संघ के एक कार्यकर्ता का भक्तिभाव भरा प्रशस्तिगान है। खैर आपसे पाँच सीधे-सीधे सवाल पूछना चाहता हूं, उसी क्रम में जिसमें आपने अपना लेख लिखा है। अगर आप अपने अगले पोस्ट में उनका उत्तर दे सकें तो आभार मानूँगा।

1. उत्तर प्रदेश में पूरी ताकत झौंक देने के बाद जो परिणाम निकला उसे आप उत्साहवर्धक मानते हैं?

2.अगर संघ ग्राम पुनरर्चना और स्वदेशी के गाँधी के सिद्धांतों पर अमल कर रहे हैं तो उनकी हत्या करने की क्या मजबूरी थी?

3.एक भूमि, एक ही संस्कृति हो जिसे सवा अरब लोग मानें और जो नहीं मानते वे देश से चले जाएँ, क्या यही देश को जोड़ने की बुद्धिमत्तापूर्ण युक्ति है?

4.संघ अगर धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव नहीं करता तो मुझे एक ऐसा नाम बता दीजिए जिसने नौ दशकों के इतिहास में संघ का नेतृत्व किया हो, और वह सवर्ण हिंदू न रहा हो?

5. अंत में सबसे अहम सवाल, राष्ट्रभक्तों की इस सेना ने आजादी की लड़ाई में क्या देशभक्ति दिखाई? हेडेगेवार और गोलवलकर कितनी बार जेल गए, कितनी लाठियाँ खाईं?

अनुनाद सिंह said...

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में इतनी अच्छी जानकारी दी और गागर में संघ का सागर भर दिया! साधुवाद।

आशा करता हूँ कि इसी तरह कभी भारतीय कमीनिस्टों के राष्ट्र द्रोही कारनामों, यथा - भारत-छोड़ो आन्दोलन का विरोध, नेताजी को 'हिटलर का कुत्ता कहना', भारत पर चीनी आक्रमण को उचित ठहराना, भारत में बांग्लादेशियों से भरना, आदि पर भी एक लेख लिखेंगे।

अनुनाद

उत्तराखण्डी शेर said...

सिन्हा जी आप से एक विनती है कि आप भी सघी है और हम भी सघी है अगर आप अप्ने ब्लाग पे हमारे ब्लाग का पता दे दे तो बडी मेहरबानी होगी मेरे ब्लाग है http://hrdbharat.blogspot.com
http://hrdbharat.page.tl
वैसे हमारे ब्लाग पर आप पहले ही विराजमान हो चुके है

Unknown said...

are bhai main to kabal sangh ko ek naam se janta hoon, Harishankar parsai ke hamla ver.
Kuch sayamsedako ne ek bude lekhak ko gher ka mara aur desh seva ki.

Shankar Manghnani said...

राज ठाकरे द्वारा किया गया कृत्य देश द्रोह की श्रेणी में आता है किंतु उसका प्रखरता से विरोध संघ या अन्य हिंदूवादी संगठनो द्वारा अभी तक क्या राजनेतिक कारणों से नही किया जा रहा हँ

Unknown said...

मैं कभी संघ से जुड़ा नहीं रहा. संघ से क्या मैं कभी किसी संगठन से नहीं जुड़ा. संघ के विरोधी हमेशा संघ को 'मुसलमानों के ख़िलाफ़ है' कह कर बदनाम करते हैं. पर मैंने संघ को एक और रूप में देखा. मैं सुबह जिस पार्क में घूमने जाता हूँ वहां संघ की शाखा लगती है. उसी पार्क में एक मुसलमान सज्जन भी घूमने और योग करने आते हैं. काफ़ी बड़ा पार्क है. मजेदार बात यह है कि शाखा जहाँ लगती है, यह सज्जन भी योग वहीँ करते हैं. संघ के ध्वज से कुछ ही दूरी पर यह सज्जन अपनी चादर विछाते हैं. काफ़ी दिनों से मैं यह देख रहा हूँ. मुझे कभी ऐसा नहीं लगा कि शाखा करने वालों और इन सज्जन को एक दूसरे से कोई परेशानी है. मैंने उनकी बहुत सी फोटो भी खींच रखी हैं.

मेरा हमेशा यह अनुभव रहा है कि मिलने जुलने से एक दूसरे के प्रति शंकाएँ कम होती हैं. लोगों की बातों पर ध्यान दे कर हम एक दूरी बना लेते हैं और ख़ुद कुछ जानने की कोशिश नहीं करते. ज्यादातर मामलों में ऐसा होता है कि जब हम एक दूसरे से मिलते हैं तो महसूस करते हैं कि हमें उन के बारे में ग़लत बताया गया था.

सुनील सुयाल said...

संजीव जी ,आपको बहुत साधुवाद इस लेख के लिए, मै लेख के विरोध में की गयी टिप्पणियों के विषय मै कहना चाहूँगा "की संघ के कार्य का आधार सर्जनात्मकता और प्रेम है "और सभी स्वयमसेवक शक्ति के उपासक है इसलिए हर देश द्रोही कार्य का मुहतोड़ जवाब देते है !लेकिन संघ विरोधी, स्वयंसेवको की प्रतिक्रिया को संघ की गुंडागर्दी कह कर बदनाम करने का भरसक प्रयास करते है !ऐसे लोग ध्यान से सुन ले, की गुंडा गर्दी करके कोई कार्य मात्र ८० वर्ष मै विश्व व्यापी नहीं होता है !

Dev Kumar Pukhraj said...

संजीव जी,
कुछ लोगों ने आपके कुछ वस्तुनिष्ठ प्रश्न पूछे हैं, आप उनका उत्तर दें ताकि वो मुंह में पानी भरकर अपना गुस्सा घोंट सकें.

चौहान said...

एक दम सही लिखा है आपने हिन्दुस्तान में हम सभी को एक मानसिक बीमारी ने घेर रखा है जिसके कारण हम हिन्दुस्तानी अपना दिमाग लगा नही पाते हैं और सुनी सुनाई बात पर हल्ला मचाते हैं। और संघ का विरोध भी इसी बीमारी का नतीजा है और आपका लेख इस बीमारी क दवा।

Unknown said...

sanjeev ji,
Dhurvirodhi,Imran and Adividrohi like persons are there to create panic in the society who does not know the story of Dr. Hedgewar who in his very childhood refused to accept sweets being distributed in school when country was not an independent.Has he heared name of Vir Savarker.Was Gandhi murdered by RSS ? Go and read real history and not written by the writers dominated by communism ideaology.

RAJ PUSHP AWASTHI said...

राज पुष्प
श्रीमान अति विद्रोही जी
२-सर्वप्रथम मै बता दू की गाँधी जी की हत्या में संघ का कोई हाथ नहीं तत्कालीन सरकार ने यह बात स्पष्ट कर दी थी
३-संघ सबको एक रखना कहता है पर उनकी विविधताओ को बना कर भारत हिन्दू राष्ट्र था है और रहेगा बस इतना संघ का कहना है उसमे सभी नागरिक सामान आज की तरह अलग अलग नागरिक अधिकार नहीं है जैसा( मुस्लिम भाइयो के साथ है ४ विबाह करने की छुट अगर वो पवित्र कुरान को इनता ही मानते है तो क्यों दंड की परंपरा वैसे नहीं करते है जैसे चोरी की हाथ काटना
बात बात में मृत्यु दंड आदि आप अपने धर्म से लाभ दायक तथ्य तो स्वीकार करते है पर बाकि को अनदेखा करते है क्यों )
४- क्या नेतृत्व से तय होता है की भेदभाव होता है की नहीं कितने ऐसे राज्य है जहा कभी मुस्लिम मुख्यमंत्री नहीं बने तो इसका अर्थ है की मुस्लिम समाज के साथ भेदभाव है आप ऐसे तर्क सभी संस्थाओ के साथ दे सकते है जैसे प्रधानमंत्री ,भारतीय सेना ,
पहले संघ को मराठी लोगो का संघटन कहा फिर ब्राम्हणों का रज्जू भैय्या के बाद जब यह धरना टूटी तो अब ऐसे आरोप आप भी आये स्वागत जितना त्याग और कोई प्रचारक करता है उतना करे और देखे की कैसे आप भी आगे बदेगे अब संघ में प्रचार की परंपरा तो है नहीं सो आम जनता मात्र सरसंघचालक जी का ही नाम जानती बाकि प्रचारक न तो नाम की कह रखते है न ही प्रचारक की कोई जाती होती है
५- आज़ादी की लड़ाई में उस समय के सभी स्वयंसेवकों ने संघर्ष किया डॉ.साहब स्वयं जेल गए रज्जू भैय्या भारत छोड़ो आन्दोलन में सामिल हुए हजारों स्वयंसेवक स्वतंत्र संग्राम में जेल गए आप अपनी जानकारी बढाये
http://en.wikipedia.org/wiki/K._B._हेडगेवार
http://en.wikipedia.org/wiki/Rajendra_Singh_(RSS)
http://en.wikipedia.org/wiki/Dattopant_Thengadi

Unknown said...

when communist and Muslim have no answer at that time they start to indicate our fault and preach false history.second i am communist but i not hate rss.because my rss friend know that i am communist and they allow me in sakha and never argue to me about my thinking.and for muslim your mula molvi is danger for you.your mulla molvia teach heat to childeran and also support terrorism.infacte in terrorism many poor working class muslim killed and handicapped

Unknown said...

when communist and Muslim have no answer at that time they start to indicate our fault and preach false history.second i am communist but i not hate rss.because my rss friend know that i am communist and they allow me in sakha and never argue to me about my thinking.and for muslim your mula molvi is danger for you.your mulla molvia teach heat to childeran and also support terrorism.infacte in terrorism many poor working class muslim killed and handicapped

Unknown said...

As a communist i every day attain Sakha and every program of Rss since last year.i not find any bad and offensive teaching in this.i also read book of guruji and dr.but i nt find any untruth.And from history i learn that when Muslim have no answer they preach wrong news and false theory.it trick which muslim use this in past many centure.it is nt Rss ot is your mullah and imam is enemy of you.poor muslim killed in terrorism but your mullah imam not rise voice again it.so learn and be practical.