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Friday 11 July, 2008

अमरनाथ श्राइन बोर्ड से जमीन वापस लेना धर्मनिरपेक्षता का मखौल

लेखक : डॉ.सूर्य प्रकाश अग्रवाल

प्रतिवर्ष दो माह के लिए देश व विदेश से लाखों श्रध्दालुओं के द्वारा कश्मीर में बर्फानी बाबा अमरनाथ के दर्शन किये जाते हैं। इस यात्रा का कश्मीर के लोगों के लिए आर्थिक व सामाजिक महत्व भी है। इस यात्रा से कुल मिला कर करोडों रुपयों का व्यापार होता है तथा लाखों स्थानीय नागरिकों को रोजगार उपलब्ध होता है। रोजगार के लिए कश्मीर मजदूर वर्ष भर इस यात्रा की प्रतिक्षा करते है। अमरनाथ बाबा के दर्शन करके लौटने वाले तीर्थयात्री भी अपने साथ मुसलमान मजदूरों व कर्मचारियों के द्वारा दिखायी गई धार्मिक सहिष्णुता व भाई चारें की याद लेकर जाते है। परन्तु मौसम की प्रतिकूलता के कारण तीर्थयात्रियों को होने वाली असुविधा को देखते हुए उन्हें ठहराने के लिए अस्थायी शिविर लगाने हेतु कश्मीर सरकार के द्वारा बालटाल क्षेत्र में मात्र 38.8 हैक्टेयर जमीन अमरनाथ श्राइन बोर्ड को अस्थायी रुप से हस्तांतरण की बात क्या चली कश्मीर के मुसलमानों की धार्मिक सहिष्णुता व भाईचारा मात्र दिखावटी ही साबित हुआ। कश्मीर के श्रीनगर व अन्य हिस्सों में हिसंक प्रदर्शन, हडताल व आंदोलनों की आग में कश्मीर झुलस गया एक दो दिन नहीं बल्कि एक सप्ताह से अधिक चलने वाले आंदोलन तभी वापस हुए जब अमरनाथ श्राईन बोर्ड ने जमीन सरकार को वापस ही कर दी। सत्तारुढ व अन्य राजनीतिक दल अपनी अपनी राजनीतिक रोटियां सैंकने लगे।

कश्मीर की सत्ता में भागीदार रही पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्षा महबूबा मुफ्ती ने जमीन हस्तांतरण को मुददा बना कर कांग्रेस की सरकार से समर्थन ही वापस ले लिया उधर जब कांग्रेस ने देश में इस मुददे पर धार्मिक धुव्रीकरण की आहट महसूस की तो उसने भी सरकार को बलि करने की तथा हिन्दुओं के मन में पैठ बनाने की सोची। अल्पमत होने पर जम्मू व कश्मीर के मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने अपना त्यागपत्र राज्यपाल एन एन वोहरा को सौप दिया। मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने इस मुददे को सुलझाने के 30 जून 2008 तक का समय मांगा था परन्तु पीडीपी ने राजनीतिक कारणों से प्रतिक्षा करनी उचित नहीं समझा तथा तीन दिन पूर्व ही सरकार से अपना समर्थन वापस लेकर अपने चरित्र का प्रदर्शन करते हुए कांग्रेस को अल्पमत में खडा कर दिया।

कश्मीर घाटी में अमरनाथ श्राइन बोर्ड को मात्र 38.8 हैक्टयर वन भूमि के हस्तांतरण का विरोध इस कदर होगा यह किसी ने सोचा भी नहीं था तथा इस विरोध के पीछे कश्मीर मुसलमानों को शेष भारत के हिन्दुओ के प्रति दुर्भावना ही परिलक्षित होती है तथा यह भी ज्ञात होता है कि वे स्‍वयं को भारत से कितना दूर महसूस करते है। जब केन्द्र सरकारों ने कश्मीर मुसलमानों के वोट बैंक को सुरक्षित करने के लिए वर्ष 1947 से आज तक 2 लाख करोड रुपये से अधिक व्यय करके अनगिनत सुविधाऐं दी है परन्तु वहां के मुसलमानों की संतुष्टी नहीं हो पायी है। इस प्रकरण से न केवल हिन्दुओं के प्रति बल्कि सम्पूर्ण भारत के प्रति उनकी कलुषित मानसिकता दृष्टिगोचर हो रही है। कश्मीर मुसलमानों के विरोध को देखते हुए कांग्रेस के दबाब में अमरनाथ श्राइन बोर्ड ने जमीन न लेने का विचार किया है व जमीन उसने लौटा दी। इस सारे प्रकरण से तो लगता है कि कश्मीर वक्फ की सम्पत्ति है और भारत का कोई अन्य धर्मावलम्बी हाथ भी नहीं लगा सकता है।

इस प्रकरण से कांग्रेस के सामने दोहरा संकट उत्पन्न हो गया है। क्योंकि इस आग की चिंगारी देश के कोने कोने में अवश्य फैलेगी तथा उससे धुआं भी जरुर उठेगा। देश भर में शांति व्यवस्था कायम रखना एक चुनौतिपूर्ण कार्य होगा। उधर कांग्रेस के सामने वोट बैंक की राजनीति का राजनीतिक खतरा भी उत्पन्न हो गया है। कांग्रेस का नेतृत्व यह भी समझ रहा था कि पूरे देश में इसकी कीमत चुकानी पडेगी क्योंकि देश मे हिन्दूवादी संगठनों व मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने जमीन वापस लेने के मुददे पर त्यौरियां चढा ली है।

इस प्रकरण से जम्मू व कश्मीर में भारत व विशेष कर हिन्दूओं के प्रति विश्वासघाती, राष्ट्रविरोधी व अवसरवादी राजनीति का अध्याय लिखा गया है। पीडीपी का विकृत चेहरा सामने आया। एक बार पहले भी जब महबूबा मुफ्ती का आतंकवादियों के द्वारा नाटकीय अपहरण किया गया तब भी उनकी राष्ट्रविरोधी मानसिकता जगजाहिर हुई थी परन्तु कांग्रेस ने उसी पीडीपी से सत्ता के मोह में गठबंधन करके कश्मीर में सरकार बना ली तो कांग्रेस भी कलंक के छींटों से नहीं बच सकेगी। भारत के लोकतंत्र में आई विकृति के रुप में पीडीपी ही क्या कोई भी राजनीतिक दल चंद वोटों के लालच में अलगाववादी व अवसरवादी राजनीति के किसी भी स्तर तक गिर सकता है। पीडीपी ने हद तो जब कर दी जब वर्तमान में चालू अमरनाथ यात्रा के तीर्थयात्रियों को ही संकट में डाल दिया तथा हजारों तीर्थयात्री स्वंय को असुरिक्षत महसूस करते हुए रास्तों पर यहां वहां कहीं भी शरण लिये हुए है क्योंकि अलगाववादियों के द्वारा सडकों पर तांडव जारी है। यह मानसिकता पाकिस्तान परस्त अलगाववादी नेताओं के समान है। हुर्रियत कांफ्रेंस में दोनों उदारवादी व गरम धडा दोनों ही एकाकार हो गये है। उसने यह प्रचार कर दिया कि अमरनाथ यात्रियों के लिए अस्थायी शिविरों में रहने की अस्थायी व्यवस्था से हिन्दूओं को घाटी में बसाने और कश्मीर मुसलमानों को अल्पसंख्यक बनाने की साजिश चल रही है। पीडीपी ने तो इस प्रकरण से काश्मीरियत की परिभाषा ही बदल दी अर्थात अब काश्मीरियत वह हैं जिसमें हिन्दुओं के लिए कहीं भी कोई स्थान नहीं - यहां तक कि प्रतीकात्मक रुप से भी नहीं।

जब पीडीपी की महबूबा मुफ्ती के पिताश्री मुफ्ती मुहम्मद सईद कश्मीर की सत्ता में थे तभी कश्मीर में अमरनाथ यात्रियों को राहत देने के लिए अस्थायी शिविर बनाने हेतु भूमि आंबटित करने की बात चली थी। अब कुछ समय पूर्व कश्मीर के मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने अमरनाथ श्राइन बोर्ड को बालटाल के नजदीक 38.8 हैक्टेयर भूमि आबंटित कर दी उनके इस फैसले में पीडीपी दल से सरकार मे उपमुख्यमंत्री बेग भी शामिल थे परन्तु अब वे अपनी सफाई देते हुए कह रहे हैं कि उन्हें धोखे में रखा गया।

अब इस प्रकरण से सम्पूर्ण भारत की समझ में आ गया कि आतंकवादियों ने कश्मीर पंडितों को कश्मीर से पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया तथा फिर वापस उन्हे कश्मीर में घुसने तक नहीं दिया है तथा राजनीतिक दल अपने वोट बैंक के लालच में पंडितों की पीडा को मूक दर्शक की तरह चुपचाप देख रहे है। कश्मीर का दुर्भाग्य है कि नेशनल कांफ्रेंस के शेख अब्दुल्ला से लेकर फारुख अब्दुल्ला व उमर अब्दुल्ला तक व पीडीपी के मुफ्ती मोहम्मद सईद व उनकी पुत्री महबूबा मुफ्ती कश्मीर को निजी जागीर मान कर राजनीति कर रहे है तथा बिना किसी संकोच व शर्म के कश्मीरीयत की राष्ट्र विरोधी व्याख्या कर रहे है। कश्मीर घाटी को आधार में रख कर राजनीति करने वाले राजनीतिक दल समग्र जम्मू कश्मीर के हितों की परवाह नहीं करते है तथा भारतीय संविधान की धज्जियां उठाने में पीछे नहीं रहते तथा स्वंय के वोट बैंक के निमार्ण के लिए व्याकुल रहते है। सम्पूर्ण राष्ट्र को एक सुत्र में बांधने वाले भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 से ही जम्मू कश्मीर को भी विशेष अधिकार मिले है। भूमि के इस प्रकरण से स्वतंत्रता के वर्ष 1947 से कांग्रेस की कश्मीर नीति की भी पोल खुल गई है तथा कांग्रेस की कश्मीर की नीति कतई असफल हो गई है।

एक तार्किक आधार पर भूमि के हस्तांतरण करने की सोच विकसित की गई थी। पहाडी मौसम की प्रतिकूलता से लाखों तीर्थ यात्रियों को भारी असुविधा का सामना करना पडता था। लगभग बरसात के दो महीनों में होने वाली अमरनाथ यात्रा में यात्रियों को होने वाली असुविधा देने के लिए अगर अस्थायी शिविर लगाने हेतु अमरनाथ श्राइन बोर्ड को अस्थायी रुप से भूमि आबंटित कर दी गई तो जम्मू कश्मीर को छोड कर शेष भारत का मुसलमान भूमि हस्तांतरण का यह तार्किक आधार समझता है। हुर्रियत कांफ्रेस कश्मीर के इस्लामिक रुप को हर हालत में बनाये रखना चाहती है। चीन ने तिब्बत व झिंजेंग से भारी संख्या में पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया था जिससे तिब्बत का आंदोलन कमजोर पड जाये। पाकिस्तान भी जम्मू कश्मीर के उत्तारी क्षेत्र में ऐसी ही स्थिति चाहता है कि उस क्षेत्र में हिन्दू व गैर मुस्लिम लोग नहीं रहें। मिजोरम, असम, अरुणाचल इत्यादि प्रदेशों में भी कभी कभी क्षेत्रवाद की आंधी चलती है।

परन्तु इस प्रकरण में तो भोले भाले शिव भक्त तीर्थयात्रा करने के लिए अमरनाथ बर्फानी बाबा की गुफा तक जाते है फिर दो चार दिन में वापस लौट आते है वे कश्मीर मे बसने के लिए नहीं जाते है। उनकी इस यात्रा से काश्मीरियों को आर्थिक लाभ भी होता है। उनसे व्यापार उद्योग धंधे चलते है तथा युवाओं व गरीबों को रोजगार मिलता है। परन्तु राजनीतिक लोगों को यह भी बर्दाश्त नहीं होता। वर्ष 2002 से शुरु हुआ पीडीपी की शुध्द वोट बैंक की राजनीति राष्ट्र विरोधी है तथा क्षेत्रवाद से कहीं आगे पीडीपी की राजनीति धार्मिक पुर्वाग्रहों से ग्रसित उसके हुर्रियत समर्थकों के लिए हो रही है। मुफ्ती मोहम्मद सईद केन्द्र सरकार में पूर्व गृहमंत्री जैसा महत्वपूर्ण पद सभाल चुके है। उनकी पार्टी पीडीपी की सोच संकीर्णता से ऊपर होनी चाहिए थी परन्तु ऐसा नहीं हुआ तथा वर्ष 2002 के चुनाव से शुरु हुआ उनका राजनीतिक सफर अब हिन्दुओं को गाली देने पर उतर आया कि हिन्दूओं तुम अमरनाथ की गुफा से दूर रहो तुम्हें यहां आकर मौसमी तकलीफें झेलनी पडती है तो तुम यहां क्यों आते हो? तुम्हें यहां नहीं आना चाहिए। देश में हज यात्रियों को सरकारी सुविधाओं के निरन्तर बढते जाने से ही प्रतिवर्ष हज यात्रियों की संख्या बढती ही जा रही है। इन सुविधाओं पर सरकार का करोडों रुपया व्यय होता है। परन्तु हिन्दुओं को उनके देश में ही बैगाना समझने का दुस्साहस चंद राष्ट्र विरोधी मानसिकता वाले राजनीतिक दल करते है। दिल्ली मेरठ राष्ट्रीय राजमार्ग पर हज यात्रियों को सुविधा देने के लिए हज हाउस बनाया गया है। क्या पीडीपी व हुर्रियत समर्थक उस हज हाउस को तोड सकने की हिम्मत रखते है? केन्द्र सरकार को इस भूमि हस्तांतरण प्रकरण से सबक लेना चाहिए तथा अपनी कश्मीर नीति में कठोर से कठोर निर्णय लेते हुए सविंधान के अनुच्छेद 370 को तुरंत समाप्त कर जम्मू व कश्मीर को जल्दी से जल्दी राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल करना चाहिए वरना तो हिन्दू ही देश शरणार्थी बन कर इधर उधर भटकते रहेगें तथा कांग्रेस तुष्टीकरण की राजनीति से देश एक बार तो धार्मिक आधार पर वर्ष 1947 में बंटा ही था दूसरी बार भी ज्ल्दी बंट जायेगा।

अमरनाथ श्राइन बोर्ड ने बालटाल में उसे आंवटित 40 हैक्टेयर भूमि कश्मीर की गैर धार्मिक सहिष्णुता की स्थिति को देखते हुए राज्य सरकार को वापस कर दी। राज्य सरकार ने भी बोर्ड के अधिकारों की कतर ब्यौत करते हुए बोर्ड को मात्र बर्फानी बाबा अमरनाथ की गुफा में पूजा पाठ तक ही सीमित कर दिया। तीर्थयात्रियों को समस्त सुविधाएं राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध कराने की बात कही गई है। इससे कश्मीर में कट्टरवादी मुसलमानों सहित पीडीपी के तेबर ढीले पड जाने से कश्मीर में शांति स्थापित होने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। परन्तु इस प्रकरण से सम्पूर्ण भारत में कई प्रश्न जरुर उत्पन्न हो गये है। देश के प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के विचारों को भी नेपथ्य में नहीं रखा जा सकता है। भाजपा के उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकबी के अनुसार अमरनाथ यात्रा मामले में अलगाववादियों के समाने किसी भी तरह की घुटना टेक नीति से गम्भीर राष्ट्रव्यापी परिणाम भुगतने पड सकते है। यह केवल जम्मू व कश्मीर से जुडा हुआ मुद्दा नहीं था अपितु पूरे देश के करोडों लोगों की श्रध्दा व आस्था की सीधा विषय है। जरुरत पडने पर अलगाववादियों व आतंकवादियों की राष्ट्र विरोधी हरकतों को कुचलने के लिए सैनिक कार्यवाही से भी परहेज नहीं करना चाहिए। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने इस फैसले के विरुध्द राष्ट्रव्यापी आंदोलन करने की बात कही है। जबकि कांग्रेस ने सांप भी मर जाये व लाठी भी न टूटे की नीति पर चलते हुए पीडीपी (लगता है हुर्रियत का ही बदला हुआ नाम है) की राष्ट्रविरोधी मांग के सामने घुटने टेकते हुए एक तरह से अलगाववादियों व आतंकवादियों के सम्मुख समर्पण ही कर दिया है। इस मुददे पर कांग्रेस व देश के प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के अलावा देश के अन्य राजनीति दलों की चुप्पी भी घातक है। ऐसा लगता है इन दलों की मानसिकता वोट बैंक की राजनीति करते हुए देश को अलगाववादियों व आतंकवादियों के सम्मुख थाली में परोसना भर है। (नवोत्थान लेख सेवा हिन्दुस्थान समाचार)