Tuesday, 24 March 2009
Thursday, 5 March 2009
हमें हमारी जमीन दे दो, आसमां लेकर क्या करेंगे
केंद्रीय वित्त मंत्री का कार्यभार संभाल रहे श्री प्रणव मुखर्जी ने 16 फरवरी को संसद में संप्रग सरकार का अंतरिम बजट(2009-10) प्रस्तुत किया। संसद के दोनों सदनों में अंतरिम बजट पर हुई चर्चा में भाग लेते हुए भाजपा सांसदों ने अपने आक्रामक भाषणों में संप्रग सरकार के उपलब्धियों के दावे की पोल खोल दी। भाजपा सांसदों ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने अपने कार्यकाल में आम आदमी की सुध नहीं ली।
डॉ. सत्यनारायण जटिया द्वारा लोकसभा में दिए गए भाषण का संपादित अंश
माननीय सभापति जी, अन्तरिम बजट कुछ नहीं होता है, बजट ही होता है और उसे बजट की तरह प्रस्तुत किया गया है। बजट की जो विशेषता होनी चाहिए एक निरन्तरता की, कंटीन्युटी की, भविष्य की रचना की, चुनावी वर्ष होने के कारण उन सारी बातों को पूरा नहीं किया जा सका है। इसलिए इस बजट के बारे में बाकी लोगों की जो राय है, वह है, किन्तु जो लिखा गया है, उसमें 'प्रणब दा का बजट' लिखा गया है। मैं आपको बताता हूं कि राष्ट्रीय सहारा, अपने 17 फरवरी के अंक में लिखता है कि-
सप्रति सरकार की अब तक की उपलब्धियों का महिमामंडन कर एवं औद्योगिक नीतियों का अनछुआ रहना और चुनाव की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों के लिए आबंटन आदि, बस थोड़े शब्दों में यही प्रणब मुखर्जी के शब्दों का सार है। उद्योग जगत सहित आर्थिक विशेषज्ञ यदि इस पर निराशा प्रकट कर रहे हैं, तो इसमें अस्वाभाविक कुछ नहीं है। आखिर मंदी से छटपटाते देश के लिए एक-एक दिन कीमती है और हम नीतिगत घोषणाओं की जिम्मेदारी अगली सरकार पर लाद दें, इसका क्या तुक है।
महोदय, वास्तव में बजट को जानने वाले लोग कितने हैं। बजट का प्रभाव जिन लोगों पर होता है, उसके बारे में यदि हम चिन्ता करें, तो निश्चित रूप से इस देश का भला होगा। देश की आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा बेरोजगारी से, गरीबी से और असहायता से जूझ रहा है और उसे पता नहीं है कि वह क्या करे। प्रो. अमर्त्यसेन की, 'सामाजिक न्याय की मांग' विषय पर एक पुस्तक मुझे अभी-अभी प्राप्त हुई है। उसमें पृष्ठ 46 पर लिखा है कि-
हमारे देश के वंचित वर्ग की घोर दरिद्रता के बारे में अपेक्षाकृत कम राजनैतिक चर्चा तथा उसकी मूक स्वीकार्यता पर मुझे आश्चर्य होता है। राजनैतिक हितों का अम्बार लगाकर भारतीय समाज के वंचित वर्ग की भीषण व सतत तंगहाली को मात्र तात्कालिक मुद्दों पर आसान बयानबाजी के जरिए दूर करने की कवायद से सरकार पर इस बात के लिए दबाव कम हो जाता है कि वह भारत में विद्यमान अतिघोर एवं सतत अन्याय को अत्यावश्यक तत्परता के साथ दूर करे।
महोदय, यह भाषण का हिस्सा है। यह देश का किस्सा है। क्या बदला जब मानवता की पीर वही, तकदीर वही। यह नहीं कह रहे हैं कि कुछ हुआ नहीं है, परन्तु जहां होना चाहिए, वहां उतना नहीं दिखाई दे रहा है, जितना कि दिखाई देना चाहिए। गांव, गरीब और किसान, कौन बनाता है हिन्दुस्तान, भारत का मजदूर किसान। अब गांव की दशा क्या है, गांव की दशा गांव जैसी है। असुविधाग्रस्त समुदाय जहां पर भी रह रहा है, जहां पहुंच नहीं है, जहां सड़क अभी भी नहीं पहुंची है, क्योंकि माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी के नेतृत्व में प्रधान मंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत 25 दिसम्बर, 2000 को गांवों की सड़कें बनाने का काम प्रारम्भ हुआ था और तब से सड़कें बननी शुरू हुईं। उन सड़कों का बनना धीमा हो गया है। उनकी क्वालिटी और गुणवत्त के बारे में भी कुछ कहा नहीं जा सकता। हम इस मामले में लक्ष्य से तो पीछे हैं ही। इस प्रकार से जब तक गांवों की हालत दयनीय रहने वाली है, तब तक हिन्दुस्तान समृध्द नहीं होगा।
क्योंकि, गांव में किसान रहता है, गांव में देश की आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा रहता है, जो खेती पर निर्भर है और खेती के बारे में हम ऊपरी, सतही प्रबन्धा करते जाते हैं। कर्जा माफ, कर्जा क्यों हो गया, आगे न हो, नहीं तो ठीक है, अच्छी लोकप्रिय घोषणा है। यह हमारे देश की एक विडम्बना कहनी चाहिए कि हम जिन बातों को देश में हो ही जाना चाहिए था, उसके बाद में आश्वासन देकर चुनावों में जाते रहते हैं। सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, चिकित्सा, कमजोर वर्ग, गंदी बस्ती, इन्हों बातों को बार-बार दोहराते हैं। मैं उसका कोई राजनीतीकरण नहीं कर रहा हूं। गरीबी को हटाओ, जोर लगाओ, और हटाओ, भूल जाओ।
मेरे भाषण का केवल एक सार है कि समाज के गरीब आदमी को सामर्थ्य दे दें, भारत सामर्थ्यवान बन जायेगा, इसलिए सामर्थ्य को लाने का बार-बार तकाजा यहां हम करते रहते हैं, किन्तु यह तो सरकार का काम है, जो भी सरकार होगी, उसको करना है और उसके लिए जो-जो उपाय हमें प्रभावी रूप से करने चाहिए, उसे प्रभावी उपाय के रूप में यदि हम नहीं करेंगे तो इन बातों को दोहराते जाना पड़ेगा। ठीक है, गरीबी नहीं हटी, नहीं हटी, हटाने की कोशिश जारी है और आगे की क्या तैयारी है।
मैं कुछ बोलता नहीं, जो कुछ है, उसी को कहने की कोशिश करूंगा, क्योंकि, जिस तरह से यह कहा गया है, एक विश्लेषण और मेरे ध्यान में आ गया। सरकार ने अन्तरिम बजट में कुछ खास नहीं किया है, ये समीक्षा करने वाले लोग हैं, बजट के द्वारा सरकार अपनी छवि सुधारने की कोशिश कर रही है। स्पष्टत: सरकार ने अपने नकारात्मक पक्ष को छिपाने की कोशिश की है, जिससे यह साफ जाहिर होता है कि यह चुनावी बजट है। जिस ग्रोथ की सरकार बात कर रही है, उसका सूक्ष्म रूप से अध्ययन करने की जरूरत है। 8.6 फीसदी ग्रोथ की जो बात हो रही है, उसमें सरकार ने ऐसे आंकड़ों में उलझाकर पेश किया है, अपने अन्तरिम बजट में सरकार यह कह रही है कि उसने मुद्रास्फीति को कंट्रोल में रखा है, लेकिन यदि मुद्रास्फीति पिछले वर्षों र्की याद करें तो 10 फीसदी से ज्यादा थी, इसलिए यह कहना कि हमने मुद्रास्फीति को कंट्रोल कर लिया, गलत होगा। दरअसल मुद्रास्फीति की दर और बाकी की बातें तो अन्य-अन्य क्षेत्रों पर निर्भर करती हैं। दूसरी बात का विश्लेषण करते हुए उसने कहा कि सरकार इस अन्तरिम बजट में जिस ग्रोथ की बात कर रही है, उससे अमीरी गरीबी की खाई और गहरी हुई है। अब यह गरीब गरीब, अमीर अमीर, अमीर ज्यादा अमीर हो जायेगा तो गरीब नीचे जायेगा। जो गरीब है, उसको जो जरूरी जीवन के लिए आवश्यक वस्तुं हैं, उसको हम कैसे मुहैया करा रहे हैं? जो हमारा सिस्टम है, जिसको हम कहते हैं कि लोगों को राशन की दुकानों से राशन पहुंचाने के लिए वही एक सिस्टम है। परन्तु इस सारे सिस्टम में जो कुछ मुश्किलें हैं, उनको दूर करने के उपाय हमें करने होंगे। हम लगातार उस परम्परा को ही जारी रखना चाहते हैं , उसको बदलने की कोई कोशिश ही नहीं कर रहा है। उसने कहा कि ये जो पी.डी.एस. सिस्टम वाली दुकानें हैं, इनको हम बराबर रखेंगे। पी.डी.एस. सिस्टम के अलावा भी कुछ और हो सकता है क्या? किस तरह से हम उस गरीब को पी.डी.एस. सिस्टम पर आदमी क्यों जाता है, इसलिए कि उसके पास खरीद की क्षमता नहीं है, जिसकी खरीद की क्षमता नहीं है, उसका अर्थ है कि उसको रोजगार ठीक प्रकार का नहीं है। जब उसका रोजगार ठीक प्रकार का नहीं है तो इसका अर्थ यह है कि उसके परिवार का गुजारा बहुत मुश्किल से होता है।
मुझे यह पता है कि ये जो आंकड़े हैं, ये आंकड़े गरीब आदमी नहीं समझ रहा है, उसकी गिनती ज्यादा से ज्यादा हजार तक जाती है, लाख तक बहुत मुश्किल से समझते हैं, करोड़ और अरब-खरब, बाकी की बातें तो बहुत मुश्किल लगेंगी, इसलिए यह बजट केवल बजट है तो यदि उसको सार्थक, साकार नहीं करने के उपाय हम करेंगे तो निश्चित रूप से यह किताबों की बातें हैं। यदि सार्थक नहीं हुआ तो स्याही के दम पर।
ये लफ्जों की उलझन, ये गिनती के हौवे,
अगर समझ गये तो जरा हमें भी बता दीजिए,
सिरा ढूंढता हूं, जिंदगी का,
अगर पता हो तो मुझे भी बता दीजिए।
उसको और ज्यादा कुछ नहीं चाहिए। गरीब आदमी को सौ दिन के रोजगार की गारंटी है, इसमें क्या गारंटी है? उस गारंटी रोजगार में जो शर्तों रखी गयी हैं, उन शतों के अंतर्गत तो वह काम ही नहीं कर पा रहा है, इसलिए ऐसी शर्तों र्का कोई मतलब ही नहीं है।
गांव के विकास के लिए जो जरूरी बातें है, उनको करने का उपाय तेजी से करना चाहिए। बहुत-बहुत बड़ी योजनाओं के बारे में आप बात कह रहे हैं, इतने हजार करोड़, उतने हजार करोड़, आप उन करोड़्स को गांव तक मोड़ दीजिए। गांव में ऐसा प्रबंध करिए कि उससे शिक्षा का प्रबंध हो जाए, उनको शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिल जाए। सर्व शिक्षा अभियान चलाया जरूर गया है, परंतु सर्व शिक्षा अभियान में जो खामियां हैं, उनको दूर करने के लिए हमें उपाय करने चाहिए। गरीब का बच्चा स्कूल में जाए, इसका प्रबंध करने के लिए, अगर उसके मां-बाप को रोजगार की गारंटी हो जाएगी, तो जरूर उसको इसका लाभ मिलेगा। किसान को खुशहाल करने के संबंध में मैं कहना चाहूंगा कि आज निश्चित रूप से खेत और उसका रकबा कम होता जा रहा है, क्योंकि खेत कोई ऐसी चीज नहीं है, जो हमेशा बढ़ जाएगी, परिवार के बढ़ जाने से खेत का बटवारा हो जाता है और रकबा कम हो जाता है। वह गुणवत्त की खेती कर सके और इतनी खेती कर सके, जिससे उसको अपने गुजारे लायक खर्च करने का मौका हो। खेती के लिए, खाद के लिए, बीज के लिए, उसे गुणवत्त के बीज मिलें और किसान का कर्ज माफ करने का अवसर फिर न आए, आप इस तरह से उपाय करें।
आप आज हजारों करोड़ रूपए के कर्ज माफ करने की बात कह रहे हैं, यदि पहले हम उस पैसे को उसकी खुशहाली में लगा देते, तो शायद यह कर्ज नहीं होता। इसे अब भी कर सकते हैं। किसान के बारे में सोचने की आवश्यकता है। जहां तक रोजगार और श्रम की बात है, निश्चित रूप से श्रम की स्थितियां हमारे देश में कमजोर होती चली जा रही हैं और रोजगार के अवसर कम होते जा रहे हैं। मंदी का वातावरण है, ऐसा कहा जा रहा है। हमारा देश तो कभी पूंजीवादी देश नहीं रहा, हम तो कौशल के वैश्वीकरण के प्रमुख देश रहे हैं। आज पूंजी का वैश्वीकरण हो रहा है। हम स्किल ग्लोबलाइजेशन के माध्यम से, स्किल को ज्यादा प्रोत्साहन करके, अनुकूल परिस्थितियां पैदा करें। जो गरीब आदमी गांव के अंदर काम करता था, यदि फैक्ट्रियां उस काम को करना शुरू कर दें, तो उसके रोजगार के अवसर जाते रहेंगे, इसलिए उसको रोजगार के विकल्प के लिए प्रशिक्षण का कार्यक्रम होना चाहिए। यदि हम प्रशिक्षण देकर अन्य रोजगारों के बारे में उनको तैयार कर सकें, तो निश्चित रूप से यह सब के लिए ठीक होगा।
इफ्रास्ट्रक्चर के संबंध में आपने देखा होगा कि पिछले कुछ समय में सीमेंट और स्टील के दाम ज्यादा बढ़ गए थे। इस कारण इफ्रास्ट्रक्चर को खड़ा करने के लिए स्वर्णिम चतुर्भज योजना, उत्तर-दक्षिण, पूर्व-पश्चिम कोरीडोर की बात आयी। इन सारी बातों को लागू करने का काम हो सकता था। बिजली की हमारे यहां कमी है, यह बहुत बड़ी मुश्किल है। बिजली की कमी की योजनाओं को किस तरह से हम पूरा कर सकें, अगर बिजली की कमी रहेगी, तो हमारा देश आगे नहीं बढ़ सकता है, क्योंकि उस पर उद्योग, कृषि और बहुत सारी चीजें निर्भर रहती हैं।
पानी के संबंध में कहना चाहूंगा कि पानी को किस तरह से हम बचा सकते हैं, पानी को किस तरह से हम रोक सकते हैं? सड़कों को जोड़ने की बात चल रही है, प्रधानमंत्री सड़क योजना से गांव को जोड़ने के लिए, स्वर्णिम चतुर्भुज और बाकी की योजनाओं से शहर की सड़कों को जोड़ने के लिए, उसी प्रकार से यदि नदी के पानी को हम एकसाथ मिलाने का काम करें, तो निश्चित रूप से बाढ़ और सूखे के संकट से सारा देश बार-बार गरीब होता जाता है, वह संकट दूर हो जाएगा। मुझे उम्मीद है कि हम सारी बातों को करने में समर्थ होंगे। इसलिए हमारा सबसे बड़ा ध्यान गांव, गरीब और किसान की ओर जाना चाहिए, उस भूखे इंसान की ओर जाना चाहिए, जो रोजी-रोटी की तलाश कर रहा है। मुझे विश्वास है कि बाकी सब बातों से बात नहीं बनेगी, क्योंकि
बुलंद वादों की बस्तियां लेकर हम क्या करेंगे,
हमें हमारी जमीन दे दो, आसमां लेकर क्या करेंगे?
संप्रग शासन में आशा की किरण नहीं दिखी
केंद्रीय वित्त मंत्री का कार्यभार संभाल रहे श्री प्रणव मुखर्जी ने 16 फरवरी को संसद में संप्रग सरकार का अंतरिम बजट(2009-10) प्रस्तुत किया। संसद के दोनों सदनों में अंतरिम बजट पर हुई चर्चा में भाग लेते हुए भाजपा सांसदों ने अपने आक्रामक भाषणों में संप्रग सरकार के उपलब्धियों के दावे की पोल खोल दी। भाजपा सांसदों ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने अपने कार्यकाल में आम आदमी की सुध नहीं ली।
श्री अनंत कुमार द्वारा लोकसभा में अंग्रेजी में दिये गये भाषण का सारांश (हिन्दी)
वर्ष 2004 में जब उन्हें एनडीए से सशक्त अर्थव्यवस्था प्राप्त हुई, उस समय अर्थव्यवस्था की वृध्दिदर 8.52 प्रतिशत थी। सकल घरेलू उत्पाद में पिछले पांच वर्षों में अर्थात् 1998-2004 तक 40 प्रतिशत से अधिक की वृध्दि हुई थी।
वर्ष 2004 में जनता को 16 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से चावल मिल रहा था। आज यह मूल्य 36 रुपए प्रति किलोग्राम है। उस समय दाल 30 रुपए प्रति किलोग्राम बिक रही थी जो आज 52 रुपए प्रति किलोग्राम है। आज सरकार कह रही है कि महंगाई कर दर कम होकर 4 प्रतिशत तक आ गयी है। खाद्य पदार्थों के मूल्य के बारे में महंगाई की स्थिति क्या है? यहां महंगाई की दर अभी भी 11.7 प्रतिशत के आस-पास है। आम आदमी का क्या हो रहा है। आज देश में भारी कृषि संकट उत्पन्न हो गया है। पिछले 12 वर्षों में देश में 1,90,753 किसानों ने आत्महत्या की है। वर्ष 2004 के बाद वर्ष-प्रतिवर्ष 18,241; 17,131; 17,060 किसानों ने आत्महत्या की। इस सरकार ने पिछले वित्तीय वर्ष ऋण माफी पैकेज दिया लेकिन इससे कुछ नहीं बदला। हम केन्द्रीय सरकार से आग्रह कर रहे हैं कि कृषि ऋण पर ब्याज की दर को घटाकर 4 प्रतिशत तक कर दिया जाए। यह सिफारिश डादृ स्वामीनाथन समिति की रिपोर्ट में की गयी है। आज मंदी के समय में बढ़ती बेरोजगारी की स्थिति क्या है? मोटे तौर पर अनुमान के अनुसार पिछले तीन महीनों में पांच मिलियन रोजगार खत्म हो गए हैं और अभी दो करोड़ लोगों के बेरोजगार होने की संभावना बनी हुई है। अकेले कपड़ा क्षेत्र में सात लाख रोजगार समाप्त हो गए हैं। अंतरिम बजट में इसका क्या समाधान है? विगत में भारतीय अर्थव्यवस्था में अचानक उछाल आने लगा था। इसके तीन महत्वपूर्ण कारण थे-अवसंरचना में निवेश-प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना, स्वर्णिम चतुर्भुज और आवास, 70 लाख से अधिक आवासीय इकाइयों का निर्माण चल रहा था, संचार क्रांति और सर्व शिक्षा अभियान। यह उपयोगी निवेश था। इस व्यय से समाज के साथ-साथ उद्योग को भी अच्छा प्रतिफल प्राप्त हुआ। लेकिन पिछले पांच वर्षों में सरकार का व्यय 30 प्रतिशत बढ़ गया है जोकि अनुत्पादक व्यय है और राजस्व में 10 प्रतिशत की गिरावट आयी है। जहां तक एनआरईजीपी के लिए केन्द्रीय आवंटन का संबंध है प्रति जिला आवंटन में लगातार कमी आयी है। 2006-2007 के संशोधित अनुमान के अनुसार केन्द्रीय आवंटन 11,300 करोड़ रुपए का था जिसमें 200 जिलों को लिया जाना था और प्रति जिला आवंटन 56.5 करोड़ रुपए था। 2008-2009 के संशोधित अनुमान के अनुसार केन्द्रीय आवंटन 16,000 करोड़ रुपए था और प्रति जिला आवंटन 26.8 करोड़ रुपए था। 2006-2007 में ''एस.जी.एस.वाई.'' के लिए संशोधित अनुमान के अंतर्गत आवंटन 1200 करोड़ रुपए था तथा 31 दिसम्बर, 2006 की स्थिति के अनुसर अव्ययित शेष 558 करोड़ रुपए था। एस.जी.आर.वाई. के लिए 2006-2007 के दौरान संशोधिात प्राक्कलन का आवंटन 3000 करोड़ रुपए था और 31 दिसम्बर, 2006 की स्थिति के अनुसार अव्ययित शेष राशि 1352 करोड़ रुपए, आई.ए.वाई. के लिए 2006-2007 के दौरान आवंटन 2920 करोड़ रुपए था और अव्ययित शेष राशि 1334 करोड़ रुपए दर्शायी गयी है। एन.आर.जी.ई.ए. के लिए 11300 करोड़ रुपए आवंटित किए गए और अव्ययित शेष राशि 4479 करोड़ रुपए दर्शायी गयी। पी.एम.जी.एस.वाई. के लिए 2006-2007 का संशोधिात प्राक्कलन का आवंटन 5476 करोड़ रुपए था और अव्ययित शेष राशि 2556 करोड़ रुपए थी। इस प्रकार 23896 करोड़ रुपए के कुल आवंटन में से 10278 करोड़ रुपए का राशि अव्ययित रही। जहां तक स्वास्थ्य का संबंध है, 4 प्रतिशत का प्रावधान, जैसा कि उन्होंने अनुमान लगाया था, करने की बजाय सरकार ने जी.डीपी. का 0.26 प्रतिशत का प्रावधान किया है। कितनी निराशाजनक स्थिति है। यही स्थिति शिक्षा के बारे में भी है। यहां भी उन्होंने कुल जी.डी.पी. का दो प्रतिशत से अधिक राशि का प्रावधान नहीं किया है। वित्त मंत्रालय के प्रभारी माननीय मंत्री जी ने अपने अंतरिम बजट में मंदी और मुद्रास्फीति के कारण वित्तीय घाटे का अनुमान 6 प्रतिशत लगाया। कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री की आर्थिक परिषद ने वेब पर वित्तीय घाटा 8 प्रतिशत बताया। यदि केन्द्रीय सरकार का वित्तीय घाटा 8 प्रतिशत होगा तो राज्य सरकारों का वित्तीय घाटा 3.5 से 4 प्रतिशत तक होगा। इस प्रकार वित्तीय घाटा बहुत बड़ी समस्या बनने जा रहा है। जब संयुक्त मोर्चा सरकार ने 1998 में हमें सत्ता सौंपी, तो हमारा विदेशी मुद्रा भंडार केवल 30 बिलियन यू.एस. डालर था। हमारी मेहनत के कारण यह 280 बिलियन यू.एस. डालर तक पहुंच गया। इस समय अप्रवासी भारतीयों द्वारा भेजी जा रही धनराशि में कमी आ गई है। व्यापार घाटा भी बढ़ रहा है। इसके कारण हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में प्रतिदिन 1 बिलियन डालर की कमी आ रही है। यह हालात यूपीए सरकार के कार्यकाल में उत्पन्न हुए हैं।
जहां तक कर राजस्व की बात है। माननीय मंत्री ने कहा है कि इस वर्ष कर राजस्व में 60,000 करोड़ रुपये की कमी होगी। किन्तु मुझे भय है कि यह कमी 1,00,000 करोड़ रुपये की होगी। माननीय मंत्री ने कहा है कि अगले वर्ष का वित्तीय घाटा 5.5 प्रतिशत होगा। मुझे नहीं पता कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा। इस समय अर्थव्यवस्था की विकास दर 7 प्रतिशत है और अगले वर्ष यह दर 5 प्रतिशत तक आ जाएगी। ऐसे में वित्तीय घाटा 5.5 प्रतिशत नहीं रहेगा। इस प्रकार हमारा देश बहुत बड़े संकट की ओर बढ़ रहा है।
सत्यम कारपोरेट घोटाला एक बहुत ही गम्भीर मुद्दा बन गया है। इसके बारे में कई बातें सामने आई हैं। आंधा्र प्रदेश सरकार ने मैसर्स मेटास इन्फ्रास्ट्रक्चर को 121 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत वाले एक कार्य का आबंटन बिना कोई निविदा आमंत्रित किए केवल नामांकन आधार पर ही कर दिया। इसी प्रकार विशेषज्ञों की राय के विपरीत कुडप्पा में निर्माण कार्य को नामांकन आधार पर ही दे दिया। इस कंपनी ने गंडीकोटा में कार्य किया है। वहां इस परियोजना के समापन से पूर्व ही 30 कि.मी. लंबी सड़क डूब जाएगी। इसलिए मैं सभा के माननीय नेता से आग्रह करूंगा कि वे वाद-विवाद का उत्तर देते समय देश को आश्वासन दें कि इस पूरे घोटाले की जांच के लिए वे संयुक्त संसदीय समिति की नियुक्ति करेंगे।
वर्तमान संकट को हल करने के लिए सरकार ने उच्च ब्याज दरों के रास्ता को अपनाया है। जब हमारा दल सत्ता में था, तो बाजार में ऋण 6 प्रतिशत पर उपलब्धा था। इस सरकार ने ब्याज दरों को बहुत बढ़ा दिया है। मुझे लगता है कि यूपीए सरकार के आर्थिक कुशासन में भारत के लिए आशा की कोई किरण मौजूद नहीं है।
देश की मजबूत अर्थव्यवस्था बनी मजबूर अर्थव्यवस्था
केंद्रीय वित्त मंत्री का कार्यभार संभाल रहे श्री प्रणव मुखर्जी ने 16 फरवरी को संसद में संप्रग सरकार का अंतरिम बजट(2009-10) प्रस्तुत किया। संसद के दोनों सदनों में अंतरिम बजट पर हुई चर्चा में भाग लेते हुए भाजपा सांसदों ने अपने आक्रामक भाषणों में संप्रग सरकार के उपलब्धियों के दावे की पोल खोल दी। भाजपा सांसदों ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने अपने कार्यकाल में आम आदमी की सुध नहीं ली।
श्री प्रकाश जावडेकर द्वारा राज्यसभा में दिये गये भाषण का संपादित अंश
उपसभापति महोदय, मैं तीन-चार बातों की ओर वित्त मंत्री का ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा। यूपीए की सरकार आम आदमी के नाम पर बनी है, लेकिन वास्तविकता यह है कि उसके साथ सबसे बड़ा विश्वासघात हुआ है।
अभी वित्त मंत्री बता रहे थे कि महंगाई का सूचकांक कम हो रहा है, लेकिन वास्तविकता क्या है? जहां कमॉडिटी प्राइसिज कम होने के कारण, थोक मूल्य सूचकांक (W.P.I.) कम हो रहा है, वहीं प्राइस इंडेक्स बढ़ रहा है। मैं एक ही आंकड़ा बताऊंगा । जो हमारा फूड प्राइस इंडेक्स है, अगस्त 2008 में 6 प्रतिशत था, वह अभी फरवरी में 13.25 प्रतिशत बढ़ा है। लोगों को रोजमर्रा की जिन चीजों की आवश्यकता होती है, हमने उसका एक चार्ट बनाया है जैसे गेहूं, चावल, शक्कर, चाय, तेल, मूंग दाल, आलू, प्याज, टमाटर, मिट्टी का तेल, रसोई गैस इत्यादि। अगर हम 2004 के मूल्यों की तुलना आज के मूल्यों से करते हैं, जब हमने इनको सत्ता सौंपी थी, तो आज कम से कम इन मूल्यों में डेढ़ गुना, दो गुना और कहीं-कहीं तीन गुना तक वृध्दि हुई है, इस तरह दामों में इतनी अधिाक बढ़ोतरी हुई है। यह मैं फरवरी 2009 की बात कर रहा हूं। असली बात यह है कि जो महंगाई लोगों को खा रही है, वह कम नहीं हुई है। मेरा यह मानना है कि महंगाई से जूझती आम जनता के साथ इस सरकार ने विश्वासघात किया है और उनको कोई राहत नहीं दी है।
सर, बड़ा मुद्दा यह है कि नौकरियां जा रही हैं। इस सरकार ने प्रोमिस किया था कि एक करोड़ नौजवानों को रोजगार देंगे। लेकिन, 5 साल के बाद जब यह जा रहे हैं, तब इन्होंने डेढ़ करोड़ नौजवानों को बेरोजगार करने का पूरा नक्शा तैयार किया है। जो लोग बेरोजगार हो रहे हैं, उनमें केवल एक क्षेत्र, एक्सपोर्ट में, एक करोड़ लोग बेरोजगार हो रहे हैं। टेक्सटाइल, डायमंड, आई.टी. तथा अन्य क्षेत्र जो एक्सपोर्ट से जुड़े क्षेत्र हैं और जो नॉन-एक्सपोर्ट सेक्टर्स हैं, जैसे - ऑटो इंडस्ट्री या कंस्ट्रक्शन या अन्य काम हैं, उनमें भी बड़े पैमाने पर मजदूरों से लेकर अन्य प्रकार के काम करने वाले बहुत-से लोग बेरोजगार हो रहे हैं।
उपसभापति महोदय, इन बेरोजगार लोगों को कोई संरक्षण नहीं है। आज वित्त मंत्री लोगों को सलाह दे रहे हैं कि हो सके तो आप वेतन कम करो, लेकिन नौकरियां मत छांटो। मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि क्या वह केवल सलाह ही देंगे या खुद कुछ कर के दिखाएंगे? आज जिनकी नौकरियां जा रहीं हैं, वे लाखों युवक आज बड़ी परेशानी में हैं। एक सप्ताह पहले मुंबई में एक इंजीनियर का बेटा और उसकी मां ने नौकरी जाने के कारण आत्महत्या की। इसी तरह से डायमंड के मजदूर भी आत्महत्या कर रहे हैं। आंधा्र प्रदेश में वीवर्स लोग आत्महत्या कर रहे हैं। इन सब लोगों का रोजगार यूपीए सरकार ने छीना है, इसलिए कि उसने समय पर मंदी का सामना नहीं किया। मैं मानता हूं कि 'नरेगा' में भी योजना है कि अगर 15 दिनों में जॉब नहीं मिले तो उसको इकोनॉमिक डोल दिया जाता है, लेकिन ये जो नौजवान बेरोजगार हो रहे हैं, उनको यह सरकार कौन-सा डोल दे रही है? ऐसी कोई योजना नहीं है। कहते हैं कि ESI में एक प्रावधान है, जिसके तहत उनको छ: महीने के लिए आधी तनख्वाह दी जाएगी, लेकिन एक भी बेरोजगार हुए नौजवान को ऐसा कोई भत्ता नहीं मिला है। यह मैं आपके माध्यम से इनका ध्यान दिलाना चाहता हूं और इसीलिए मैं यह मांग भी करना चाहता हूं कि जिन लोगों की नौकरियां जा रही हैं, उनको एक साल तक आधी तनख्वाह मिले, ऐसा सरवाइवल भत्ता उनको मिलना चाहिए। अगर यह उनको नहीं मिलता है तो यह नौजवानों के साथ विश्वासघात होगा। पहला विश्वासघात आम इंसान के साथ, अब दूसरा विश्वासघात नौजवानों के साथ तथा तीसरा विश्वासघात इस सरकार ने जवानों के साथ किया है। अगर आज सेना के सेवानिवृत अधिाकारी भी अपने मैडल लौटाने पर तुले हैं, तो इसका मतलब यह है कि इस सरकार ने उनके अभिमान को और आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाई है। उसके लिए छोटा वित्तीय प्रबंधन चाहिए। लेकिन उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंची है और उसकी भरपाई आज तक नहीं हुई है। इस सरकार ने बहुत ढिंढोरा पीटा कि हमने infrastructure में पहल की है। लेकिन, सर, मैं बताना चाहता हूं कि इसमें उन्होंने टारगेट से आधी भी सफलता नहीं पाई है। वह चाहे रूरल रोड्स हों या इरिगेशन हो या पावर जेनरेशन हो या Golden Quadrilateral का काम पूरा करने की बात हो या North-South Corridor की बात हो अथवा East-West Corridor की बात, infrastructure के हर क्षेत्र में यह सरकार आधा टारगेट भी पूरा नहीं कर पाई है। अभी नए एग्जाम सिटम में 50 फीसदी से पास नहीं किया जाता और इस सरकार को 50 फीसदी भी सफलता नहीं मिली है, इसलिए यह सरकार पूरी तरह से फेल हुई है।
सर, मैं केवल 2 चीजों का उल्लेख करूंगा कि 4-laneing करना था, उसमें 30 प्रतिशत मुकाम भी हासिल नहीं हुआ है। National Highways connecting importan cities का जो काम था, वह काम भी अधर में लटक गया, पोर्ट्स का भी काम अधर में लटक गया। इसलिए इंफ्रास्ट्रक्चर में, और खासकर बिजली में, बहुत बड़ा घोटाला है।
एक विद्वान ने बहुत अच्छी तरह से कहा था कि --"Between 2003-08, we did enjoy very good economic growth. But it was not linked all that much to policies during the UPA regime; it was much more due to reforms undertaken during the earlier periods and an exceptional boom in the global economy. Our private sector responded very well to this economic climate."
यह उन्होंने कहा। इस प्रकार बात यह है कि इस सरकार के पास अब संसाधनों की भी कमी है और इसलिए मैं एक मांग करना चाहता हूं। महोदय, आपने पढ़ा होगा कि स्विट्जरलैंड में जो बैंक होते हैं, उसमें सारी दुनिया का सिक्रेट फंड या सिक्रेट धन लोग रखते हैं। उनके सीक्रेट अकाउंट्स हैं, जिनकी किसी को जानकारी नहीं मिलती, लेकिन स्विट्जरलैंड में अब कानून बदला है।
अब जो देश उससे मांग करेगा, वह उनको सारी जानकारी कि किस सिटिजन का कितना पैसा जमा है, यह बताने के लिए तैयार है। हमारे यहां से कुछ भारतीय लोगों ने 14 लाख करोड़ से भी ज्यादा रकम ऐसी अपनी दूसरे नंबर की कमाई से वहां छुपाई है। आज जब वह मौका आया है, अवसर आया है कि वह संपत्ति भारत को मिल जाए, तो इसके लिए भारत को स्विटजरलैंड के पास अपनी एप्लीकेशन देनी चाहिए कि वह इसकी जानकारी हमें दे दे। अमरीका ने किया है। जर्मनी ने किया है। बाकी देश भी उसका फॉलो-अप कर रहे हैं, लेकिन भारत क्यों चुप है? वित्त मंत्री जी, अपने देश की संपत्ति जो लूट कर अपने लोगों ने बाहर ले जाकर रखी है, उसको वापस लाने का यही एक सुनहरा मौका है और वह वापस लाने के लिए जो आपको प्रयास करना चाहिए, वह आपने नहीं किया है।
उपसभापति महोदय, अंत में मैं एक ही बात कहूंगा कि मैं दूसरे सदन में वित मंत्री जी का भाषण सुन रहा था, जब बजट पर उन्होंने अपना जवाब दिया था। उन्होंने एनडीए और यूपीए सरकार की तुलना की और एनडीए और यूपीए की तुलना करते समय उन्होंने बहुत सारे आंकड़े दिए। मैं केवल वास्तविकता के आधार पर तुलना करना चाहूंगा। हमने, एनडीए ने एक मजबूत अर्थ-व्यवस्था यूपीए को सौंपी थी, आज उन्होंने उसको एक मजबूर अर्थ-व्यवस्था में परिवर्तित किया है। हमने एक करोड़ रोजगार का सृजन किया था, इस सरकार ने डेढ़ करोड़ युवाओं को बेरोजगार करके रखा है। हम हर रोज 11 किलोमीटर की सड़कें बनाते थे, इनकी औसतन एक किलोमीटर की भी नई सड़क नहीं बन रही है। हमने सस्ते दाम दिए थे, महंगाई को रोका था, इन्होंने महंगाई को आसमान तक छूने दिया। हमने कर्जा सस्ता किया था, इन्होंने कर्जा महंगा किया, जिसके कारण इंडस्ट्रीज को आज यह दिन देखने पड़ रहे हैं। हमने किसान का कल्याण किया, अब इन्होंने किसानों को आत्महत्या पर मजबूर किया, जो आज हजारों किसान मर रहे हैं। 35 किलो राशन हम गरीब को दे रहे थे, लेकिन यह 15 किलो राशन भी मुहैया नहीं करा रहे हैं। हमने कनेक्टिविटि की रेवॉल्युशन लाई थी, इन्होंने स्कैम की श्रृंखला चलाई है। कनेक्टिविटि के क्षेत्र में भी स्कैम लाए हैं। हमने परमाणु बम बनाकर दिखाया था, लेकिन इन्होंने परमाणु समझौता करके पोखरन-3 होने की संभावना को खारिज कर दिया है। हमने डब्लूटीओ में किसानों के हितों की रक्षा की थी, इन्होंने यूएस के साथ नॉलेज इनीसेटिव के नाम पर क्या छुपा कर लाए हैं, यह देश से छुपा कर रखा है, जो बताते नहीं। सर, सूखे और बाढ़ को रोकने के लिए हमने नदी जोड़ योजना बनाई थी, आपने वह बंद कर दी। हमने फार्म इनकम गारंटी योजना किसानों के लिए बनाई थी।उपसभापति महोदय, हमने छोटे और सीमांत किसानों को सुरक्षित करने के लिए Farm Income Guarantee Insurance Scheme शुरू की थी और पहले बजट में इन्होंने उसका appreciation किया था, लेकिन वह योजना भी इन्होंने बंद कर दी। हमने एक निर्णायक सरकार दी थी और यह एक लचर सरकार छोड़कर जा रहे हैं। क्या यह चित्र देश के सामने आएगा? अगर आप बजट में एनडीए और यूपीए की तुलना करना चाहते हैं तो हम भी उसके लिए तैयार हैं, लेकिन आप सुनाएंगे और लोग सुनेंगे, ऐसा नहीं होगा। हम भी सुनाएंगे, आपको सुनना होगा। इतना कहकर मैं अपनी बात समाप्त करता हूं।
संप्रग सरकार ने अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए वैश्विक आर्थिक मंदी का सहारा लिया
केंद्रीय वित्त मंत्री का कार्यभार संभाल रहे श्री प्रणव मुखर्जी ने 16 फरवरी को संसद में संप्रग सरकार का अंतरिम बजट(2009-10) प्रस्तुत किया। संसद के दोनों सदनों में अंतरिम बजट पर हुई चर्चा में भाग लेते हुए भाजपा सांसदों ने अपने आक्रामक भाषणों में संप्रग सरकार के उपलब्धियों के दावे की पोल खोल दी। भाजपा सांसदों ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने अपने कार्यकाल में आम आदमी की सुध नहीं ली।
श्री अरूण शौरी द्वारा राज्य सभा में अंग्रेजी में दिये गये भाषण का सारांश(हिन्दी)
इस सरकार ने अपने सभी बजटों में बार-बार जिन वायदों को दोहराया है, उन्हें बिल्कुल ही पूरा नहीं किया है। इस पूरी अवधि और विशेषकर गत छ: महीनों के दौरान इस बात से पूरी तरह इनकार करते रहने कि देश मंदी की ओर बढ़ रहा है, के बाद अब यह अपने कुप्रबंधन के परिणामों को छिपाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक मंदी का सहारा ले रही है। श्री मुखर्जी अपने भाषण के पृष्ठ 5, पैरा 20 में कहते हैं, 'असाधारण परिस्थितियों में असाधारण उपाय करने होते हैं। ऐसे उपाय करने का समय आ गया है।' और जैसा कि प्रत्येक व्यक्ति इस तथ्य को जानता है कि अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन देने के लिए कोई भी उपाय नहीं किया गया है। एक कहानी यह गढ़ी गई कि चूंकि यह अंतरिम बजट है, इसलिए सरकार परम्परा का पालन कर रही है। बजट नहीं प्रस्तुत करने का कारण यह रहा है कि चार वर्षों के दौरान आर्थिक कुप्रबंधनों के परिणामस्वरूप अब स्थिति इतनी संकटपूर्ण हो चुकी है कि काफी बड़े उपाय किए जाने जरूरी हो गये हैं इस सरकार में ऐसे उपाय करने का साहस नहीं है।
श्री चिदम्बरम ने पिछले वर्ष के बजट भाषण में कहा था, 'इस तथ्य को व्यापक तौर पर स्वीकारोक्ति मिली है कि देश की वित्तीय स्थिति में काफी सुधार हुआ है' और इस क्रम में उन्होंने गलत आंकड़े प्रस्तुत किए। विभिन्न बजट दस्तावेजों में पूरी तरह से भ्रामक आंकड़े दिये गये हैं।
वर्ष, 2005, 2006, 2007 और 2008 के बजटों में प्रधानमंत्री कई बार कह चुके हैं, 'आवंटन महत्वपूर्ण नहीं है। आवंटन ही पर्याप्त नहीं होते। लोग परिणाम देखते हैं।' प्रधानमंत्री ने आगे कहा था, सरकार के सामने सबसे बड़ा कार्य यही है और उसका जोर उसके द्वारा की गई घोषणाओं के अनुरूप परिणाम प्राप्त करने पर रहेगा।' हम लोग वस्तुत: यह देख सकते हैं कि प्रत्येक मद में प्राप्त किए गए परिणामों को पूरी तरह से छिपाया गया है और आवंटनों के आधार पर ही केवल दावे किये जा रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने बड़े जोर-शोर से यह घोषणा की थी कि सरकार मुम्बई को वित्तीय केन्द्र बनाने के लिए 1000 करोड़ रूपये का एक विशेष पैकेज प्रदान करेगी। बाद में यह सामने आया कि इन 1000 करोड़ रूपयों में से केवल 16।16 करोड़ रूपये ही प्रदान किए गए। 26 जुलाई, 2005 को मुम्बई के बाढ़ में घिर जाने के बाद प्रधानमंत्री और 'सप्रंग' की अध्यक्ष ने मीठी नदी का पुनरूध्दार करने के लिए 1,260 करोड़ रूपये के एक विशेष पैकेज की घोषणा की थी। कल तक इस वायदे के अनुरूप एक भी पैसा नहीं दिया गया था। उसी तरह से एक बड़ी योजना की घोषणा की गई थी कि धारावी का पूरी तरह से पुनर्निर्माण किया जायेगा। धारावी के पुनर्निर्माण की दिशा में कल तक एक भी शैड का निर्माण नहीं किया जा सका था। महाराष्ट्र को यह भरोसा दिलाया गया था कि केन्द्र मुम्बई से बार-बार अनुरोध मिलने के बाद यह कह दिया गया कि केन्द्र इस बारे में कुछ नहीं करेगा और मुम्बई को निजी भागीदारों की सहायता से ही इस कार्य को पूरा करना होगा। इसके परिणामस्वरूप इसके पहले चरण में ही कार्य धीमा पड़ गया है। दूसरे चरण के लिए बोलियां आमंत्रित की गई। अंतिम तिथि को तीन बार बढ़ाना पड़ा है और एक भी बोलीदाता आगे नहीं आया है जबकि शहरी अवसंरचना के मामले में सरकार द्वारा बड़े-बड़े दावे किये जा रहे हैं।
राष्ट्रीय राजमार्ग कार्यक्रम के संबंध में परियोजना पूरी होने की दर जोकि वर्ष 2005-06 में 70 प्रतिशत थी, वर्ष 2007-08 में घटकर 17 प्रतिशत रह गई है। लेकिन इस मामले में चमत्कार यह देखने को मिल रहा है जैसा कि श्री मुखर्जी के बजट दस्तावेजों से स्पष्ट है कि भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने आवंटित धनराशि को पूरी तरह से खर्च कर दिया गया है। लेकिन, परियोजनाएं पूरी नहीं की जा रही हैं। स्थिति यह है।
श्री मुखर्जी को याद होगा जब यह सरकार बनी थी उस समय उन लोगों ने एक निर्णय की घोषणा की थी कि भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के अध्यक्ष का कार्यकाल न्यूनतम दो वर्षों का रहेगा। लेकिन, गत दो वर्षों के दौरान पांच अध्यक्ष बदले जा चुके हैं। उसी तरह से पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए 'राजग' सरकार ने यह निर्णय लिया था कि कार्यक्रम तो सरकार द्वारा तय किए जाएंगे लेकिन ठेके प्राधिकरण द्वारा दिये जाएंगे। लेकिन उस निर्णय को बदल दिया गया तथा यह कहा गया, 'प्राधिकरण द्वारा ठेके नहीं दिये जाएंगे, बल्कि ठेके सरकार द्वारा ही दिये जायेंगे।' मुझे पूरा विश्वास है कि इसके पीछे कुछ अच्छे कारण रहे होंगे। लेकिन इसके परिणामस्वरूप प्राधिकरण की 60 परियोजनाओं के लिए बोलियां आमंत्रित की गई थी। इन परियोजनाओं में से 43 परियोजनाओं के लिए एक भी बोलीदाता आगे नहीं आया। और अन्य 17 मामलों में से 6 मामलों में केवल एक-एक ही बोलीदाता आगे आया है। अन्य मामलों में, चिंताजनक स्थिति यह है कि बोलीदाताओं ने मूल रूप से तय किए गए अनुदानों की तुलना में 35 प्रतिशत तक अधिक अनुदान दिये जाने की मांग की है।
राजीव गांधी पेयजल मिशन के मामले में वर्ष 2008 के 'सी।ए.जी.' (संख्या 12) में कहा गया है, 'सभी परियोजनाएं ऐसे स्थानों पर लगायी गयी हैं जो संपोषित नहीं हैं। पानी की गुणवत्त की जांच करने हेतु प्रयोगशालाएं स्थापित नहीं की गई हैं जोकि मिशन के अधीन किया जाना अनिवार्य हैं। जल आपूर्ति से जनस्वास्थ्य को खतरा हो सकता है। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना जोकि एक लैगशिप योजना है, के बारे में 'सीएजी' निष्पादन अंकेक्षण प्रतिवेदन (संख्या 32) मे कहा गया है, 'इस योजना के अधीन पंजीकृत 3.81 करोड़ ग्रामीण परिवारों में से केवल 22 लाख परिवारों जोकि महज छ: प्रतिशत है, को अनिवार्य और कानूनी रूप से 100 दिनों का रोजगार मिल पाया है। योजना के संबंध में और भी बड़ी त्रुटियां दर्शायी गई हैं।
जब कभी किसी मामले मे कोई कमी, रूकावट और चूक होती है तो केन्द्र यह कहना शुरू कर देता है कि कार्यान्वयन राज्य का विषय है और जब किसी योजना का श्रेय लेना होता है तो केन्द्र स्वयं ही सारा श्रेय ले जाता है। इस संबंध में नियंत्रक, महालेखा परीक्षक को यह बताने के लिए बाध्य होना पड़ा कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना एक केन्द्रीय विधान है और इस अधिनियम के समन्वय, निगरानी, कार्यान्वयन और प्रशासन की संपूर्ण जिम्मेदारी अंतत: मंत्रालय पर है जो कि इस अधिनियिम के लिए नोडल एजेंसी है।'
'यूएसओ' निधि का सृजन अप्रैल, 2002 में किया गया था यह व्ययगत न होने वाली निधि है। पिछले वर्ष तक इस निधि में 20 हजार करोड़ रूपए थे और खर्च सिर्फ 63 हजार करोड़ रूपए है। इसका मतलब है लगभग 14 हजार करोड़ रूपए इकट्ठे हुए थे। परंतु यह पता चला है कि सरकार के खातों को इस तरह से व्यवस्थित किया गया था कि 14 हजार करोड़ रूपए की शेष राशि, जो कि खर्च न की गई है, इसको शून्य दर्शाया गया था।
दिशा निर्देश जारी किए गए थे। ट्राई ने लिखा है कि सरकार ने न्यायालय में एक झूठा शपथ पत्र दिया है कि उन्होंने ट्राई की सिफारिशों को माना है। ऐसी स्थिति है। अत: कृपया इसकी जांच की जाए। सार्वजनिक वितरण प्रणाली में कमियों की वजह से बदलाव करना पड़ा और संशोधन किया गया।
कार्यकारी समूह और समितियों ने उर्वरक और पेट्रोलियम राज सहायता के प्रश्न पर गौर किया और हाल ही में डा. सी. रंगराजन समिति द्वारा किया जा रहा है। उर्वरक और पेट्रोलियम राजसहायता के बारे में कुछ अधिाक नहीं किया गया। कार्यान्वयन के निर्णय पर भी कुछ नहीं किया गया। 1991 में ब्रेक डॉन हुआ और उसका एक कारण 1986 से 1991 तक का राजकोषीय कुप्रबंधन था। वर्ष 2003 में एफआरबीएम अधिनियम पारित हुआ था और इसमें कहा गया था कि देश के लिए यह आवश्यक है कि सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में सकल राजकोषीय घाटे को 2002 में 6.2 प्रतिशत तथा 2008 में 3 प्रतिशत तक नीचे जाया जाना चाहिए। दूसरी बात यह है कि राजकोषीय घाटा 31 मार्च, 2008 तक समाप्त हो जाना चाहिए और वास्तव में एक अच्छा अधिशेष राजस्व तैयार होना चाहिए।
वित्तीय सावधानी और देश के कार्यकलापों के प्रभावी प्रबंधन के लिए यह आवश्यक है। घाटा काफी अधिक होगा और सकल घरेलू उत्पाद में वृध्दि कम होगी जिसका आपने समानता में अनुमान लगाया है। संप्रग सरकार ने स्वयं वायदा किया है कि 2009 तक राजकोषीय घाटा समाप्त हो जाएगा। यह आवंटन सामाजिक और वास्तविक अवसंरचना के अधिक संसाधनों के लिए है। दूसरी बात घाटे के बारे में है। हर कोई जानता है कि वेतन आयोग की सिफारिशें आयी है। रेल बजट में पांच हजार करोड़ रूपए प्रदान किए गए हैं। परंतु वास्तव में यह 13 हजार करोड़ रूपए हैं। केंद्रीय बजट में सरकार ने शून्य दिया है, ऋण से छूट लेने वालों की संख्या शून्य है और सभी ऊर्वरक पेट्रोलियम राजसहायता बजट में नदारद हैं। तीसरी बात कुप्रबंधन के बारे में है।
परियोजनाओं के शीघ्र कार्यान्वयन के लिए कुछ भी नहीं किया गया है। जब तक उनको राहत प्रदान नहीं की जाएगी तो आप देखेंगे कि नौकरी खोने वाले और अन्य लोगों की स्थिति काफी दयनीय हो जाएगी। बाहरी वाणिज्यिक ऋण उपलब्ध नहीं है। बैंकों में पहले ही भारी कमी है। इससे छोटे और लघु उपक्रमों को नुकसान होगा। 2008-09 में ऊर्वरक राजसहायता 1,02,000 करोड़ रूपए थी। परंतु वास्तव में इसे 75,847 करोड़ रूपए दर्शाया है। सरकार का कोई भी कार्यक्रम तैयार नहीं हुआ है। श्री मुखर्जी ने अपने संशोधित आंकड़ों में कुल राजकोषीय घाटे की तुलना बजट अनुमानों से की गयी है। राजस्व प्राप्तियों में यह 93 प्रतिशत है और पूंजी प्राप्ति 229 प्रतिशत है।
गैर योजना खर्च 22 प्रतिशत से अधिक है। राजकोषीय घाटा 438 प्रतिशत ज्यादा है। राजकोष 245 प्रतिशत और बाजार ऋण 262 प्रतिशत तथा अल्पावधि ऋण 463 प्रतिशत अधिक है। इन बातों में कोई संबंध नहीं है। राजसहायता 182 प्रतिशत अधिक है। इस बारे में सी।ए.जी. का प्रतिवेदन काफी ज्ञानप्रद है। मेरी अंतिम बात यह है कि राजकोषीय कार्यों के कुप्रबंधन का एक लक्षण सामान्य आर्थिक कुप्रबंधन है। विदेशी वित्तीय निवेश के कारण एक गुब्बारा सा बनाया जा रहा था। वास्तव में यह पैसा कहां से आ रहा था? उस समय विभिन्न विश्लेषकों ने यह उल्लेख किया था कि उभरते बाजार के कारण भारत को जाग जाना चाहिए। यहां पर 83 प्रतिशत विदेशी संस्थागत निवेशक थे न कि प्रत्यक्ष निवेशक। स्टॉक मार्केट 10 हजार से 20 हजार बिंदु तक जा रहा है। एक अमरीकी निवेशक, एक आतंकवादी या मारिशस से कोई भी व्यक्ति पैसा ला सकता है और शत प्रतिशत लाभ प्राप्त कर सकता है और यह लाभ ले जा सकता है। गुब्बारा फूटेगा। हर कोई यह कह रहा था कि उचित प्रबंधन के लिए यह एक अच्छा समय है। परंतु कुछ भी नहीं किया गया। योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए कोई त्वरित प्रक्रिया नहीं अपनायी गयी।
हम सभी ने चेतावनी दी थी भारत में यह सूनामी आएगी। परंतु हमारे प्रधानमंत्री ने कहा, 'नहीं', 'नहीं', हमारे मूलभूत सिध्दांत मजबूत हैं।' मजबूत मूलभूत सिध्दांत होने के बावजूद, विश्व की अर्थव्यवस्था मंदी की शिकार हुई। तब, उन्होंने कहा, हमारा उससे कोई संबंध नहीं है। हमारे सकल घरेलू उत्पाद का 20 प्रतिशत निर्यात से संबंधित है। हमारी भेजी गई रकम 45 मिलियन डॉलर है। क्या मंदी का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। तीसरी बात पूरी तरह पद त्याग के संबंध में है। जब मंदी आरंभ हुई तो पूरी तरह अस्पष्ट कदम उठाये गये। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने कहा था कि धनराशि गुमनाम ढंग से नहीं आनी चाहिए। इस दबाव के अधीन 'पार्टीसिपेटरी नोट्स' की आवक पर रोक लगा दी गई। अक्टूबर, नवम्बर में कोई भी मूर्ख व्यक्ति भारत में धन नहीं ला रहा था, परंतु पुन: 'पार्टीस्पेटरी नोट्स' की अनुमति दे दी गई। कोई कार्यवाही नहीं की गई। 'नेकड शॉर्ट सैलिंग' जारी रखने की अनुमति दे दी गई। यह सब कैसे घटित हुआ इस संबंध में जांच की जानी चाहिए। उस समय जब महंगाई बढ़नी शुरू हुई तो आपने कोई कार्यवाही नहीं की। यह स्पष्ट नहीं था कि क्या भारत गेहूं का आयात करेगा या नहीं करेगा। इससे अटकलों का बाजार गर्म हुआ। धीमी प्रगति का वित्तीय मंदी से कोई संबंध नहीं था। कपड़ा क्षेत्र में समाप्त हुई 25 लाख नौकरियों के संबंध में कुछ नहीं किया गया। आप अपने पीछे धीमे विकास की विरासत छोड़ कर जा रहे हैं। 'सरकार' शब्द पर विश्वास नहीं किया जाता है। निविदा के लिए कोई आगे नहीं आ रहा है। ग्यारहवीं योजना के अंत में विद्युत की स्थिति खराब होने जा रही है। राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण कार्यक्रम के अंतर्गत, स्थिति बहुत खराब है। 'सभी के लिए विद्युत' के स्थान पर 'विद्युत तक पहुंच' शब्दों को ले लिया गया है। 7.8 करोड़ के बजाए, उन्होंने कहा कि गरीबी रेखा से नीचे के 2.43 करोड़ परिवारों को बिजली प्रदान की जाएगी। 2,35,000 गांवों के बजाए, आपने 54,000 गांवों को बिजली प्रदान की है, परंतु महान श्रेय का दावा किया जा रहा है।
Subscribe to:
Posts (Atom)