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Thursday 5 March, 2009

संप्रग शासन में आशा की किरण नहीं दिखी


केंद्रीय वित्त मंत्री का कार्यभार संभाल रहे श्री प्रणव मुखर्जी ने 16 फरवरी को संसद में संप्रग सरकार का अंतरिम बजट(2009-10) प्रस्‍तुत किया। संसद के दोनों सदनों में अंतरिम बजट पर हुई चर्चा में भाग लेते हुए भाजपा सांसदों ने अपने आक्रामक भाषणों में संप्रग सरकार के उपलब्धियों के दावे की पोल खोल दी। भाजपा सांसदों ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने अपने कार्यकाल में आम आदमी की सुध नहीं ली।

श्री अनंत कुमार द्वारा लोकसभा में अंग्रेजी में दिये गये भाषण का सारांश (हिन्दी)

वर्ष 2004 में जब उन्हें एनडीए से सशक्त अर्थव्यवस्था प्राप्त हुई, उस समय अर्थव्यवस्था की वृध्दिदर 8.52 प्रतिशत थी। सकल घरेलू उत्पाद में पिछले पांच वर्षों में अर्थात् 1998-2004 तक 40 प्रतिशत से अधिक की वृध्दि हुई थी।

वर्ष 2004 में जनता को 16 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से चावल मिल रहा था। आज यह मूल्य 36 रुपए प्रति किलोग्राम है। उस समय दाल 30 रुपए प्रति किलोग्राम बिक रही थी जो आज 52 रुपए प्रति किलोग्राम है। आज सरकार कह रही है कि महंगाई कर दर कम होकर 4 प्रतिशत तक आ गयी है। खाद्य पदार्थों के मूल्य के बारे में महंगाई की स्थिति क्या है? यहां महंगाई की दर अभी भी 11.7 प्रतिशत के आस-पास है। आम आदमी का क्या हो रहा है। आज देश में भारी कृषि संकट उत्पन्न हो गया है। पिछले 12 वर्षों में देश में 1,90,753 किसानों ने आत्महत्या की है। वर्ष 2004 के बाद वर्ष-प्रतिवर्ष 18,241; 17,131; 17,060 किसानों ने आत्महत्या की। इस सरकार ने पिछले वित्तीय वर्ष ऋण माफी पैकेज दिया लेकिन इससे कुछ नहीं बदला। हम केन्द्रीय सरकार से आग्रह कर रहे हैं कि कृषि ऋण पर ब्याज की दर को घटाकर 4 प्रतिशत तक कर दिया जाए। यह सिफारिश डादृ स्वामीनाथन समिति की रिपोर्ट में की गयी है। आज मंदी के समय में बढ़ती बेरोजगारी की स्थिति क्या है? मोटे तौर पर अनुमान के अनुसार पिछले तीन महीनों में पांच मिलियन रोजगार खत्म हो गए हैं और अभी दो करोड़ लोगों के बेरोजगार होने की संभावना बनी हुई है। अकेले कपड़ा क्षेत्र में सात लाख रोजगार समाप्त हो गए हैं। अंतरिम बजट में इसका क्या समाधान है? विगत में भारतीय अर्थव्यवस्था में अचानक उछाल आने लगा था। इसके तीन महत्वपूर्ण कारण थे-अवसंरचना में निवेश-प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना, स्वर्णिम चतुर्भुज और आवास, 70 लाख से अधिक आवासीय इकाइयों का निर्माण चल रहा था, संचार क्रांति और सर्व शिक्षा अभियान। यह उपयोगी निवेश था। इस व्यय से समाज के साथ-साथ उद्योग को भी अच्छा प्रतिफल प्राप्त हुआ। लेकिन पिछले पांच वर्षों में सरकार का व्यय 30 प्रतिशत बढ़ गया है जोकि अनुत्पादक व्यय है और राजस्व में 10 प्रतिशत की गिरावट आयी है। जहां तक एनआरईजीपी के लिए केन्द्रीय आवंटन का संबंध है प्रति जिला आवंटन में लगातार कमी आयी है। 2006-2007 के संशोधित अनुमान के अनुसार केन्द्रीय आवंटन 11,300 करोड़ रुपए का था जिसमें 200 जिलों को लिया जाना था और प्रति जिला आवंटन 56.5 करोड़ रुपए था। 2008-2009 के संशोधित अनुमान के अनुसार केन्द्रीय आवंटन 16,000 करोड़ रुपए था और प्रति जिला आवंटन 26.8 करोड़ रुपए था। 2006-2007 में ''एस.जी.एस.वाई.'' के लिए संशोधित अनुमान के अंतर्गत आवंटन 1200 करोड़ रुपए था तथा 31 दिसम्बर, 2006 की स्थिति के अनुसर अव्ययित शेष 558 करोड़ रुपए था। एस.जी.आर.वाई. के लिए 2006-2007 के दौरान संशोधिात प्राक्कलन का आवंटन 3000 करोड़ रुपए था और 31 दिसम्बर, 2006 की स्थिति के अनुसार अव्ययित शेष राशि 1352 करोड़ रुपए, आई.ए.वाई. के लिए 2006-2007 के दौरान आवंटन 2920 करोड़ रुपए था और अव्ययित शेष राशि 1334 करोड़ रुपए दर्शायी गयी है। एन.आर.जी.ई.ए. के लिए 11300 करोड़ रुपए आवंटित किए गए और अव्ययित शेष राशि 4479 करोड़ रुपए दर्शायी गयी। पी.एम.जी.एस.वाई. के लिए 2006-2007 का संशोधिात प्राक्कलन का आवंटन 5476 करोड़ रुपए था और अव्ययित शेष राशि 2556 करोड़ रुपए थी। इस प्रकार 23896 करोड़ रुपए के कुल आवंटन में से 10278 करोड़ रुपए का राशि अव्ययित रही। जहां तक स्वास्थ्य का संबंध है, 4 प्रतिशत का प्रावधान, जैसा कि उन्होंने अनुमान लगाया था, करने की बजाय सरकार ने जी.डीपी. का 0.26 प्रतिशत का प्रावधान किया है। कितनी निराशाजनक स्थिति है। यही स्थिति शिक्षा के बारे में भी है। यहां भी उन्होंने कुल जी.डी.पी. का दो प्रतिशत से अधिक राशि का प्रावधान नहीं किया है। वित्त मंत्रालय के प्रभारी माननीय मंत्री जी ने अपने अंतरिम बजट में मंदी और मुद्रास्फीति के कारण वित्तीय घाटे का अनुमान 6 प्रतिशत लगाया। कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री की आर्थिक परिषद ने वेब पर वित्तीय घाटा 8 प्रतिशत बताया। यदि केन्द्रीय सरकार का वित्तीय घाटा 8 प्रतिशत होगा तो राज्य सरकारों का वित्तीय घाटा 3.5 से 4 प्रतिशत तक होगा। इस प्रकार वित्तीय घाटा बहुत बड़ी समस्या बनने जा रहा है। जब संयुक्त मोर्चा सरकार ने 1998 में हमें सत्ता सौंपी, तो हमारा विदेशी मुद्रा भंडार केवल 30 बिलियन यू.एस. डालर था। हमारी मेहनत के कारण यह 280 बिलियन यू.एस. डालर तक पहुंच गया। इस समय अप्रवासी भारतीयों द्वारा भेजी जा रही धनराशि में कमी आ गई है। व्यापार घाटा भी बढ़ रहा है। इसके कारण हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में प्रतिदिन 1 बिलियन डालर की कमी आ रही है। यह हालात यूपीए सरकार के कार्यकाल में उत्पन्न हुए हैं।

जहां तक कर राजस्व की बात है। माननीय मंत्री ने कहा है कि इस वर्ष कर राजस्व में 60,000 करोड़ रुपये की कमी होगी। किन्तु मुझे भय है कि यह कमी 1,00,000 करोड़ रुपये की होगी। माननीय मंत्री ने कहा है कि अगले वर्ष का वित्तीय घाटा 5.5 प्रतिशत होगा। मुझे नहीं पता कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा। इस समय अर्थव्यवस्था की विकास दर 7 प्रतिशत है और अगले वर्ष यह दर 5 प्रतिशत तक आ जाएगी। ऐसे में वित्तीय घाटा 5.5 प्रतिशत नहीं रहेगा। इस प्रकार हमारा देश बहुत बड़े संकट की ओर बढ़ रहा है।

सत्यम कारपोरेट घोटाला एक बहुत ही गम्भीर मुद्दा बन गया है। इसके बारे में कई बातें सामने आई हैं। आंधा्र प्रदेश सरकार ने मैसर्स मेटास इन्फ्रास्ट्रक्चर को 121 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत वाले एक कार्य का आबंटन बिना कोई निविदा आमंत्रित किए केवल नामांकन आधार पर ही कर दिया। इसी प्रकार विशेषज्ञों की राय के विपरीत कुडप्पा में निर्माण कार्य को नामांकन आधार पर ही दे दिया। इस कंपनी ने गंडीकोटा में कार्य किया है। वहां इस परियोजना के समापन से पूर्व ही 30 कि.मी. लंबी सड़क डूब जाएगी। इसलिए मैं सभा के माननीय नेता से आग्रह करूंगा कि वे वाद-विवाद का उत्तर देते समय देश को आश्वासन दें कि इस पूरे घोटाले की जांच के लिए वे संयुक्त संसदीय समिति की नियुक्ति करेंगे।

वर्तमान संकट को हल करने के लिए सरकार ने उच्च ब्याज दरों के रास्ता को अपनाया है। जब हमारा दल सत्ता में था, तो बाजार में ऋण 6 प्रतिशत पर उपलब्धा था। इस सरकार ने ब्याज दरों को बहुत बढ़ा दिया है। मुझे लगता है कि यूपीए सरकार के आर्थिक कुशासन में भारत के लिए आशा की कोई किरण मौजूद नहीं है।

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