गत 26-29 नवंबर, 2008 को मुंबई में हुए अब तक के सबसे बड़े आतंकवादी हमले पर संसद के दोनों सदनों में चर्चा हुई। लोकसभा में विपक्ष के नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी ने प्रथम वक्ता के तौर पर मुंबई हमले को आतंकवादी युध्द करार दिया और केन्द्र सरकार को विश्वास दिलाया कि आतंकवाद के खिलाफ जंग में विपक्ष उसके साथ है। हम यहां श्री लालकृष्ण आडवाणी के भाषण का संपादित पाठ प्रस्तुत कर रहे हैं-
अध्यक्ष महोदय, सारा देश इस बात को स्वाभाविक मानेगा कि जब 10 दिसम्बर को सदन की बैठक फिर से आरम्भ हुई तो सबसे पहले दिन कोई चर्चा हो सकती है, तो वह मुम्बई की भयंकर घटना के बारे में ही हो सकती है, जहां 26 नवम्बर को एक ऐसी घटना हुई, जिसने सारे देश को दहला दिया।
मैं पूरी दुनिया को और खास तौर से हमारे दुश्मन, जिन्होंने हमारे ऊपर आतंकवाद का युध्द छेड़ रखा है, उनको कहना चाहता हूं कि आज इस सदन का प्रस्ताव वास्तव में पूरे देश की दृढ़ता, निश्चय और संकल्प को प्रकट करेगा कि इस आतंकवाद के युध्द पर विजय पाने के लिए पूरा राष्ट्र एक साथ है, एक मत है। सरकार और विपक्ष में कोई मतभेद नहीं है। भाषाओं, मज़हबों और सप्रदायों के कारण कोई मतभेद नहीं है। यह हमारे अंदर की डेमोक्रेसी है, जिसमें हमारे मतभेदों पर हम गर्व करते हैं। यह युध्द की स्थिति है, इसमें हम सब एक हैं, इस बात पर मैं बल देना चाहूंगा।
सबसे पहले तो मैं कहना चाहूंगा कि यह घटना नहीं है, इस घटना ने इस बात को उजागर किया है कि कई वर्षों से यह देश एक युध्द का सामना कर रहा है। इसीलिए सचमुच में उसे टैरर-वार कहना उपयुक्त है। इसलिए पहली बार शायद यह हुआ होगा कि सरकार ने अपनी ओर से ही तय किया कि प्रश्नोत्तार-काल न करके माननीय गृह मंत्री जी अपना जो वक्तव्य देना चाहते हैं, वह शुरू में ही दें, जिससे अधिक से अधिक समय सदन में चर्चा करने को मिले। मैं इस बात के लिए भी आपका आभारी हूं कि आपने मुझे सबसे पहले बोलने का अवसर दिया और मैं समझता हूं कि अब मेरा कर्तव्य होगा कि मैं माननीय गृह मंत्री जी के साथ मिलकर सारे सदन की पीड़ा और शोक प्रकट करुं।
वहां पर इतना भयंकर कांड हुआ, जिसमें बहुत सारे लोग मारे गये, जिसमें भारतीयों के साथ-साथ विदेशी लोग भी थे। बहुत बहादुरी और वीरता से हमारे सुरक्षा-कर्मियों ने उनका सामना किया, जिसमें एनएसजी के कमांडोज भी थे, मुम्बई पुलिस के, आर्मी और नेवी के जवान भी थे, सभी ने मिलकर उनका सामना किया। मैं समझता हूं कि जब वर्णन आता है तो उसमें रेलवे स्टेशन पर जो घटना हुई, उसमें रेलवे के कर्मचारियों ने जिस वीरता का परिचय दिया, जिन दो-तीन होटल्स में घटना हुई, उसमें होटल्स के कर्मचारियों ने भी अपने प्राणों को संकट में डालकर लोगों की सहायता करने की कोशिश की, ये सारे लोग हमारे आदर के पात्र हैं, देश की ड्डतज्ञता के पात्र हैं। मैं सरकार और सदन के साथ मिलकर उनके प्रति अपनी विनम्र श्रध्दा प्रकट करता हूं, आभार प्रकट करता हूं। कुछ नामों की चर्चा तो देश भर में लगातार होती रही हैं, पत्र-पत्रिकाओं में होती रही है जिनमें हेमंत करकरे, अशोक काम्टे, विजय सालस्कर और संदीप उन्नीड्डष्णन का नाम कोई भूल नहीं सकता है। माननीय गृह मंत्री जी ने सही किया जब उन्होंने उस तुकाराम का नाम लिया, जिसने असीम वीरता का परिचय देते हुए एक टैरेरिस्ट को केवल लाठी के सहारे जीवित पकड़ा। केवल एक लाठी के सहारे उसने यह काम करके दिखाया।
मैं मानता हूं कि यह अवसर है कि विगत वर्षों में जिस आतंकवाद का यह देश सामना करता रहा है, उसका कुछ गहराई से विश्लेषण करें। मेरी मान्यता है और जैसा माननीय गृहमंत्री जी ने कहा है कि सारा South Asia is in the eye of the storm of terror."
This is the phrase that you have used. Let us realize and say it very candidly that if South Asia is in the eye of the storm of terror, the epicentre of this storm is Pakistan. Let us not hesitate in saying that. Though in the United Nations Security Council when we have moved, we have not mentioned Pakistan - I do not know why - but I am happy that in so far as the draft resolution we have prepared and which has been circulated to several Party leaders, I have seen that we are very categorical in saying that the terrorist attack in Mumbai has been by terrorist elements from Pakistan. It is a right thing. Not only that; we have specifically mentioned in the Resolution the name of Lashkar-e-Toiba, a banned organization but which continues to function under different names. It is a banned organization. It is banned even by Pakistan under pressure from the world, but it still continues to function. I will deal with it separately in my speech later.
महोदय, इन घटनाओं के बारे में जितनी जानकारी मिलती है, उसके आधार पर मैं कह सकता हूं कि किसी राष्ट्र या देश की परीक्षा संकट के समय में होती है। मुम्बई के साधारण लोगों ने संकट के समय असीम साहस का परिचय दिया है। कभी-कभी शिकायत होती है कि टेलीविजन के चैनल्स और अखबारों में बड़े होटलों की चर्चा होती है, लेकिन जितने लोग मरे हैं, उनमें से आधो या आधो से अधिक रेलवे स्टेशन पर मरे हैं, जो कि सामान्य लोग थे, जो रेल से उतरते ही इस प्रकार के अचानक हमले के शिकार बने। मैं कल रात्रि को एक टीवी चैनल देख रहा था और उसे देख कर मुझे सही लगा, क्योंकि उसमें साधारण लोगों की चर्चा थी, जिसमें कहा गया था कि 'हौंसला टूटे न'। शायद 'आज तक' चैनल था, बहुत अच्छा दिखाया था। पूरे का पूरा फोकस ऐसे लोगों पर था, जो सामान्य लोग थे और रेलवे स्टेशन पर आए थे या कहीं जा रहे थे। किस प्रकार से उन्हें अचानक हमले का सामना करना पड़ा। एक कपल था, जो मुम्बई में रहता है, लेकिन तमिलनाडु से बिलोंग करता था। उस व्यक्ति ने गोली लगी हुई लड़की से विवाह किया और बाद में उसका ऑपरेशन करवाया। कई घटनाएं ऐसी थीं, जिनके कारण सारे देश का आत्मविश्वास बढ़ता है कि संकट के समय जब देश इस प्रकार का प्रत्युत्तर देता है, तो वह राष्ट्र को उन्नात बनाता है। राष्ट्र में विश्वास पैदा करता है कि हम संकट का सामना कर सकते हैं। मुझे यह भी अच्छा लगा, जब यह घटना समाप्त हो गई, तब एक टीवी चैनल ने दिखाया कि सुरक्षाकर्मी जा रहे थे, तो एक साधारण जवान से किसी टीवी चैनल ने पूछा कि आपको कैसा लग रहा है। उस जवान का उत्तार था कि हमारे लिए कुछ भी मुश्किल नहीं है। मैं समझता हूं कि जब शाम को हम सदन की तरफ से प्रस्ताव पारित करेंगे, तब उसका भाव भी यही होना चाहिए कि वर्षों से हमारे खिलाफ चलाए जा रहे आतंक के युद्ध पर विजय पाना इस देश के लिए किसी भी प्रकार से मुश्किल नहीं है और हम इस पर विजय पा कर ही रहेंगे।
जैसा मैंने कहा कि इसका एपिसैंटर पाकिस्तान है, इसीलिए यह सिर्फ टैरेरिज्म मात्र नहीं है, यह क्रास बार्डर टैरेरिज्म है। इस शब्द का प्रयोग करने के लिए आगरा में जनरल मुशर्रफ तैयार नहीं थे। जनरल मुशर्रफ ने कहा कि मैं इसे क्रास बार्डर टैरेरिज्म के रूप में नहीं देखता हूं। खास कर उन्होंने जम्मू-कश्मीर का उल्लेख करके कहा कि यह तो आजादी की जंग है। इससे हम सहमत नहीं हुए और हमने कहा कि हम इसे क्रास बार्डर टैरेरिज्म मानते हैं और अगर आप इसे नहीं मानते हैं, तो किसी प्रकार का समझौता नहीं होगा। आपने सही कहा है और जितनी घटनाएं आपने गिनाई हैं एक्टस आफ टैरर कमिटेड इन जयपुर, बंगलौर, सब का उल्लेख किया है, यह बहुत अच्छी बात है और मुझे इस बात की भी खुशी है कि गृह मंत्री ने कहा है कि असम की चर्चा हम अलग करेंगे। उस पर पूरी चर्चा होनी चाहिए। हम इस बात को भूल नहीं सकते हैं। मैंने जब सुबह सदन के नेता से बात की थी, तब मैंने कहा था कि असम का उल्लेख होता, तो कोई गलत नहीं होता।
उसका कारण है और मुझे स्वयं को लगता है कि असम, बंगलादेश के माधयम से भी बहुत बार जो गतिविधियां होती हैं, आईएसआई उसकी तह में होता है और वे वहां माधयम ढूंढ़ लेते हैं लेकिन सदन के नेता का मत था कि शायद इससे हमारा फोकस मुम्बई के घटनाक्रम और लश्कर-ए-तोएबा से डाल्यूट हो जाएगा, मैंने कहा कि ठीक है, अलग बात हो जाए, उसमें भी कोई आपत्ति नहीं, लेकिन असम में जो कुछ हो रहा है, वह बहुत गम्भीर है और उसकी चर्चा अलग करने का जो निर्णय किया है, मुझे कोई आपत्तिा नहीं, यद्यपि मैं समझता हूं कि असम के साथियों को अपने मन की पीड़ा व्यक्त करने का अवसर था और उन्होंने किया।
मैंने एक बात और भी सुझायी थी और मैं विश्वास करता हूं कि हम शाम को जो प्रस्ताव सम्मिलित करेंगे, उसमें जरूर इस बात का उल्लेख होगा और वह यह है कि कुछ समय पहले इसी साल अगस्त के महीने में अफगानिस्तान में जो हमारा दूतावास काबुल में है, उस पर हमला हुआ था। सामान्यत: उसमें आईएसआई का नाम आया था कि उसे आईएसआई ने करवाया है। वह ऐसा संगठन है जो पता नहीं, जरदारी साहब ने इस बात को स्वीकार किया है कि हां, मैं मानता हूं कि मुम्बई में जो लोग गए थे, वे पाकिस्तान से गए थे, कराची से गए थे लेकिन उन्होंने कहा कि वे नॉन स्टेट एक्टर्स थे। उन्होंने यह शब्द प्रयोग किया। नॉन स्टेट एक्टर्स कौन होते हैं, नॉन स्टेट एक्टर्स इस प्रकार का जो ऑॅपरेशन वहां किया, ऐसा लगता था कि मानो आर्मी कमांडोज थे। जितने लोग वहां थे और जिन्होंने उनको देखा, जिन लोगों ने उनका मुकाबला किया, उन सब का यह मत है कि वे कोई साधाारण नागरिक नहीं थे, साधारण टैररिस्टस नहीं थे। They had undergone elaborate preparation. उनको कितना समय लगा होगा, सचमुच मेरा माथा उस समय ठनका जब दो होटल्स के अलावा नरीमन हाउस का नाम लिया गया। नरीमन हाउस का नाम लेते ही मुझे समझ आया कि वह काफी सर्वेलेंस करके किया गया है। साधारणतया किस को पता है कि नरीमन हाउस में ज्यूस रहते हैं, यहूदी रहते हैं, यहूदियों की फैमिलीज रहती हैं या इस्राइल से आकर लोग रहते हैं। मुझे यह जान कर एक प्रकार से संतोष हुआ और यह बात मुझे इस्राइल के अम्बेसैडर ने आकर कही कि अगर यह घटना बुधावार को न होकर शुक्रवार को होती तो भयंकर परिणाम होते, इस नाते कि हर शुक्रवार को which is the eve of Kosher Day for them वे शनिवार की पूर्व संधया को मिल कर प्रार्थना करते हैं। यहूदी परिवार के जितने लोग मुम्बई में होते हैं, वे सब आते हैं और साथ बैठकर भोजन करते हैं। इस प्रकार उनकी बहुत बड़ी संख्या हो जाती और उसके भयंकर परिणाम होते, लेकिन उनको इन सब बातों का पता था कि वे यहां रहते हैं। ताज होटल और ऑबराय होटल फाइव स्टार होटल और नोन हैं, कोई भी पहचान सकता है। मैं नहीं जानता लेकिन मुझे किसी मित्र ने कहा कि रामपुर में जो सीआरपीएफ कैम्प पर अटैक हुआ था, उसमें जो व्यक्ति पकड़ा गया था, उसने मुम्बई के ताज होटल का जिक्र किया था और कहा था कि उस पर हमला होगा। यह अगर सही बात है तो - this is an additional dimension, an additional bit of evidence or bit of information which should be probed thoroughly कि उसके बाद क्या हुआ। मैं यह बात मानता हूं कि आज का यह अवसर विश्लेषण करने का है और साथ-साथ दुनिया को भी संदेश देने का है। यह जो युध्द है जिस को हम कोई घटनाक्रम नहीं मानते, युध्द मानते हैं, इस युध्द में सरकार और विपक्ष एक साथ है, इस यध्द में सारा देश कोई भी जाति हो, कोई भी सप्रदाय हो, कोई भी भाषा हो, किसी भी क्षेत्र का हो, कोई भी हो, सब एक हैं, यह संदेश जाना चाहिए, यह प्रस्ताव का उद्देश्य होना चाहिए।
इसके साथ यह संकल्प भी प्रकट होना चाहिए कि हमारा यह युध्द आखिर तक चलेगा और हम इसे लॉजिकल परिणाम तक पहुंचाएंगे। गृह मंत्री जी के आखिरी वाक्य में उल्लेख आता है, जिसमें उन्होंने कहा है कि दो-चार महीने हैं, हमें हार्ड डिसीजन लेने होंगे। मैं अपनी पार्टी और एनडीए की ओर से विश्वास दिलाना चाहता हूं और कहना चाहता हूं कि चाहे सरकार कोई भी कठोर कदम उठाना चाहे, आप कोई भी हार्ड डिसीजन लें, जो डिसीजन इस युध्द में देश को विजय दिलाने वाला होगा, उसमें मेरी पार्टी और एनडीए आपका साथ देगी। मैं यह बात आज ही नहीं कह रहा हूं बल्कि जब मुंबई की घटना हुई थी, उसके चार दिन बाद हमारी पार्टी की कोर कमेटी की मीटिंग हुई थी, जिसमें हमने यह प्रस्ताव किया था, मैं इसमें से कोट करता हूं:
"The four-day long terrorist attack on Mumbai, India's commercial capital, is a challenge that must be rebutted fully, visibly and tellingly. Given that Pakistan has totally rejected all requests of the Government, we expect the Government is assessing stern steps that are required to ensure that Pakistan desists from pursuing Jihadi terrorism. As a nationalist party the BJP shall stand by the Government in the effective steps it takes in this regard."
मैं हमेशा याद करता हूं कि चाहे हमारे बहुत मतभेद रहते हैं और हम बहुत आलोचना भी करते हैं, कोई कसर नहीं छोड़ते लेकिन हम महाभारत के प्रसिध्द कवि की बात को भूल नहीं सकते, जिसमें गंधर्व ने पाण्डवों और कौरवों पर हमला किया था और वे कौरवों को पराजित कर रहे थे, तब युधिष्ठिर ने अपने भाइयों को कहा कि जाकर कौरवों का साथ दो, उनकी सहायता करो। किसी ने कहा - आप क्यों उनकी सहायता करने के लिए कह रहे हैं तब उन्होंने कहा कि हमारे आपस में विवाद हैं लेकिन इस युध्द के समय हम सौ नहीं एक सौ पांच हैं, 'व्यम पंचाधिकरण शतम' अगर किसी दूसरे का सवाल आता है तो हम एक सौ पांच हैं। यह बात सबके लिए है। It applies to everyone. मैंने जिक्र किया जो इन्होंने कहा कि ये नान-स्टेट एक्टर हैं। ISI itself is a non-state actor in a way. After all it is not under the control of the elected Government of Pakistan. It is answerable only to the army.
I doubt it. I really doubt it. I am not only saying myself but even the spokesmen of the American Government, who are expected to know the functioning of Pakistan perhaps better, also admitted this fact to me. When she came here, I posed her this question. मैं एक मुख्य समस्या जो पाकिस्तान से संबंधित है, उसके बारे में कहना चाहता हूं कि मुझे समझ में नहीं आता कि वहां पर कौन अथौरिटी है डेमोक्रेटिक देशों में जैसे हमारा देश है, यहां हर एक जानता है कि कौन फाइनल अथौरिटी है। लेकिन पाकिस्तान जैसा देश, जहां बहुत बार 'कू 'हुए हैं और कितनी बार आर्मी रूल आया है, वहां अब इस समय एक नाम है, तथाकथित प्रधानमंत्री भी हैं और राष्ट्रपति भी हैं लेकिन कौन अथौरिटी है, यह निर्णय करना आसान नहीं है। उनका कहना था और लगता है कि जो आर्मी चीफ हैं, वही सर्वेसर्वा हैं। मुझे इस प्रसंग में एक बात और कहनी है कि पिछले दिनों विल्सन जॉन द्वारा लिखा गया एक बहुत परसेप्टिव लेख छपा था।
उसमें उन्होंने कहा है कि - There is evidence of a cabal within the ISI which noted Pakistani Scholar, Ahmed Rasheed - who is an outstanding scholar -जिन्होंने एक पुस्तक लिखी है 'डिसेन्डिड टू क्यास' Pakistan - How it has descended into chaos? He calls an ISI within an ISI. ;g tks dcky gS - this body may be primarily responsible for formulating and executing the Pakistani States - Jihadi strategy in Afghanistan and India while giving the cover of deniability to the army and civilian establishments. This is something which needs to be studied in-depth. कि किस प्रकार से डिनायबिलिटी के लिए, यह हमने नहीं किया है, एल.ई.टी. ने किया है, लश्कर-ए-तैय्यबा ने किया है और कुछ लोगों को जेल में डाल दिया, किसी को हाउस अरैस्ट में रख दिया, we should not be fooled by this kind of operation. हमें किसी धोखे में नहीं रहना चाहिए। यह कोई ऑपरेशन नहीं है, दिखावा है, छलावा है, धोखा है, प्रवंचना है और यह बात केवल मात्र इस पत्रकार ने नहीं लिखी है, जिसका मैंने नाम लिया -विल्सन जॉन, परंतु मैं देख रहा हूं कि इस समय यू.एस. में जो पाकिस्तान के एम्बैसेडर हैं, जिनका नाम हुसैन हक्कानी है, उन्होंने कुछ समय पहले यह लिखा था - the most significant Jihadi group is Lashkar-e-Toiba which is backed by Saudi money and protected by Pakistani Intelligence Services. This ISI is a Pakistani Intelligence Service. और फिर आगे यह भी लिखा कि- in 2005, the ISI gave money and direction to the Islamic group as it conducted attacks in India in the 1990s. After 9/11 आई.एस.आई. ने इसी ग्रुप लश्कर-ए-तैय्यबा को पैसे देकर कहा कि कुछ समय चुप रहो, 9/11 हुआ है, इसीलिए हमारे ऊपर दबाव है, इसलिए तुम चुप रहो। उन्होंने इसका पैसा भी उन्हें दिया। ये सारी बातें, जो आज अमेरिका में पाक एम्बैसेडर है, उसने तथ्य दिये हैं & so that no one can challenge it.
मैं इन बातों का जिक्र इसलिए कर रहा हूं क्योंकि इन दिनों में हम भी पाकिस्तान पर दबाव डालने की कोशिश कर रहे हैं और समझते हैं कि अगर यू.एन. सिक्युरिटी काउंसिल में जाकर हम उनके खिलाफ बोलेंगे तो और प्रभाव होगा। लेकिन मुझे यू.एन. सिक्युरिटी काउंसिल का नाम सुनकर डर लगता है। इस नाते डर लगता है, क्योंकि हमारा कश्मीर का जो अनुभव है, उसे हमें कभी भूलना नहीं चाहिए। हम अपनी डिप्लोमैटिक स्ट्रैंथ से, डिप्लोमैटिक कुशलता से जितना कुछ कर सकें, वह जरूर करना चाहिए। हम अपनी ताकत से जो कुछ भी इनके खिलाफ कर सकें, वह जरूर करना चाहिए, लेकिन हम उम्मीद करें कि यू.एन. सिक्युरिटी काउंसिल हमें बचायेगा, यह समस्या हमारी है और इस समस्या को हमें ही हल करना चाहिए। हमने जम्मू-कश्मीर की समस्या भी उस समय अगर हमने अपने बलबूते पर हल की होती तो हल हो गई होती। यू.एन. सिक्युरिटी काउंसिल में जाने का क्या परिणाम हुआ है, उसे हम काफी भुगत चुके हैं, दोबारा ऐसी गलती हमें नहीं करनी चाहिए। यह मेरा अनुरोध होगा।
हमें आश्चर्य नहीं होता है, जब ये ऐसा करते हैं। लश्कर-ए-तैय्यबा के लोग या उसके प्रमुख क्या बोलते हैं, क्या नहीं बोलते हैं, वह हमें ध्यान में रखकर चलना चाहिये। मैं इस बात को मानता हूं और कई बार इस बात को कह चुका हूं कि किसी आतंकवादी का कोई धर्म या मज़हब नहीं होता है। आतंकवाद एक अपना धर्म है लेकिन साथ ही साथ वास्तविकता यह है कि लश्कर-ए-तैय्यबा नाम की संस्थायें, जिन्हें पाकिस्तान ने प्रश्रय दे रखा है, उन पर बैन भी लगाती हैं तो दूसरे नाम से उन्हें चलने देती है। उनके नेता को गिरफ्तार भी करती हैं, तथाकथित गिरफ्तारी करती है और उन्हें हाउस अरैस्ट में रखती है, लेकिन जब यह मामला कुछ ठंडा हो जाये तो उन्हें सम्मान के साथ छोड़ देगी, प्रशंसा करेगी। लश्कर-ए-तैय्यबा का सुप्रीम धार्मिक और पॉलिटिकल हैड हाफिज़ मोहम्मद सैय्यद ने नवम्बर महीने में दिसम्बर की घटना के पहले कहा था :
''The only language India understands is that of force; and that is the language that it must be talked to. This is what the supreme religious and political head of LeT said.'' लश्कर-ए-तैय्यबा ने एक पैम्फलैट ईश्यू किया। ''While we are waging jihad'' उसमें आगे लिखा है : ''Its ideology goes beyond merely challenging India's sovereignty over the State of Jammu and Kashmir; it also affirms that its agenda includes 'restoration of Islamic rule over all parts of India''.
This is the thinking. यह चिन्तन है और इस चिन्तन की उपेक्षा नहीं करनी चाहिये। अगर हम इसके साथ लड़ना चाहते हैं, झगड़ना चाहते हैं तो हिन्दुस्तान के मुसलमानों को इस बात को समझाना चाहिये, उन्हें बताना चाहिये कि जिहाद के नाम पर इन लोगों के मंसूबे बड़े भंयकर हैं। Spiritual Islam is to be respected but political Islam of this kind has to be countered and combated. This has to be understood. टैरेरिज्म का इस्लाम से कोई ताल्लुक नहीं है। पिछले दिनों यू.एस.ए. की सैक्रेटरी ऑफ स्टेट, मिस कोंडालिसा राइस मुझे मिलने आयी थी जब वह मुझ से मिलने आयी तो मैंने उन्हें कहा कि आतंकवाद एक गम्भीर समस्या है, जिसमें हम चाहेंगे कि अमरीका जितना प्रभाव डाल सके, उतना डाले लेकिन मैंने उन्हें यह भी कहा कि बार बार आतंकवाद को जस्टिफाई करने के लिये पाकिस्तान में अलग अलग सैक्शन्स और विश्व में कई सैक्शन्स कश्मीर का उल्लेख करते हैं। इस बात को समझना चाहिये कि इस में भारत कश्मीर विवाद का विषय नहीं था। हिन्दुस्तान में 530 रजवाड़े थे। उन सब में उस समय जो व्यवस्था थी, उस व्यवस्था के अनुसार केवलमात्र वहां के महाराजा ने निर्णय नहीं किया लेकिन वहां की जो जनप्रतिनिधि संस्था थी, उसे भी कहा गया, उन्होंने निर्णय किया कि हम भारत के साथ जायेंगे। अगर कश्मीर का कुछ हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में है तो उसका कारण नेकड अग्रेशन और इनवेज़न है। इस अग्रेशन के बारे में संसद में कुछ साल पहले सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित हुआ था कि यह हिस्सा भारत का हिस्सा है, वह हिस्सा कोई पाकिस्तान का हिस्सा नहीं है, भले ही कब्जे में उसके होगा। इस तथ्य को दुनिया को पहचानना चाहिये और अमरीका को विशेष रूप से पहचानना चाहिये क्योंकि समय समय पर अमरीका में ऐसे ग्रुप खड़े होते हैं जो यह समझते हैं कि समस्या हिन्दुस्तान-पाकिस्तान की है, कश्मीर की है और अगर कश्मीर आजाद हो जाये तो समस्या हल हो जायेगी, वे इस गलतफहमी में न रहें। भारत किसी भी सूरत में जम्मू-कश्मीर के मामले में कोई समझौता नहीं करेगा क्योंकि यह भारत का अभिन्न अंग है।
यह हमारी संसद का सर्वसम्मत प्रस्ताव है। हां, लश्कर-ए-तोएबा ने अपने पैम्फलेट में यह बात डिकलेयर की कि हमारे तीन खास दुश्मन हैं और वे हैं - भारत, अमेरिका और इजरायल - as existential enemies of Islam. इसीलिए मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ कि उन्होंने केवल ताज और ऑबराय नहीं चुने, उन्होंने अपने इस टारगेट के लिए नरीमन हाउस को भी चुना। हमको इस आतंकवाद और इन आतंकवादी हमलों को पहचानना चाहिए। इसमें दो बातों के ऊपर टारगेट किया गया है, एक तो भारत की प्रगति होती गयी है और भारत आगे बढ़ता गया है, जिस प्रकार से यहाँ पर सब धार्म, सब मजहब, सब मत-मतान्तर एगजिस्ट करते हैं, यानी यहाँ पर सब आते हैं, यह देश ऐसा है जहाँ पर क्रिश्चियनिटी बहुत पहले आयी, सबसे पहली मस्जिद हिन्दुस्तान में केरल में बनी। उस समय भारत आजाद नहीं हुआ था। अविभाजित भारत में, मैं करांची में रहता था।
मैं केरल का जिक्र कर रहा था। जहाँ पर सबसे पहला एक चर्च बना। जो कोचीन जाता है तो वहाँ पर यहूदियों का भी सिनागॉग दिखाते हैं। मैं स्वयं करांची का निवासी हूँ। मेरा जन्म वहाँ हुआ। मैने अपने जीवन के पहले बीस वर्ष वहाँ पर बिताये। मेरे स्कूल में मेरे क्लासमेट कई ज्यूस थे। मैं जब 50 साल बाद इजरायल गया था तो मैंने उनमें से एक को ढूंढ निकाला। ये सारे अनुभव हैं, इसीलिए मैं इसको मानता हूँ। यह हिन्दुस्तान जिन परिस्थतियों में आजाद हुआ, भारत का विभाजन इस बात पर हुआ कि मुस्लिम बहुमत कहाँ पर है और हिन्दू बहुमत कहाँ पर है। पाकिस्तान ने भले ही अपने को इस्लामिक राज्य घोषित किया हो, थियोक्रैसी स्वीकार की होगी, हमने थियोक्रैसी स्वीकार नहीं की। हमने कहा कि हमारा राज्य सेकुलर राज्य होगा जिसमें सब धार्म, सब पंथ बराबर होंगे, चाहे वे किसी भी धार्म व मजहब के अनुयायी क्यों न हों
This is the civilizational ethos of India. यह सिविलाइजेशनल इथोस ऑॅफ इंडिया पर आक्रमण है। यह हमें पहचानना चाहिए। यह हमारी प्रगति पर आक्रमण है। यह सिविलाइजेशनल इथोस ऑॅफ इंडिया पर आक्रमण है। इसको पहचानकर हम इसका सही उत्तार उनको दे पायें और इस उत्तार को देते हुए हम भारत के मुसलमानों को भी उसमें समाविष्ट कर सकें। जितनी मात्रा में हम कर सकेंगे उतनी मात्रा में ही हमने सही उत्तार दिया, यह कहा जाएगा। अभी-अभी रिसेन्टली मैंने देखा कि मुंबई की घटना के बाद कई स्थानों पर मुस्लिम समाज में गुस्सा है कि यह क्या हो रहा है इनके कारण हम यहाँ पर बदनाम हो रहे हैं। इनके कारण यहाँ पर मतभेद पैदा होते हैं। अभी-अभी हैदराबाद में क्लेरिकसेज इकट्ठा हुए थे, जिन्होंने उसके खिलाफ प्रस्ताव पारित किया। कई लोग यहाँ आए और आतंकवाद के खिलाफ प्रदर्शन किया। मैं उसका स्वागत करता हूँ। प्रसिध्द पत्रकार एम.जे. अकबर मेरे मित्र हैं। वे रेगुलरली आजकल टाइम्स ऑफ इंडिया में लिखते हैं। उन्होंने लिखा, वह मुझे बहुत अच्छा लगा। उन्होंने टोरंटो स्टार में एक लेख लिखा, जिसमें कहा कि "I am an Indian and a Muslim and proud to be both. Like any Indian, today I am angry, frustrated and depressed. I am angry at the manic dogs of war who have invaded Mumbai."
उन्होंने सही कहा और चिदम्बरम जी हाँ कह रहे हैं, लेकिन उसका जो फॉलोइंग सैन्टैन्स है, उसको भी हाँ कहेंगे। उन्होंने कहा कि :
"I am frustrated by the impotence of my Government in Mumbai and Delhi. Do not deaf to the anguish of my fellow citizens and I am depressed at the damage of the idea being done to India."
इसीलिए मैं कहना चाहूँगा कि It is not just a failure of intelligence. क्योंकि मैं गृह मंत्री की बात मानता हूँ कि मैं उन सवालों को जो सब अखबारों में छपे हैं, अभी नहीं उठाऊंगा क्योंकि जो ड्राफ्ट प्रस्ताव मुझे दिया गया, उसमें कहा है कि हम रिव्यू करेंगे कि क्या कुछ हुआ, क्या कुछ नहीं हुआ जिसके कारण मुम्बई की घटना हुई। इसीलिए मैं वे सारे सवाल नहीं उठाता हूँ लेकिन हाँ, पूछना ज़रूर चाहता हूँ जिससे वे परस्यू करें, मैं उसकी आलोचना नहीं कर रहा हूँ। I do not go by whatever has been published in the Press. आज सुबह के अखबार में केवल वैसल का नहीं बताया लेकिन वैसल के कोआर्डिनेट्स क्या हैं, यह भी बताया। गृह मंत्री ने अपने भाषण में कहा है कि नेवी को एलर्ट किया गया, नेवी को बताया गया। नेवी का कहना है कि वह उस समय हमारे टैरिटोरियल वाटर्स में नहीं था। लेकिन यह भी उन्होंने कहा है कि उन्होंने यहां से चोरी किया। वह कुबेर एक इंडियन शिप था जो गुजरात का था, जिसको उठाकर ये लोग ले गए। तो क्या हमें यह अधिकार नहीं कि इस प्रकार के जहाज़ को हम छुड़वाने के लिए कुछ करें I do not know. The simple fact that they are outside the territorial waters of India, do they prohibit us from taking back our own vessel? Then from that point to the point where they reached by a rubber dinghy वह कितना डिसटैन्स है और कितनी देर उनको आने में लगी होगी। पर उसमें कोई कमी रही क्या क्योंकि कुल मिलाकर अभी तक I do not know. It is not only that several seniors and veterans in the Government of India and the Government of Maharashtra have had to pay the price. But the Home Minister himself, the first thing he did and rightly so, was that he said, `I apologise to the people of Mumbai for whatever failure has happened.' Similarly, the Naval Chief has said something which has to be taken cognizance of and therefore it is that I feel that accountability in a democracy should not be confined only to the Home Minister or to the Chief Minister of a State. We have not placed that issue at all relating to the Prime Minister because we feel that within a short time the people of this country would have the opportunity to decide who should form the new Government. Therefore, formally we have not said that. But this must be understood tks लोग समझते हैं कि आज जनता में गुस्सा नहीं है, गुस्सा है, बहुत गुस्सा है, और जो लोग समझते हैं कि क्योंकि दिल्ली में या राजस्थान में बीजेपी नहीं जीती, इसलिए Terrorism is not an issue. We will be underestimating the wisdom of the Indian people if we think in those terms. हम अगर दिल्ली में या राजस्थान में सफल नहीं हुए तो मैं उसका क्रैडिट कोई कांग्रेस को नहीं देता हूँ, अपनी कमी मानता हूँ। We have lost rather than Congress has won. But it is a different matter. It would be wrong to infer from this that in the minds of the people terrorism is not an issue. Terrorism is an important issue.
पिछले दिनों मेरे साथी अरुण शौरी ने एक विस्तृत लेख इंडियन एक्सप्रैस में लिखा, जिसमें संसद के बहुत सारे सवालों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से बार-बार यह बताया गया कि आगामी हमला समुद्र से हो सकता है। यह प्रधाान मंत्री ने कहा, होम मिनिस्टर ने कहा, नेशनल सिक्यूरिटी एडवाइज़र ने कहा, सबने कहा, डिफैन्स मिनिस्टर ने कहा और उसके बाद भी यह हुआ है।
उसके बाद ऐसा क्यों हुआ इसे आप रिव्यू करेंगे, इसकी मुझे खुशी है।
The National Security Advisor, Shri M.K. Narayanan has warned saying:
"There are many new schools that are being established on the Pakistan-Afghanistan border which now specialize in the training of an international brigade of terrorists to fight in many climes. Training has become rigorous. It is almost frightening in nature. Studies are being carried out about important targets with regard to vulnerability, access to poor security, absence of poor counter-terrorism measures. The sea route in particular is becoming the chosen route for carrying out many attacks even on land."
This is what the National Security Advisor has said. I am simply quoting this in order to see that the review which the Government undertakes as per the proposed draft resolution should take into cognizance all these facts.
मैं यह भी जानना चाहूंगा कि एनएसजी के कमाण्डोज़ को मुम्बई पहुंचने में इतनी देर क्यों लगी उन्हें सूचना रात 11 बजे मिल गई थी, लेकिन वे सुबह पहुंचे थे, बहुत देर से। उसी प्रकार आईबी और रॉ के कोआर्डिनेशन के बारे में, इंटेलिजेंस एजेन्सीज़ की सिनर्जी के बारे में आपने कुछ बातें कही हैं। मैं आशा करता हूं कि उन सब बातों के बारे में आवश्यक करैक्टिव स्टैप्स उठाए जाएंगे।
मैं यह भी जानना चाहूंगा कि दाऊद इब्राहिम के बारे में मांग मुम्बई की इस घटना के बाद की गई या इससे पहले भी सरकार ने उसकी मांग पाकिस्तान सरकार से की है यह बात कई बार कही जाती है कि दाऊद इब्राहिम किसी समय इस सारे आतंकवाद के काण्ड में लिप्त नहीं था और जिस कार्य में लिप्त था, उस कार्य से परिचित होने के कारण समुद्र के सभी रास्तों से परिचित हो गया कि कहां-कहां समुद्र के ज़रिए सामान लैण्ड किया जा सकता है, सब कुछ किया जा सकता है। इससे भी मुम्बई के कई लोगों को लगा कि इन सारी घटनाओं के पीछे भी उनका योगदान हो सकता है, तो आश्चर्य की बात नहीं है। लेकिन वह न भी हो तो भी यह बात सही है कि मुम्बई के टाडा कोर्ट ने वर्ष 1993 के काण्ड के लिए बहुत सारे लोगों को दण्डित किया है, उसमें उन्होंने घोषित किया हुआ है कि प्रमुख अपराधी दाऊद इब्राहिम आज तक एबस्कौण्डिंग है, गिरफ्तार नहीं हुआ है, फरार है। उसके बारे में दुनिया जानती है कि वह एक अच्छे खासे बंगले में कराची में रहता है, पाकिस्तान ने उसको आश्रय दे रखा है। कोई कारण नहीं है, कोई जस्टिफिकेशन नहीं है, उसको हमें सुपुर्द करने में। इसके अलावा हमने बाकी 20 लोगों की मांग की है, उनको हमें सुपुर्द करना चाहिए। इस बारे में भी क्या कार्यवाही अभी तक हुई है, क्या होने वाली है और कब तक होने वाली है।
इन्हीं शब्दों के साथ एक बार फिर से मैं पूरी दुनिया को और खास तौर से हमारे दुश्मन, जिन्होंने हमारे ऊपर आतंकवाद का युध्द छेड़ रखा है, उनको कहना चाहता हूं कि आज इस सदन का प्रस्ताव वास्तव में पूरे देश की दृढ़ता, निश्चय और संकल्प को प्रकट करेगा कि इस आतंकवाद के युध्द पर विजय पाने के लिए पूरा राष्ट्र एक साथ है, एक मत है। सरकार और विपक्ष में कोई मतभेद नहीं है। भाषाओं, मज़हबों और सप्रदायों के कारण कोई मतभेद नहीं है। यह हमारे अंदर की डेमोक्रेसी है, जिसमें हमारे मतभेदों पर हम गर्व करते हैं। यह युध्द की स्थिति है, इसमें हम सब एक हैं, इस बात पर मैं बल देना चाहूंगा।
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