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Thursday 3 January, 2008

हिन्दुत्व और विकास के समन्वय की जीत

लेखक- विजय कुमार

यों तो भारत में साल भर किसी न किसी राज्य में चुनाव होते ही रहते हैं; पर गुजरात के विधानसभा चुनावों ने देश-विदेश में जितनी सुर्खियां बटोरीं; इस पर जितनी और जैसी टिप्पणियां हुईं, उसके आगे अमरीकी राष्ट्रपति का चुनाव भी फीका लगता है। अब तो वहां के परिणाम भी आ चुके हैं। इनमें स्पष्टत: भाजपा की विजय और कांग्रेस की पराजय हुई है। दूसरे शब्दों में इसे यों भी कह सकते हैं कि वहां नरेन्द्र मोदी की जीत और सोनिया गांधी की पराजय हुई है। बाकी दलों और नेताओं की चर्चा करना उचित नहीं है, क्योंकि गर्बी गुजरात की जनता ने सबको शीशा दिखा दिया है। 117 स्थान जीतकर नरेन्द्र मोदी ने तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है, तो सत्ता के स्वप्न देख रही कांग्रेस 59 स्थानों के साथ अपनी चोटों को ही सहलाने में लगी है।

वैसे तो इन्हीं दिनों हिमाचल प्रदेश में भी विधानसभा के चुनाव हुए; पर चर्चा सब ओर गुजरात की ही थी। इसे मोदी की कुशल रणनीति ही कहना होगा कि उन्होंने चुनाव को अपने और सोनिया गांधी के बीच का जनमत संग्रह बना दिया। उनकी टीम ने संचार की आधुनिक तकनीक का सदुपयोग कर 'जीतेगा गुजरात' का नारा गढ़ा, जो जन-जन के मन में घर कर गया। इसके विपरीत सोनिया और राहुल दूसरों के लिखे भाषण ही पढ़ते रहे। इस कारण ही 'मौत के सौदागर' जैसी असंसदीय और अशालीन टिप्पणी चर्चा में आयी।

कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने पूरे देश और विश्व में फैल रहे मुस्लिम आतंकवाद की आलोचना करने की बजाय गुजरात में हिन्दू आतंकवाद पनपने की बात की। इसी प्रकार मनमोहन सिंह की दंगों की पुन: जांच की टिप्पणी ने आग में घी का काम किया। लोग समझ गये कि कांग्रेस वाले यहां फिर आग लगाना चाहते हैं। अब कांग्रेसी मान रहे हैं कि इन टिप्पणियों के कारण उन्हें भारी हानि हुई है। कांग्रेस ने भाजपा छोड़कर आये नौ विधायकों को टिकट दिया; इससे भी जनता में गलत संदेश गया और उसने उनमें से आठ को हराकर हिसाब बराबर कर लिया।

जर्मन समाजशास्त्री मैक्सवेबर के अनुसार 'यदि चमत्कारी नेतृत्व हो, तो नेता और जनता के बीच सीधा संवाद होता है और बिचौलिये अप्रासंगिक हो जाते हैं।' नरेन्द्र मोदी ने इसे सत्य सिध्द कर दिखाया है। यहां तक कि राजनाथ सिंह और लालकृष्ण आडवाणी जैसे बड़े नेता भी जब नरेन्द्र मोदी के साथ मंच पर उपस्थित होते थे, तो जनता उनके बदले मोदी को ही सुनना पसंद करती थी। उनकी भाषण शैली, गुजरात के गौरव की चर्चा और गत पांच वर्ष की उपलब्धियों ने मिलकर वह समां बांधा कि जनता ने थोक में कमल के सामने वाले बटन को ही दबाना उचित समझा।

चुनाव के दिनों में अपने आश्वासन और उपलब्धियों की चर्चा तो सब करते हैं; पर मोदी की उपलब्धियां प्रत्यक्ष दिखाई देती थीं। गुजरात में सड़कों का जाल, शहर ही नहीं तो गांवो तक में बिजली की हर समय उपलब्धता, दंगा रहित प्रदेश और भूकम्पग्रस्त क्षेत्र का चहुंमुखी विकास, विदेशी निवेश की वर्षा, आतंकवादियों पर नियन्त्रण आदि के लिए बहुत कहने की आवश्यकता नहीं पड़ी। गुजरात मूलत: व्यापारी प्रवृत्ति के लोगों का राज्य है। ऐसे लोग शांत वातावरण पसंद करते हैं। नरेन्द्र मोदी ने यह वातावरण प्रदेश को दिया, इसीलिए जनता ने उन्हें और भाजपा को विजयी बनाया।

मोदी और भाजपा ने यह भी समझा कि अनेक विधायकों के प्रति उनके क्षेत्र की जनता में आक्रोश है। इसलिए उन्होंने लगभग 100 नये चेहरों को मैदान में उतारा और इसका परिणाम अच्छा ही मिला। दूसरी और कांग्रेस के पास मुख्यमंत्री पद के लिए कोई नेता ही नहीं था। मोदी के विरुध्द लड़ाने के लिए भी केन्द्र सरकार के एक मंत्री दिनशा पटेल को बलि का बकरा बनाया गया।

इस चुनाव की एक विशेषता यह भी थी कि इस बार नरेन्द्र मोदी को बाहर के साथ-साथ अंदर से भी चुनौती मिल रही थी। भाजपा के केशूभाई पटेल, सुरेश मेहता, काशीराम राणा जैसे बड़े नेता ही उनका विरोध कर रहे थे। इसे मीडिया और कांग्रेस ने खूब उछाला, उन्होंने तो यहां तक झूठा प्रचार किया कि रा0स्व0संघ, विहिप और भारतीय किसान संघ जैसे बड़े संगठन भी मोदी के विरोध में हैं; पर मोदी चुपचाप चुनाव प्रचार में लगे रहे। फलत: वे इस अग्निपरीक्षा में सफल हुए और विरोधियों के मुख पर कालिख ही लगी। अपवादस्वरूप मध्य गुजरात को यदि छोड़ दें, तो शेष सारे राज्य में उन्हें अच्छी सफलता मिली। लोगों ने जाति-बिरादारी से ऊपर उठकर भाजपा के पक्ष में मतदान किया।

जहां तक इस चुनाव के राष्ट्रीय परिदृश्य पर पड़ने वाले प्रभाव की बात है, तो इससे जहां भाजपा और नरेन्द्र मोदी की छवि उज्जवल हुई है, वहां कांग्रेस और सोनिया गांधी की छवि को दाग लगा है। कांग्रेस ने अपने तीनों सर्वोच्च नेताओं (सोनिया, राहुल और मनमोहन सिंह) को मैदान में उतारा; पर उनके सब हथकंडे विफल हुए। इससे संप्रग गठबंधन को भी झटका लगा है। कुछ दल तो अभी से कांग्रेस को आंखें दिखाने लगे हैं।

इसका आगामी लोकसभा चुनाव पर भी प्रभाव पड़ेगा। उस समय प्रधानमंत्री पद के दो प्रबल दावेदार होंगे। कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी और भाजपा की ओर से लालकृष्ण आडवाणी। वैसे इस पद के सपने मायावती भी देख रही हैं। कुछ लोग नरेन्द्र मोदी को भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के लिए प्रस्तुत करने की बात उठा रहे हैं। उनका कहना है कि मोदी युवा हैं, उन्होंने राजनीति और प्रशासन दोनों स्थानों पर अपनी उपयोगिता सिध्द की है। अत: उन्हें गुजरात तक सीमित रखना उचित नहीं होगा। इन तर्कों में काफी वजन है; पर इसका निर्णय को भाजपा को ही करना है।

नरेन्द्र मोदी को अब अत्यधिक सावधान होने की आवश्यकता है। उनके शत्रु अब और अधिक तैयारी से वार करने का प्रयास करेंगे। विदेशियों के हाथों बिके हुए समाचार पत्र और दूरदर्शन चैनल उनकी छवि को नष्ट करने तथा भाजपा और उनके बीच दरार डालने का प्रयास करेंगे। इसीलिए हिन्दुत्व और भाजपा से अलग 'मोदीत्व' शब्द गढ़ा गया है। वे बार-बार कह रहे हैं कि यह भाजपा की नहीं मोदी की जीत है। यद्यपि इसके दूसरे पक्ष के रूप में यदि यह कहा जाए कि गुजरात की हार कांग्रेस की नहीं सोनिया गांधी की हार है, तो वे मुंह पर ताला लगा लेते हैं।

मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान भले ही व्यंग्य बाणों और गर्वोक्तियों का प्रयोग किया हो; पर अब उन्हें शांत रहकर प्रदेश के विकास में ही लगना होगा। यदि वे अन्य राजनेताओं की भांति चमचों से घिर गये, यदि उनके मन में थोड़ा भी अहंकार उत्पन्न हो गया, तो फिर उनका पतन होते देर नहीं लगेगी। यद्यपि उन्होंने विधायक दल का नेता चुने जाते समय भावुक होकर भाजपा संगठन को सर्वोच्च बताया, उनका यह व्यवहार आवश्स्त करता है कि वे सत्ता और संगठन में पहले से भी अच्छा समन्वय बनाकर चलेंगे।

जहां तक यह प्रश्न है कि गुजरात चुनाव में किसकी जीत हुई, तो यह हिन्दुत्व, विकास, संगठन और नरेन्द्र मोदी की समन्वित जीत है। हिन्दुत्व और विकास परस्पर पूरक हैं। पश्चिमी लोकतंत्र अधिकतम लोगों के अधिकतम हित की बात करता है। 51 प्रतिशत लोगों के हित के लिए 49 प्रतिशत के हितों की बलि चढ़ा देना वहां अनुचित नहीं माना जाता; पर हिन्दुत्व 'सर्वे भवन्तु सुखिन, सर्वे सन्तु निरामया' का पक्षधर है। वह केवल मानव ही नहीं, तो पशु, पक्षी, जलचर, नभचर अर्थात सब प्राणियों के हित की कामना करता है। इतना ही नहीं, वह इससे आगे बढ़कर संपूर्ण सृष्टि और ब्रह्मांड का भला चाहता है। इसलिए गुजरात की जीत हिन्दुत्व के पक्षधरों की जीत है, इसमें कोई संदेह नहीं। (नवोत्थान लेख सेवा हिन्दुस्थान समाचार)

1 comment:

अनुनाद सिंह said...

भाजपा में मोदी जैसे नेता हर प्रदेश में विकसित किये जाने चाहिये; तभी देश का कल्याण होगा। विकास के घिसे-पिटे सूत्रों को त्यागकर नये और इन्नोवेटिव तरीकों को आजमाना होगा। भाजपा के लिये इस समय एक महान अवसर है और भारत के लिये विश्व में कुछ कर दिखाने का एक महान अवसर है। दूसरी पार्टियाँ भारत को गुलाम बनाये रखने के लिये हैं- कोई रोम की गुलामी पसन्द करेगा, कोई चीन की, कोई अरबस्तान की।