लेखक-नवल निराला
बिहार में नक्सली गतिविधियां एक बार फिर तेज हो गई हैं। पिछले कुछ महीनों में नक्सलियों ने बिहार में कई घटनाओं को अंजाम दिया है। 10 दिसम्बर की रात वैशाली के सुक्की में नक्सलियों ने हमलाकर तीन लोगों की हत्या कर दी। जमुई में नक्सलियों द्वारा दो व्यवसायियों तथा शिवहर में एक दफादार की हत्या के साथ ही देव (औरंगाबाद) में चौकीदार को अपहृत कर पीटने, गया में डायनामाइट से किसानों के घर उड़ाने, लखीसराय में रेल पटरी को क्षतिग्रस्त करने तथा रून्नी सैदपुर (सीतामढ़ी) की ताजा घटना से स्पष्ट है कि राज्य में नक्सली तेजी से पांव पसार रहे हैं। इससे पूर्व गोपालगंज स्टेशन कांड, मनियापुर (राजेपुर) कांड, मसही (सारण) कांड, सीतामढ़ी का रीगा कांड तथा पूर्वी चंपारण का चर्चित मधुबन कांड बिहार में नक्सलियों के बढ़ते दु:साहस का परिचायक है। उपरोक्त सभी घटनाओं में बिहार पुलिस नक्सलियों को पकड़कर उन पर कार्रवाई करने में विफल रही है। यद्यपि रीगा में तैनात सशस्त्र बलों ने वहां घटना को नाकाम कर दिया था तथा नक्सली अपने मंसूबे में पूरी तरह असफल रहे थे। लेकिन परिस्थिति ऐसी बनती दिख रही है कि राज्य में जहानाबाद जेल ब्रेक कांड की पुनरावृति हो जाये, तो कोई आश्चर्य नहीं। रीगा कांड में जिस तरह खुफिया तंत्र की विफलता उजागर हुई, उससे इस तरह की घटना से इंकार नहीं किया जा सकता। मालूम हो कि जहानाबाद जेल ब्रेक कांड में नक्सली पूरे जेल पर कब्जा कर वहां बंद अपने साथियों को भगा ले गये थे। तब नक्सलियों के साथ ही जेल में बंद अन्य अपराधी भी जेल से भाग निकलने में सफल हुए थे। पश्चिम चंपारण, पूर्वी चंपारण, शिवहर, सीतामढ़ी जैसे सीमावर्ती जिले इन दिनों नक्सलियों के निशाने पर हैं। इन जिलों में बढ़ी नक्सली गतिविधियों तथा उनकी कारगुजारियों से पुलिस के साथ ही इलाके के लोग भी दहशत में हैं। इन इलाकों में नक्सलियों द्वारा पोस्टर चिपकाकर लोगों को धमकी देने की घटना आम हो गयी है।
दो दशक पूर्व उत्तर बिहार में मुजफ्फरपुर का मुसहरी तथा मीनापुर प्रखंड ही नक्सलियों का केन्द्र हुआ करता था। लेकिन इस दौरान नक्सलियों ने अपनी शक्ति बढ़ाकर अपने कार्यक्षेत्र का व्यापक विस्तार किया है। अब वे मुजफ्फरपुर से निकलकर पश्चिम में नरकटियागंज से लेकर पूर्व में सीतामढ़ी तक फैल गये हैं।
नरकटियागंज, मोतिहारी, रक्सौल, घोड़ासहान, आदापुर, वैरगनियां, ढेंग, मेजरगंज, पुरनहिया, शिवहर, सोनबरसा तथा सीतामढ़ी माओवादियों के आसान लक्ष्य बने हैं। गत वर्षों में पूर्वी चंपारण का मधुबन कांड, शिवहर के पुरनहिया तथा पिपराही में पुलिस-नक्सली मुठभेड़ तथा वैशाली- जंदाहा बैंक लूट कांड की घटनाओं को नक्सलियों ने अंजाम दिया था। इनमें मधुबन कांड एक बड़ी घटना थी। तब नक्सलियों के मुखालफत के कारण सांसद सीताराम सिंह उनके निशाने पर थे। यद्यपि उस घटना में सीताराम सिंह को कुछ नहीं हुआ। लेकिन जिस तरह उनके आवास, बैंक तथा थाने पर नक्सलियों ने भारी उत्पात मचाकर लूट-पाट, हिंसा की, वह दिल दहला देने वाली थी।
इन दिनों नेपाल से सटा सीमावर्ती इलाका भी नक्सलियों के लिए अभ्यारण्य बन गया है। जहां सीमा पार के माओवादियों से भी उन्हें भारी समर्थन मिल रहा है। भारत तथा नेपाल, दोनों तरफ के माओवादियों में आपसी तालमेल है। भारत-नेपाल सीमा के खुली रहने का लाभ भी इन माओवादियों को मिल रहा है। नेपाल में शाही सेनाओं द्वारा सख्ती किये जाने पर नेपाली माओवादी भारतीय सीमाओं में आ छुपते हैं और बिहार पुलिस द्वारा धर-पकड़ तेज की जाती है, तब यहां के माओवादी सीमा पार भाग जाते हैं। इसके अलावा इन माओवादियों के तार आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा झारखण्ड के नक्सलियों से भी जुड़े बताये जाते हैं। जहां से इनको भारी समर्थन के साथ ही हथियारों की भी आपूर्ति होती है।
बहरहाल, बिहार का सीमावर्ती इलाका नक्सलियों का केन्द्र बना हुआ है। नक्सली तथा माओवादी आये दिन नई-नई घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। इस कारण पुलिस प्रशासन के साथ ही आम जनता भी दहशत में है। सरकार को चाहिए कि वह अपने खुफिया तंत्र के जाल को और अधिक विकसित करे। साथ ही, नक्सलियों की धर-पकड़ तथा उनके साथ कठोरता की कार्रवाई अनवरत चलती रहनी चाहिए। साभार- पांचजन्य
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