सरकार जीत गई लेकिन सोनिया-मनमोहन सिंह की जोड़ी इतना तो जानती ही है कि संसद में जीत के बावजूद भी जनता में उसकी पराजय हुई है और जनता इस बात को अच्छी तरह जानती है कि सोनिया गांधी के नियंत्रण वाली सरकार यूरोप और अमेरिका के हितों की रक्षा के लिए भारत के पूरे परमाणु कार्यक्रम को अमेरिका के पास गिरवी रखने जा रही है। इसलिए अमेरिका के साथ मिलकर इन दोनों ने नाटक का दूसरा हिस्सा बियाना में प्रारंभ किया।
सरकार जीत गई लेकिन सोनिया-मनमोहन सिंह की जोड़ी इतना तो जानती ही है कि संसद में जीत के बावजूद भी जनता में उसकी पराजय हुई है और जनता इस बात को अच्छी तरह जानती है कि सोनिया गांधी के नियंत्रण वाली सरकार यूरोप और अमेरिका के हितों की रक्षा के लिए भारत के पूरे परमाणु कार्यक्रम को अमेरिका के पास गिरवी रखने जा रही है। इसलिए अमेरिका के साथ मिलकर इन दोनों ने नाटक का दूसरा हिस्सा बियाना में प्रारंभ किया।45 देशों का परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह है। इस समूह में इस बात का निर्णय होना था कि भारत को परमाणु व्यापार की छूट दी जाए या नहीं। यह छूट 34 वर्ष पहले तब लगी थी जब 1974 में इन्दिरागांधी की नेतृत्व में भारत ने परमाणु विस्फोट किया था। अब यह जरूरी था कि परमाणु आपूर्ति समूह सभी पात्र देश ऐसा व्यवहार करे और भारत को यह छूट देने का डटकर विरोध करें। जितने जोर से यह विरोध करेंगे मीडिया उतनी ही तेजी से उसका ऑंखों देखा हाल प्रसारित करता रहेगा। धीरे-धीरे इन नटों के व्यवहार से ऐसा वातावरण बन जाएगा। मानो सभी देश अमेरिका और भारत के इस परमाणु समझौते का विरोध कर रहे हैं तो जाहिर है कि भारत की जनता को लगेगा कि यह समझौता भारत के हितों में है इसीलिए चीन, आस्ट्रिया, न्यूजीलैण्ड और न जाने कितने लैण्ड इसका विरोध कर रहे हैं। यदि यह विरोध समाप्त हो जाता है और परमाणु आपूर्ति समूह के देश भारत को परमाणु व्यापार करने की छूट दे देते है तो इसका अर्थ होगा कि भारत की जीत हुई है और विश्व जनमत भारत के आगे झुक गया है। जाहिर है कि इसका सारा श्रेय सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह को दिया जाएगा। इसका अर्थ यह हुआ कि जो लोग परमाणु समझौते का विरोध कर रहे थे वे भारत के हितों के खिलाफ थेऔर जो लोग इसका समर्थन कर रहे थे। वे भारत के हितों की रक्षा कर रहे थे। अमेरिका और मनमोहन सिंह ने बड़ी खूबसूरती से इस नाटक की स्क्रिप्ट तैयार की और परमाणु आपूर्ति समूह के हाथों में थमा दी। फिर यह ड्रामा कई दिन चला। जिस पात्र को बोलने के लिए जो डायलॉग दिए गए थे वे ईमानदारी से उन्हें बोलता रहा। लेकिन इस कथा का अंत सभी जानते थे। जैसे दस दिन चलने वाली रामलीला को लोग उत्सुकता से देखते भी रहते हैं। पात्रों के संवादों पर हस्ते भी हैं और रोते भी हैं लेकिन उन्हें कथा का अंत पहले से ही मालूम होता है। इस कथा का अंत भी निश्चित था क्योंकि कथा का सूत्रधार अमेरिका था। धीरे-धीरे नाटक का पटाक्षेप होने लगा और जो पात्र 4 दिन पहले अंगद की तरह अपने पांव फटकार रहे थे। वे भी नए पथ्य में जाने लगे कथा का अंत मनमोहन सिंह भी जानते थे बुश भी जानते थे और सोनिया गांधी को तो इस पूरे नाटक में भर्ती ही इसलिए किया गया था कि वे संकट के इस काल में भारत के सत्ता सूत्रों पर बरकरार रहे। जैसे ही नाटक का अंत हुआ तो पूरा मीडिया तालियां बजाने लगा भारत की जीत हुई है। भारत की जीत हुई है। ये तालियां टीवी चैनलों पर भी देखी जा सकती है। प्रिंट मीडिया पर भी और सोनिया गांधी के घर के आगे तो नृत्य करने वालों का जमावड़ा है। भारतीय परंपरा में मिरासी मनोरंजन करने के काम आते हैं नीति निर्धारण करने के लिए नहीं इन तालियों से लोगों को यह भ्रम नहीं हो सकता कि ये समझौता भारत के हित में है। क्योंकि जब यह नाटक चल ही रहा था तो घर के एक भेदी ने भांडा फोड़ कर दिया। बुश का अमेरिकी संसदों के नाम लिखा वह पत्र जगजाहिर हो गया जिसमें उन्होंने स्पष्ट कहा है कि यदि भारत परमाणु विस्फोट करता है तो यह समझौता टूट जाएगा। अमेरिका को इस बात की दाद देनी चाहिए कि यह चिट्ठी जाहिर होने के बाद उसने उसे छिपाने की कोशिश नहीं की बल्कि यह कहा कि यह चिट्ठी कोई बड़ा रहस्य नहीं है इसमें जो भी लिखा गया है वह अमेरिका ने भारत सरकार को पहले ही बता दिया था इसका अर्थ यह हुआ कि जब मनमोहन सिंह संसद में दम ठोककर यह कह रहे थे कि अमेरिका ने ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है और भारत भविष्य में अपने सामरिक हितों के लिए परमाणु विस्फोट करने के लिए स्वतंत्र है तो वह जानते थे कि वे झूठ बोल रहे हैं। दुर्भाग्य से जब भारत अपनी सामरिक स्थिति को लेकर संकट में घिरा हुआ है तो उसके सत्ता सूत्र एक ऐसी इतावली महिला के हाथ में है जिन्होंने भारत के हितों को व्हाईट हाऊस के पास गिरवी रख दिया है।
यह ध्यान रखना चाहिए कि यदि भारत भविष्य में परमाणु विस्फोट करता है तो यह जरूरी नहीं है कि अमेरिका समझौता रद्द करने तक ही सीमित रहे वह देश के अंदर भी आ सकता है वह ईराक में आ चुका है, अफगानिस्तान के भीतर है और पाकिस्तान की सीमाओं का अतिक्रमण कर चुका है। उसका कहना है कि वह सबकुछ आतंकवाद की समाप्ति के लिए कर रहा है और आतंकवाद कहा है इसका निर्णय भी वह स्वयं ही करता है।
यह ध्यान रखना चाहिए कि यदि भारत भविष्य में परमाणु विस्फोट करता है तो यह जरूरी नहीं है कि अमेरिका समझौता रद्द करने तक ही सीमित रहे वह देश के अंदर भी आ सकता है वह ईराक में आ चुका है, अफगानिस्तान के भीतर है और पाकिस्तान की सीमाओं का अतिक्रमण कर चुका है। उसका कहना है कि वह सबकुछ आतंकवाद की समाप्ति के लिए कर रहा है और आतंकवाद कहा है इसका निर्णय भी वह स्वयं ही करता है। जब भारत भविष्य में परमाणु विस्फोट करेगा तो अमेरिका को उसका यह कदम आतंकवाद की ओर बढ़ता हुआ दिखाई नहीं देगा। इस बात की क्या गारंटी है? अपने इन्हीं षडयंत्रों को छिपाने के लिए और भारत की जनता को गफलत में रखने के लिए श्रीमती सानिया मायनो और जॉर्ज बुश को बियाना में इतना लंबा नाटक करना पड़ा पर भारत के लोगों को भविष्य में पर्दे की पीछे छिपे रहस्य को देख लेने की क्षमता विकसित करनी होगी। (नवोत्थान लेख सेवा हिन्दुस्थान समाचार)
No comments:
Post a Comment