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Saturday, 13 September 2008

भारत में फैलता 'लाल गलियारा'


लेखक- संदीपसिंह सिसोदिया

इस समय माओवादी तत्व भारत और नेपाल में अपने चरम पर है और चीन की मदद से भूटान और भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में सक्रिय उग्र संगठनों से हाथ मिलाकर नेपाल के पशुपतिनाथ से लेकर तमिलनाडु के तिरुपति तक 'लाल गलियारा' बनाने की जुगत में लगे हैं।
रूसी क्रांति से प्रेरित नक्सलवादी विचारधारा के लोगों के लिए 'नक्सलवाद' मार्क्‍सवाद-लेनिनवाद-माओत्सेतुंगवाद के क्रांतिकारी पर्याय के रूप में जाना जाता रहा है। नक्सलवाद के समर्थक मानते हैं कि प्रजातंत्र के विफल होने के कारण नक्सली आंदोलन का जन्म हुआ और मजबूर होकर लोगों ने हथियार उठाए, लेकिन वास्तविकता यह है कि नक्सली आंदोलन अपने रास्ते से भटक गया है इसका तात्कालिक कारण है न व्यवस्था सुधर रही है और न इसके सुधरने के संकेत हैं, इसलिए नक्सली आंदोलन बढ़ रहा है। इसमें होने वाली राजनीति को देख सोचना पड़ता है कि वर्ग संघर्ष बढ़ाने के पीछे राजनीति है या राजनीति के कारण वर्ग संघर्ष बढ़ा है।

इस समय माओवादी तत्व भारत और नेपाल में अपने चरम पर है और चीन की मदद से भूटान और भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में सक्रिय उग्र संगठनों से हाथ मिलाकर नेपाल के पशुपतिनाथ से लेकर तमिलनाडु के तिरुपति तक 'लाल गलियारा' बनाने की जुगत में लगे हैं।

बंदूक जिनके लिए राजनीति है और सशस्त्र राजनीतिक संघर्ष के जरिए भारत में नव-जनवादी क्रांति जिनका सपना है, वे हथियार छोड़ेंगे नहीं और उनकी उठाई माँगें पूरा करना फिलहाल सरकार के बस में नहीं दिखता, मगर एक बात ध्यान में रखना चाहिए कि केवल विध्वंस करना ही क्रांति नहीं है, क्रांति निर्माण करने का नाम भी है।
कुछ समय पहले तक नक्सलवाद को सामाजिक-आर्थिक समस्या माना जाता रहा है, मगर अब इसने चरमपंथ की शक्ल अख्तियार कर ली है। नक्सलवाद का जन्म पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले में नेपाल की सीमा से लगे एक कस्बे नक्सलबाड़ी में गरीब किसानों की कुछ माँगों जैसे कि भूमि सुधार, बड़े खेतीहर किसानों के अत्याचार से मुक्ति्त को लेकर शुरू हुआ था। वर्तमान में नक्सलियों के संगठन पीपुल्स वार ग्रुप और माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) दोनों संगठन मुख्यत: बिहार, झारखंड, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ में सक्रिय हैं, जिनका शुमार गरीब राज्यों में होता है। पीडब्लूजी का दक्षिणी राज्य आंध्रप्रदेश के पिछड़े क्षेत्रों में बहुत प्रभाव है। नक्सलवादी नेता का आरोप है कि भारत में भूमि सुधार की रफ्तार बहुत सुस्त है। उन्होंने ऑंकड़े देकर बताया कि चीन में 45 प्रतिशत जमीनें छोटे किसानों में बाँटी गई हैं तो जापान में 33 प्रतिशत, लेकिन भारत में आजादी के बाद से तो केवल 2 प्रतिशत ही जमीन का आवंटन हुआ है। एमसीसी और पीडब्लूजी संगठनों की हिंसक गतिविधियों के चलते इनसे प्रभावित कई राज्यों ने पहले ही प्रतिबंध लगा रखा है। इनमें बिहार और आंध्रप्रदेश प्रमुख हैं। इन राज्यों के खेतीहर मजदूरों के बीच इन चरम वामपंथी गुटों के लिए भारी समर्थन पाया जाता है। इस खेप में अब छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश भी आ चुके है। छत्तीसगढ़ का बस्तर जिला, जिसकी सीमाएँ आंध्रप्रदेश से लगी हुई हैं, में नक्सलवादी आंदोलन गहरे तक अपनी पैठ जमा चुका है। प.बंगाल से शुरू हुआ नक्सलवाद अब उड़ीसा, झारखंड और कर्नाटक में भी पैर पसार चुका है। प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह भी इस पर अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं और इससे निपटने के लिए केन्द्र से हर सम्भव सहायता देने का वादा कर चुके हैं, पर अब तक वाम दल की बैसाखियों पर चल रही सरकार को बचाने में लगे प्रधानमंत्री और सरकार की ढुल-मुल नीतियों से फायदा उठाकर हाल ही में नक्सलवादियों ने पुलिस और विशेष दल के जवानों पर घात लगाकर किए जाने वाले हमले एकाएक बढ़ा दिए हैं। दुनिया के एकमात्र हिन्दू राष्ट्र को खत्म कर इस समय माओवादी तत्व भारत और नेपाल में अपने चरम पर है और चीन की मदद से भूटान और भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में सक्रिय उग्र संगठनों से हाथ मिलाकर नेपाल के पशुपतिनाथ से लेकर तमिलनाडु के तिरुपति तक 'लाल गलियारा' (रेड कॉरिडोर) बनाने की जुगत में लगे हैं।

इस 'लाल बेल्ट' में उत्तर भारत के बिहार और उत्तरप्रदेश (नेपाल से लगी सीमा) से लेकर प. बंगाल, झारखंड, उड़ीसा, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश, कर्नाटक तथा तमिलनाडु शामिल हैं। माओवादियों की पूरी कोशिश है कि इस लाल गलियारे को पूरी तरह अस्तित्व में लाकर भारत को विभक्त कर दें। इनकी मंशा है कि दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों को भारत से अलग किया जा सके तथा पूर्वोत्तर राज्यों को भी भारत से अलग किया जा सके, ताकि चीन अपना शिकंजा इन राज्यों पर जमा उन्हें तिब्बत की भाँति हड़प ले। जनता सरकार (जन सरकार) का नारा देकर नक्सली प्रभावित क्षेत्रों में नक्सलियों ने अपनी समानांतर सरकार और न्याय व्यवस्था शुरू कर दी है। गोरिल्ला लड़ाई में माहिर नक्सलवादी और माओवादी पुलिस और सुरक्षा बलों पर योजनाबध्द तरीकों से हमले कर उन्हें अपना निशाना बनाते हैं। उनकी रणनीति और युध्द योजना के आगे अल्प प्रशिक्षित पुलिस बल पुराने हथियारों और तरीकों से चलते बेबस नजर आता है।

हाल ही में आंध्रप्रदेश में नक्सलियों से निपटने के लिए बनाए गए 'विशेष ग्रे-हाउंड दस्ते' की नौका पर हाई कैलिबर की मशीनगन से घात लगाकर हमला किया गया। यह हमला इतना सुनियोजित था कि तैरकर बच निकलने की कोशिश करते ग्रे-हाउंड के जवानों को भी किनारे पर बैठे नक्सली शार्प-शूटर्स अपनी गोलियों का निशाना बनाते रहे। इसी तरह उड़ीसा के मलकानगिरी में सुरक्षाबल का एंटी-माइन वाहन भी हाई एक्सप्लोसिव से उड़ा दिया गया और धमाके में बचे जवानों पर घात लगाकर बैठे नक्सलियों ने हमला कर दिया। इसमें 21 जवानों की मौत हो गई। यह चरमपंथी अपनी कार्रवाई करने के बाद दूसरे राज्यों की सीमा में भाग जाते हैं और जब तक उस राज्य की सरकार कुछ कदम उठाए, तब तक नक्सली कानून की पकड़ से काफी दूर निकल जाते हैं। इस तरह की रणनीति अधिकतर दक्षिण-पूर्व एशिया की सेनाएँ बनाती हैं। इनके हथियार, गोलाबारूद के कैलिबर व सैन्य रणनीति इस बात के पुख्ता सबुत है कि इन नक्सलियों को विदेशी ताकत का समर्थन मिल रहा है। अंतरराष्ट्रीय संबंध : भारत के इस सशस्त्र वामपंथी आंदोलन ने पिछले कुछ वर्षों में अंतरराष्ट्रीय संपर्क भी विकसित किए हैं। वर्ष 2001 में दक्षिण एशिया के 11 मार्क्‍सवादी-लेनिनवादी संगठनों ने मिलकर एक संगठन बनाया सी. कॉम्पोसा यानी कॉर्डिनेशन कमेटी ऑफ माओइस्ट पार्टीज ऑफ साउथ एशिया। इसमें मुख्य भूमिका नेपाल की सीपीएन (माओवादी) की है। यहाँ तक कहा जाता है कि किसी जमाने में एक-दूसरे के कट्टर विरोधी रहे पीपल्सवार और एमसीसीआई को नजदीक लाने में भी सीपीएन (माओवादी) की महत्वपूर्ण भूमिका थी। माओवादी पार्टी का संपर्क और समन्वय नेपाल, बांग्लादेश, भूटान और श्रीलंका के सशस्त्र क्रांतिकारी संगठनों से है। जानकार इसे नेपाल से लेकर आंध्रप्रदेश के समुद्र तट तक 'माओवादी बेस एरिया' बनाने की इस संगठनों की भविष्य की रणनीति के रूप में देखते हैं। विडम्बना यह है कि भारत सरकार नक्सलवाद से निपटने के लिए न तो वैचारिक रूप से तैयार है न ही इसे खत्म करने के लिए द़ढ मानसिकता बना पा रही है। पुराने कानून और लचर प्रशासनिक ढाँचे के साथ बेमन से लड़ी जा रही इस लड़ाई में सफलता के लिए एक विस्तृत योजना, कारगर रणनीति और प्रशिक्षित बल की आवश्कता है। सबसे ज्यादा आवश्यकता ऐसे नेतृत्व की है, जिसमें इस समस्या को समूल नष्ट करने की इच्छाशक्ति और विश्वास हो। इस समस्या से निपटने का सबसे कारगर तरीका है कि सबसे पहले नक्सली प्रभावित राज्य मिलकर एक टास्क फोर्स का गठन करें, जिसे सभी राज्यों में कार्रवाई की स्वतंत्रता हो। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शिक्षा और जनहित के कार्यों र्को प्राथमिकता से कराया जाए। नेपाल से लगी सीमा पर चौकसी बढ़ाई जाए, जिससे हथियारों और गोला-बारूद की आपूर्ति पर रोक लगे। ऐसे स्थानीय तत्वों की पहचान करें, जो नक्सलियों को मदद देते हों। इस समस्या से निजात पाने के लिए सबसे जरूरी है जन-साधारण का समर्थन और विश्वास हासिल किया जाए। बंदूक जिनके लिए राजनीति है और सशस्त्र राजनीतिक संघर्ष के जरिए भारत में नव-जनवादी क्रांति जिनका सपना है, वे हथियार छोड़ेंगे नहीं और उनकी उठाई माँगें पूरा करना फिलहाल सरकार के बस में नहीं दिखता, मगर एक बात ध्यान में रखना चाहिए कि केवल विध्वंस करना ही क्रांति नहीं है, क्रांति निर्माण करने का नाम भी है।

सौजन्य: वेब दुनिया

2 comments:

Dr. Amar Jyoti said...

लाल गलियारा भारत में फैल रहा है और आपका "हिन्दू" गलियारा तो नेपाल से भी सिमट गया। थोड़ा ध्यान दें तो देखेंगे कि लाल गलियारा तो लातीनी अमेरिका में भी फैल रहा है। क्या करें? घोर कलियुग है। अब मैं काह करूं कित जाऊं।

Sumit Karn said...

हिंसा के विरूद्ध जनयुद्ध की जरूरत है। तभी हम मानवता को कलंकित करनेवाले इस गिरोह से मुक्ति पा सकेंगे, जैसे कि छत्‍तीसगढ में आदिवासी इसके विरूद्ध एकजुट हो गए है।