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Sunday 28 September, 2008

आज जरूरत है राष्ट्र आराधना की

कम्युनिज्म के पंडे

-बाबा नागार्जुन

आ गये दिन एश के!

मार्क्स तेरी दाड़ी में जूं ने दिये होंगे अंडे

निकले हैं, उन्हीं में से कम्युनिज्म के चीनी पंडे

एक नहीं, दो नहीं तीन नहीं, बावन गंडे

लाल पान के गुलाम ढोयेंगे हंडे

सर्वहारा क्रांति की गैस के

आ गये अब तो दिन ऐश के

ठी-ठी-ठीमचा रहे ऊधम बहोत

शांति के कपोत

पीले बिलौटे ने मार दिया पंजा

सर हुआ घायल लेनिन का गंजा

हंसता रहा लिउ शाओ ची

फी-फी-फी

मित्रों,

कुछ दिन पहले कनॉट प्लेस, करोल बाग, गफ्फार मार्केट और बाराखंभा रोड में सिरियल बम ब्लास्ट हुए।

आज महरौली में बम ब्लास्ट हुआ। कल कहीं और हो सकता है। अगर इसी तरह आतंकवादियों के समर्थन में तथाकथित बुध्दिजीवी उतरते रहे तो उनके हौसले बुलंद होते रहेंगे। इस कैम्पस में भी आतंकवादियों के समर्थन में वामपंथी लगातार खड़े होते रहे हैं। ऐसे में हमें उनके नापाक इरादों को बेनकाब करने की जरूरत है।
आज महरौली में बम ब्लास्ट हुआ। कल कहीं और हो सकता है। अगर इसी तरह आतंकवादियों के समर्थन में तथाकथित बुध्दिजीवी उतरते रहे तो उनके हौसले बुलंद होते रहेंगे। इस कैम्पस में भी आतंकवादियों के समर्थन में वामपंथी लगातार खड़े होते रहे हैं। ऐसे में हमें उनके नापाक इरादों को बेनकाब करने की जरूरत है।

क्या सीता हरण के अभियुक्त रावण को आतंकवादी कहा जा सकता है? अश्वत्थामा, आचार्य द्रोण के सपूत, हजारों बौध्दों की हत्या का उत्तारदायी पुष्यमित्र शुंग, इत्यादि सबको क्या आतंकवादी की श्रेणी में डाला जा सकता है? हे प्रश्न पूछने वाले मार्क्‍स पुत्रों।

शर्म करो अपने वैचारिक व मानसिक स्तर पर। क्यों वयस्क जीवन में प्रवेश करके भी मासूम सा सवाल पूछते हो? तेरे मासूम सवालों से हैरान हैं हम। क्या रावण, अश्वत्थामा, पुष्यमित्र शुंग में कोई सम्बन्ध था? क्यों सतयुग, द्वापर, त्रेता और कलियुग चार युगों को एक सूत्र में पिरोने का प्रयास करके अपना समय व्यर्थ कर रहे हो! क्या तुम अपने पूज्य ग्रंथ बैलिस्ट मैनिफेस्टो में विभिन्न स्थानों में वर्णित द्वंद्वात्मक भौतिकवाद को भूल गये?

हम कहना यह चाहते हैं कि हिंसा, हत्या, घृणा और बर्बरियत का हर कौम से ताल्लुक होता है परन्तु इन विशिष्ट गुणों की तीव्रता व उस तीव्रता को प्रदर्शित करने के उद्देश्य में खाई जैसा अंतर होता है। रावण, अश्वत्थामा इत्यादि सभी व्यक्तियों ने ये गुण किसी विशेष कौम के विरुध्द नहीं प्रयोग किये। वे इन गुणों का प्रदर्शन व्यक्तिगत स्तर पर व्यक्तिगत शत्रुओं के विरुध्द करते रहे। परन्तु जब किसी कौम विशेष का मकसद इन गुणों को प्रयोग कर किसी दूसरी कौम का नामोनिशान मिटाने के लिए किया जाता है तो यह ही आतंकवाद कहलाता है। हे मार्क्‍सपुत्रों/पुत्रियों, अब शायद तुम्हारी समझ में आ गया होगा कि आतंकवाद किसी व्यक्ति के विरुध्द प्रयोग नहीं किया जाता। यह एक पूरे समुदाय के विरुध्द प्रयोग होने वाला शस्त्र है। व्यक्ति इस शस्त्र की चपेट में मात्र इसलिए आ जाता है कि समुदाय पराभौतिक वस्तु (Imagine community) की श्रेणी में आता है, जिसे आप छूकर, देखकर पहचान नहीं सकते। एक दूसरे तरह से यों कहा जा सकता है कि जैसे नक्सलवाद एक व्यक्ति विशेष के विरुध्द न होकर पूरी व्यवस्था के विरुध्द एक हिंसक आंदोलन है वैसे ही इस्लामिक आतंकवाद भी भारत के तमाम स्वदेशी संप्रदायों जैसे हिंदू, सिख, बौध्द, जैन इत्यादि के विरुध्द एक हिंसक आंदोलन है। अत: दोनों ही आतंकवाद की श्रेणी में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं।

दूसरा प्रश्न यह है कि ''सारे आतंकवादी मुसलमान क्यों हैं?'' पुन: एक और मासूम सवाल! अब यह भी बताने की जरूरत है कि खिलाफत आंदोलन के दौरान भी ऐसे ही प्रश्न हिन्दू जनमानस के मन में आये थे कि आखिर क्यों हिन्दुस्तान के मुस्लिम भाइयों को खलीफा के साम्राज्य के बिखरने का ज्यादा दर्द है बजाय अपनी मातृभूमि के संकटों के। ऐसे प्रश्न अनुत्तारित ही छोड़ दिये जायें तो बेहतर है। परन्तु प्रश्न तो आखिर प्रश्न हैं। हम आपसे ही जवाब मांगते हैं कि आखिर क्यों पूरे भारत में विस्फोट पर विस्फोट हुए जा रहे हैं? अब आप पुन: कहेंगे कि संघ वाले भी तो ऐसा कर रहे हैं। तो भाई, आप बतायें क्या करें संघ वाले? जब मन आये दीवाली मनाइएगा, खून की होली खेलिएगा तो क्या हम चुप बैठ पाएंगे? नहीं, और आपको लगे हाथ सूचित भी कर दें कि अभी आगे बहुत लम्बी लड़ाई है। अब नानावटी कमीशन जिस जांच पड़ताल के लिए बनाया गया था वह पूरा करने के लिए भी आपकी राय लेगा? महज आपके कहने से ही रिपोर्ट बदल दी जाएगी कि नहीं डिब्बे में स्वयंसेवक खाना बना रहे थे? न्यायिक प्रक्रिया की पोल खोलने के लिए क्या इतना काफी नहीं कि अफजल जैसे लोग अभी भी सरकारी मेहमानवाजी का लुत्फ उठा रहे हैं? और रही बात बाप-बेटी की तरह रह रहे पादरी और नन की, तो कैसे बाप बेटी थे ये लोग वह हमें भी खूब मालूम है। शायद ठीक उसी तरह जैसे दो विपरीत लिंगी कॉमरेड ..... नहीं शायद दो कदम पीछे ही, आगे नहीं।

रही बात लाश दिखाने की, तो हे मार्क्‍स पुत्रों जिस प्रकार पार्टी हित में तथाकथित शीर्षस्थ पदाधिकारियों द्वारा लिए गए निर्णय और उनके कारण सार्वजनिक नहीं किये जाते, ठीक उसी प्रकार राष्ट्रहित में कुछ बातें, निर्णय सार्वजनिक नहीं की जातीं। तुम्हारी समझ को और विस्तृत बनाने के लिए तुम्हें बतायेंगे कि चीन में वर्ष 2007 में किसानों द्वारा 20,000 से भी अधिक विरोध प्रदर्शन, विद्रोह जिन्हें विश्व समुदाय के सामने नहीं आने दिया गया, या फिर KGB के क्रियाकलाप।

मित्रो! पत्रकारिता, मीडिया, इन्टेलेक्चुअल वर्ग की निष्पक्षता पर तो आप सभी को यकीन होगा! देश के सारे महत्वपूर्ण समाचार पत्र, टी।वी। चैनल्स और बौध्दिक डिस्कोर्स वामपंथी जागीर बने हुए हैं। इतिहास में उस अकबर को महान बताया जाता है जो राणा प्रताप के खिलाफ जीत हासिल करने पर इसे काफिरों के खिलाफ इस्लाम की जीत बताता है; तो वहीं सिख गुरुओं को लुटेरा बताया जाता है। आज आवश्यकता है तो ऐसे बौध्दिक वर्ग का प्रखर विरोध करने की; ऐसे पक्षपातपूर्ण इतिहास की पुस्तकों की होली जलाने की। हमने 1947 में अभी सिर्फ भौतिक आजादी पाई है। हमारी बौध्दिक आजादी आज तक मैकाले, मार्क्‍स के द्वारा प्रदान की गई पश्चिमी विचारधारा की गिरफ्त में है। मित्रों आइये इस गोरी चमड़ी की गोरी विचारधारा को उखाड़ फेकें।

आखिर राष्ट्र किस दिशा में जा रहा है? अल्पसंख्यक तुष्टीकरण अपनी चरमसीमा पर पहुंच गया है। इन्सपेक्टर शर्मा की शहादत पर सवाल उठाकर हर कोई अपने आपको बड़ा सेक्युलर साबित करने में लगा हुआ है। सेक्युलरिज्म को सिध्द करने के लिए इफ्तार पार्टियों में शिरकत करना आवश्यक हो गया है। धर्म को अफीम बताने वाले वामपंथी नेताओं के लिए उस समय धर्म क्या गांजा हो जाता है जिसका निरंतर सेवन कर ये लोग अपना शरीर और दिमाग यूरोपीय सभ्यता को गिरवी रख चुके हैं?रही बात किसानों की आत्महत्या, विस्थापन, आदिवासियों की समस्या, दलितों की पीड़ा...... तो सुनो, हे मार्क्‍सपुत्रों, वर्तमान काल में एक वस्तु जिसका नाम इन्टरनेट है, वहां पर जाकर गूगल (Google) नाम की वेबसाइट पर Sewa Bharati टाइप करके हमारा योगदान देखो। हे आर्यपुत्रों सेवाभारती, बालभारती, विद्याभारती, वनवासी कल्याण आश्रम, भारतीय मजदूर संघ इत्यादि चंद ऐसे संगठन हैं जो वर्ग विशेष की समस्याओं से ही जूझने का काम करते हैं। केन्द्रीयकरण में विकेन्द्रीकरण का यह अनूठा नमूना है जहां शीर्ष संगठन भविष्य के आने वाले संकटों के बारे में चिंता करता है, वहीं आनुषांगिक संगठनें अपने अपने कार्य क्षेत्र में वर्ग विशेष की समस्याओं का तत्काल निदान करती है। विद्याभारती आदिवासी क्षेत्रों में 1216 विद्यालयों के माध्यम से वनवासी बालिकाओं-बालकों को शिक्षा प्रदान कर रहा है।वैसे ये सब बातें तुम्हारे संज्ञान में न होने के भी कारण हैं ...... तुम जो काम करते हो वो काम कम, शोर ज्यादा होता है, आखिर मकसद जो वोट की फसल काटना होता है। हम जो काम करते हैं सेवाभाव से करते हैं। सेवाभाव अन्त:स्फुरित भावना है, वहीं राजनीति भाव खुराफाती-खलिहर दिमाग की उपज है।रही बात काम की, हमारे जो काम हैं, हम उनके प्रति दृढ़संकल्प हैं और आशान्वित भी। हिन्दुत्व हमारा लक्ष्य है और हमारा साधन उस लक्ष्य को पूरा करने के लिए। हिन्दुत्व हमारा संकल्प है और हमारी प्राणवायु जो हमें यह संकल्प लेने को प्रोत्साहित करती है। तुम्हारा वर्ग संघर्ष और साम्यवाद तो धूल फांक रहा है। यह तुम्हें भी पता है कि ये बातें किताबों में अच्छी लगती हैं इसलिए तुम अपना दिल बहलाने के लिए और छात्र समुदाय को भरमाने के लिए नाना प्रकार के नौटंकी, डेमो आयोजित करते रहते हो। OBC आरक्षण का डेमो सीरिज Vol 1 अपने आप में अनूठा रहा जहां तुम खुद अपनी आशा के विपरीत नयी आरक्षण व्यवस्था में OBC सीट की संख्या घटवाने में सफल रहे। तुम नित्यप्रति ऐसे ही विभिन्न आयोजनों से अपना मनोरंजन करते रहो क्योंकि तुमको भी यह खबर है कि साम्यवाद आने से रहा। वैसे अगर वाकई तुम्हारा हृदय टूट गया हो, गहरी निराशा छा गई हो तो, हिंदू धर्म की हिफाजत का ही कार्य क्यों नहीं प्रारम्भ करते हो? निठल्ले बैठने से विनाशकारी प्रश्न तुम्हारे मनोमस्तिष्क में घुमड़ते रहेंगे कहा भी गया है : खाली दिमाग शैतान का घर।

मित्रों, राष्ट्र के लिए राज्य है, राज्य के लिए राष्ट्र नहीं। वह राजनीति जो राष्ट्र को क्षीण करे अवांछनीय रहेगी। तुष्टीकरण का एकमात्र उद्देश्य राष्ट्र को क्षीण करना है। क्या हम तैयार हैं इस्लामिक राष्ट्र घोषित होने के लिए? क्या हम तैयार हैं अपनी माँओं, बहनों का बलात्कार होते देखने के लिए? क्या हम तैयार हैं शरीयत पर चलने के लिए? यदि नहीं, तो मित्रों, वर्तमान आतंकवाद और कुछ नहीं ऐसी ही एक व्यवस्था स्थापित करने की दिशा में वैश्विक इस्लामी ताकतों का प्रयास है। आज जरूरत है तो राष्ट्र आराधना की। इसलिए जो राष्ट्र के प्रेमी हैं वे राजनीति से उपर उठकर राष्ट्रभाव की आराधना करें। राष्ट्र ही एकमेव सत्य है। इस सत्य की उपासना सांस्कृतिक कर्म है। दीनदयाल उपाध्याय (राष्ट्र जीवन की दिशा)

वन्दे मातरम। भारत माता की जय॥

ह/ विनीत चतुर्वेदी, उपाध्‍यक्ष, ABVP, JNU
ह/ स्नेहा, उपाध्‍यक्ष, ABVP, JNU

दिनाँक: 27.09.2008 को जेएनयू में जारी विद्यार्थी परिषद का पर्चा

7 comments:

Sumit Karn said...

वामपंथ-माओवाद-इस्‍लामिक गठजोड ही भारत में आतंकवाद के फलने-फूलने का कारण है।

MANVINDER BHIMBER said...

aap ki baat se sahamat hun
achchi post ke liye dhanyawaag

फ़िरदौस ख़ान said...

हिन्दू आतंकवाद पर भी कोई पोस्ट लिखें तो अच्छा लगेगा...पहले गुजरात जला...अब उड़ीसा, कर्नाटक और महाराष्ट्र जल रहा है...लोगों का सरेआम क़त्ल किया जा रहा है...महिलाओं से सामूहिक बलात्कार कर उन्हें ज़िन्दा जलाया जा रहा है...यह कौन-सा राष्ट्रवाद है...? ज़रा स्पष्ट कर देंगे तो हमारे ज्ञान में इज़ाफ़ा हो जाएगा...

आपने हमारी नज़्म पर प्रतिक्रिया करते हुए काफ़ी कुछ लिखा था...आपका कहना था कि हिन्दुओं की सद्भावना के कारण ही भारत में मुसलमान रह रहे हैं...जनाब इसमें कौन-सी नई बात है...पूरा समाज ही एक-दूसरे सद्भावना के आधार पर रह रहा है...अपने ख़ुद ही गिनवाया कि दुनिया में मुस्लिम देशों की तादाद कितनी ज़्यादा है...इसी तरह ईसाई देश भी बहुत हैं...ज़ाहिर है इन देशों के हिन्दू वहां के मुसलमानों और ईसाइयों की सद्भावना के कारण ही वहां रहा पा रहे हैं...जिस तरह किसी भी घटना पर भारत में तुरंत प्रतिक्रिया करते हुए क़त्ले-आम शुरू हो जाता है, उसी तरह मुस्लिम और ईसाई देशों में भी प्रतिक्रियाएं होने लगें तो आप सोच सकते हैं कि एक क़ौम का तो नामो-निशान ही मिट जाएगा...

भारत में मुट्ठी भर लोग ही ऐसे हैं...जो हिंदुत्व के नाम पर आतंक फैलाते हैं...मैं किसी भी तरह के आतंक के खिलाफ़ हूं...इंसान को मज़हब के बजाय इंसानियत पर ज़ोर देना चाहिए...और यह बात सभी मज़हबों के लोगों पर लागू होती है...

सुनील सुयाल said...

आपका ये कहना की सभी देशो मै रहने वाले वह के मूल निवासियों की सदभावना के कारण ही वहा सुख शांति से रहते है! परन्तु बांग्लादेश,पाकिस्तान और अनेको मुस्लिम देश इसका अपवाद है वहा आपको इस प्रकार धार्मिक स्वतंत्रता नहीं है जेसी भारत मै ,उदाहरण के तौर पर "मेरी इक दोस्त यू.ऐ.इ मै रहती है मैंने उसे जनमाष्टमी की शुभ-कामना दी और पूछा की यू.ऐ.इ मै जनमाष्टमी केसे मनाते हो" तो "उसका जवाब आया नमाज पढ़ कर" यह तो इक व्यंगात्मक उदाहरण है पाकिस्तान और बांग्लादेश मै अनेको ऐसे वीभत्स उदाहरण है जिन्हें छापने मै हमारे तथाकथित धर्मनिरपेक्ष मीडिया को "साम्प्रदायिकता" के ठप्पे का भय सताने लगता है ........!किसी भी प्रकार के आतंक का विरोधी मै भी हू लेकिन जिन मुट्ठी भर लोगो पर आप हिंदुत्वा के नाम पर आतंक फेलाने का आरोप लगा रहे है !तो मै आपको चुनौती देकर यह कहता हू प्रत्येक कदम प्रतिक्रियावस उठाया गया है फिर वो चाहे उडीसा, मेंगलूर,हो या फिर गुजरात........इनकी भर्सना करने वालो को वस्तु-स्थिति मै झाकना चाहिए और लो-n-order की दुहाई देने वालो को अपने गिरेबान मै .............!

Unknown said...

@हिंसा, हत्या, घृणा और बर्बरियत का हर कौम से ताल्लुक होता है परन्तु इन विशिष्ट गुणों की तीव्रता व उस तीव्रता को प्रदर्शित करने के उद्देश्य में खाई जैसा अंतर होता है।

बिल्कुल सही बात है.

Unknown said...

फिरदौस जी, इन दंगों में हिंदू भी मरते हैं. कभी उन के लिए भी दुखी हो लिया कीजिए. आप जैसे वुद्धिजीवियों के लिए एक तरफा सोच और लेखन सही नहीं है.

सुनील सुयाल said...

फिरदोश जी आपकी कविता का जवाब :::::: किसी दार्शनिक ने कहा है "If u r in problem ,Go to the fundamentals" कब मारी है हिंद वालो ने आपको गोली, जब इस देश की माटी को अपना मानते हो तो क्यों विदेशी,क्रूर बाबर की मजार को संजोये हो,इसके लिए बाबर के काल से आज तक १३६ लडाईया हो चुकी है जब हम आपके भाई है तो ये आपका दायित्वा नहीं की तय करे की बाबर और राम मै किसको आत्मसात करे ...................?????????????????????????????