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एक कश्मीरी लेखक पृथ्वीनाथ कारदार का डायरी अंश
सुबह-सबेरे द्रोगमुला कुपवाड़ा के शाह मुहल्ला की मस्जिद में मोजज शाह खानदान के मुसलमान वाशिन्दा ने लाउड स्पीकर पर नमाज पढ़ी। नमाज के बाद तमाम मुसलमान मजमुआ को जमा करके ऐलान किया कि कश्मीर में अवलियाती फिरका हिन्दुओं, कश्मीरी पण्डितों को काफिर करार दिया गया है और मजहब इस्लाम में काफिर का कत्ल जायज करार दिया है। वादी में इस्लामी कानून (निजामे मुस्तफा) लागू हो गया है और कश्मीरी हिन्दुओं को कश्मीर से निकालने का हुक्म हुआ है। मैं इस्लामी बिरादरी को खबरदार करता हूं कि इन एलानशुदा हुक्मों पर जो कोई मुसलमान अमल नहीं करेगा, उसको मजहब इस्लाम का दुश्मन समझा जायेगा और उसका भी कत्ल किया जाएगा।
अगले दिन पता चला कि जिस वक्त द्रोगमुला की शाह मस्जिद में लाउड-स्पीकर के जरिये निजामे मुस्तफा के कायम का ऐलान हुआ, उसी वक्त दूर-दूर की हर एक मस्जिद में भी इस्लामी कट्टरपंथी रहबरों ने निजामे मुस्तफा के कायम और कश्मीरी पण्डितों के कत्ल का ऐलान किया। (19 जनवरी, 1990)
प्रेमनाथ शाद की कविता
अगले दिन पता चला कि जिस वक्त द्रोगमुला की शाह मस्जिद में लाउड-स्पीकर के जरिये निजामे मुस्तफा के कायम का ऐलान हुआ, उसी वक्त दूर-दूर की हर एक मस्जिद में भी इस्लामी कट्टरपंथी रहबरों ने निजामे मुस्तफा के कायम और कश्मीरी पण्डितों के कत्ल का ऐलान किया। (19 जनवरी, 1990)
प्रेमनाथ शाद की कविता
घर त्यागा/ और भागा
अर्जित, संचित सब कुछ त्यागा/ भागा
ठाकुर द्वारे पर नमन किया
शिव पर अश्रुधार बहायी/ भागा
भय आतंक निस्सहायता/ पागलपन
छाती को पाषाण बनाया/ भागा
कामधेनु को पहनायी माला
गेंदे की/ सूखा चारा मुट्ठी भर खिलाया गया
अन्दर की सांस अन्दर रोकी/
कण्ठ में सांकल लगायी भागा
नवजात बछड़े को
गले लगाया/ हौले से बांधा
चूमा और भागा।
गली में मुड़कर कन्धे के ऊपर से देखा/
यों मोह त्यागा/ भागा।
कवि महाराज कृष्ण की कविता
तम्बू में कैद
कंकड़ीली जमीन के बिस्तर पर
अपनी बाजू के तकिये
का सहारा लेती मेरी मां
रात के सन्नाटे में/ बदलती रहती है
जब करवट पर करवट
मुझे कश्मीर की याद बहुत सताती है
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