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Monday, 15 September 2008

भाजपा के राष्ट्रीय अध्‍यक्ष श्री राजनाथ सिंह का अध्यक्षीय भाषण


गत 12-13-14 सितम्बर, 2008 को भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक स्व0 जगन्नाथराव जोशी सभागार, बेंगलूरू, कर्नाटक में संपन्‍न हुई। बैठक के पहले दिन भाजपा के राष्ट्रीय अध्‍यक्ष श्री राजनाथ सिंह ने ओजस्‍वी एवं सारगर्भित अध्यक्षीय भाषण दिया, जिसकी मीडिया में काफी चर्चा हुई है। हम इस अध्यक्षीय भाषण का पूरा पाठ यहां प्रकाशित कर रहे हैं-
मित्रों, आज हम यहां कर्नाटक की धरती पर राष्ट्रीय कार्यसमिति के लिए एकत्रित हुए हैं। वैसे तो हर तीन महीने में राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक होती रहती है परन्तु आज इस कार्यसमिति का स्थान इसे भाजपा के इतिहास में एक ऐतिहासिक कार्यसमिति बनाने की क्षमता रखता है क्योंकि कर्नाटक में पहली बार भाजपा की सरकार के रहते हमारी राष्ट्रीय कार्यसमिति हो रही है। 1951 में जनसंघ की स्थापना से लेकर 1980 में भाजपा की स्थापना तक और वहां से लेकर आज तक हमारा एक स्वप्न था कि दक्षिण भारत में भाजपा की सरकार बने। वह आज साकार रूप में दिख रहा है और भाजपा की यह शीर्षस्थ सभा उसकी साक्षी है। एक समय था जब दक्षिण के चारों राज्यों में कांग्रेस की सरकारें हुआ करती थी। कर्नाटक का यह परिवर्तन दक्षिण भारत की राजनीति में एक नये युग में परिवर्तन का प्रतीक है।
मित्रों, इतिहास जब करवट बदलता है तो अनेक प्रकार की चुनौतियों को लेकर आता है। आज भी हम ऐसा ही कुछ देख रहे हैं। एक तरफ भारत में आर्थिक उन्नति और विकास की असीम संभावनाएं दिख रही हैं तो दूसरी तरफ देश भर में हर कोने में लगभग सभी प्रमुख शहरों में एक के बाद एक सिलसिलेवार ढंग से होते हुए आतंकवादी हमले देख रहे हैं।


विगत तीन माह में राष्ट्रीय राजनीति की सबसे बड़ी घटना यूपीए सरकार का संसद में विश्वास मत प्राप्त करना रही। परन्तु यह विश्वास मत जिस प्रकार से प्राप्त किया गया उसने लोकतांत्रिक व्यवस्था एवं संसदीय लोकतंत्र के विश्वास की नींव हिला दी। विगत 22 जुलाई को कांग्रेसनीत यूपीए सरकार ने जो कुछ किया उससे सारा देश शर्मसार है। शासनतंत्र को नोटतंत्र में बदलने के कई कारनामें तो कांग्रेस बहुत पहले से करती आ रही है। परन्तु इस बार समूचे लोकतंत्र को नोटतंत्र के द्वारा खरीदकर विश्वासमत हासिल करने वाली सरकार संसद का विश्वास तकनीकी दृष्टि से भले ही प्राप्त कर चुकी हो परन्तु देश की जनता का विश्वास खो चुकी है। सरकार पर से जनता का विश्वास उठ जाये यह कोई बड़ी बात नहीं परन्तु लोकतांत्रिक प्रक्रिया की प्रामाणिकता पर से ही विश्वास उठने लगे तो निश्चित रूप से ऐसी सरकार अपराध के कटघरे में खड़ी मानी जायेगी। जिस सच को सारे देश ने देखा उससे आखें मूंदने का प्रयास सरकार की निर्लज्जता को प्रमाणित करता है। सरकार के इस कृत्य का मुकदमा निश्चित रूप से जनता की अदालत में आयेगा और सरकार के द्रोह का दंड जनता अवश्य देगी।

सरकार वास्तविकता में जनता का विश्वास खो चुकी है इसका प्रमाण यह है कि संसद का मानसून सत्र बुलाया ही नहीं गया। सामान्यत: मानसून सत्र हर वर्ष जुलाई के तीसरे सप्ताह में बुलाया जाता है। ऐसा संभवत: पहली बार हुआ है।

आज आतंकवाद, महंगाई, काश्मीर घाटी के मौजूदा हालात, बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा और अनेक महत्वपूर्ण विषय देश के सामने उपस्थित हैं। मुझे ऐसा लगता है कि संसद का सामना करने का साहस सरकार में नहीं बचा है। एक अस्वाभाविक सरकार अस्वाभाविक रूप से अपना बचाव करने के बाद देश का सीधे सामना करने का साहस ही कैसे कर सकती है?
भाजपा ने हमेशा से यूपीए गठबंधन को अप्राकृतिक गठबंधन कहा है जो केवल भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए बना था। पहले यह गठबंधन वामपंथियों का बंधक बना अब समाजवादी पार्टी का बंधक बन गया है। कोई भी सरकार जब अपने सहयोगी दल की बंधक बन जाये तो वह बंधुआ सरकार बन जाती है। संभवत: यूपीए सरकार की यही नियति है।

आज जिस बेंगलूरू शहर में हम एकत्रित है उस 21वीं शताब्दी के इस पहले दशक में दो तरीके से इतिहास को करवट बदलते देखा है। एक, आज से एक दशक पूर्व केन्द्र में वाजपेयी सरकार के समय जब बेंगलूरू भारत का सबसे प्रमुख सूचना प्रौद्योगिकी का केन्द्र बन कर उभरा और उसे उभरते भारत की बौध्दिक राजधानी के रूप में देखा जाने लगा। दूसरा, दृश्य अभी कुछ माह पूर्व दिखा जब भारत की राजनीति में विशुध्द भारतीयता और राष्ट्रवाद की प्रतीक भारतीय जनता पार्टी की अपने दम पर सरकार बनी। भारत के भविष्य में भाजपा का राष्ट्रवाद और भारत की युवा पीढ़ी की शानदार प्रतिभा सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रही है। बेंगलूरू आज दोनों को आत्मसात किए हुए भविष्य की स्वर्णिम संभावनाओं की ओर संकेत कर रहा है।

मित्रों, इतिहास जब करवट बदलता है तो अनेक प्रकार की चुनौतियों को लेकर आता है। आज भी हम ऐसा ही कुछ देख रहे हैं। एक तरफ भारत में आर्थिक उन्नति और विकास की असीम संभावनाएं दिख रही हैं तो दूसरी तरफ देश भर में हर कोने में लगभग सभी प्रमुख शहरों में एक के बाद एक सिलसिलेवार ढंग से होते हुए आतंकवादी हमले देख रहे हैं।

आतंकवाद रूपी युध्द
आजादी के बाद 1948 की कश्मीर की लड़ाई से लेकर 1999 के कारगिल युध्द तक भारत पर कई आक्रमण हुए। परन्तु शत्रु की गतिविधियां देश की सरहद तक सीमित रहीं। यदि आतंकवाद भी पनपा तो वह एक आध राज्य अथवा एक आध क्षेत्र तक ही सीमित रहा। परन्तु आज उत्तर से दक्षिण तक देश के हर कोने में जिस ढंग से दुश्मन आक्रमण कर रहा है कहीं भी किसी भी समय कोई भी आम आदमी इसका शिकार हो सकता है। यह दृश्य देश में पहली बार उत्पन्न हुआ है। भारत के लिए 21वीं शताब्दी की सबसे बड़ी चुनौती यही है।

भारत ने 20वीं शताब्दी के शुरू में जिस प्रकार साम्राज्यवाद से संघर्ष किया था आज 21वीं शताब्दी में वैसा ही संघर्ष आतंकवाद से करना होगा। तब साम्राज्यवाद भी विश्वव्यापी था, चाहें वह ब्रिटिश साम्राज्यवाद हो अथवा स्पेनिश, पुर्तगाली अथवा डच साम्राज्यवाद हो, भारत से उसका अंतिम अवसान ही नहीं हुआ बल्कि भारत की स्वतंत्रता के साथ साम्राज्यवाद की पूरी अवधारणा का ही अन्त हो गया। आज आतंकवाद भी विश्वव्यापी है और मुझे पूरा विश्वास है कि भारत से ही इसका निर्णायक पराभव भी होगा।

आतंकवाद को समाप्त करने के लिए आतंकवाद की अवधारणा को भी समझना होगा। अब यह कहना कि अशिक्षा, गरीबी और बेरोजगारी आतंकवाद का कारण है, बेमानी हो चुका है। आज के आतंकवादी शिक्षित है, उच्च तकनीकी योग्यता रखने वाले है, सम्पन्न परिवार से आते है फिर भी वे हिंसा के इस घृणित स्वरूप में विश्वास रखते है। आतंकवाद एक मानसिकता है जिसका कोई मजहब नहीं होता। इसके निराकरण का केवल एक ही उपाय है कि कठोर कानून के द्वारा इस पर कठोर प्रहार किया जाए। इसलिए हम बार-बार पोटा अथवा इसके समकक्ष किसी कानून की मांग करते है।
अब यह कहना कि अशिक्षा, गरीबी और बेरोजगारी आतंकवाद का कारण है, बेमानी हो चुका है। आज के आतंकवादी शिक्षित है, उच्च तकनीकी योग्यता रखने वाले है, सम्पन्न परिवार से आते है फिर भी वे हिंसा के इस घृणित स्वरूप में विश्वास रखते है। आतंकवाद एक मानसिकता है जिसका कोई मजहब नहीं होता। इसके निराकरण का केवल एक ही उपाय है कि कठोर कानून के द्वारा इस पर कठोर प्रहार किया जाए।


भाजपा के कार्यकर्ताओं के रूप में हम सबको यहीं संकल्प लेना होगा और यदि जनता ने हमें अगले चुनाव में जनादेश दिया जिसके प्रति हम पूर्णत: आश्वस्त है, आदरणीय आडवाणी जी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार आतंकवाद को इस धरती से समाप्त करने का प्रभावी अभियान चलायेगी।

मित्रों, आतंकवाद एक प्रकार का युध्द है। युध्द इतिहास में सदैव होते आये हैं। युध्द में लड़ने वाले पक्ष की सामर्थ्य के साथ-साथ उसका मनोबल और उसकी ईमानदारी सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बेंगलूरू, अहमदाबाद में जो कुछ हुआ इससे पहले जयपुर, लखनऊ, फैजाबाद, बनारस और उससे पहले दिल्ली, मुम्बई, हैदराबाद, नागपुर आदि में जो कुछ हुआ वह इस युध्द के गंभीर और व्यापक होने का प्रमाण है।

यह पूरा सिलसिला जो मैंने आपको बताया यह कोई एक दिन में शुरू नहीं हुआ बल्कि इसके बीज तो केन्द्र में यूपीए सरकार के गठन के साथ ही पड़ गये थे। याद कीजिए कि केन्द्र में यूपीए सरकार के आने के बाद जो सबसे पहले निर्णय लिए उनमें से एक था- पोटा को हटाना। यही वह पहला संकेत था जिसने आतंकवादियों के मनोबल को बढ़ाने का कार्य किया। उसके बाद संसद पर हमले की साजिश के अपराधी सिध्द हो चुके मोहम्मद अफजल की माफी का प्रयास और इसके लिए कांग्रेस जैसे इतने पुराने और राष्ट्रीय दल के जम्मू और काश्मीर के मुख्यमंत्री का स्वयं आकर राष्ट्रपति से अनुरोध करना, यह सब कुछ ऐसे कारण थे जिन्होंने आतंकवादियों को एक नये आत्मविश्वास से भर दिया।

आतंकवादियों पर अनुग्रह : यूपीए सरकार की प्रकृति
आज तो केन्द्र की यूपीए सरकार का आतंकवाद के प्रति नरम रवैया पराकाष्ठा तक पहुंच रहा है जो सरकार की नीति ही नहीं बल्कि नीयत के खोट को भी साफ दिखा रहा है। यह बात मैं केवल और केवल आलोचना के लिए नहीं कह रहा हूं। अभी कुछ दिन पूर्व आप सब ने देखा कि केन्द्र सरकार उच्च न्यायालय में सिमी पर लगे हुए प्रतिबंध को बचाने में असफल रही। जबकि हम सब और देश की सारी जनता रोज समाचार माध्यमों से जो जानकारी प्राप्त कर रही है उससे दोपहर के सूरज के समान स्पष्ट दिखाई पड़ता है कि आतंकवाद को बढ़ाने और फैलाने में सिमी जैसे संगठनों की बड़ी भूमिका है। परन्तु यदि किसी को दोपहर के सूरज की रोशनी जैसी साफ चीज भी न दिखे तो यह तभी संभव है जब उसकी आंखों पर पट्टी बंधी हो। केन्द्र सरकार की आंखों पर वोट बैंक की राजनीति की ऐसी पट्टी बंधी है कि उसे राष्ट्र हित और राष्ट्रघात में अंतर नहीं दिख रहा है।
सिर्फ कांग्रेस ही नहीं बल्कि उसके सहयोगी दल राजद, लोजपा और समाजवादी पार्टी के नेता खुलेआम सिमी के पक्ष में बयान दे रहे है। इतना ही नहीं बल्कि गुजरात पुलिस के द्वारा सराहनीय तेजी दिखाते हुए जिस आतंकवादी को उत्तार प्रदेश के आजमगढ़ में पकड़ा गया तो बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के अनेक वरिष्ठ नेता दिल्ली के जामा मस्जिद के इमाम के साथ अबु बशीर के घर पर सहानुभूति दिखाने पहुंच गये। यह सब करके ये सारे दल किसका मनोबल बढ़ा रहे है यह देश की जनता को साफ दिखाई पड़ रहा है।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे विषय जिस पर भारत में सभी दलों की आम सहमति हुआ करती थी उसे भी आज वोट बैंक की राजनीति का अंग बना दिया गया। इस सरकार का कोई मंत्री सिमी को सांस्कृतिक संगठन बता रहा है तो एक अन्य मंत्री बंगलादेशी घुसपैठियों को नागरिकता देने की वकालत कर रहा है।

सर्वोच्च न्यायालय ने आई.एम.डी.टी. एक्ट पर अपना निर्णय सुनाते हुए यह कहा था कि बांग्लादेशी घुसपैठ की समस्या भारत पर विदेशी आक्रमण के समकक्ष एक गंभीर समस्या है। यदि इस सरकार के कैबिनेट मंत्री बांग्लादेशी घुसपैठियों को नागरिकता देने की बात करते हैं तो क्या यह सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के परिप्रेक्ष्य में एक प्रकार से राष्ट्रोह नहीं माना जाना चाहिए? कैबिनेट की सामूहिक जिम्मेदारी के सिध्दांत के अनुसार मैं देश की जनता की ओर से केन्द्र सरकार से यह प्रश्न पूछता हूं कि अपने कैबिनेट मंत्री के इस बयान से यदि वह अपने को अलग मानते हैं तो तत्काल इन मंत्री महोदय को बर्खास्त किया जाना चाहिए। यदि वे इस बयान से सहमत हैं तो क्या पूरी सरकार पर इस सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के आलोक में कार्यवाही नहीं होनी चाहिए?

कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों का ये रवैया केरल विधानसभा में कोयम्बटूर बम विस्फोट के मुख्य आरोपी मदनी के पक्ष में पारित प्रस्ताव से लेकर जम्मू-काश्मीर के मुख्यमंत्री द्वारा अफजल की फांसी माफ करने की सिफारिश तक तुष्टिकरण की राजनीति को हवा देने की कवायद है। श्रीनगर के लाल चौक पर पाकिस्तान का झंड़ा लहराने और काश्मीर में पाकिस्तानी मुद्रा के प्रचलन का समर्थन करने वाले के साथ मिलकर चलने वाली सरकारें से लेकर सिमी के समर्थन में उठती यह आवाजें भारत के भविष्य के लिए एक खौफनाक मंजर की ओर इशारा कर रही है। क्या इस विषय पर भी कोई विवाद की गुंजाइश है? देश के करोड़ों लोगों के हित में आज आवश्यकता है इस विषय पर दो टूक फैसला लेने की। परन्तु आतंकवाद और तुष्टीकरण से जुड़े विषयों में दो टूक फैसला लेना कांग्रेस की फितरत में ही नहीं है।

आतंकवाद के प्रति नरम रूख और तुष्टीकरण कांग्रेस तथा अन्य तथाकथित सैकुलर दलों की प्रकृति का अंग तो पहले से ही था परन्तु अब यह लगता है कि यह उनकी कार्यशैली और राजनैतिक संस्कृति का अंग हो गया है। हम इस संस्कृति को भारत के लिए एक विकृति मानते है। आतंकवाद के प्रति सरकार की सोच में क्रॉनिक डिस्आर्डर है परन्तु हम जनता के सहयोग से इसका समाधान करके रहेंगे।

भाजपा शासित राज्यों का आतंकवाद नियंत्रण के प्रति प्रयास
केन्द्र सरकार की आंखों पर वोट बैंक की ऐसी पट्टी बंधी हुई है कि वह आतंकवादियों को देखना ही नहीं चाहती। भाजपा की सरकारें अपने सीमित संसाधनों में, मजबूत कानूनी हथियार के बिना सराहनीय तरीके से आतंकवाद से लड़ रही है। सबसे पहले मध्य प्रदेश सरकार ने सिमी को बेनकाब किया था। गुजरात सरकार ने सूरत में हमलों को निष्फल किया और अहमदाबाद विस्फोटों के बाद कुशलता के साथ दोषी व्यक्तियों तक तेजी से पहुंचे। कर्नाटक और राजस्थान में भी जांच तेजी से आगे बढ़ रही है। हम चारों राज्यों के मुख्य मंत्रियों को उनके द्वारा की गयी प्रभावी कारवाई के लिए बधाई देते हैं।

यदि हाल की भाजपा सरकारों की सफलता को हटा कर देखा जाय तो पिछले चार वर्षों में भारत के जितने भी शहरों में विस्फोट हुए किसी में भी सरकार दोषी व्यक्तियों तक नहीं पहुंच पायी।

इतना ही नहीं मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात के आतंकवाद विरोधी कानूनों पर केन्द्र सरकार कुंडली मार कर बैठी हुई है।
यह साफ प्रमाणित करता है कि आतंकवाद से लड़ने की इच्छाशक्ति और क्षमता दोनों में कांग्रेस और भाजपा में कितना भारी अंतर है।

आर्थिक आतंकवाद
आतंकवाद की काली छाया आज सिर्फ आम आदमी की जान-माल तक नहीं बल्कि देश की हर व्यवस्था पर छाती जा रही है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने तो बहुत पहले ही हमारे शेयर मार्केट में आतंकवाद के घुसपैठ की बात स्वीकार की। पिछले दिनों देश के सबसे बड़े राष्ट्रीयकृत बैंक (स्टेट बैंक) की शाखाओं से करोड़ों रूपयों के नकली नोट बरामद किये गये। पूर्वी उत्तर प्रदेश के बैंकों में निकले नकली नोट यह साफ कर रहे हैं कि आई.एस.आई. अपनी जालसाजी के चलते अब नकली नोट सिर्फ बाजार में नहीं बल्कि बैंक के लॉकरों तक पहुंचाने में सफल हो गई है। ऐसा देश में पहली बार हुआ है।

पिछले वर्ष केन्द्र सरकार ने बोफोर्स की दलाली का पैसा देश की जनता की आंखों में धूल झोंककर क्वात्रोची के खाते में पहुंचवा दिया था। यानी आज यह स्थिति हो गई कि देश का पैसा देशद्रोहियों के खाते में जा रहा है और देशद्रोहियों का जाली पैसा देश के महत्वपूर्ण बैंकों में आ रहा है। ऐसा खतरनाक आयात या निर्यात देश की अर्थव्यवस्था को कहां ले जायेगा इस पर हमें विचार करना चाहिए? देश जानना चाहता है कि सरकार इस परिस्थिति से निपटने के लिए क्या कदम उठा रही है।

तेज महंगाई और मंद अर्थव्यवस्था
महंगाई की दर जिस तेजी से बढ़ रही है उसे तो देश का आम आदमी महसूस कर रहा है। 12 प्रतिशत को पार करती हुई मुद्रास्फीति की दर वास्तविक रूप को नहीं दिखा रही है। वास्तविकता यह है कि यदि दैनिक उपयोग की वस्तुओं के दामों को लिया जाए तो यह दर आज 20 प्रतिशत से अधिक दिखाई पड़ेगी। यानी आम आदमी की जेब पर पड़ने वाली मार आंकड़ों की तस्वीर से कहीं अधिक गंभीर है। महंगाई के अतिरिक्त सरकार की वित्तीय स्थिति का यह एक वास्तविक चित्र है जिसे देश के सामने लाने का हमें प्रयास करना चाहिए।

एनडीए सरकार ने अपने शासनकाल में देश की विकास दर को 8.6 प्रतिशत तक पहुचाया था। अधिक उल्लेखनीय यह है कि हमने विकासदर को लगातार 6 साल तक बढ़ाने का कार्य किया इसके द्वारा एक ऐसा संवेग (मोमैन्टम) बनाने में सफलता प्राप्त की थी कि जिसने एनडीए के सरकार से हट जाने के बावजूद अगले दो-तीन वर्षों तक उस गति को बनाये रखा। अब ज्यों-ज्यों अर्थव्यवस्था पर एनडीए सरकार का प्रभाव और पिछली सरकार के द्वारा स्थापित गति गुजरे वक्त की बात होती जा रही है, त्यों-त्यों यूपीए सरकार की नीतियों का वास्तविक प्रभाव सामने आ रहा है।

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद द्वारा जो हाल में अपनी समीक्षा रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी है उसके अनुसार सरकार द्वारा गैर बजट प्रावधानों की संख्या इतनी बढ़ गयी है कि गैर बजट प्रावधान सकल घरेलू उत्पाद का 5 प्रतिशत तक पहुंचने की संभावना है। क्योंकि सरकार ने एक लोक लुभावन बजट देने के प्रयास में जनता की आंखों में धूल झोकने के लिए पूंजी की आवश्यकता वाले आने महत्वपूर्ण विषयों जैसे खाद सब्सिडी, कृषि ऋण की माफी, ग्रामीण रोजगार योजना के अतिरिक्त व्यय और छठे वेतन आयोग पर आने वाला भार आदि को बजट से बाहर रखा था। इस कारण एक असंतुलन की स्थिति बनने की संभावना है। विकास दर जो 9.6 प्रतिशत थी आगामी वर्ष में 7.5 प्रतिशत तक गिरने की संभावना व्यक्त की गयी। एक अनुमान के अनुसार राजकोषीय घाटा (फिसकल डैफिसिट) 7.5 प्रतिशत तक और राजस्व घाटा 6.5 प्रतिशत तक पहुंच सकता है।

इस सरकार के योजना आयोग के उपाध्यक्ष ने यह कहा था कि विकास के साथ महंगाई पर नियंत्रण संभव नहीं है। यद्यपि उनके इस कथन से हम कतई सहमत नहीं है क्योंकि श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए सरकार ने यह करके दिखाया था। परन्तु अब तो मूल्य बढ़ने के बावजूद विकास की दर भी घटती हुई दिख रही है। सामान्यत: महंगाई बढ़ने के पक्ष में अधिकतम यह तर्क दिया जाता है कि विकास होगा तो महंगाई बढ़ेगी। वैसे तो यह सिध्दांत बेमानी है पर इनके खुद के सिध्दांत के अनुसार भी देखें तो देश की अर्थव्यवस्था में विकास की दर मुद्रास्फीति के समानुपाती होनी चाहिए। अर्थात् महंगाई केवल विकास के साथ ही बढ़नी चाहिए। परन्तु इस सरकार को चला रहे अनेक विध्दान अर्थशास्त्रियों ने तो अपने इस सिध्दांत को ही पलट दिया है। अब विकास की दर मुद्रास्फीति के व्युत्क्रमानुपाती हो गयी है अर्थात् विकास की दर कम होने पर भी महंगाई बढ़ रही है।

एनडीए सरकार के शासनकाल में मुद्रास्फीति की दर आर्थिक विकास दर की आधी थी। आज मुद्रास्फीति की दर आर्थिक विकास की दर की दुगुनी हो गई है।

यह एक अजीबोगरीब हालात सरकार ने पैदा कर दी है। अर्थात् अब यूपीए सरकार की गलत नीतियों की गाज आम आदमी की जेब के साथ-साथ देश के सम्पूर्ण आर्थिक ढांचे पर गिरती नजर आ रही है।

विदेश नीति
विदेश नीति के मोर्चे पर यूपीए सरकार की असफलताओं का सिलसिला लगातार जारी है। वैसे तो आज देश में सीमापार से जिस प्रकार आतंकवाद चारों ओर फैल रहा है उसके चलते स्वत: ही आतंकवाद के प्रति नीति विदेश नीति का एक अपरिहार्य अंग हो जाती है। जिसके प्रति सरकार की विफलता का मैं पहले ही उल्लेख कर चुका हूं।

आज आतंकवादियों के केन्द्र सीमापार से संचालित हो रहे हैं, निश्चित रूप से विदेश नीति का कहीं न कहीं प्रभाव आतंकवादी गतिविधियों पर भी साफ दिखाई पड़ता है।

इस सरकार की विदेश नीति की लगातार विफलता के चलते आज आतंकवादी आक्रमणों में प्रत्यक्ष विदेशी आयाम जुड़ गया है। पिछले दिनों काबुल में भारतीय दूतावास पर आतंकवादी हमला हुआ। यह भारत के बाहर भारत के किसी संस्थान पर आतंकवादी हमले की पहली घटना है। यह आक्रमण किसने करवाया यह बात किसी से छुपी नहीं है। अमेरिका की सरकार ने भी स्पष्ट रूप से आई.एस.आई. को इस हमले के लिए जिम्मेदार माना है। परन्तु भारत सरकार अभी भी आई.एस.आई. के विषय पर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर कोई प्रभावी दबाव नहीं बना पाई है।

चीन के संदर्भ में भी सरकार का रूख बहुत लचर और कमजोर रहा है। चीन ने सिक्किम जैसे गैर-विवादित क्षेत्र में भी सीमा विवाद शुरू करने की कोशिश की है। हमारे विदेश मंत्री जब चीन में आये भूकम्प के लिए राहत सहायता लेकर जाते हैं तो उस राज्य का गवर्नर नहीं बल्कि कोई कनिष्ठ अधिकारी वह सहायता ग्रहण करता है। जब से केन्द्र में यूपीए सरकार आई है तब से चीन लगातार भारत पर दबाव बनाता जा रहा है। भारत सरकार सशक्त प्रतिरोध करने में असमर्थ दिख रही है। तिब्बत आदि हिमालय के क्षेत्र में चीन जिस प्रकार से निर्माण कार्य करवा रहा है उससे हिमालयी क्षेत्र के पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। भारत प्रत्यक्ष रूप से इसस प्रभावित होगा। परन्तु भारत सरकार इस विषय की उपस्थिति तक दर्ज नहीं करा पा रही है। आगामी अक्टूबर माह में प्रधानमंत्री चीन की यात्रा पर जा रहे हैं। मैं यह मांग करता हूं कि हिमालयी क्षेत्र में पर्यावरण के विषय को प्रधानमंत्री द्वारा चीन यात्रा में उठाया जाना चाहिए।

बांग्लादेश से संचालित आतंकवादी शिविरों द्वारा भारत में जो तबाही मचायी जा रही है उसके प्रमाण हम जयपुर, अहमदाबाद और बेंगलूरू में देख चुके हैं। अब तो बांग्लादेश की सरकार भी यह मानने को बाध्य है कि उसकी धरती पर आतंकवादी शिविर चल रहे हैं और बांग्लादेश राईफल्स ने सीमा सुरक्षा बल को सहयोग का आश्वासन भी दिया है। इसके बावजूद भी बांग्लादेश के आतंकवादी शिविरों पर सरकार कोई कठोर कार्यवाही नहीं करवा पा रही है।

मित्रों, विगत कार्यसमिति से इस कार्यसमिति के मध्य नेपाल का एक नया स्वरूप उभर कर सामने आया। नेपाल एक प्रजातांत्रिक गणराज्य का स्वरूप ले रहा है। वहां बहुदलीय व्यवस्था की झलक वर्तमान सत्ता के समीकरणों में भी दिखाई पड़ रही है। हम नेपाल में प्रजातांत्रिक व्यवस्था का स्वागत करते हैं और आशा करते हैं कि नेपाल के इस नये प्रजातांत्रिक स्वरूप में भी भारत के साथ संबंध पहले की तरह घनिष्ठ और प्रगाढ़ रहेंगे।

विदेश नीति पर सरकार के निहायत कमजोर नजरिए का अन्य प्रमाण यह भी है कि अमेरिका सरकार ने एक बार फिर हमारे गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को वीजा देने से मना कर दिया। जबकि जहां तक मेरी जानकारी है उन्होंने इसके लिए आवेदन ही नहीं किया था। यहां विषय किसी व्यक्ति का नहीं है, किसी एक दल का भी नहीं है, विषय है कि क्या भारत सरकार पूर्णलोकतांत्रिक प्रक्रिया द्वारा निर्वाचित संवैधानिक सरकार के प्रमुख का वीजा मना किये जाने को इतनी सहजता से स्वीकार कर रही है। क्या यह भारत की सम्प्रभुता पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगाता?

जम्मू-कश्मीर की परिस्थिति
पिछले दिनों जम्मू-कश्मीर में श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को यात्रियों की सुविधा के लिए राज्य सरकार द्वारा आवंटित की गई भूमि के लिए जिस प्रकार विवाद और हिंसा हुई, वह बहुत दु:खद है। जम्मू-कश्मीर सरकार ने पहले अमरनाथ यात्रियों की सुविधा के लिए बाल-टाल में जमीन आवंटित की और फिर मुट्ठी भर पृथकतावादी राजनेताओं की धमकी के चलते इसे वापस ले लिया। इस घटना की जो प्रतिक्रिया जम्मू और देश के अन्य भागों में हुई इसके लिए पूरी तरह से केन्द्र सरकार जिम्मेदार है।

इससे भी अधिक शर्मनाक घटना यह हुई कि विगत 15 अगस्त को श्रीनगर के कुछ स्थानों पर, पृथकतावादियों ने पाकिस्तान का झंडा लहराने में सफलता प्राप्त कर ली। देश के स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र ध्वज का ऐसा अपमान असहनीय है। यह सरकार इससे पूर्व राष्ट्रगीत वन्दे मातरम् को स्कूलों में गाये जाने का निर्णय लागू नहीं करवा पायी। अब राष्ट्र ध्वज की गरिमा की रक्षा नहीं कर पायी। भारत के राष्ट्रीय प्रतीकों की गरिमा यूपीए सरकार में सुरक्षित नहीं है।

जम्मू-कश्मीर की घटनाओं को लेकर तथाकथित बुध्दिजीवियों में दो मत हो सकते हैं। परन्तु यदि मैं एक सामान्य देशभक्त भारतीय की तरफ से देखूं तो पाकिस्तान का झंडा फहराने वाले और भारत का राष्ट्रीय ध्वज लेकर भारत माता की जय के नारे लगाने वालों का अंतर देखने के लिए किसी बुध्दि के प्रयोग की आवश्यकता नहीं है।

जम्मू-कश्मीर की समस्या के वर्तमान दौर का एक ही संदेश है कि यह लड़ाई देशभक्ति और देशद्रोह के बीच है, भारत के तिरंगे के सामने पाकिस्तान का हरा झंडा खड़ा किया गया है, इसलिए समाधान ढूंढने हेतु किसी प्रकार की दुविधा का प्रश्न ही नहीं खड़ा होना चाहिए। इस दृष्टि-पथ से समाधान के लिए कुछ उपाय किये जा सकते हैं। जैसे,

•जम्मू, कश्मीर एवं लद्दाख के मध्य जो क्षेत्रीय असंतुलन एवं विकास की राशि के खर्च में भेदभाव की शिकायतें हैं, उनका एकमुश्त निराकरण होना अनिवार्य है।
•जम्मू-कश्मीर के हर क्षेत्र को समानुपातिक रूप से शामिल करते हुए रोजगार के पर्याप्त नवीन अवसर सृजित करने चाहिए।
•मैं सरकार से मांग करता हूं कि कश्मीर घाटी में एक विशेष क्षेत्र कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लिए निर्धारित किया जाय।
•श्री अमरनाथ यात्रा केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं है बल्कि कश्मीर घाटी के दूरवर्ती क्षेत्रों से शेष भारत के संबंधों की जीवंतता का प्रतीक है। यात्रा के दो महीनों में पूरा भारत कश्मीर घाटी के अंदरूनी हिस्सों से भावनात्मक रूप से जुड़ जाता है। अत: यह यात्रा भारत की एकात्मता की यात्रा है। इसलिए मैं इसे राष्ट्रीय महत्व की यात्रा मानता हूं। मैं सरकार से यह मांग करता हूं कि श्री अमरनाथ यात्रा के मार्ग का राष्ट्रीयकरण कर दिया जाय ताकि इस मुद्दे का राजनैतिक उपयोग करके भविष्य में सामाजिक सद्भाव को बिगाड़ने का कोई प्रयास न कर सके।
श्री अमरनाथ यात्रा केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं है बल्कि कश्मीर घाटी के दूरवर्ती क्षेत्रों से शेष भारत के संबंधों की जीवंतता का प्रतीक है। यात्रा के दो महीनों में पूरा भारत कश्मीर घाटी के अंदरूनी हिस्सों से भावनात्मक रूप से जुड़ जाता है। अत: यह यात्रा भारत की एकात्मता की यात्रा है। इसलिए मैं इसे राष्ट्रीय महत्व की यात्रा मानता हूं। मैं सरकार से यह मांग करता हूं कि श्री अमरनाथ यात्रा के मार्ग का राष्ट्रीयकरण कर दिया जाय ताकि इस मुद्दे का राजनैतिक उपयोग करके भविष्य में सामाजिक सद्भाव को बिगाड़ने का कोई प्रयास न कर सके।


जम्मू कश्मीर में इतने दिन तक जो कुछ चला वह सरकार की असंवेदनशीलता का एक निन्दनीय उदाहरण है। श्रीअमरनाथ संघर्ष समिति ने इस विवाद के लिए संघर्ष करते समय पर्याप्त संयम का परिचय दिया। घाटी में उठने वाली विघटनकारी आवाजों के विरूध्द पहली बार पूरे देश में आवाज उठती नजर आयी। इस विवाद में हताहत हुये सभी व्यक्तियों और परिवारों के प्रति हम अपनी संवेदना व्यक्त करते हैं।

हमें इस विवाद से शिक्षा लेने का प्रयास करना चाहिए कि घाटी के कुछ मुट्ठी भर लोग किस प्रकार पूरे देश में तनाव का वातावरण बनाने में सफल हो गये? जब यह आन्दोलन पर अपने चरम पर था और जम्मू-कश्मीर में अनेक राष्ट्रविरोधी स्वर दिखाई पड़ रहे थे तब भी केन्द्र सरकार कुछ भी करने में असमर्थ थी। मुझे याद आता है कि अयोध्या में विवादित ढांचा गिरने के बाद प्रदेश सरकार द्वारा जमीन के संभावित उपयोग/दुरूपयोग को नियंत्रित करने के लिए केन्द्र सरकार ने विवादित क्षेत्र का अधिग्रहण कर लिया था। उस समय केन्द्र सरकार का तर्क यह था कि उस जमीन की संवेदनशीलता से पूरा देश प्रभावित होता है। कुछ-कुछ वैसी स्थिति श्रीअमरनाथ श्राईन बोर्ड के लिए भी थी। परन्तु केन्द्र सरकार धारा-370 के कारणों को जानते हुए भी कुछ करने में असमर्थ थी। मैं देश के सभी राजनैतिक दलों से यह अपील करता हूं कि जम्मू-कश्मीर के हाल के विवाद को ध्यान में रख कर एक बार वे सभी खुले मन से विचार करें कि आज क्या धारा 370 के संदर्भ में सभी दलों को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता नहीं है? क्या वे ऐसा चाहेंगे कि यदि ऐसी कोई परिस्थिति घाटी में उत्पन्न हो और उसका प्रभाव पूरे देश पर पड़ रहा हो तो भी केन्द्र सरकार कुछ भी करने में असमर्थ रहे। मेरा विचार है कि यदि ईमानदारी से सभी दल विचार करें तो धारा 370 को समाप्त करने के लिए एक आम सहमति बनाई जा सकती है।

मैं जम्मू की जनता को बधाई देता हूं कि उन्होंने राष्ट्रविरोधी हवाओं के तूफान के बीच में भी राष्ट्रवाद के दीपक को जलाये रखा।

श्रीराम सेतु
उत्तार में श्रीअमरनाथ से लेकर दक्षिण में श्रीराम सेतु तक भारतीय संस्कृति के मान बिन्दुओं पर निरन्तर आघात इस केन्द्र सरकार के द्वारा किया जा रहा है। राम सेतु के विध्वंस का प्रयास करने से लेकर एक वर्ष पूर्व भगवान राम के अस्तित्व को नकारने तक। सरकार के सहयोगी दलों द्वारा भगवान श्रीराम के संदर्भ में आपत्तिजनक टिप्पणियां किये जाने से लेकर एक बार फिर सर्वोच्च न्यायालय में कम्बन रामायण का गलत उल्लेख करके राम सेतु के विध्वंस को उचित ठहराने का निन्दनीय प्रयास सरकार के द्वारा किया जा रहा है।

श्रीराम सेतु सिर्फ भारतीय संस्कृति का एक प्राचीन प्रतीक नहीं है, हिन्दु धर्म के लिए एक श्रध्दा का केन्द्र नहीं है बल्कि अनादि काल से भारत की पहचान और परिभाषा का भी प्रतीक है। पौराणिक ग्रंथों में भारत की भौगोलिक सीमा ''आसेतु हिमाचल'' के रूप में वर्णित की गई है। जिस प्रकार हिमालय भारत की पहचान से कभी पृथक नहीं हो सकता उसी प्रकार श्रीराम सेतु भी भारत की पहचान से पृथक नहीं हो सकता। सेतु का विध्वंस इस देश की पहचान को बदलने का षडयंत्र है। भाजपा इसे कभी सफल नहीं होने देगी।

मैं यह घोषणा करता हूं कि यदि हमारी सरकार बनी तो हम श्रीराम सेतु को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करेंगे। यदि इसे राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने में नियमानुसार कोई दिक्कत आयेगी तो हम नियमों में परिवर्तन करके भी श्रीराम सेतु को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करेंगे तथा इसे यूनेस्को की विश्व धरोहर की सूची में शामिल करवाने का प्रयास करेंगे।

अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि के विवाद को हल करने की दिशा में कोई कदम तो बढ़ा नहीं उल्टे अविवादित माने जाने वाले श्रीराम सेतु को अनायास तोड़ने का प्रयास किया और फिर भारत की संस्कृति के प्रतीक माने जाने वाली श्रीअमरनाथ यात्रा और उसकी व्यवस्था के लिए बने अमरनाथ बोर्ड को विवाद में घसीटना देखकर मुझे कुछ असामान्य अनुभूति होती है। मैं यह पूछना चाहता हूं कि हमारे आस्था और श्रध्दा के केन्द्रों के साथ ही विवाद क्यों खड़ा किया जाता है?

उड़ीसा के कंधमाल में स्वामी लक्ष्मणानंद और उनके शिष्य की हत्या को मैं दुर्भाग्यपूर्ण मानता हूं। मैं स्वामीजी और उनके शिष्यों के प्रति श्रध्दांजलि अर्पित करता हूं। मुझे पूरा विश्वास है कि उड़ीसा सरकार इस पूरी घटना की जांच करते हुए दोषियों को नहीं छोड़ेगी। वहीं पिछले दिनों सांसद योगी आदित्य जी के काफिले हुए प्राणघातक हमले की मैं कठोर शब्दों में निंदा करता हूं। मुझे उम्मीद है कि हमलावरों को शीघ्र पकडा जायेगा। सभ्य समाज में इस तरह की जानलेवा कृत्य निंदनीय ही नहीं लज्जाजनक भी है।

केन्द्रीय विद्यालय संगठन 'कमल लोगो' को बदलने का निर्णय
हाल ही में सरकार ने एक निर्णय लिया है कि केन्द्रीय विद्यालय संगठन का 'लोगो' बदलने का निर्देश दिया है क्योंकि उसमें कमल का फूल बना हुआ है। कमल का फूल भारतीय संस्कृति से जुड़ा माना जाता है। मैं सरकार को याद दिलाना चाहता हूं कि कमल का फूल सिर्फ हिन्दू, बौध्द और जैन धर्म में ही पूजनीय नहीं माना जाता है बल्कि भारत का राष्ट्रीय पुष्प भी माना जाता है। क्या भारत सरकार की नजर में राष्ट्रीय पुष्प एक साम्प्रदायिक चिह्न है? किसी फूल से किसी मत या सम्प्रदाय को क्या आपत्तिा हो सकती है। मैं आपको पिछली कार्यसमिति में मेरे द्वारा उठाये गये धर्मनिरपेक्षता शब्द के प्रयोग पर प्रतिबंध की याद दिलाता हूं। मैं एक बार पुन: यह कहना चाहूंगा कि किसी फूल पर आपत्तिा केवल सेक्युलरिज्म को धर्मनिरपेक्षता समझने के भ्रम के कारण उत्पन्न होती है। पंथनिरपेक्षता में किसी फूल से कोई विरोध नहीं हो सकता। क्योंकि कमल का फूल भारतीय संस्कृति का प्रतीक है। सेक्युलर का अर्थ धर्मनिरपेक्ष निकालने के कारण कमल का फूल भी साम्प्रदायिक लगने लगता है। मैं सरकार से यह पूछना चाहता हूं कि सेक्युलरिज्म को धर्मनिरपेक्ष मानने के इस भ्रमजाल के चलते सरकार कितने राष्ट्रीय प्रतीकों में बदलाव करेगी। क्या वह केन्द्रीय विद्यालयों के साथ-साथ सर्वोच्च न्यायालय पर लिखे वाक्य 'यतो धर्मस्ततोजय:', भारत की नौ-सेना के चिह्न पर लिखे वाक्य 'शन्नो:वरूण:' और वायु सेना के प्रतीक वाक्य 'नभ स्पर्श दीप्तमम्' आदि को भी बदलेगी? क्योंकि इसमें वरूण देवता का उल्लेख है। धर्म के ये सारे उध्दरण्ा भारतीय राष्ट्र के अनेकानेक प्रतीकों में सब जगह मिले हुए हैं क्योंकि यह भारत के मूल चरित्र के प्रतीक हैं। इनको बदलने की शुरूआत भारत के मूल चरित्र को बदलने का एक कुप्रयास है जिसे हम सफल नहीं होने देंगे।

कृषि का संकट
देश की दो तिहाई जनता कृषि पर आश्रित है। भारत सरकार का वर्ष 2007-2008 का आर्थिक सर्वेक्षण यह कहता है कि आज जनसंख्या की औसत वार्षिक वृध्दि दर 1.9 प्रतिशत रही। और खाद्यान्न उत्पादन 1.2 प्रतिशत कम हुआ। आज देश के 40 प्रतिशत किसान मजबूर होकर खेती छोड़ना चाहते है। आजादी के 61 साल बाद भी लगभग 50 प्रतिशत किसान ऋण के लिए साहूकारों पर निर्भर है। देश के 48.6 प्रतिशत किसान किसी न किसी कर्ज के नीचे दबे है।

केन्द्र सरकार ने बजट में किसानों की कर्जमाफी के लिए 72 हजार करोड़ रूपये दिये जाने की चर्चा की थी। मैं आजकल जहां भी जाता हूं और यह पूछता हूं कि कितने किसानों का कर्ज माफ हुआ तो शायद ही कोई हाथ उठता हुआ दिखाई पड़ता हो। मैं सरकार से यह मांग करता हूं कि बजट के बाद के महीनों में कितने किसानों को कर्ज माफी का वास्तविक लाभ मिला वो आंकड़े देश के सामने लाये जाने चाहिए।

भारत-अमेरिका परमाणु समझौता
भारत-अमरीका परमाणु समझौते पर अमरीका के राष्ट्रपति बुश के द्वारा लिखे गये पत्र का खुलासा होने के बाद यह साफ हो गया है कि भाजपा द्वारा लगातार उठाई गई आशंकाएं कि इस समझौते से हमारी आणविक सम्प्रभुता खतरे में पड़ जायेगी, वह सच सिध्द हो गई। उससे यह भी सिध्द हुआ है कि तथ्यों को छुपाने का काम अमेरिकी सरकार ने नहीं बल्कि भारत की सरकार ने किया। प्रधानमंत्री ने जानबूझकर देश को, सभी राजनैतिक दलों को और भारत की संसद को इस विषय पर गुमराह किया। परमाणु समझौते के लिए सरकार ने विश्वास मत के दौरान वोट खरीदने से लेकर देश को गुमराह करने तक अनेक छल-प्रपंच किये। क्या एक अल्पमत सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा एवं राष्ट्रीय संप्रभुता से जुड़े मुद्दों पर अंतर्राष्ट्रीय समझौता करने का कोई नैतिक अधिकार है?

कुछ मीडिया रिपोर्टस के उनसार संयुक्त राज्य अमरीका द्वारा परमाणु सन्धि में ''निश्चित ईंधन आपूर्ति'' (Assued fuel supply) की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है बल्कि यह एक राजनीतिक आश्वासन है जिसने सभी भारतीयों को हिला दिया है। आश्वासन व्यक्तियों एवं शासन के साथ समाप्त हो जाते हैं लेकिन बाध्यकारी समझौते देशों को बांधते हैं। भारत को अब विचार करना चाहिए कि परमाणु सन्धि का हमारे लिए क्या अर्थ है? परमाणु परीक्षण करने के हमारे सभी रास्ते बंद कर दिए गए हैं और निश्चित ईंधन आपूर्ति कोई कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौता भी नहीं रह गया है। क्या यह परमाणु सन्धि अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग मायने में रखती है या अधिक शक्तिशाली पक्ष द्वारा यह परमाणु सन्धि तोड़ देने के लिए बनी है?
इस समझौते का विरोध करने के एक नहीं अनेक कारण हैं। उदाहरण के लिए हाल ही में चीन के प्रमुख समाचार पत्र 'पीपुल्स डेली' में इस आशय की खबरें छपी कि चीन का विचार अपनी परमाणु शक्ति को नियंत्रित करने का नहीं है। इस समाचार पत्र के अनुसार चीन को और परमाणु परीक्षण करने चाहिए। यदि चीन के अंदर इस प्रकार की सोच बन रही है तो इस परिस्थिति में यदि भारत की कोई सरकार परमाणु परीक्षण करने की अपनी क्षमता का समर्पण कर देती है तो यह देश के लिए बहुत घातक सिध्द होगा और यह समर्पण हमारे निर्णय लेने की स्वायत्ताता पर बेड़ियां डाल देता है।

एनएसजी (न्यूक्लियर सप्लाई ग्रुप) की शर्तो को मानने से क्या हमने परमाणु परीक्षण ''यूनिलेट्रल मोरेटोरियम ऑन न्यूक्लियर टेस्टिंग'' को एक मल्टी लेटरल में नहीं बदल दिया है? इसके अतिरिक्त चीन या पाकिस्तान परमाणु परीक्षण करते हैं, जिससे हमारे क्षेत्रीय सामरिक और सुरक्षा असंतुलित हो जाए तब क्या भारत को परमाणु परीक्षण का अधिकार नहीं होना चाहिए?

हम एक बार पुन: यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि भारत-अमरीका परमाणु समझौते पर हमारा विरोध वामपंथी दलों के विरोध से स्पष्टत: भिन्न है। हम अमरीका और अन्य देशों के साथ बेहतर संबंधों के पक्षधर हैं। अमरीका के साथ सामरिक अथवा रणनीतिक समझौते के भी पक्ष में हैं। हमारा विरोध केवल समझौते के उन असंतुलित प्रावधानों को लेकर है जो भारत की आणविक सम्प्रभुता को खतरे में डालते है।

बिहार एवं अन्य क्षेत्रों में बाढ़ की आपदा
पिछले एक महीने में देश की अनेक क्षेत्रों में हमें बाढ़ की प्राकृतिक आपदा देखने को मिली। उत्तार प्रदेश, बिहार, बंगाल और असम में तो इसका बड़ा गंभीर स्वरूप देखने को मिला। विशेषकर बिहार में नेपाल की सीमा पर स्थित बांध के टूटने से कोसी नदी की बाढ़ बहुत ही गंभीर रही। इस बाढ़ से निपटने के लिए बिहार सरकार ने सीमित संसाधनों में संवेदनशीलता के साथ प्रयास किये। भाजपा के सभी मुख्यमंत्रियों ने इसमें सहयोग दिया। भाजपा ने अपनी सभी राज्य इकाइयों को इसमें आर्थिक और अन्य प्रकार के सहयोग देने का निर्देश दिया। इस हेतु मैंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा कि जिस प्रकार गुजरात के भूकम्प और सुनामी के समय अन्य राज्यों के सांसदों को भी उन क्षेत्रों में अपनी सांसद निधि देने का अधिकार मिला था वैसे ही प्रावधान बिहार के संदर्भ में भी किया जाय। मुझे खुशी है कि हमारे इस सुझाव को स्वीकार किया गया।

इससे पूर्व देश अनेक भागों में सूखा देख चुका है और किसानों की आत्महत्या का सिलसिला अनवरत् चल रहा है। एक तरफ विदर्भ में किसानों की आत्महत्याएं दूसरी तरफ देश के अन्य प्रांतों में आई बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए सरकार को कोई दीर्घकालिक योजना भी बनानी चाहिए। मैं एक बार फिर सरकार से यह आग्रह करता हूं कि एनडीए के शासनकाल में नदियों को जोड़ने की जो महत्वाकांक्षी परियोजना हमने बनाई थी उस पर क्रियान्वयन किया जाना चाहिए ताकि देश को सूखा और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से काफी हद तक बचाया जा सके और देश के अधिकाधिक क्षेत्रों के किसानों को सिंचाई के लिए उचित मात्रा में पानी उपलब्ध हो सके।

बीजिंग ओलम्पिक के पदक विजेताओं को बधाई
भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश है परन्तु अभी तक ओलम्पिक खेलों में हाकी के अतिरिक्त किसी भी अन्य खेल में हमें स्वर्ण पदक नहीं मिला था। ओलम्पिक खेलों के 112 वर्ष के इतिहास में व्यक्तिगत पदक भी केवल एक दो अवसर पर ही प्राप्त हुये। बीजिंग ओलम्पिक में भारत ने अब तक सर्वाधिक पदक प्राप्त किये। निशानेबाजी में स्वर्ण पदक पाने वाले अभिनव बिन्द्रा एवं कुश्ती में कांस्य पदक जीतने वाले सुशील कुमार व मुक्केबाजी में कांस्य पदक जीतने वाले विजेन्द्र को भारतीय जनता पार्टी की ओर से मैं बधाई देता हूं। इन खिलाड़ियों ने युवा भारत की रचनात्मक ऊर्जा की अभिव्यक्ति अंतर्राष्ट्रीय मंच पर की है। भारत के सभी युवा इस सफलता से उत्साहित हैं।

परन्तु मैं यह प्रश्न पूछना चाहता हूं कि क्या यह सफलता हमारे लिए संतोषजनक है? कतई नहीं। यदि हमें भविष्य में ओलम्पिक पदक तालिका में उच्च स्थान प्राप्त करना है तो हमें अभी से स्कूल स्तर से प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की पहचान और उन्हें विश्वस्तरीय सुविधाएं प्रदान करने का अभियान चलाना चाहिए।

खिलाड़ियों की शारीरिक दक्षता के साथ-साथ उनमें राष्ट्रप्रेम की भावना भी प्रबल होनी चाहिए। एक आश्चर्यजनक तथ्य पिछले दिनों मेरे संज्ञान में आया कि प्राइमरी से लेकर माध्यमिक तक भारत सरकार की किसी भी पाठय पुस्तक में एक भी स्थान पर यह वाक्य नहीं है कि हमें भारतीय होने पर गर्व है। शायद ऐसा दुनिया के किसी अन्य देश में नहीं होगा।

मेरे मन में सहज प्रश्न उठता है कि यदि हमारे बच्चों को सरकार कभी भी आधिकारिक रूप से भारतीय होने पर गर्व का एहसास नहीं करायेगी तो उनके मन में वह जज्बा कहां से पैदा होगा जो आम जन-जीवन से लेकर अंतर्राष्ट्रीय मंच तक देश के लिए संघर्ष करने की ललक पैदा करे।

युवाओं और महिलाओं को प्रमुखता
भाजपा भारत की पहली राजनैतिक पार्टी बनी जिसने अपने संविधान में संशोधन करके महिलाओं को संगठन में 33 प्रतिशत स्थान प्रदान किये। युवाओं को हम संगठन में अब और अधिक प्रमुखता देने की ओर बढ़ेंगे। इसी सिलसिले में आगामी चुनावों में मेरा यह प्रयास रहेगा कि देश के युवा वर्ग को अधिक से अधिक समायोजित किया जाय।

पूर्वोत्तर राज्य
पूर्वोत्तार के अनेक राज्य कांग्रेस की अदूरदर्शितापूर्ण नीतियों के शिकार हैं। असम में बांग्लादेशी समस्या के साथ-साथ मणिपुर, मिजोरम और नगालैंड में केन्द्र सरकार स्थितियों को सुधारने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठा पा रही है। मेघालय और नगालैंड में हम गठबंधन सरकार में शामिल हैं। पूर्वोत्तार राज्यों में कुल मिलाकर 26 लोकसभा सीटें आती हैं। हम आशा करते हैं कि पूर्वोत्तार के अन्य राज्यों में कांग्रेस के कुशासन से त्रस्त कई अन्य दलों के साथ हम सहयोग करके इस क्षेत्र में लोकसभा में अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं।

आगामी चुनाव
मित्रों, 18-20 दिन बाद त्यौहारों का मौसम शुरू हो जायेगा। भारत में अक्टूबर-नवम्बर में एक साथ बहुत सारे त्यौहार पड़ते हैं। इसी के साथ लोकतंत्र के त्यौहारों अर्थात चुनावों का समय भी आ रहा है। जम्मू-कश्मीर के चुनाव सामने हैं। इसके बाद नवम्बर माह में कई प्रमुख राज्यों के चुनाव हैं और कुछ ही महीनों में लोकसभा चुनाव भी निर्धारित हैं। इन चुनावों के परिणाम हमारे लिए पर्व के समान बन सकें यह हम सबका सामूहिक प्रयास होना चाहिए।

आज देश में भारतीय जनता पार्टी सात राज्यों में अपने बूते पर और पांच राज्यों में गठबंधन की सरकार चला रही है। देश में अनुसूचित जाति, अनूसूचित जनजाति एवं महिला विधायकों की सर्वाधिक संख्या भाजपा की है। एक ओर जहां हमारा राजनीतिक विस्तार हो रहा है वहीं हम पर सामाजिक और राजनीतिक जिम्मेदारियां भी बढ़ रही है। कांग्रेस से देशवासियों की अब कोई अपेक्षा नहीं बची है।

अनेक राज्य विधानसभाओं के आगामी चुनाव हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। तीन राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीगढ़ एवं राजस्थान में हम सरकारें चला रहे हैं। मध्य प्रदेश में श्री शिवराज सिंह चौहान, राजस्थान में श्रीमती वसुंधरा राजे और छत्तीसगढ़ में डा0 रमन सिंह की सरकारों ने अनेक लोक कल्याणकारी कार्य किये हैं जिससे जनता को लाभ पहुंचा है। आज आवश्यकता है सरकार के उन कार्यों को जन-जन तक पहुंचाने की। इसके लिए संगठन के हर कार्यकर्ता और नेता को पूर्ण मनोयोग से और अपनी पूरी ताकत से जुट जाना चाहिए।

हम अक्सर गीत गाते हैं ''देश हमें देता है सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें''। आज देश को देने वालों में कमी आई है। यह चिंता का विषय है। आज देश को देने वाले लोगों की महती आवश्यकता है। ऐसी विषम परिस्थिति में भाजपा से ही लोगों को आशा दिखती है। वह अन्य दलों से भाजपा को अलग देखना चाहते हैं। अत: हमारी प्राथमिक आवश्यकता है कि हम जनाकांक्षाओं पर खरा उतरें।

संगठन
मुझे यहां यह कहते हुए प्रसन्नता हो रही है कि देशभर में संगठन का कार्य दल, दल के मोर्चा एवं प्रकोष्ठों के माध्यम से विस्तारित हो रहा है। राज्य इकाइयां भी पूरी तरह सक्रिय है। खासकर वे राज्य जहां अक्टूबर-नवंबर माह में चुनाव हो रहे हैं वहां जनजागरण की दृष्टि से सरकार के स्तर पर एवं संगठन के स्तर पर कार्यक्रम हो रहे हैं। मसला श्रीराम सेतु को तोड़े जाने का हो, श्रीअमरनाथ श्राइन बोर्ड भूमि विवाद हो या विश्वास मत के दौरान सांसदों के खरीद-फरोख्त का मामला हो, संगठनों के आधार पर हमने देशव्यापी प्रतिक्रिया व्यक्त की। भाजयुमो की युवा क्रांति रैली, प्रदेशों में भंडाफोड़ रैली, मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में युवा जोड़ो अभियान के कार्यक्रम संपन्न हुए। विजय संकल्प रैली की दृष्टि से उड़ीसा में राउरकेला, उत्तार प्रदेश में कानपुर में प्रभावी कार्यक्रम संपन्न हुए। छत्ताीसगढ़ में विकास यात्रा को काफी सफलता मिली वहीं मध्य प्रदेश में जन-आशीर्वाद रैली सफलतार्पूक चल रही है। राजस्थान में भी अनेक सफल रैलियां और बूथ स्तर के कार्यकर्ता सम्मेलन हुए। जम्मू में सत्ता परिवर्तन रैली, अल्पसंख्यक मोर्चा का प्रभावी महिला सम्मेलन चर्चाओं में रहा। व्यापार प्रकोष्ठ, सी.ए. प्रकोष्ठ, चिकित्सा प्रकोष्ठ, मीडिया प्रकोष्ठ, पूर्व सैनिक प्रकोष्ठ, निवेशक प्रकोष्ठ, एन.जी.ओ. प्रकोष्ठ हो या किसान मोर्चा हो सभी अपने-अपने क्षेत्रों में प्रभावी कार्यक्रम का नियोजन कर रहे हैं। केन्द्र सरकार संसद में बहस से बचने के लिए भले ही संसद का सत्र नहीं बुलाएं परन्तु भाजपा ने जनता के समर्थन से सड़कों पर अपन संघर्ष जारी रखा है। भाजपा के अब तक हुए विस्तार में कार्यकर्ताओं की अहम भूमिका रही है। आगे भी भूमिका अहम रहेगी। हमारे बारे में कहा ही जाता है कि यह कार्यकर्ताओं की पार्टी है।

बूथ कमेटी
बूथ कमेटियों के गठन की प्रक्रिया लगातार चल रही है। अनेक राज्याें से बूथ कमेटी की सीडी प्राप्त हो चुकी है। इस प्रक्रिया को और तेजी से करते हुए हमें सभी राज्यों में चुनावों से पूर्व बूथ कमेटी गठन का कार्य पूरा कर लेना है।
यूपीए ने साढे चार वर्ष में जिस तरह से जनविश्वास खोया है उससे लगता है कि जनता ने परिवर्तन का मन बना लिया है। परिवर्तन के इस यज्ञ में हम सभी को अपने-अपने सामर्थ्यनुसार आहुति देने के लिए तैयार रहना होगा। हमारा लक्ष्य स्पष्ट है। संकल्प विजय का है। अत: मुझे पूर्ण विश्वास है कि आने वाला कल हमारे अनुकूल होगा और देश के समक्ष जिस विराट व्यक्तित्व को माननीय अटल बिहारी वाजपेयी की सहमति से हमने दल की ओर से प्रधानमंत्री के रूप में प्रस्तुत किया है ऐसे माननीय श्री लालकृष्ण आडवाणी निश्चित ही देश के प्रधानमंत्री बनेंगे।


आह्वान
बंधुओं, यूपीए ने साढे चार वर्ष में जिस तरह से जनविश्वास खोया है उससे लगता है कि जनता ने परिवर्तन का मन बना लिया है। परिवर्तन के इस यज्ञ में हम सभी को अपने-अपने सामर्थ्यनुसार आहुति देने के लिए तैयार रहना होगा। हमारा लक्ष्य स्पष्ट है। संकल्प विजय का है। अत: मुझे पूर्ण विश्वास है कि आने वाला कल हमारे अनुकूल होगा और देश के समक्ष जिस विराट व्यक्तित्व को माननीय अटल बिहारी वाजपेयी की सहमति से हमने दल की ओर से प्रधानमंत्री के रूप में प्रस्तुत किया है ऐसे माननीय श्री लालकृष्ण आडवाणी निश्चित ही देश के प्रधानमंत्री बनेंगे। आडवाणीजी न केवल हम सबके उम्मीद की किरण है बल्कि सारा देश उनकी ओर देख रहा है। आइए हम सभी भारत के सुनहरे भविष्य और उसकी समृध्दि के लिए एक साथ आगे बढ़ें।

मित्रों, इन राज्य चुनावों के तत्काल बाद हम लोकसभा चुनाव के वातावरण में प्रवेश कर जायेंगे। इसलिए अब यह समय आ गया है कि अभी से हमें कमर कस कर आने वाले महीनों में कठोर परिश्रम करना है और इन सभी राज्यों और केन्द्र में अपनी सरकार बनाकर ही हमें विश्राम लेना है। मैं आप सब लोगों की सामर्थ्य से परिचित हूं। आप में कठिन से कठिन कार्य को परिणाम तक पहुंचाने की सामर्थ्य है।
धन्यवाद।

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