नास्तिक मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के आस्तिक कामरेड अब पार्टी की धर्मविरोधी नीति के खिलाफ आवाज बुलंद करने लगे हैं। इनका कहना है कि अपने धर्मविरोधी चरित्र के कारण ही पार्टी केरल, बंगाल और त्रिपुरा जैसे परंपरागत दुर्गों से बाहर नहीं निकल पा रही है। इतना ही नहीं, पार्टी के धर्म प्रेमी कामरेड पार्टी में घुटन महसूस कर रहे हैं।
पिछले कुछ अर्से से किसी न किसी वजह से विवादों में रहे कन्नूर से माकपा सांसद केपी अब्दुल्लाकुट्टी ने मलयालम अखबार में लिखे लेख में यह कह कर बवाल खड़ा कर दिया है कि जिस तरह पार्टी ने संसदीय लोकतंत्र, निजी निवेश, विदेशी पूंजी और विशेष आर्थिक क्षेत्रों पर अपने रुख को बदला है उसी तरह उसे धर्म के बारे में भी अपनी सोच पर फिर से विचार करना चाहिए।
विवादों और अब्दुल्ला कुट्टी का चोली दामन का साथ रहा है। पिछले साल वे माकपा के सांसद होने के बावजूद हज यात्रा पर गए।
विवादों और अब्दुल्ला कुट्टी का चोली दामन का साथ रहा है। पिछले साल वे माकपा के सांसद होने के बावजूद हज यात्रा पर गए। जब बात फैली तो सफाई दी कि अकादमिक वजहों से गए थे। मगर यह सफेद झूठ था क्योंकि उन्होंने उमरा भी कराया था। अकादमिक वजहों से जाने वाला उमरा जैसा धार्मिक कर्मकांड नहीं कराएगा।
जब बात फैली तो सफाई दी कि अकादमिक वजहों से गए थे। मगर यह सफेद झूठ था क्योंकि उन्होंने उमरा भी कराया था। अकादमिक वजहों से जाने वाला उमरा जैसा धार्मिक कर्मकांड नहीं कराएगा। कट्टरपंथी मार्क्सवादी मुख्यमंत्री अच्युतानंदन के गुट के माने जाने वाले इन सांसद महोदय ने बुध्ददेव भट्टाचार्य की तर्ज पर यह बयान देकर पार्टी को मुश्किल में डाल दिया कि हड़ताल का हथियार अब भौंथरा पड़ चुका है। हाल ही में कुट्टी एक नाड़ी ज्योतिषी से मिलने गए थे। नाड़ी ज्योतिषी केरल की ज्योतिष शास्त्र की विधा है जिसे काफी कारगर माना जाता है। तब एक पत्रकार ने व्यंग किया था कि शायद अब्दुल्ला कुट्टी ज्योतिष से यह जानने गए थे कि भारत में कम्युनिस्ट क्रांति का योग है या नहीं। वैसे जब उनसे जवाब-तलब किया गया तो उन्होंने किसी से कहा कि वे कौतुहलवश चले गए थे। किसी से कहा कि उन्हें अपनी जन्म तिथि मालूम नहीं है, उसका पता लगाने गए थे। इन विवादों से उठा गुबार अभी थमा भी नहीं था कि उन्होंने लेख लिख कर एक नए विवाद को हवा दे दी है।दरअसल माकपा अपने को भले ही धर्मनिरपेक्ष पार्टी कहती हो, मगर असल में वह धर्मविरोधी पार्टी है। माकपा में हालांकि आस्तिक भी सदस्य बन सकता है मगर वह सदस्यों से यह अपेक्षा करती है कि वे धर्मकर्म, पूजा-पाठ जैसे कर्मकांडों से दूर रहे क्योंकि मार्क्सवाद एक भौतिकवादी विचारधारा है। फिर मार्क्स ने कहा था कि धर्म जनता की अफीम है। लेकिन इस पार्टी के कई कामरेड न केवल धर्म-कर्म में विश्वास करने लगे हैं वरन् यह भी कहने लगे है कि उन्हें पार्टी धर्म नामक अफीम का सेवन करने दे। अब तो यह भी दलील दी जाने लगी है कि माकपा का प्रभाव इसलिए नहीं बढ़ रहा क्योंकि उसने संगठन में इस अफीम पर पाबंदी लगा रखी है।
माकपा में सैध्दांतिक भटकाव बढ़ने के साथ माकपा के कामरेड भी अपनी-अपनी आस्था का प्रदर्शन करने लगे हैं। केरल विधानसभा के दो माकपा विधायकों ने धर्म के नाम पर शपथ ली थी। कुछ समय पहले पश्चिम बंगाल के मार्क्सवादी मंत्री सुभाष चक्रवर्ती तारापीठ में काली के दर्शन करने गए थे। उन्होंने न केवल वहां पूजा की, बल्कि पूजा करते समय के फोटो भी खिंचवाए। जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने अपने पूजा करने के अधिकार की दुहाई दी थी। उन्होंने यह भी कहा था-मैं जहां भी जाता हूं वहां मेरे नाम से यही संकेत मिलता है कि मैं पहले हिंदू हूं और फिर ब्राह्मण। यह भी कहा कि वे लाल सलाम के बजाय भारतीय परंपरा के प्रणाम या नमस्कार अभिवादन को ज्यादा पसंद करते हैं।
विवाद करने के लिए मशहूर सुभाष चक्रवर्ती ने अपने झमेले में ज्योति बसु को भी खींच लिया और कहा कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद ज्योति बसु भी अपना सिर ढंक कर एक गुरुद्वारे में गए थे। इसके बाद उन्होंने एक बार यह भी धमकी दी कि वे उन माकपा नेताओं का नाम उजागर कर सकते हैं। एक बार चक्रवर्ती ने ट्रांसपोर्ट सेक्टर के मजदूरों से अपील की थी वे विश्वकर्मा पूजा धूमधाम से मनाएं।
चक्रवर्ती की इन बातों से माकपा की काफी छीछालेदार हुई, मगर पार्टी ने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। शायद इसलिए क्योंकि इससे पार्टी के धर्मप्रेमी समर्थकों की भावनाएं आहत होंगी फिर चक्रवर्ती अपने खास लोकप्रिय भी हैं।
लेकिन केरल में माकपा का मुसलिम मुखौटा रहे अब्दुल्ला कुट्टी ने इन सबको काफी पीछे छोड़ दिया है। उनका कहना है कि हमारे समाज में आस्तिकों की संख्या बढ़ती जा रही है। इसलिए पार्टी को ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपने साथ लाने के लिए अपने द्वंद्वात्मक भौतिकवाद में परिवर्तन करना होगा। माकपा अब भी धर्म के साथ अपने रिश्तों को लेकर भ्रम में है। मुझे सार्वजनिक रूप से धर्म में अपनी आस्था की घोषणा करने में इस कारण बहुत पीड़ा होती है। मैंने उन कई कम्युनिस्ट नेताओं की मानसिक पीड़ा को व्यक्त किया है जो सार्वजनिक तौर पर अपने धार्मिक आस्थाओं को व्यक्त नहीं कर पाते।
जनसत्ता (01 अक्टूबर, 2008) से साभार
6 comments:
आभार।
मुस्लिम मतों के लिए माकपा सब कुछ सहन कर सकती हैं। माकपा द्वंद्वात्मक भौतिकवाद को ठुकरा रही है।
Beshak
विचार मंथन से सहमत हूं
आपके ब्लॉग को मोहल्ला पर 'राष्ट्र तोड़क ब्लाग' करार दिया गया है. इस लिए मैं आपके ब्लाग पर आया. आप एक बहुत अच्छा काम कर रहे हैं. करते रहिये.
बहुत बढ़िया ब्लॉग है. काश कुछ और लोग भी आपकी तरह राष्ट्र तोड़क होते तो शायद यह राष्ट्र कभी नही टूटता. द्वंद हर जगह है लेकिन, साम्यवदियो ने तो अपने फायदे के लिए सबकुछ किया. हरकिशन सिंह सुरजीत का बेटा लन्दन में व्यवसायी है, लेकिन हरकिशन सिंह हमेशा पूंजीवाद को गाली देते रहे लेकिन अपने बेटे को अपनी पहुँच के जरिये ही व्यवसायी बनाया.
वही हाल प्रकाश करात का है...
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