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Tuesday 14 October, 2008

साम्‍यवाद को आतंकवाद से प्रेम है

बेटा, कौन देश को बासी!
कौन बाप, कौन महतारी, कौन हौ तेरो धाय?
माओ को तू मातु कहत हौ, लेनिन बाबा लागत॥
लाल लाल जप गाल बजावत रार द्वन्द्व तुम ठानत।
भारत तेरो धाय सुनत मोहे पल-पल हांसी आवत॥
करतल ताल बजावत 'रसिया', तू मरकट ज्यौं नाचत।
कहत शूर सुन लाल मार्क्‍स के काहे न गांजा छाड़त॥

जेएनयू में जारी विद्यार्थी परिषद का पर्चा

दिनांक : 07।10।2008

मित्रों,

हमें यकीन था कि वो हमारे लिए जवाब लिखेंगे। आखिर कैसे हमारे लिखे को यूं ही भुला देते वो? परन्तु दिल की बात कहें तो हम बहुत नाउम्मीद हुए। मित्रो, अब आप से क्या छुपाना! हम 8 दिनों तक बेसब्री से इंतजार करें और जब जवाब आए तो नतीजा फिर वही ढाक के तीन पात? हद कर दी उन्होंने मासूमियत की! वो कहते हैं ''यानी कंधमाल से कर्नाटक तक, उसके पहले गुजरात में और एमपी समेत पूरे देश में 'दूसरी कौमों'' को मिटाने के लिए जो कुछ किया गया, वही आतंकवाद है।'' अब कोई ये कैसे बताए कि ये चीजें शुरू किसने की? गोधरा या फिर कंधमाल, हमेशा निर्दोष हिन्दुओं को क्यों निशाना बनया जाता है? क्या हम संख्या में कम हैं इसलिए क्रिश्चियनिटी या इस्लाम की आंखों में खटकते हैं। मित्रों एक सर्वविदित तथ्य है कि इस्लाम और क्रिश्यिनिटी के बीच वैश्विक स्तर पर चल रहे युध्द का अंतिम उद्देश्य संपूर्ण विश्व पर आधिपत्य स्थापित करना है। भूमंडलीकरण, साम्राज्यवाद और नवउपनिवेशवाद नामक विचारधाराओं और उपकरणों का प्रयोग अमरीका और उसके पिछलग्गू क्रिश्चियन विश्व द्वारा इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ इस्लाम आतंकवाद, मुस्लिम ब्रदरहुड, जेहाद जैसे अस्त्रों का प्रयोग ठीक इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कर रहा है। तो हे मार्क्‍सपुत्रों/पुत्रियों, भारत में गोधरा, कंधमाल जैसी जगहों पर जब निर्दोष हिन्दुओं को निशाना बनाया जाता है तो उसके पीछे यही साम्राज्यवादी, विस्तारवादी सोच काम करती है। और इसीलिए गोधरा में हिन्दुओं को सरेआम जला देना, कंधमाल में 82 वर्षीय वृध्द की बेशर्मी से हत्या करना इत्यादि घटनायें आतंकवाद की श्रेणी में आती हैं। रही बात अलकायदा और लश्कर को आतंकवादी संगठन कहने की, तो ऐसा कहना इसलिए उचित है क्योंकि ये संगठन अपनी कौम को नहीं मिटा रहे हैं, बल्कि ये तो अपनी कौम के उन लोगों को मिटा रहे हैं जो उनसे अलग विचार रखतें हैं या दूसरे शब्दों में कहें तो मॉडरेट हैं। अत: इसीलिए ग्राहम स्टेंस की हत्या वैश्विक अल्पसंख्यकों की वैश्विक बहुसंख्यकों के आतंकवाद का जबाव था, वहीं बेनजीर भुट्टो पर किया वार 'आतंकवाद' था। दूसरी कौम का बिल्ला सटीक बैठता है तो हम अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर। क्यों हम निरीह प्राणी की तरह देखते रहते हैं जब अपने किसी पड़ोसी देश में हिन्दुओं, सिखों, बौध्दों का अपमान होता है, या फिर बड़ी क्रूरता से दमन किया जाता है।

मित्रों, आज जब वैश्विक न्याय, वैश्विक मानवाधिकार की बात हो रही है तो ऐसे में वैश्विक अल्पसंख्यकों को लगातार प्रताड़ित किये जाते रहने की घटना के खिलाफ कोई आवाज क्यों नहीं उठाई जाती? रही बात 'जार्ज बुश' की तो हे वयस्क नादानों, गोरी चमड़ी की गोरी विचारधारा तुम्हारा प्रेरणास्रोत हो सकती है, हमारा नहीं।

हमारे भारतवर्ष में प्राचीन काल से इतना सामर्थ्य रहा है कि हम सम्पूर्ण विश्व को मानवता की राह दिखा सकें। तुम्हारा सारा बैलिस्ट मैनिफेस्टो, तमाम मोटे ग्रंथों की विचार धारा हमारे बस एक लाइन में समा जाती है - सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामया। अब तुम्हें समझ में आ गया होगा कि परिभाषा का स्वघोषित निष्कर्ष क्या है। अब हम उम्मीद करते हैं कि तुम अपने कांव-कांव की रट लगाना छोड़कर कुछ अध्ययन करके ही पुन: लिखने बैठोगे।

मित्रों, इनका दूसरा प्रश्न था ''अब बताईये 'हिंसा, हत्या, घृणा और बर्बरियत को जो लोग 'विशिष्ट गुण' समझते हैं, उन लोगों को क्या समझा जाये ?'' मित्रो, हम इन वयस्क मासूमों को समझाना चाहेंगे कि 'विशिष्ट' शब्द का प्रयोग सिर्फ सकारात्मक परिप्रेक्ष्य में नहीं होता है। यह नकारात्मक परिप्रेक्ष्य में भी उतने ही सार्मथ्य के साथ अनुप्रयोगणीय है। हम जब कहते हैं कि 'विशिष्ट गुण' तो इसका मतलब नकारात्मक परिप्रेक्ष्य में लिया जाना चाहिए। पिछले 10 सालों से जो पर्चे आ रहे हैं उन्हें कट, कॉपी पेस्ट कर के कब तक काम चलाओगे? पिछले 10 सालों में न तो इनके मुद्दे बदले हैं ना ही चाल-ढ़ाल। वैसे सुना है कि हिंदी अध्ययन केंद्र इनका गढ़ रहा है। तो फिर क्यों एक जवाब लिखने में इनको 8 दिन लगता है और फिर जब जवाब आता है तो पुन: बचकाने प्रश्न, बचकानी लिखावट!

मित्रों, हम इन्हें 'शाखा ट्रेनिंग' के बारे में भी बताते/समझाते चलें। तो सुनो- शाखा में ट्रेनिंग दी जाती है ताकि हम गोवा पर आक्रमण, कश्मीर घाटी में विदेशी आक्रमण, इंदिरा गांधी की तानाशाही को रोकने के लिए संपूर्ण क्रांति जैसे आंदोलनों और प्राकृतिक आपदाओं के समय राष्ट्र के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल सकें। हमें ऊर्जावान, ओजवान और शक्तिशाली छात्र-छात्राओं की जरूरत है। ऐसे लोगों की नहीं जो अपने शरीर में घुन लगा चुके हैं। युवावस्था में ही 80 साल के वृध्द लगते हैं। हर बात में जिन्हें दो कश के सहारे की जरूरत पड़ती हो वो क्या सहारा देंगे हिन्दुस्तान को? रही बात एक विशिष्ट समुदाय के प्रति इनकी सहानुभूति की, तो हम इनसे जानना चाहेंगे कि रमजान के मौके पर चीन में जब सामूहिक प्रार्थना पर बैन लगाया गया या फिर जिस तरह से रूस और चीन अपने-अपने राज्यों में मुसलमानों का दमन करते रहते हें....... तो फिर इनकी सहानूभूति कहां चली जाती है?

मित्रों, एक और बात सुनिये इनकी ''सबूतों और तथ्यों'' के अभाव में, केवल आरोप के आधार पर हिरासत में लिये गए किसी संदिग्ध को आतंकवादी न कहा जाये'' हम इनसे पूछना चाहते हैं कि ये कौन से अखबार पढ़ते हैं ? हर अखबार में गिरफ्तार व्यक्ति के नाम के पहले 'आरोपित' संदिग्ध या Accused लिखा होता है। परन्तु इनकी नजरें इस शब्द पर नहीं पड़ती होंगी, क्योंकि इन्हें आतंकवाद से ज्यादा प्रेम है। साम्यवाद पर तो निराशा के बादल छा गये हैं, दूर-दूर तक साम्यवाद स्थापित होने के आसार भी नहीं नजर आ रहे हैं, तो क्यों न कुछ इधर-उधर की घटनाओं से खुद को व्यस्त रखा जाये और कुछ पृष्ठ भरे जायें।

ये ठीक कहते हैं कि हिन्दू होना गर्व की बात है परन्तु मित्रो, सोचिये हम किस प्रकार के हिन्दू हैं? जातिगत आधार पर बंटे हुए, धार्मिक आधार पर बंटे हुए, क्षेत्रीय आधार पर बंटे हुए। मित्रो, हिंदू होने के लिए आवश्यक है इन सभी संकीर्ण मानसिकताओं का त्याग करना। हिन्दू वे सभी हैं जो इस भारत भूमि को पितृभूमि तथा पुण्यभूमि मानते हैं, चाहें वो सिख हों, बौध्द हों, जैन हों या फिर मुसलमान भाई। हिन्दुत्व इसी हिन्दुइज्म का essence है। इनका सवाल है कि हिन्दू होना जितने गर्व का विषय है, मुसलमान होना भी ठीक वैसा ही, उतने ही गर्व की बात क्यों नहीं है? तो ऐसा इसलिए है कि जब हम ये कहते हैं कि हम हिन्दू हैं तो इसका मतलब हम धर्म-जाति की भावनाओं से ऊपर उठ रहे हैं तथा राष्ट्र के लिए एक सेवा-भाव का संकल्प ले रहे हैं। यह शंका योग्य बात नहीं है कि मुसलमान होना भी गर्व की बात है। परन्तु यह गर्व कहीं अभिमान में न बदल जाये इससे बचना होगा। वैश्विक इस्लामिक आतंकवाद इसी गर्व की अभिमान में परिणति हैं। यह अभिमान ही उत्साहित करता है दूसरे अल्पसंख्यक कौमों की हत्या करने को। यह अभिमान ही उत्साहित करता है संपूर्ण विश्व पर अधिपत्य स्थापित करने की, चाहे वह इस्लाम हो या ईसाई।

रही बात दलितों-आदिवासियों-पिछड़ों-मुसलमानों के निर्णायक राजनीतिक गठजोड़ की; तो मित्रों हम आपसे यह पूछना चाहेंगे- किसने हक दिया चीनी चम्पुओं को कि ये दलित, आदिवासी जैसे शब्दों का प्रयोग करें? क्‍यों अपने आपको ये 'आधुनिकतावासी' समझते हैं और दूसरों को 'आदिवासी'? क्यों ये खुद को मसीहा समझते हैं और दूसरों को दलित? हमारे लिये आदिवासी नहीं वनवासी उपयुक्त है। दलित नहीं वंचित। हमारे वनवासी भाईयों की भी अपनी एक विशिष्ट विभिन्न जीवनशैली है जिसमें वो संतुष्ट हैं। उन्हें जब जरूरत होगी वो खुद अपने आप को वर्तमान परिवेश में ढाल लेंगे। वंचित वर्ग को भी आवश्यकता है अपनी लड़ाई खुद लड़ने की। ब्राह्मण्ावादी वामपंथ ने आज तक किसी लड़ाई के राजनीतिक लाभ के अलावा कभी और कुछ नहीं किया।

आज हम इस पर्चे के माध्यम से अपने वंचित भाइयों से यह अपील करना चाहेंगे कि सामाजिक व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन के लिए उनका आगे आना जरूरी है। हम सदैव उनके प्रयासों का समर्थन करेंगे। वैसे हम अपने लाल वामपंथी (असली लाल कौन है इन्हें खुद पता नहीं) मित्रों से पूछना चाहेंगे कि ये क्यों खुद को इस लायक समझते हैं कि सब की लड़ाई ये खुद लड़ेंगे? पहले साम्यवादी लक्ष्य किसी एक राज्य में पूरा करके दिखाओ। वैसे छोड़ो तुम्हारे बस का यह भी नहीं; अपने 4-5 विधायकों के साथ खुश रहो और आत्ममुग्ध थी।

मित्रों, आखिर भारत में बम विस्फोट होने से किसका फायदा है? अगर एक बम विस्फोट के बदले ही फिर से ढोल ढपली लेकर Protest Demo आयोजित करने का अवसर मिले तो बुराई क्या है। दो तीन बार किसी को condemn करने में बुराई क्या है? Condemn करो, गांजा फूंको और सो जाओ। बाकी कर भी क्या सकते हो तुम? गोरी चमड़ी की गोरी विचारधारा को बहुत दिनों से खींचते-खींचते ढोते-ढोते बेचारे बैल थक तो गये ही होंगे।

मित्रों, आज हम भारतवासी दिशाहीन, जीवन जी रहे हैं। कोई विस्फोट करता रहे परंतु हिंदू जन-मानस को आवाज उठाने का अधिकार नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हम दो तरफ से पाटों में पिस रहे हैं। साम्राज्यवादी अमरीका और साम्राज्यवादी इस्लाम दो ऐसे दैत्य हैं जो सम्पूर्ण विश्व को अपने जबड़े में कसकर पकड़ना चाहते हैं। मित्रो, उठो ऐसे दोनों ताकतों का कस कर पूरी जीवन शक्ति के साथ विरोध करो। कहीं तुम्हारी सहनशीलता नपुंसकता में न तब्दील हो जाये और तुम्हें प्रार्थना करनी पड़े - वो बेदर्दी से सर काटें मेरा और मैं कहूं उनसे, हुजूर आहिस्ता, आहिस्ता, जनाब आहिस्ता!

मित्रों, राष्ट्रनिर्माण एक सतत् चलने वाली प्रक्रिया है। आतंकवाद इस प्रक्रिया को रोकने के लिए ही नहीं वरन् राष्ट्र को ही विखण्डित करने की दिशा में किया जा रहा प्रयास है। आज चाहे हमारे वनवासी बंधु हों, वंचित बंधु हों या पिछड़े बंधु हों, हम सभी से यह निवेदन करना चाहेंगे कि आगे बढ़कर राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में बढ़-चढ़ कर योगदान दें। हम ऐसे सभी वर्गों के स्वागत को तत्पर हैं तथा साथ ही हम उनसे इस राष्ट्रनिर्माण की दिशा को एक नयी उर्जा प्रदान करने की उम्मीद करते हैं। वे खुद हमारे अग्रसर नेता बनें तथा हमारे प्रयासों को सफल करें।

चलते चलते हम अपने वामपंथी भाइयों से एक बार पुन: अनुरोध करना चाहेंगे कि कुछ समय लाइब्रेरी में व्यतीत किया करें। शारीरिक घुन अगर कहीं मस्तिष्क में पहुंच गया तो बेचारे दिवालिये हो जायेंगे।

6 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

sinha ji, sahi baat likhne wale kuchh hi log hain, jin par anavashyak roop se fasist hone ka thappa laga diya jata hai, jaari rakhen

Sanjeev said...

इस्लाम और साम्यवाद पूरी दुनिया में आतंक फैला तथा विमत का दमन कर के ही फैले हैं। खुद को अहिंसक बताने वाले ईसाईयों के क्रूसेड के बारे में भी जानकारी देने से सही गलत का फैसला कर सकने में आम जनता को मदद मिलेगी। आप का लेख सारपरक तथा सत्य का दर्शन कराने वाला है। लिखते रहिये।

काशिफ़ आरिफ़/Kashif Arif said...

संजीव कुमार जी सबसे पहले बधाई स्वीकार करे काफ़ी अच्छा लिखते है मैं आपकी बात से सहमत हूँ लेकिन इसमे एक कमी थी वो यह की आपने जो इस्लाम का नाम लिया कृपया करके इस शब्द का प्रयोग न करे क्यूंकि पुरी दुनिया में जो धमाके हो रहे हैं वो लोग "आतंकवादी" हैं, "जेहादी" नही क्यूंकि इस्लाम में दूसरे धर्म के लोगो, और बेगुनाहों को मारने का हुक्म नही है, न ही कुरान की किसी आयत में कहा गया है की "तुम बेगुनाहों या गैर - मुसलमानों को मारो, किसी के अपने आपको जेहादी कहने से वो जेहादी नही हो जाता...........

यह लोग हमारे मज़हब के ठेकेदार नही हैं, ना ऐसे लोग मुसलमान हैं क्यूंकि इस्लाम में बेगुनाह का कत्ल करने वाले की सज़ा मौत है,

रंजना said...

बड़ा ही सशक्त और सार्थक लिखा है आपने.

सुनील सुयाल said...
This comment has been removed by the author.
सुनील सुयाल said...

जिसे लगता हो की कुरान में अमन का सन्देश है तो वेह हदीश ठीक से पढ़ ले!दारुल अमन ,दारुल हरब ,दारुल इस्लाम ,जेहादी ,गाजी ,काफिर की कुरान मै क्या अवधारणा है स्पष्ट कर ले फिर बात करे !अगर इतना ही अमन का पाठ कुरान मै पढाया जाता है तो क्यों पांच समय का नमाजी लादेन जेसे अपने कुक्रत्यो को इस्लाम की खिदमत कहते है..?ये सब बाते मै किसी भावनाओ को आहात करने के लिए नहीं लिख रहा हू !बल्कि इसलिए लिख रहा हू की, मुस्लिम ये राग अलापना छोड़ अपनी कमियों को स्वीकार करे ,क्योकि ये देश की सुख -शांति के पक्ष मै नहीं है ............!