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Tuesday, 13 November 2007

सच्चाई के खिलाफ साजिश- बलबीर पुंज

विगत 25 अक्टूबर को कुछ टीवी चैनलों पर आपरेशन कलंक और गुजरात का सच शीर्षक से गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बनाने के लिए किए गए स्टिंग ऑपरेशन को प्रसारित किया गया। कांग्रेस को मदद पहुंचाने में जुटे चर्च और विदेशी सहायता प्राप्त कुछ स्वयंसेवी संगठनों के वित्तपोषण पर रची गई इस साजिश का एक ही उद्देश्य था, 2002 के गुजरात दंगों के जख्मों को कुरेद कर कांग्रेस के लिए चुनावी मुद्दा उपलब्ध कराना और भाजपा सरकार ने अपने कार्यकाल में जिस विकसित और सशक्त गुजरात का निर्माण किया है उसकी ओर से जनता का ध्यान हटाकर समाज को पंथिक तनाव में झोंकना। जिन चौदह लोगों के बयान कैमरे में कैद किए गए हैं उनमें से तीन- बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी, विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता सुरेश रिचर्ड और रमेश दवे का सफेद झूठ सामने आ चुका है। बाबू बजरंगी और रिचर्ड ने कैमरे पर कहा कि उसने नरोदा पाटिया में मुसलमानों की हत्या की और पल-पल की जानकारी गृहमंत्री को मिलती रही। गृहमंत्री और मुख्यमंत्री से उसे शाबाशी भी मिली और जब नरेंद्र मोदी दंगे के एक दिन बाद (28 फरवरी) नरोदा पाटिया के दौरे पर आए तो उन्हें धन्यवाद कहा। आधिकारिक रिकार्ड के अनुसार उक्त तिथि को मोदी वहां गए ही नहीं।

बाबू बजरंगी और रिचर्ड की तरह विहिप कार्यकर्ता रमेश दवे ने दावा किया कि दरियापुर क्षेत्र के डीएसपी एसके गांधी ने उनसे पांच मुसलमानों को मारने का वादा किया था और उन्होंने अपना वादा पूरा भी किया। जबकि आधिकारिक रिकार्ड के अनुसार दरियापुर दंगे के एक माह बाद गांधी की वहां बहाली हुई थी और उनके कार्यकाल में दंगे की एक भी घटना नहीं हुई। जालसाज पत्रकारों का एक और निशाना बने सरकारी वकील अरविंद पांड्या। उनके मुंह से नानावती आयोग के दोनों न्यायाधीशों की प्रामाणिकता और निष्पक्षता पर कीचड़ उछलवाया गया था, जबकि पांड्या के अनुसार एक चैनल के पुराने परिचित पत्रकार ने उनसे एक टीवी सीरियल पागल तमाशा के लिए संपर्क किया था। पत्रकार ने कुछ वास्तविक चरित्रों को शामिल करने के नाम पर उन्हें अपने जाल में लपेट लिया। अरविंद पांड्या को एक लिखित स्क्रिप्ट पढ़ने को दी गई। तीन-साढ़े तीन घंटे की इस रिकार्डिग में से अनुकूल वाक्यों को इस स्टिंग ऑपरेशन में जोड़ दिया गया।

वस्तुत: गुजरात में चुनावी सरगर्मी बढ़ने के साथ ही सेकुलरिस्टों का दुष्प्रचार भी तेज हो गया है। गोधरा संहार की प्रतिक्रिया में भड़के दंगों में 790 मुसलमान और 254 हिंदू मारे गए थे। पांच साल पूर्व की इस घटना के लिए अब तक पंद्रह से अधिक हिंदू-मुसलमानों को दंडित किया जा चुका है। इसकी तुलना में 23 साल पूर्व कांग्रेस पार्टी द्वारा प्रायोजित देशव्यापी सिख नरसंहार में तीन हजार से अधिक सिख मारे गए थे, किंतु अब तक केवल तेरह पर ही आरोप लगाए गए हैं, दोष सिद्ध होना बाकी है। कांग्रेस से जुड़े तमाम बड़े नेता आरोपों से बरी किए जा चुके हैं। जगदीश टाइटलर पर अभी मामला अदालत में चल रहा है, लेकिन कांग्रेस के बचाव में सीबीआई ने हाल में उन्हें भी क्लीन चिट दे दी, जिस पर अदालत ने अपनी आपत्ति भी व्यक्त की है। सेकुलर मीडिया को यहां दायित्वबोध नहीं होता। लोकतंत्र का सजग प्रहरी होने के नाम पर गुजरात दंगों के दौरान सेकुलर मीडिया ने जिस तरह अतिरंजित कथानकों के साथ समाचार परोसे, उसका एक ही उद्देश्य था- सारी दुनिया में नरेंद्र मोदी और भाजपा की छवि हिटलर और नीरो के रूप में बनाना। हकीकत यह है कि वहां के स्थानीय समाचार पत्र गुजरात के जिस सच को प्रकाशित कर रहे थे उसकी सेकुलर राष्ट्रीय मीडिया में अनदेखी की गई, किंतु राज्य की जनता उससे प्रभावित नहीं हुई।

गुजरात दंगों के लिए भाजपा पर लगाए जा रहे झूठे आरोपों के बावजूद जनता ने दूसरी बार भी राजकाज चलाने का भार भाजपा को सौंपा। उसके बाद हुए नगर निगम, नगर पालिका और ग्राम सभा के चुनावों में भी भाजपा को भारी बढ़त के साथ जीत हासिल हुई। भाजपा के दूसरे कार्यकाल में एक भी दंगा नहीं हुआ। दिल्ली-कोलकाता-चेन्नई में आज चौबीस घंटे भले ही बिजली की आपूर्ति नहीं हो, किंतु गुजरात के गांवों में दिन-रात बिजली की अबाधित आपूर्ति हो रही है। कभी पानी की किल्लत से जूझ रहे गांवों को नियमित जल उपलब्ध हो रहा है। गुजरात आज दूसरे राज्यों को भी जल की आपूर्ति कर रहा है। विकास के मामले में गुजरात देश का अव्वल व समृद्ध राज्य है। यहां विकास दर 10 प्रतिशत से अधिक है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने कहा है कि विदेशी निवेश के मामले में गुजरात पहले नंबर पर है और पूरे देश का चौथाई से अधिक विदेशी पूंजी निवेश अकेले गुजरात में हुआ। अंतरराष्ट्रीय संस्था-अर्नस्ट एंड यंग ने गुजरात की 72 योजनाओं का अध्ययन किया और उसे देश के दूसरे राज्यों के लिए अनुकरणीय बताया। राजीव गांधी फाउंडेशन ने गुजरात को सर्वोत्तम राज्य कहा है। अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठन ने गुजरात की स्वास्थ्य संबंधी योजनाओं की सराहना की है, जिसे हाल में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री भी दोहरा चुके हैं। जिस विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) योजना के कारण कई राज्यों में हिंसा व्याप्त है, उस सेज योजना में भी गुजरात सबसे आगे है। कहीं कोई हिंसा नहीं। 2007 में जो राज्य विकास की प्रयोगशाला बन चुका है, उसे बार-बार 2002 के कथित हिंदुत्व की प्रयोगशाला से क्यों जोड़ा जा रहा है? सन 2002 से ही नरेंद्र मोदी और गुजरात पर निरंतर कीचड़ उछालने में लगे शबनम हाशमी, तीस्ता सीतलवाड़, हर्ष मंदर, मुकुल सिन्हा, कैथोलिक चर्च के फादर सेड्रिक प्रकाश, दलित नेता मक्वान मार्टिन और उनके द्वारा खड़े किए गए स्वयंसेवी संगठनों के वित्तीय स्त्रोत क्या हैं।

यदि फर्जी आंकड़ों और गवाहों के आधार पर 2002 की गुजरात सरकार नरसंहार की आरोपी है तो 1984 की कांग्रेस सरकार को क्या संज्ञा दी जाए। गुजरात के दंगों के तुरंत बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दंगों को देश का कलंक की संज्ञा दी और मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को राजधर्म निभाने का निर्देश दिया। इसके विपरीत 1984 के सिख दंगों के मामले में देश को 21 वर्ष प्रतीक्षा करनी पड़ी। 2005 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 1984 के दंगों के लिए देश से क्षमा याचना की। 1984 के दंगों की विभीषिका के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने दंगों को लगभग न्यायोचित ठहराते हुए कहा था, जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है। अगले महीने गुजरात की जनता को अपनी नई सरकार चुननी है। चुनावी मुद्दा क्या होना चाहिए। 2002 का गोधरा कांड और उसके बाद के दंगे या गुजरात का अब तक का विकास और आगे की योजना। नरेंद्र मोदी, जिनका वर्षो से पंथिक आधार पर दानवीकरण किया गया, तो साढ़े पांच करोड़ गुजरातियों के विकास और अस्मिता के मुद्दे पर चुनाव लड़ रहे हैं, किंतु उनके विरोधी दंगों के जख्मों को कुरेद कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकना चाहते हैं। क्या यह भारतीय सेकुलरिज्म का घिनौना सच नहीं।
लेखक भाजपा के राष्ट्रीय सचिव हैं।

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