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Monday, 3 December 2007

बेनकाब हुआ सीपीएम का सांप्रदायिक चेहरा

लेखक- डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

कहते हैं चीता अपनी धारियाँ नहीं छुपा सकता लेकिन सीपीएम की दाद देनी पड़ेगी कि उसने 30 साल तक न केवल न अपनी धारियाँ छिपा कर रखीं बल्कि अपने चीता होने का प्रमाण भी छिपाए रखा। अब जब पर्दा हटा है तो उसके खूंखार पंजे पैने दांत स्पष्ट दिखाई देने लगे हैं।

सीपीएम की पूंजीवादी धारियाँ तो पिछले 6-7 सालों से तेजी से प्रकट होनी शुरू हो ही गई थीं। लेकिन वे पूंजीवादियों के दलाल ही बन जाएंगे ऐसा किसी ने नहीं सोचा था। नंदीग्राम को देखकर लगता है कि वहां सीपीएम के लोग नहीं लड़ रहे बल्कि किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी के प्रशिक्षित गुंडे आम जनता पर अत्याचार ढा रहे हैं। नंदीग्राम में पूंजीपतियों के पक्ष में सीपीएम का बंदूक लेकर गांव-गांव में निकल पड़ना और विरोध के हर स्वर को गोली से शांत कर देना। उसका एक पक्ष था। लेकिन पिछले दिनों उसका जो दूसरा सांप्रदायिक पक्ष सामने आया है वह उसके पूंजीवादी पक्ष से भी ज्यादा खतरनाक है।

अभी तक नंदीग्राम के संघर्ष को किसी ने सांप्रदायिक दृष्टिकोण से मूल्यांकित नहीं किया था। नंदीग्राम में जो लड़ रहे हैं, वे किसान हैं । न वे हिन्दू हैं, न वे मुसलमान हैं। वे किसान अपनी जमीन के लिए लड़ रहे हैं। उनमें से ज्यादातर किसी राजनैतिक दल से ताल्लुक भी नहीं रखते। वे अपनी रोजी रोटी के लिए अपने अधिकारों के लिए उस राज्य सरकार से लड़ रहे हैं जो राज्य सरकार जाहिर तौर पर इन्हीं के हितों का पोषण करने की बात कहती रही हैं। लेकिन पिछले दिनों कोलकाता में जो कुछ हुआ उसने सीपीएम को बीच चौराहे में नंगा कर दिया। किसी अखिल भारतीय अल्पसंख्यक फ्रंट के लोगों से नंदीग्राम को लेकर प्रदर्शन करवाया गया। वह सीपीएम के सांप्रदायिक चेहरे को बेनकाब करता है।

सीपीएम नंदीग्राम को हिन्दू-मुस्लिम समस्या का रूप देना चाहती है। इतना ही नहीं, उसने इसी अल्पसंख्यक फ्रंट के माध्यम से नंदीग्राम के साथ ही तसलीमा नसरीन के वीजा के प्रश्न को नत्थी कर दिया। अल्पसंख्यक फ्रंट के लोगों का कहना है कि नंदीग्राम में मुसलमानों पर अत्याचार हो रहा है। सरकार मूल रूप में ही मुसलमानों के खिलाफ है। इसका एक और सबूत यह है कि पश्चिमी बंगाल सरकार ने तसलीमा नसरीन को कोलकाता में रखा हुआ है। उसे तुरंत बंगाल से निकाला जाना चाहिए। अन्धा क्या मांगे दो ऑंखे। सारी की सारी सीपीएम क्या बुध्द देव भट्टाचार्य और क्या विमान बोस, क्या सीताराम येचुरी और क्या प्रकाश करात सब तसलीमा के पीछे लठ लेकर पड़ गए हैं। अल्पसंख्यक फ्रंट को खुश करने के लिए सीपीएम की सरकार ने तसलीमा नसरीन को जबरदस्ती विमान में बिठचकर राजस्थान रवाना कर दिया। यहां तक कि उसे नित्य प्रयोग के कपड़े भी उठाने नहीं दिए। सीपीएम का यह निर्लजतापूर्ण सांप्रदायिक आचरण यद्यपि ऊपर से स्तंभित कर देने वाला है लेकिन जो इस दल के इतिहास से वाकिफ हैं वे जानते हैं कि सत्ता में बने रहने के लिए सीपीएम कभी भी घनघोर घंघोर सांप्रदायिक व्यवहार कर सकती है। नंदीग्राम में सर्वहारा की एकता को तोड़ने के लिए सीपीएम द्वारा चलाया गया यह घृणित सांप्रदायिक हथियार है।

सबसे बड़ी बात यह है कि तसलीमा नसरीन मूल रूप से बंग भाषी ही है। यदि वह किसी और प्रांत की होती तो शायद अल्पसंख्यक फ्रंट को खुश करने केलिए सीपीएम के लोग उसे खुद ही रात के अंधेरे में बांग्लादेश की सीमा में धकेल देते। सर्वहारा के लिए संघर्ष करने का दम भरने वाली सीपीएम किसी दिन सत्ता सुख के लिए अपनी सांप्रदायिक जीभ से ही दंश मारेगी ऐसा कम से कम बंगाल के किसानों ने और नंदीग्राम में अपने अधिकारों के लिए लड़ने वाले लोगों ने नहीं सोचा होगा। अलबत्ता सीपीएम के पक्ष में इतना जरूर जाता है कि उसकी दार्शनिक आधार भूमि शुरू से ही यह मानती है कि सत्ता बंदूक की नली से निकलती है। वक्त पड़ने पर उन्होंने नंदीग्राम के माध्यम से बता भी दिया है कि पिछले 30 सालों से इसी बंदूक की नली से पश्चिमी बंगाल की सत्ता पर कब्जा जमाए हुए हैं। अब जब नंदीग्राम के लोगों ने साहस करके बंदूक की नली को ही पकड़ लिया हैतो सीपीएम वालों ने उनकी सफों में सांप्रदायिकता का सांप छोड़ा है। इस आशा के साथ कि शायद वह सर्वहारा की एकता को तोड़ दे या कम से उनको डरा ही दे। इसके लिए सीपीएम तसलीमा नसरीन को बली का बकरा बनाना चाहती है।

1 comment:

Ashish Maharishi said...

नंदीग्राम का दर्द इतनी आसानी से नहीं भुलाया जा सकता है..