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Friday 18 January, 2008

अपने ही देश में हुए पराये


लेखक: डा. विवेक कुमार

कश्मीर घाटी में पहले छोटे-बड़े गैर मुस्लिम व्यापारियों को भगाया गया, फिर सदियों से रह रहे कश्मीरी पंडितों को खदेड़ा गया, अब पिछले दिनों गैर कश्मीरी मजदूरों पर गाज गिराई गई जो अभी भी निरंतर जारी है। जैस ए मुहम्मद और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठनों ने घाटी में रह रहे गैर कश्मीरी श्रमिकों को एक सप्ताह के अंदर-अंदर घाटी छोड़ने का अल्टीमेटम दिया है। इस अल्टीमेटम के पश्चात गैर-कश्मीरी श्रमिकों में भगदड़ सी मच गइ। उनका बड़े पैमाने पर पलायन शुरू हो चुका है। घाटी से बाहर जाने वाली बसों में जगह पाने के लिये श्रीनगर बस स्टैंड पर गैर कश्मीरी श्रमिकों की लंबी कतारें देखने को मिलती हैं।

एक ओर गैर कश्मीरी-श्रमिकों को भगाने की मुहिम है, दूसरी ओर पर्यटकों पर जानलेवा हमले हो रहे हैं। श्रीनगर में एक पर्यटक बस में धमाका किया गया, जिससे चार गुजराती, जो घाटी में सैर करने के लिये आये थे, मारे गये। अमरनाथ यत्रियों पर भी निशाने साधे जा रहे हैं। कश्मीर में गैर-कश्मीरी श्रमिकों की संख्या लगभग तीन लाख है। वे पिछले कई वर्षों से कश्मीर की अर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग बने हुए हैं। आतंकी संगठनों के अल्टीमेटम के पश्चात इनका घाटी में रहना अत्यंत कठिन होता जा रहा है। श्रीनगर रोड ट्रांसपोर्ट सर्विस के एक अधिकारी के अनुसार अब तक हजारों गैर कश्मीरी श्रमिक घाटी छोड़ चुके हैं। गैर-कश्मीरी श्रमिकों को भगाने का जहरीला अभियान तो सर्वप्रथम हुरियत के सैयद गिलानी ने दिया था, जैश और हिजबुल ने इसे हवा ही नहीं दी बल्कि इस को तुरंत लागू करवाने के लिये फतवा भी निकाल दिया।

घाटी में गैर-कानूनी श्रमिक निर्माण कार्यों से जुड़े हुए हैं, रेहड़ियों पर दैनिक उपयोग में आने वाली चीजें और साग-सब्जी बेचकर अपना पेट पालते हैं। यह सब आतंकवादियों को स्वीकार नहीं क्योंकि उनकी नजर में यह गरीब लोग अमीर कश्मीरियों को लूट रहे हैं। क्षेत्रवाद की यह समस्या कश्मीर घाटी में तो है ही असम में भी गैर असमियों के विरूध्द अभियान जारी है। गैर असमियों की हत्याएं हो रही हैं उनका अपहरण हो कर फिरौतियां वसूली जा रही हैं और उन्हें राज्य से पलायन के लिये विवश किया जा रहा है। सबसे अधिक निशाने पर वहां बिहारी श्रमिक और मारवाड़ी सेठ हैं। पूर्वोत्तर के राज्यों नागालैंड और मिजोरम में जहां ईसाइयों का बोलबाला है वहां भारत के किसी दूसरे राज्य से आया व्यक्ति न तो घर बना सकता है और न ही मंदिर आदि। जो लोग वहां रहते भी हैं वे अपमान और प्रताड़ना का जीवन व्यतीत कर रहे हैं। दीवाली जैसे त्यौहार मनाने का कोई भी साहस नहीं कर सकता। महाराष्ट्र में शिवसेना उत्तर भारतीयो को भगाने के लिये झंडा उठाए फिर रही हैं।

फिर भी हम अपने आप को धोखा देकर यह दावा कर रहे हैं कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक, असम से कटक तक भारत एक है जब कि कटु सत्य यह है कि भारत महान के कई क्षेत्रों में भारतीय परायो की तरह रहे हैं या फिर उन्हें पराया बना दिया गया है। इस स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन है? केवल हमारी सरकार। काश! पंडित नेहरू ने जम्मू-कश्मीरी को विशेष दर्जा देने की शेख अब्दुल्ला की मांग के आगे नतमस्तक होने से पूर्व इसके दूरगामी दुष्परिणामों की कल्पना की होती। यदि कांग्रेस सरकार की मूर्खताओं को बाद में आने वाली सरकारों ने कुछ सुधार लिया होता तो शायद लोग अपने ही देश में पराये नहीं हुए होते।

पिछले कुछ समय से पी.डी.पी. यह मांग करती आ रही है कि जम्मू-कश्मीर से सेना हटाई जाये। बाद में मुफती और उनकी पुत्री महबूबा ने यह भी धमकी दे डाली कि केन्द्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से सेना नहीं हटाई तो वे गठबंधन सरकार से बाहर निकल आयेगी। पी0डी0पी0 की इस मांग तथा धमकी पर सभी को हैरानी हुई थी क्योंकि सबसे पहले यह बात पाकिस्तान के राष्ट्रपति मुशर्रफ ने उठाई थी और उसके बाद हुर्रियत का गरमपंथी अलगाववादी ग्रुप यह मांग उठाने लगा और अब पी0डी0पी0 ने भी उनके स्वर में स्वर मिलाना शुरू कर दिया है। उसके चार मंत्री 28 फरवरी से तीन माह तक प्रदेश कैबिनेट की बैठकों का बहिष्कार करते रहे।

प्रदेश की सुरक्षा स्थितियों को देखते हुये भाजपा, नेशनल कान्फ्रैंस, पैंथर्स पार्टी तथा बड़ी संख्या में लोग वहां से सेना तथा सुरक्षा बलों को हटाए जाने के विरूध्द आवाज उठाते रहे हैं। गठबंधन सरकार बनाये रखने के चक्कर में पी0डी0पी0 की इस मांग के सामने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का स्टैण्ड कुछ स्पष्ट न होने के कारण समस्या को और जटिल बना दिया है। हां! कुछ दिन पूर्व वहां के मुख्यमंत्री गुलाम नवी आजाद ने स्पष्ट रूप से कहा है कि प्रदेश की सुरक्षा आवश्यकताओं को देखते हुए सेना हटाना उचित नहीं है। एक तरफ पी0डी0पी0 नेता अपनी सुरक्षा बढ़ाने की मांग करते हैं। भारतीय नेताओं का यह दोहरा व्यवहार कब तक चलेगा?

स्थितियां विषम होने तथा उनसे देश को पहुंचने वाली हानि को देखते हुए कोई भी सरकार बड़े संकोच के साथ सेना तैनात करती है। सेना तथा सुरक्षा बलों के जवान बड़े परिश्रम से स्थितियों पर नियंत्रण करते हैं, आतंकवादियों तथा घुसपैठियों की धर-पकड़ करते हैं तथा इस काम में बहुत से जवान शहीद तथा घायल होते हैं। जब वे स्थिति नियंत्रण करने में सफल होते हैं तो सेना हटाओ की मांग जोर पकड़ने लगती है, हालात बिल्कुल ठीक हो जाने पर लोकतांत्रिक व्यवस्था में सेना का हटाया जाना ही उचित है परन्तु उससे पूर्व नहीं।

जिस प्रकार माओवादियों ने नेपाल में अपने पैर जमा लेने के बाद नेपाल की सीमा से लगते हुए भारत के 14 जिलों तथा अन्य 23 जिलों में भी पैर पसारना आरंभ कर दिया है, आगामी समय के लिये यह एक खतरे की घण्टी लग रही है। कुछ जिलों में समांतर सरकार चलाने का माओवादियों का खेल शुरू हो चका है। गांव-गांव में समस्त पुरूषों को जंगलों में ट्रेनिंग के लिये ले जाना माओवादियों के लिए आम बात हो गई हैं। छत्तीसगढ़, झारखण्ड, विहार आदि में माओवादी, असम, नागालैंड, अरूणाचल, मिजोरम आदि ने क्रिश्चियन मिशनरी तथा माओवादी तथा नेपाल-बंगलादेश अदि को केन्द्र मानकर पाकिस्तान की आई0 एस0 आई0, जैश ए मुहम्मद तथा हिजबुल आदि तथा अन्य प्रकार के अंतर्राष्ट्रीय षडयंत्रों द्वारा भारत को तोड़ने की कई कोशिशें युध्दस्तर पर चल रही हैं। इन कोशिशों के साथ-साथ चीन की विस्तारवादी-साम्राज्यवादी शक्ति भी तिब्बत पर काबिज होने के पश्चात तथा 1962 में भारत पर हजार वर्गमील क्षेत्र अपने अधीन करने के पश्चात अब उसकी नजर उत्तरपूर्व के पांचों राज्यों पर दिख रही है। पिछले दिनों अरूणाचल के एक भाग में चीन की सेना घुस आई थी। भारत की प्रतिरक्षा क्षमता अब कुछ ठीक होने के कारण वो वहां से खदेड़ दिये गये परन्तु चीन ने नक्शे के उस भूभाग को अपना क्षेत्र दिखाकर भारत को आगाह कर दिया है। चीन स्पष्ट रूप से कहता रहा है कि तिब्बत (हथेली) को प्राप्त कर लिया है अब उसे हथेली के साथ लगी पांच उंगलियां (असम, नागालैंड, अरूणाचल, मिजोरम, त्रिपुरा) को भी प्राप्त करना है। क्या भारत मां के अंग कटने का यह क्रम कभी समाप्त होगा या जैसे ब्रह्म भारत गया व्रहद् भारत गया, 1947 का भारत गया, 1962 का भारत गया, अब क्या कश्मीर, उत्तरपूर्व तथा अन्य कई भाग जाने को तैयार नहीं बैठे? क्या केन्द्र की कोई सरकार इन प्रश्नों का उत्तर देगी? शायद नहीं। इनके पास कुछ उत्तर होता तो शायद यह सारे प्रश्न आज खड़े ही न होते।

कश्मीर घाटी तथा बाद में जम्मू प्रांत में हुए हिन्दुओं के पलायन से, अब पिछले दिनों नागालैंड से निकाले गये भारतीयों से तथा माओवादियों के प्रभाव वाले क्षेत्र से हो रहे पलायन से तथा आईएसआई के खतरनाक इरादों से और कुछ दिन पूर्व अलकायदा द्वारा कश्मीर में जारी एक टेप से तथा भीतर में पनप रहे कई प्रकार के असंतोष से निपटने के लिये केन्द्र में एक राष्ट्रवादी सोच तथा दृढ़ संकल्प वाली सरकार ही इन प्रश्नों का उत्तर शायद दे पाये। (नवोत्थान लेख सेवा हिन्दुस्थान समाचार)

2 comments:

ghughutibasuti said...

सरकार के पास इस सबका कोई जवाब नहीं है । ना ही वह खोजना चाहती है ।
घुघूती बासूती

भोजवानी said...

रउआ के सिर पर त हिंदुआई का भूत सवार ह। लिखि मारा सेर-सेर भर रोज। कौनो फरक नइखै पड़े के। ओइसे बेमतलब का हिंदुआई का ओझाई नीख नइखैं।