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Friday 8 August, 2008

यूं धधकी जम्मू की आग -विनोद बंसल


जम्मू-कश्मीर के सुरम्य पर्वत शृंखला में 13500 फुट की ऊंचाई पर अनादि काल से भगवान शिव हिमलिंग के रूप में श्रीअमरनाथ गुफा में विराजमान हैं। इस स्थान पर हजारों वर्षों से बाबा अमरनाथ जी के दर्शन करने के लिए यात्रा चलती आ रही है जो प्रत्येक वर्ष श्रावण पूर्णिमा को सम्पन्न होती है। 1991 के बाद यहां आने वाले यात्रियों की संख्या बढ़ना शुरू हुई और यात्रा का समय भी बढ़ाकर एक महीना किया गया।

यह यात्रा अत्यंत कठिन है। चंदनवाडी से 35 कि.मी. पैदल मार्ग का रास्ता अत्यन्त ही कठिन है। बीच-बीच में बहुत संकरा भी है। बर्फ के ग्लेशियर आते हैं, नदी पार करनी पड़ती है और दो दिन में तीर्थयात्री पावन गुफा पर पहुंचते हैं। दूसरा रास्ता बालटाल से जाता है, जहां से अमरनाथ गुफा जाने के लिए 12 कि.मी. का ग्लेशियरों से भरा पैदल मार्ग है जो अत्यन्त कठिन होने के साथ-साथ खतरनाक भी है।
यात्रा का सारा नियंत्रण सरकार के द्वारा होता था लेकिन उसके कुप्रबंधन तथा अव्यवस्था के चलते 1996 में आए बर्फानी तूफान के कारण सैकड़ों श्रध्दालु मारे गये। यात्रा आतंकवादियों के आक्रमण का भी निशाना बनी। तब राज्य सरकार इस सकते में आई उसने श्री अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा-व्यवस्था, प्रबंधन आदि के अध्ययन के लिए ''नितीश सेन कमेटी'' का गठन किया। इस कमेटी ने अपने सुझाव देते हुए कहा कि यात्रा पथ को और चौड़ा किया जाए, यात्रा की समयावधि बढ़ाई जाए, यात्रियों की निर्धारित संख्या प्रतिदिन निष्चित की जाए तथा यात्रा मार्ग में स्थान-स्थान पर अस्थायी आवासों का निर्माण हो।

इन्हीं सुझावों को ध्यान में रखते हुये वर्ष दो हजार में जम्मू-कश्मीर की विधानसभा ने प्रस्ताव पारित करके जम्मू एवं कश्मीर श्री अमरनाथ जी श्राईन एक्ट, 2000 के तहत ''श्री अमरनाथ श्राईन बोर्ड'' का गठन किया गया। राज्यपाल अगर हिन्दू हैं तो वह इस बोर्ड के पदेन अध्यक्ष होंगे और अगर राज्यपाल हिन्दू नहीं हैं तो उनके द्वारा नामांकित हिन्दू व्यक्ति बोर्ड का अध्यक्ष होगा। राज्यपाल समेत इस बोर्ड के सदस्य दस से ज्यादा नहीं हो सकते। नौ सदस्यों की घोषणा राज्यपाल अपनी इच्छा से करते हैं जिनमें दो सदस्य हिन्दू धर्म और संस्कृति से जुड़े हुये होते हैं। दो महिला सदस्य भी हिन्दू धर्म और संस्कृति से जुड़ी हुई और महिला उत्थान के कार्य में लगी हुई, तीन सदस्य जो प्रषासन, कानूनी और वित्ताीय स्थिति को देखने वाले और दो सदस्य जम्मू कश्मीर राज्य से प्रमुख हिन्दू के नाते से बोर्ड के सदस्य होते हैं।

वर्ष 2004 में यात्रा की अवधि भी एक महीने से बढ़ाकर दो महीने की कर दी गई थी। हालांकि इस विषय पर राज्य सरकार से बोर्ड की कुछ टकराहट भी हुई थी। लेकिन यात्रा ठीक ढंग से चलती रही। यात्रियों को ठीक ढंग से सुविधा मिले, उनके ठहरने के लिए शेड, शौचालयों की व्यवस्था बनें इसके लिए बोर्ड ने 2002 में राज्य सरकार से जमीन मांगी थी। यह मांग सन् 2003 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मु्फ्ती मोहम्मद सईद की आंख की किरकिरी बन गई। कट्टरपंथी मुख्यमंत्री कभी भी यह जमीन अमरनाथ श्राईन बोर्ड को देने के हक में नहीं थे। कभी पर्यावरण तो कभी वन विभाग की मजबूरियों का वास्ता दिया गया। सरकार बदली। प्रक्रिया चलती रही। वर्श 2007 के अंत में बोर्ड ने दोबारा एक प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजा जिसमें बालटाल में 800 कनाल जमीन देने का आग्रह किया गया।

मई 2008 में राज्य सरकार ने मंत्रीमण्डल में यह प्रस्ताव रखा जिसमें कांग्रेस, पीडीपी एवं पीपुल्स डेमोक्रेटिक फंट के मंत्री शामिल थे। पीडीपी के मंत्रियों ने ही यह जमीन श्राईन बोर्ड को देने का प्रस्ताव पारित किया। मंत्रीमंडल ने सर्वसम्मति से इस प्रस्ताव को स्वीकार किया और श्राईन बोर्ड को 800 कनाल जमीन बालटाल में निम्न शर्तों के साथ दी गईं -

1. श्राईन बोर्ड इस भूमि के बदले 2 करोड़ 31 लाख, 30 हजार 4 सौ रूपये अदा करे।
2. श्राईन बोर्ड को भूमि अस्थाई तौर पर दी गई है और यात्रा समाप्ति के बाद यह जमीन स्वत: वन विभाग के अधीन आ जायेगी।
3. श्राईन बोर्ड इस भूमि पर अस्थाई निर्माण ही कर सकता है।
4। श्राईन बोर्ड इस भूमि पर से कोई पेड़ नहीं काट सकता तथा जितने पेड़ है उसमें नये पेड़ और लगायेगा।

श्राईन बोर्ड ने इन सब शर्तों को स्वीकार किया। सभी विभागों ने जिनमें पर्यावरण तथा वन विभाग भी अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी कर दिये।

सरकार ने गर्वनमेंट आर्डर नम्बर 184 दिनांक 26-5-2008 को एक आदेश जारी किया जिसमें मंत्रीमण्डल निर्णय 947 दिनांक 20-5-2008 का जिक्र करते हुये लिखा कि ''सिंध फारेस्ट डिवीजन'' की 39।88 हैक्टेयर जमीन श्रीअमरनाथ श्राईन बोर्ड को बालटाल और दोमेल में भवन और ढांचा बनाने के लिए दी जाती है। रांगा से बालटाल के लिए 9 हैक्टेयर तथा बालटाल में शिविर बनाने के लिए 30.88 हैक्टेयर जमीन दी गई। इसमें एक शब्द Diversion का प्रयोग किया गया कहीं भी Sale या Transfer शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया। इससे सरकार की नियत पर शक होना लाजमी था।

पीडीपी के नेता यह सहमति देने के बाद कुछ सोचने पर मजबूर हुये। उन्हें लगा कि शायद कहीं कोई गलती हो गई है। लेकिन बोर्ड को जमीन देने के बारे में स्वीकृति तो इन लोगों ने स्वयं ही दी थी। अब क्या किया जाये? उन्होंने इसके लिए कांग्रेस और अलगाववादियों को आगे कर दिया। और शुरू हो गया श्रीनगर में आतंकियों और अलगाववादियों का प्रदर्शन। जगह-जगह नारेबाजी होने लगी, भीड़ का संचालन अलीशाह गिलानी जैसे अलगाववादी नेता करने लगे। मीरबाईज फारूख साथ देने लगे। कश्मीर में पाकिस्तानी झण्डे सरेआम पुलिस की नाक के नीचे लाल चौक और अन्य महत्वपूर्ण स्थानों पर फहराये जाने लगे। पाकिस्तान जिन्दाबाद हर तरफ गूंजने लगा। मस्जिदों में भड़काऊ भाषण जलती आग पर तेल की तरह काम करने लगे। साम्प्रदायिकता और मुस्लिम कट्टरवाद की आग को भड़काया जाने लगा क्योंकि यात्रा शुरू होने के दिन नजदीक आने लगे। पुलिस तो प्रदर्शनकारियों की सुरक्षा के लिए तैनात की जाती थी न कि उनको रोकने या खदेड़ने के लिए। अलगाववादी नहीं चाहते थे कि यात्रा ठीक से सम्पन्न हो।

सरकार ने 6 मई, 2008 को नेशनल कांफ्रेंस के नेता मुस्तफा कमाल की अध्यक्षता में जो कमेटी बनाई थी उसने 11 जून, 2008 को पर्यावरण का वास्ता देकर यात्रा की अवधि को कम करने की सिफारिश की। इस कमेटी ने यह भी कहा कि इस यात्रा से स्थानीय व्यापारियों को कोई लाभ नहीं होता तथा सिन्धु और लिददर नदियां प्रदूशित होती हैं। इससे कश्मीरियों के प्रदर्शन बढ़ने लगे। कांग्रेस, पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस तीनों ने अलगाववादी और आतंकवादियों का सहारा लेते हुये इस प्रदर्शन को उग्र रूप देना शुरू कर दिया।

अत्यंत खतरनाक साजिश रची गई। अलगाववादी नेता मीरवाईज उमर फारूख, तहरीके हुर्रियत के नेता सईद गिलानी, जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के यासिन मलिक, डेमोक्रेटिक पार्टी के शबीर शाह सरीखे नेता कांग्रेस और पीडीपी की शह पर आपसी मतभेद भुला कर खुलेआम देशद्रोह की बाते करते हुये यह जमीन सरकार को वापिस लेने के लिए दबाव बनाने लगे।

पीडीपी ने एक और चाल चलते हुये अपने नेता और प्रदेश के उपमुख्यमंत्री मुजफ्फर बेग से यह बयान दिलवा दिया कि राज्यपाल के सचिव अरूण कुमार इस्लाम विरोधी हैं। इस पर ही बस नहीं हुई उलटे अरूण कुमार पर कश्मीर का वातावरण बिगाड़ने और कश्मीरियों को बदनाम करने के खिलाफ अदालत में केस दर्ज करवा दिया। श्री अरूण कुमार पर पीडीपी के जनरल सेक्टरी ने एफआईआर भी दर्ज करवाई। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि श्री अरूण कुमार नेशनल कांफ्रेंस के नेता मुस्तफा कमाल द्वारा की गई सिफारिश के खिलाफ बोले थे।

वास्तव में पीडीपी और कांग्रेस अलगाववादी और आतंकवादियों के ऐजेंडे पर काम करना चाहती थी और कश्मीर में फिर से 1988-89 की स्थिति बनाकर वहां से भारत तथा भारतीय चिन्हों को समाप्त करना चाहती थी। मसला केवल 800 कनाल जमीन का नहीं इसकी आड़ में अलगाववादी सेना और अर्धसैनिक बलों द्वारा प्रयोग की जा रही आठ लाख कनाल जमीन से सेना और अर्धसैनिक बलों को हटाना चाहते हैं। पीडीपी खुलकर सामने आई और उसने सरकार से अपना समर्थन वापिस लेते हुये मंत्रीमण्डल से इस्तीफा दे दिया।

25 जून, 2008 को राज्य के नये राज्यपाल एन.एन. वोहरा ने जम्मू-कश्मीर में कदम रखा। श्री वोहरा वह व्यक्ति हैं जो भारत के गृह सचिव रहते हुये कईं बार तथाकथित शांति वार्ता में भाग ले चुके हैं। इसलिए उनके अलगाववादी नेताओं से काफी निकट के संबंध हैं। उनके आते ही एन।सी., पीडीपी व कांग्रेस के नेताओं ने उन्हें घेर लिया। उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती ने कश्मीर की तथाकथित खतरनाक परिस्थितियों का हवाला देते हुये स्वयं होकर उन्हें जमीन वापिस करने का सुझाव दिया। राज्यपाल ने उनके सुझाव को मानते हुये यात्रा की सुरक्षा और व्यवस्था सरकार को सौंप दी और केवल पवित्र गुफा में पूजा-पाठ का ही कार्य बोर्ड के पास रखा। जब सुरक्षा और व्यवस्था बोर्ड के पास नहीं रहीं तो जमीन की भी आवष्यकता नहीं रही और सरकार ने बोर्ड को दी जमीन का आबंटन रद्द कर दिया। बोर्ड का गठन विधानसभा में विशेष एक्ट के द्वारा हुआ था जिसमें स्पष्ट प्रावधान था कि यात्रा की सारी व्यवस्था बोर्ड करेगा। राज्यपाल ने वह सारी व्यवस्था सरकार को सौंप दी। विधानसभा में पारित एक्ट में राज्यपाल कोई बदल नहीं कर सकते ऐसा करके श्री वोहरा ने अपने राज्यपाल की गरिमा से तो मजाक किया ही और श्री अमरनाथ श्राईन बोर्ड के संविधाान को ही नहीं नकारा बल्कि विधानसभा को भी नकारते हुये अपने कांग्रेसी मुख्यमंत्री के इशारे पर हिन्दू विरोधी कृत्य भी किया। जबकि श्राईन बोर्ड का अध्यक्ष कोई भी ऐसा निर्णय नहीं ले सकता। इस प्रकार के निर्णय लेने के लिए नौ सदस्यों में से पांच सदस्यों की सहमति होना अनिवार्य है। परन्तु श्री वोहरा ने सहमति लेना तो दूर की बात है बोर्ड के सदस्यों को सूचित भी नहीं किया। जो सरासर बोर्ड और जम्मू के लोगों से धोखा है।

सरकार ने मंत्रीमण्डल में प्रस्ताव पारित कर यात्रा पर्यटन विभाग को सौंप दी। सरकार और राज्यपाल के इस षडयंत्र से अपनी आस्था और हिन्दू भावनाओं से खिलवाड़ होता देख जम्मू के लोगों में भयंकर रोश उत्पन्न हो गया। क्योंकि 1998 में नेकां के काले कारनामो के तहत जब कश्मीर के मुससलमानों को जम्मू के सिदड़ा में 623 कनाल वन विभाग की जमीन दी गई थी, 15 दिसम्बर 2004 को राजौरी में बाबा गुलामशाह बादशाह यूनिवर्सटी के लिए 4800 कनाल जमीन दी गई थी, सन् 2000 में कश्मीर के पंपोर में इस्लामी यूनिवर्सटी के लिए वन विभाग की जमीन दी गई थी, जम्मू के बठिडीं में वन विभाग के संरक्षकों, मंत्रियों, तथा आतंकवादियों द्वारा हजारों कनाल जंगल की जमीन काट कर उस पर कब्जा कर लिया था तो किसी ने कोई आपत्ति नहीं जताई थी।

परन्तु सरकार के इस कृत्य के बाद जम्मू के लोगों का 67 साल से दबा हुआ गुस्सा जो चिंगारी के रूप में अंदर ही अंदर फैल रहा था, लावा बनकर फूट पड़ा। लखनपुर से लेकर रामबन तक, बनी बसोहली से लेकर पुंछ तक हिन्दू सारे मतभेद भुलाकर एक ही आवाज में सरकार के खिलाफ उठ खडे हुये। शहरों से लेकर गांव-गांव तक सरकार और अलगाववादियों व आतंकवादियों की हिन्दू विरोधी नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हो गये। इस आंदोलन को चलाने के लिए श्रीअमरनाथ यात्रा संघर्ष समिति के नाम से जम्मू के प्रबुध्दजनों ने एक समिति स्थापित की। सरकार की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति, अलगाववादियों को शह तथा लोकतांत्रिक ढंग से प्रदर्शन कर रहे शिव भक्तों पर दमन चक्र के कारण अब यह आंदोलन राष्ट्रव्यापी बन कर कितनों को जलायेगा, कहा नहीं जा सकता है। देश के राजनेताओं को यह बात समझ लेनी चाहिए कि जिस दिन भगवान शंकर का तीसरा नेत्र खुलेगा, महा प्रलयंकारी होगा। (लेखक श्रीअमरनाथ यात्रा संघर्ष समिति दिल्ली के प्रवक्ता हैं।)

3 comments:

Anonymous said...

So that those who will accidentally visit your site will not waste there time with this stupid topics.

आशीष कुमार 'अंशु' said...

आपने तो हितचिन्तक को बेहतरीन बना दिया, सबसे कमाल की बात यह लगी कि आप चिठाकारिता को निजता की अभिव्यक्ति नहीं मानते है, जबकि जयादातर चिठाकारों के लिए यह अभी तक यही है. वाह-वाह

Manish Kumar said...

इस मुद्दे के बारे में मैं बहुत दिनों से विस्तार में जानना चाहता था। इस लेख से कई नए तथ्य पता चले। इस प्रस्तुति का शुक्रिया।