विश्वविख्यात चित्रकार मुहम्मद फिदा हुसैन के बारे में कई प्रकार की भ्रांतियां मीडिया में फैल रही है या फैलाई जा रही हैं। कुछ उन्हें अपने नंगे चित्रों के कारण भारतीयों की भावनाओं को ठेस पहुचाने का दोषी बता रहे हैं तो कुछ ऐसा माहौल प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे हैं मानो श्री हुसैन ने तो कुछ गलत किया ही नहीं और भारत के पावलो पिकासो को कुछ कट्टरपन्थी हिंदुओं ने भारत छोड़कर विदेश में रहने पर मजबूर कर दिया है। वस्तुत: स्थिति यह नहीं है। यह तो सिर्फ एक पक्ष है, एक आंख से देखने का प्रयास जिससे दूसरा पक्ष ओझल रहता है।
प्रश्न तो यह उठता है कि यदि श्री हुसैन ने कुछ गलत नहीं किया और किसी कानून का उल्लंघन किया ही नहीं तो वह फिर विदेश में क्यों बैठे हैं? वह तो अपने देश से बहुत प्रेम करते हैं। दूसरी ओर न तो वर्तमान सरकार ने और न किसी पिछली सरकार ने कभी कहा कि वह उन्हें समुचित सुरक्षा प्रदान नहीं करेंगे। तो फिर वह क्यों नहीं आते?
जो लोग उनकी तुलना विश्वविख्यात चित्रकार पाबलो पिकासो से करते हैं वह भूल जाते हैं कि पिकासो ने तो तत्कालीन प्रशासन से बगावत करने का लोहा लिया था और वह जीवन के अन्तिम पल तक अपने विचारों पर अडिग रहे। उसके लिये उन्होंने अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिये। पर श्री हुसैन के साथ तो ऐसा कुछ नहीं है। वह तो कई तरह की बातें करते फिरते हैं। मुआफी भी मांगी है। फिर उनका पिकासो से क्या मेल?
उनकी अपनी बातों और उनके समर्थक उदारवादियों का खण्डन तो उन्होंने स्वयं ही बीबीसी पर अपने एक हाल ही के साक्षात्कार में कर दिया। वह तो मानते ही नहीं कि वह किसी के कारण निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं। श्री हुसैन ने उच्चतम न्यायालय द्वारा भारत माता का नग्न चित्र बनाने के मामले पर कार्यवाही नहीं करने के आदेश पर संतोष व्यक्त करते हुये कहा कि ''सुप्रीम कोर्ट ने जबाव दे दिया है''।
जब उनसे भारत माता के विवादास्पद चित्रों के बारे में पूछा कि आपने उसमें क्या दिखाने की कोशिश की है तो वह इसका सीधा उत्तर देने से टाल गए और अपने उत्तर को मरोड़ते हुये बोले ''भारत एक ऐसा देश है जहां हर तरह की ताकतें आईं, बीसियों देशों से निकाल दिया गया उन्हें। बुध्द धर्म आया, ईसाइयत आई, इस्लाम आया, सब एक-दूसरे से जुड़ गए और एक व्यापक संस्कृति बनी। यह यूनिक है, दुनिया में कोई देश भारत जैसा नहीं है''। वह तो इतिहासकार भी बन बैठे जिन्होंने बुध्द धर्म को भी इसलाम की तरह बाहर से आया बता दिया।
जब उनसे पूछा गया कि ''सबसे विवादास्पद पेंटिंग : मदर इंडिया'' के बारे में आप क्या कहेंगे और उसमें आपने क्या दिखाने की कोशिश की है, तो उनका उत्तर था: ''मैं बचपन से ही देखता था भारत के नक्शे में गुजरात का हिस्सा मुझे औरत के स्तन जैसा दिखता है, इसलिए मैंने स्तन बनाया, फिर उसके पैर बनाए, उसके बाल बिखरे हैं वह हिमालय बन गया है। ये बनाया है मैंने। और ये जो 'भारत माता' नाम है ये मैंने नहीं दिया है, यह मेरा दिया हुआ नाम नहीं है''। वह भारतीय होने के बावजूद भारत की धरती को भारत माता मानने को तैयार नहीं हैं। वह कहते हैं कि ''भारत माता तो एक मुहावरा है, एक भावना है कि हमारा मुल्क है, वह हमारी माता जैसी है। लेकिन उसमें कोई देवी कहीं नहीं है।''
जब श्री हुसैन मानते हैं कि ''भारत माता एक मुहावरा है, एक भावना है'', तो क्या एक भारतीय होने के नाते भारतीयों की ''भावना'' को दुख पहुंचाना उनका कर्तव्य व धर्म है?
उनका कथन मान भी लिया जाये कि भारत माता कोई देवी नहीं है तो क्या मां सरस्वती, मां दुर्गा और भारत की अन्य देवियां भी ''कोई देवी कहीं नहीं है''? क्या यह कहकर वह भारत के करोड़ों नागरिकों की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचा रहे हैं?
यदि यही शब्द कोई भारतीय किसी गैर हिंदू धर्म के बारे में कहते तो क्या यह उस धर्म के अनुयायियों की भावनाओं को चोट नहीं पहुंचाता? उनके इन शब्दों के बावजूद हमारे उदारवादी और सेक्युलरवादी मानते हैं कि श्री हुसैन सेकुलर है और सब धर्मों का सम्मान करते हैं। वह कहते हैं कि हुसैन साहब ने तो कोई जुर्म किया ही नहीं। फिर यह विरोधाभासी पाखण्ड नहीं है उनका?
इतना तो सब मानते है कि कोई भी व्यक्ति कोई काम करने से पहले शुरूआत अपने घर से ही करता है। कोई व्यक्ति नया कैमरा खरीदकर लाता है तो सबसे पहले वह चित्र अपने परिवार - माता, पिता, भाई, बहन, पति, पत्नी और पुत्र, पुत्री का ही खींचता है। इसी आधार पर स्वाभाविक तो यह होना चाहिए था कि श्री हुसैन भी उसी परम्परा को निभाते और दूसरों के धर्म के बार चित्र बनाने से पहले वह यह महान पवित्र काम अपने घर और अपने धर्म से ही शुरू करते। ऐसा उन्होंने क्यों नहीं किया? इसका उत्तर तो श्री हुसैन तथा उनके उदारवादी सेकुलर पैरोकारों को ही देना होगा।
लगता है हुसैन साहब जनता को मूर्ख समझ रहे हैं। हमें यह समझा रहे हैं कि मक्का-मदीना की भी कोई फोटो या इमेज नहीं है? वह भूल रहे हैं कि हिंदू देवी-देवताओं या ईसाई धर्म की भी पवित्र आत्माओं या अन्य धर्मों के
विश्व में महानतम चित्रकार हुए हैं लेकिन शायद ही किसी चित्रकार ने अपनी माता की नग्न तस्वीर बनायी हो। शायद हुसैन साहब ने भी नहीं। क्यों नहीं, इसका उत्तर तो वह ही दे सकते हैं।
भारतीय देवियां सरस्वती व दुर्गा लाखों-करोड़ों भारतीयों की माता ही नहीं, अपनी माता से भी ऊपर अधिक सम्माननीय हैं। अपनी अभिव्यक्ति का बहाना लेकर जब श्री हुसैन हिंदू देवियों के नग्न चित्र बनाकर उन्हें अमर बना रहे है तो उन्होंने अपने परिवार में से किसी का भी नग्न चित्र बनाकर उन्हें अमर क्यों नहीं किया? हिंदू देवियां पर ही वह इतने मेहरबान क्यों हैं? इसलिये कि वह स्वयं हिन्दू नहीं हैं? यदि ऐसा नहीं है तो वह बतायें कि सच क्या है? चलो कुछ पल के लिये उनके इस तर्क को ही मान लेते हैं कि कि ''हमारे यहां (मुस्लिम धर्म में) इमेजेज़ हैं ही नहीं ....न खुदा का है। न किसी और का ....'' क्या किसी मुस्लिम महिला का भी कोई चित्र या इमेज नहीं है? तो फिर हुसैन साहिब बतायें कि वह केवल हिन्दू देवियों पर ही क्यों मेहरबान हुये और आज तक उन्हों ने किसी मुस्लिम महिला का नंगा चित्र बनाकर उसे अमर क्यों नहीं बनाया?
यदि मोहम्मद फिदा हुसैन अपने आपको भारतीय मानते हैं तो उन्होंने जब मां दुर्गा और मां सरस्वती के नग्न चित्र बनाये तो उन्होंने उन चित्रों के शीर्षक के रूप में यह क्यों नहीं लिखा ''मेरी मां सरस्वती'' और '' मेरी मां दुर्गा''। यदि वह ऐसा करते तो विरोधी उनके विरूध्द आज जो कुछ कह रहे हैं वह न कह पाते और उनके ओठ सिल जाते। पर शायद श्री हुसैन का सत्य तो कुछ और ही है - वह नहीं जो हमारे उदारवादी सैकुलर बुध्दिज़ीवी हमें समझाने का व्यर्थ प्रयास कर रहे हैं!
प्रश्न तो यह उठता है कि यदि श्री हुसैन ने कुछ गलत नहीं किया और किसी कानून का उल्लंघन किया ही नहीं तो वह फिर विदेश में क्यों बैठे हैं? वह तो अपने देश से बहुत प्रेम करते हैं। दूसरी ओर न तो वर्तमान सरकार ने और न किसी पिछली सरकार ने कभी कहा कि वह उन्हें समुचित सुरक्षा प्रदान नहीं करेंगे। तो फिर वह क्यों नहीं आते?
जो लोग उनकी तुलना विश्वविख्यात चित्रकार पाबलो पिकासो से करते हैं वह भूल जाते हैं कि पिकासो ने तो तत्कालीन प्रशासन से बगावत करने का लोहा लिया था और वह जीवन के अन्तिम पल तक अपने विचारों पर अडिग रहे। उसके लिये उन्होंने अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिये। पर श्री हुसैन के साथ तो ऐसा कुछ नहीं है। वह तो कई तरह की बातें करते फिरते हैं। मुआफी भी मांगी है। फिर उनका पिकासो से क्या मेल?
उनकी अपनी बातों और उनके समर्थक उदारवादियों का खण्डन तो उन्होंने स्वयं ही बीबीसी पर अपने एक हाल ही के साक्षात्कार में कर दिया। वह तो मानते ही नहीं कि वह किसी के कारण निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं। श्री हुसैन ने उच्चतम न्यायालय द्वारा भारत माता का नग्न चित्र बनाने के मामले पर कार्यवाही नहीं करने के आदेश पर संतोष व्यक्त करते हुये कहा कि ''सुप्रीम कोर्ट ने जबाव दे दिया है''।
जब बीबीसी पत्रकार ने आगे पूछा कि वह वतन कब लौटने की सोच रहे हैं उनका उत्तर था ''मैं वतन से दूर गया ही नहीं, मैं तो घूमता-फिरता रहता हूं।'' यदि बात यह है तो उन्होंने तो हमारे बहुत से बुध्दिजीवी और उदारवादी चिंतकों के इस आरोप को ही गलत साबित कर दिया कि श्री हुसैन हिन्दू कट्टरपन्थियों के कारण ही वतन से दूर रह रहे हैं और एक निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
जब बीबीसी पत्रकार ने आगे पूछा कि वह वतन कब लौटने की सोच रहे हैं उनका उत्तर था ''मैं वतन से दूर गया ही नहीं, मैं तो घूमता-फिरता रहता हूं।'' यदि बात यह है तो उन्होंने तो हमारे बहुत से बुध्दिजीवी और उदारवादी चिंतकों के इस आरोप को ही गलत साबित कर दिया कि श्री हुसैन हिन्दू कट्टरपन्थियों के कारण ही वतन से दूर रह रहे हैं और एक निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं।जब उनसे भारत माता के विवादास्पद चित्रों के बारे में पूछा कि आपने उसमें क्या दिखाने की कोशिश की है तो वह इसका सीधा उत्तर देने से टाल गए और अपने उत्तर को मरोड़ते हुये बोले ''भारत एक ऐसा देश है जहां हर तरह की ताकतें आईं, बीसियों देशों से निकाल दिया गया उन्हें। बुध्द धर्म आया, ईसाइयत आई, इस्लाम आया, सब एक-दूसरे से जुड़ गए और एक व्यापक संस्कृति बनी। यह यूनिक है, दुनिया में कोई देश भारत जैसा नहीं है''। वह तो इतिहासकार भी बन बैठे जिन्होंने बुध्द धर्म को भी इसलाम की तरह बाहर से आया बता दिया।
जब उनसे पूछा गया कि ''सबसे विवादास्पद पेंटिंग : मदर इंडिया'' के बारे में आप क्या कहेंगे और उसमें आपने क्या दिखाने की कोशिश की है, तो उनका उत्तर था: ''मैं बचपन से ही देखता था भारत के नक्शे में गुजरात का हिस्सा मुझे औरत के स्तन जैसा दिखता है, इसलिए मैंने स्तन बनाया, फिर उसके पैर बनाए, उसके बाल बिखरे हैं वह हिमालय बन गया है। ये बनाया है मैंने। और ये जो 'भारत माता' नाम है ये मैंने नहीं दिया है, यह मेरा दिया हुआ नाम नहीं है''। वह भारतीय होने के बावजूद भारत की धरती को भारत माता मानने को तैयार नहीं हैं। वह कहते हैं कि ''भारत माता तो एक मुहावरा है, एक भावना है कि हमारा मुल्क है, वह हमारी माता जैसी है। लेकिन उसमें कोई देवी कहीं नहीं है।''
जब श्री हुसैन मानते हैं कि ''भारत माता एक मुहावरा है, एक भावना है'', तो क्या एक भारतीय होने के नाते भारतीयों की ''भावना'' को दुख पहुंचाना उनका कर्तव्य व धर्म है?
उनका कथन मान भी लिया जाये कि भारत माता कोई देवी नहीं है तो क्या मां सरस्वती, मां दुर्गा और भारत की अन्य देवियां भी ''कोई देवी कहीं नहीं है''? क्या यह कहकर वह भारत के करोड़ों नागरिकों की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचा रहे हैं?
यदि यही शब्द कोई भारतीय किसी गैर हिंदू धर्म के बारे में कहते तो क्या यह उस धर्म के अनुयायियों की भावनाओं को चोट नहीं पहुंचाता? उनके इन शब्दों के बावजूद हमारे उदारवादी और सेक्युलरवादी मानते हैं कि श्री हुसैन सेकुलर है और सब धर्मों का सम्मान करते हैं। वह कहते हैं कि हुसैन साहब ने तो कोई जुर्म किया ही नहीं। फिर यह विरोधाभासी पाखण्ड नहीं है उनका?
इतना तो सब मानते है कि कोई भी व्यक्ति कोई काम करने से पहले शुरूआत अपने घर से ही करता है। कोई व्यक्ति नया कैमरा खरीदकर लाता है तो सबसे पहले वह चित्र अपने परिवार - माता, पिता, भाई, बहन, पति, पत्नी और पुत्र, पुत्री का ही खींचता है। इसी आधार पर स्वाभाविक तो यह होना चाहिए था कि श्री हुसैन भी उसी परम्परा को निभाते और दूसरों के धर्म के बार चित्र बनाने से पहले वह यह महान पवित्र काम अपने घर और अपने धर्म से ही शुरू करते। ऐसा उन्होंने क्यों नहीं किया? इसका उत्तर तो श्री हुसैन तथा उनके उदारवादी सेकुलर पैरोकारों को ही देना होगा।
जब बीबीसी के संवाददाता ने उनसे प्रश्न किया कि ''आपके आलोचक कहते हैं कि हुसैन साहब अपने धर्म की कोई तस्वीर क्यों नहीं बनाते, मक्का-मदीना क्यों नहीं बनाते?'' तो उनका उत्तर था: 'अरे भाई, कमाल करते हैं। हमारे यहां इमेजेज हैं ही नहीं तो कहां से बनाऊंगा। न खुदा का है न किसी और का। यहां लाखों करोड़ों इमेजेज हैं, मंदिर उनसे भरे पड़े हैं।''
जब बीबीसी के संवाददाता ने उनसे प्रश्न किया कि ''आपके आलोचक कहते हैं कि हुसैन साहब अपने धर्म की कोई तस्वीर क्यों नहीं बनाते, मक्का-मदीना क्यों नहीं बनाते?'' तो उनका उत्तर था: 'अरे भाई, कमाल करते हैं। हमारे यहां इमेजेज हैं ही नहीं तो कहां से बनाऊंगा। न खुदा का है न किसी और का। यहां लाखों करोड़ों इमेजेज हैं, मंदिर उनसे भरे पड़े हैं।''लगता है हुसैन साहब जनता को मूर्ख समझ रहे हैं। हमें यह समझा रहे हैं कि मक्का-मदीना की भी कोई फोटो या इमेज नहीं है? वह भूल रहे हैं कि हिंदू देवी-देवताओं या ईसाई धर्म की भी पवित्र आत्माओं या अन्य धर्मों के
लगता है हुसैन साहब जनता को मूर्ख समझ रहे हैं। हमें यह समझा रहे हैं कि मक्का-मदीना की भी कोई फोटो या इमेज नहीं है? वह भूल रहे हैं कि हिंदू देवी-देवताओं या ईसाई धर्म की भी पवित्र आत्माओं या अन्य धर्मों के पैगंबरों की भी कोई फोटो उपलब्ध नहीं है। उनके जितने भी चित्र बनते हैं वह केवल उनके धार्मिक ग्रंथों में चर्चित उनके आकार-भाव के अनुसार ही बनाये जाते हैं। इसी आधार पर वह अपने धर्म के महानुभावों के भी चित्र बना सकते हैं। जब वह हिंदू धर्म से संबंधित देवी-देवताओं के प्रति अपनी कल्पना की उड़ान भर सकते हैं तो अपने धर्म के प्रति उनकी कल्पना की उड़ान ऊची क्यों नहीं जाती?
पैगंबरों की भी कोई फोटो उपलब्ध नहीं है। उनके जितने भी चित्र बनते हैं वह केवल उनके धार्मिक ग्रंथों में चर्चित उनके आकार-भाव के अनुसार ही बनाये जाते हैं। इसी आधार पर वह अपने धर्म के महानुभावों के भी चित्र बना सकते हैं। जब वह हिंदू धर्म से संबंधित देवी-देवताओं के प्रति अपनी कल्पना की उड़ान भर सकते हैं तो अपने धर्म के प्रति उनकी कल्पना की उड़ान ऊची क्यों नहीं जाती?विश्व में महानतम चित्रकार हुए हैं लेकिन शायद ही किसी चित्रकार ने अपनी माता की नग्न तस्वीर बनायी हो। शायद हुसैन साहब ने भी नहीं। क्यों नहीं, इसका उत्तर तो वह ही दे सकते हैं।
भारतीय देवियां सरस्वती व दुर्गा लाखों-करोड़ों भारतीयों की माता ही नहीं, अपनी माता से भी ऊपर अधिक सम्माननीय हैं। अपनी अभिव्यक्ति का बहाना लेकर जब श्री हुसैन हिंदू देवियों के नग्न चित्र बनाकर उन्हें अमर बना रहे है तो उन्होंने अपने परिवार में से किसी का भी नग्न चित्र बनाकर उन्हें अमर क्यों नहीं किया? हिंदू देवियां पर ही वह इतने मेहरबान क्यों हैं? इसलिये कि वह स्वयं हिन्दू नहीं हैं? यदि ऐसा नहीं है तो वह बतायें कि सच क्या है? चलो कुछ पल के लिये उनके इस तर्क को ही मान लेते हैं कि कि ''हमारे यहां (मुस्लिम धर्म में) इमेजेज़ हैं ही नहीं ....न खुदा का है। न किसी और का ....'' क्या किसी मुस्लिम महिला का भी कोई चित्र या इमेज नहीं है? तो फिर हुसैन साहिब बतायें कि वह केवल हिन्दू देवियों पर ही क्यों मेहरबान हुये और आज तक उन्हों ने किसी मुस्लिम महिला का नंगा चित्र बनाकर उसे अमर क्यों नहीं बनाया?
यदि मोहम्मद फिदा हुसैन अपने आपको भारतीय मानते हैं तो उन्होंने जब मां दुर्गा और मां सरस्वती के नग्न चित्र बनाये तो उन्होंने उन चित्रों के शीर्षक के रूप में यह क्यों नहीं लिखा ''मेरी मां सरस्वती'' और '' मेरी मां दुर्गा''। यदि वह ऐसा करते तो विरोधी उनके विरूध्द आज जो कुछ कह रहे हैं वह न कह पाते और उनके ओठ सिल जाते। पर शायद श्री हुसैन का सत्य तो कुछ और ही है - वह नहीं जो हमारे उदारवादी सैकुलर बुध्दिज़ीवी हमें समझाने का व्यर्थ प्रयास कर रहे हैं!
10 comments:
मज़हब का मसला बहुत नाज़ुक होता है...जो लोग मन्दिर या मस्जिद में कभी क़दम तक नहीं रखते...,वो भी अपने-अपने मज़हबों का झंडा लेकर लड़ने के लिए मैदान में आ जाते हैं...इसलिए बेहतर है कि एक-दूसरे के मज़हब में दख़ल न दिया जाए...
@मज़हब का मसला बहुत नाज़ुक होता है...जो लोग मन्दिर या मस्जिद में कभी क़दम तक नहीं रखते...,वो भी अपने-अपने मज़हबों का झंडा लेकर लड़ने के लिए मैदान में आ जाते हैं...इसलिए बेहतर है कि एक-दूसरे के मज़हब में दख़ल न दिया जाए...
मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ. हुसेन साहब को हिन्दुओं के धर्म में दखल नहीं देना चाहिए था. इस दुनिया में बहुत से मुद्दे हैं जिन पर तस्वीरें बनाई जा सकती है, बनाई जानी चाहियें, गरीबी पर, भुखमरी पर, सरकारी अन्याय पर, पुलिस के अत्याचार पर ............. पर वह तो हिन्दुओं के देवी-देवताओं पर जरूर तस्वीर बनायेंगे, और वह भी नग्न. कोई कुछ भी कहे, कोई भी अदालत उन्हें दोष मुक्त कर दे, पर हुसेन ने हिन्दुओं की भावनाओं को आहत किया है.
सही लिखा है.
फिरदौस जी धन्यवाद. आप तो नसीहत देने लगीं. आप से तो हमें उम्मीद थी कि आप तर्क देकर बात करेंगी और तर्क का जवाब तर्क से देंगी. जो नसीहत आपने हमें दी है वह तो आपको हुसैन साहिब को देनी चाहिए थी क्योंकि उन्होंने ही तो अपने धरम दो छोड़ कर हिंदू धरम की देवियों की नंगी तस्वीरें बनायी. किसी भी चित्रकार को चाहे वह कितना भी महान क्यों न हो उसे दूसरे की माँ, बहिन, पत्नी की नंगी तस्वीर तब तक नहीं बनानी चाहिए जब तक कि उससे पहले वह अपनी माँ, बहिन, पत्नी की नंगी तस्वीर बनाकर प्रसारित न कर दे. भारतीय परम्परा तथा नैतिकता तो यही कहती है . बाकी वह ख़ुद जाने.
शुरुआत तो आपने ही की थी जब आपने ब्लॉग पर हुसैन का साक्षात्कार प्रकाशित किया था. दूसरे के धरम में ऐसा दखल देने की पहल भी तो इस साक्षात्कार को छाप कर आपने ही की थी.
@ सुरेशजी एवं संजयजी आपके विचारों के लिए धन्यवाद
पहले तो इस सिनेमा के पोस्टर रंगने वाले की पिकासो से तुलना ही बेमानी है। खुदा की मेहरबानी से आज पहलवान बना हुअ यह शख्स इतना कुटिल है कि यह जानता है कि इस एक अरब के उपर की आबादी वाले देश में किसी भी प्रकार का घिनौना कृत्य करने वाले के पीछे भी लोग खडे हो जाते हैं। यही बात उसकी हिम्मत बढ़ाती रहती है। नहीं तो एक समझदार इंसान कोई ऐसा-वैसा कदम नहीं उठाता, जिससे विवाद उत्पन्न होने की संभावना हो, और यदि एक बार गल्ती हो भी जाती है तो वह कभी दोबारा वैसी गल्ती नहीं करता। पर यहां तो बेशर्मी की हद है। फिर उपर से विडंबना देखिए कि अपने आप को सुसंस्कृत समझने वाले उसको अपने कार्यक्रमों में बुला खुद को धन्य समझते हैं।
amba charan vashishth ji or sanjeev jee aap dono ko sach likhne or dikhne ke liye dhnyabad, etana sab hone ke bad bhi फ़िरदौस ख़ान jaise logon ko kyon samajh nai ati pta nai, ye log bilkul tarkhin baten karte hai, dhnyabad
महानुभावों तमाम भान्तियों और इसलाम के असली चेहरे को आप सबके समक्ष लाने हेतु एक ब्लॉग का शुभारंभ किया है। कृपया पधारने का कष्ट करें और टिप्पणी दें।
prakharhindu.blogspot.com
इस्लाम के अनुयायी इस कटु सत्य को क्यों नहीं स्वीकारते, की कुरान मै अनेको आयते ,ही लादेन ,हुसैन की जन्मदाता है !जो इस्लाम के अनुयायी इन आतंकियों की घटनाओं के तुरंत बाद सडको पर,व अगले दिन समाचार -पत्र के मुख्य पेज पर इन घटनाओ की निंदा करते हाथ मै बैनर व तख्तिया लिए दिखते है उन्हें चाहिए की कुरान की इन व्यमन्स्य फैलाने वाली बातो (आयतों) को निकाल तुर्की जेसे देश का अनुसरण करे ,जहाँ इस तरह की आयतों को मान्यता नहीं है !
फिरदोश साहब,आपकी जानकारी के लिए माई इंडिया नाम से राष्ट्रवादी मुस्लिम का इक संगठन है वो राष्ट्र हित मै मुस्लिमो का क्या योगदान हो सकता है इस विषय मै प्रयासरत है और आपकी जानकारी के लिए इस संगठन की प्रेरणा का स्रोत राष्ट्रीय स्वयमसेवक संघ ही है!आप जेसे विद्वान को जो समाज को दिशा देता हो,सत्य पिपासु होना चाहिए न की तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादी समाचार-पत्रों और अपनी टी.आर.पि बढ़ाने की होड़ मै लगे न्यूज़ चेनलो को देख कर अपनी सोच बनानी चाहिए......!
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