मत चीखो
कि शहर में कर्फ्यु है
और कभी दंगे भड़क सकते हैं
फरियाद मत करो
कि तुम्हारे भगवान के पास त्रिशूल है
और मंजर कभी खौफनाक हो सकता है
प्रतिरोध मत करो
कि तुम बहुसंख्यक हो
और सौहार्द कभी टूट सकता है
बस जमींदोज हो जाओ बमों में
और साट लो होठों पर चुप्पी
क्योंकि तुम्हारा मरना
उन्हें अहसास कराता है कि वे जिन्दा हैं!
मित्रों,बमों के धमाके और निर्दोष लोगों की चीत्कार से वामपंथ को दिक्कत नहीं, इनके लिए वह चीख (और प्रतिरोध) दिक्कत पैदा करती है जो बमों के धमाके के खिलाफ भारत की आवाम के पक्ष में आवाज बुलंद करती है। वामपंथ को इस आवाज से खतरा है। यह अकारण नहीं है कि वामपंथ आतंकवादी बम धमाकों से कहीं ज्यादा उसके प्रतिरोध में उठी आवाज के खिलाफ लामबंद हुआ। आतंकवादी धमाकों पर एक-दो वाक्यों में टिप्पणी कर उन्होंने अपनी जिम्मेदारी का अहसास कराया और उतर आये हिन्दू प्रतिरोध की अपनी पुरानी संस्कृति पर। इसके लिए सिमी और इंडियन मुजाहिदीन जैसे संगठनों पर प्रतिबंध लगाना जरूरी नहीं है, पोटा और टाडा जैसे आतंकवाद निरोधक कानून जरूरी नहीं है। इनके लिए जरूरी है उस आवाज का खामोश हो जाना जो इसकी मांग करते हैं। वामपंथियों की लामबंदी इसी आवाज को खामोश करने की पुरजोर कोशिश है। वामपंथ को दिक्कत है कविता की उन पंक्तियों से जिसमें कहा गया है कि 'अल्लाह ने काफिरों के खून से इफ्तार किया।' गलत क्या है इसमें! इंडियन मुजाहिदीन और हिजाबुल मुजाहिदीन मदरसों में जिस तरह की सीडी दिखा रहे हैं उसमें यह बात साफ तौर पर कही गयी है कि 'जेहाद से खुदा प्रसन्न होता है' 'वह जन्न्त बख्शता है।' 'काफिर को मारने से खुदा की नेमत मिलती है।'' कविता और कला सत्य को अनावृत करने के माध्यम हैं। जानी-पहचानी चीज को भी महसूस कराने का एक जरिया है। यह संवेदनशील बनाने की प्रक्रिया है और इसके लिए कवि अनेक उपादानों का सहारा लेता है। अगर जेहाद से बिना हाथ-पांव और चेहरे का खुदा प्रसन्न होता है, तो 'काफिरों के खून से इफ्तार' इसकी एक इमेज क्रिएट करता है। कविता की भाषा में इसे मानवीकरण कहते हैं।
अब सवाल यह उठता है कि मकबूल फिदा हुसैन के चित्रों की वकालत करने वाले वामपंथी इस पर बिफर क्यों पड़े? कला अगर स्वायत्ता है और उस पर नैतिक निर्णय नहीं दिये जा सकते, तो इस कविता की भी निंदा नहीं की जानी चाहिए क्योंकि यह कविता भी उतनी ही स्वायतत्ता है जितनी कि मकबूल की पेंटिंग। मकबूल ने सत्य को अनावृत करने के लिए हिन्दू देवी-देवताओं के कपड़े उतार दिये हैं तो इस कवि ने निराकार अल्लाह को रूप दिया है- दोनों सत्यान्वेषण की ही प्रक्रिया है। इसलिए अगर जस्टीफाई किया जाना चाहिए तो दोनों को किया जाना चाहिए। कवि का उद्देश्य किसी की धार्मिक भावना को आहत करना नहीं वरन् सत्य का प्रकाशन है।
कविता और कला के कुछ बाहर विमर्शों की दुनिया है जिनमें कला की आवाजाही होती रहती है। वामपंथ अपनी सुविधा के हिसाब से मुहावरे गढ़ता रहता है और कला को कभी स्वायत्ता ओर कभी सामाजिक उत्पादन सिध्द करता है। सारे गैर वामपंथी उनके लिए कलावादी हैं। महान आलोचक नामवर सिंह के लिए कविता (कला) अच्छी या बुरी नहीं सही या गलत होती है। चूंकि वे माक्र्सवादी हैं इसलिए प्रतिमान है समाज का मंगल (?) भाव। अब इस आधार पर मकबूल की पेंटिंग सही है। ऐसे में सामाजिक उद्देश्य क्या है इनकी पेंटिंग का? अगर नग्नता समाज का मंगल करती है तो पैगम्बर मुहम्मद और ईसा मसीह का नंगापन भी मंगलकारक होगा। क्या ईसाई और मुस्लिम समुदायों का मंगल वामपंथ को रास नहीं आता? तसलीमा नसरीन की कला ब्च्प् ;डध्द के लिए स्वायतत्ता क्यों नहीं है?
बहरहाल मनुस्मृति, रामचरितमानस आदि में जाति व्यवस्था और स्त्री को लेकर कुछ टेक्स्चुअल प्रॉब्लम्स हैं इसलिए विमर्शों की दुनिया में इस पर बातचीत होनी चाहिए। आलोचना से भी परहेज नहीं किया जाना चाहिए। किसी भी तरह की शाश्वतता तात्कालिकता के दबाव से पूर्णत: मुक्त नहीं होती इसलिए उसके साथ समस्या होती है। जो बात मनुस्मृति और रामचरितमानस के साथ है वही 'कुरान शरीफ' और बाइबिल के साथ भी। स्त्री और जेहाद को लेकर 'कुरान शरीफ' के टेक्स्ट में प्राब्लम है इसलिए इस पर भी आपत्ति की जानी चाहिए। बाइबिल के बारह वर्सन में एक को प्रामाणिक मान लेना भी कहीं-न-कहीं शक्ति संबंधों की सूचना देता है। मनुस्मृति पर बात करते समय हम्मूराबी की विधि संहिता की क्रूरता को भी ध्यान में रखना चाहिए। यह भी देखा जाना चाहिए कि अलेक्जेण्ड्रिया के पुस्तकालय में आग लगाने में ईसाइयत ने किस क्रूरता का प्रदर्शन किया है। लेकिन वामपंथ के साथ कुछ बेसिक प्राब्लम्स हैं। ईसाइयत और इस्लाम की बुरी चीजों के प्रति जहां उसकी सहमति है हिन्दू धर्म की अच्छाइयों से भी गुरेज है। वामपंथ का यह दोमुंहापन उसे प्रतिक्रियावादी बना देता है और बाध्य करता है कि वह अपनी अस्मिता हिन्दू विरोध से परिभाषित करे। यही कारण है कि बीएसएफ के परचे में जब राम को गाली दी जाती है वामपंथी चुप रहते हैं, लेकिन जब दूसरे धर्मों के बारे में सही बात भी कही जाती है उनकी संगीनें तन जाती हैं। यह वामपंथ की तुष्टीकरण की नीति है। उन्हें विश्वास हो चला है कि मार्क्सवादी विचारधारा का अब कोई मतलब नहीं रह गया है इसलिए हिन्दू विरोध एक नयी विचारधारा है उनके अस्तित्व में बने रहने के लिए। हिन्दू विरोध का वैचारिक आधार लेकर सेक्युलरिज्म की बात करना सेक्युलरिज्म को गाली देना है।
मित्रों, आज तक भारत के इतिहास में कोई ऐसी घटना नहीं है जिसमें वामपंथियों ने भारत और हिन्दू के समर्थन में बात की हो। देश विभाजन के समय इन्होंने पाकिस्तान का समर्थन किया। 1962 के चीन के आक्रमण के समय इन्होंने चीन का समर्थन किया। वामपंथी इतिहासकारों ने लिखा कि चीन ने नहीं, भारत ने चीन पर आक्रमण किया। वामपंथी प्रसन्न थे कि चीन भारत को अपने में मिला मार्क्सवादी बना रहा है। उन्होंने 'चीनेर चेयरमैन आमार चेयरमैन' का नारा दिया। भारत के परमाणु विस्फोट पर इन्होंने कलाम जैसे देशभक्त को हत्यारा करार दिया और कहा कि भारत को इसकी जरूरत नहीं; जबकि चीन के परमाणु परीक्षण पर इन्होंने मिठाइयां बांटी थीं। अभी ईरान जैसे गैर-जिमेदार देश जिसने चोरी से परमाणु तकनीक हासिल की है, वामपंथियों की टिप्पणी है-उसके सामरिक रूप से सुरक्षित रहने के लिए परमाणु कार्यक्रम जरूरी है। अमरनाथ जमीन विवाद पर इनका कहना है कि भारत सरकार कश्मीर की डेमोग्राफी बदल रही है जबकि विस्थापित कश्मीरी पंडितों पर इन्होंने कोई सवाल कभी नहीं उठाए। हिन्दुओं का धर्मांतरण इनके लिए जायज है और हिन्दू धर्म में वापसी नाजायज। क्या मतलब है इसका? अब वामपंथियों को क्यों देशद्रोही न कहा जाए?
मुसलमान भाइयों की आतंकवाद के खिलाफ अपील का हम स्वागत करते हैं। लेकिन उनकी अपील एक प्रतिक्रिया है। अगर परचे में 'काफिर के खून से अल्लाह के इफ्तार का जिक्र न होता तो क्या वे आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता की अपील करते? हम उनसे यह पूछना चाहते हैं कि अफजल की फाँसी के प्रति उनका क्या रवैया है? कश्मीर में पाकिस्तान का झंडा लगाया गया और हिन्दुस्तान का झंडा जलाया गया, इन घटनाओं पर उनके मन में तूफान क्यों नहीं उठा जो अब उठ रहा है। हम उनसे आग्रह करते हैं कि वामपंथियों के हाथ का खिलौना बनना बंद कर आत्मविवेक से राष्ट्रहित में निर्णय लें। कृपया इस तरह की टिप्पणी न करें कि सिमी को प्रतिबंधित किया जाए अगर वह दोषी है। जनाब अब तक आपको पता नहीं कि सिमी दोषी है या नहीं? अब इंटेलिजेंस ब्यूरो क्या आपको सी।डी। दिखाएगा तभी मानेंगे? इतने भी नादान न बनिए जनाब वामपंथी लूट खाएंगे, बड़े शातिर हैं वो।
वंदे मातरम्! भारत माता की जय!!
आतंकवाद पर जेएनयू में विद्यार्थी परिषद् का पर्चा 16 सितम्बर 2008
3 comments:
सब कुछ कह दिया गया है इसमें, यही शुभकामनायें हैं कि "लगे रहो"…
बहुत सटीक लिखा है।
"कश्मीर में पाकिस्तान का झंडा लगाया गया और हिन्दुस्तान का झंडा जलाया गया, इन घटनाओं पर उनके मन में तूफान क्यों नहीं उठा जो अब उठ रहा है।"
हितचिंतक में भारत की समस्याओ को जिम्मेवारीपुर्वक उठा रहे हैं, धन्यवाद ।
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