हितचिन्‍तक- लोकतंत्र एवं राष्‍ट्रवाद की रक्षा में। आपका हार्दिक अभिनन्‍दन है। राष्ट्रभक्ति का ज्वार न रुकता - आए जिस-जिस में हिम्मत हो

Sunday, 26 October 2008

प्रचंड को स्‍वर्ण के पलंग पर सोना चाहिए। आखिर 15,000 नेपाली नागरिक की मौत के बाद वे सत्‍ता में आए हैं।


नेपाल में राजशाही को उखाड़ फेंकने के लिए एक दशक तक संघर्षरत रहने के बाद प्रचंड स्‍वयं शाही रहन-सहन में लिप्‍त हो गये हैं। प्रचंड जो घड़ी पहनते हैं उसकी कीमत लाखों में है। वे काफी महंगे वस्‍त्र पहनते हैं। अब जनता से मिलने में कतराते है। आज के –'नई दुनिया' समाचार-पत्र में एजेंसी के हवाले से एक खबर प्रकाशित हुई हैं कि 'प्रचंड को चाहिए लखटकिया पलंग'। यह खबर हम यहां साभार प्रस्‍तुत कर रहे हैं ताकि कॉमरेडों के भ्रष्‍ट और तानाशाही जीवन की कलई खुल सके।

कम्‍युनिस्‍ट अक्‍सर मजदूरों की व्‍यथा को दुनिया के सामने लाते हैं। उनकी पीडा को अपना दुखदर्द मानकर उन्‍हीं की जीवनशैली को अपनाते हैं। लेकिन आजकल यह एक ढोंग बन गई है। मजदूरों को लेकर वर्षों से सत्‍तासंघर्ष कर रहे और हाल में ही इसे भुना कर सत्‍ता की गद्दी पर पहुंचे प्रचंड को आजकल उसी मजदूरों का जीवन नीरस लगने लगा है। तभी तो वह सत्‍ता में आने के बाद एक लाख नेपाली रूपए के पलंग पर सोते हैं। इन दिनों उनकी पलंग ही उनके लिए मुसीबत बन गया है। नेपाली मीडिया में प्रचंड के इस पलंग की खूब चर्चा हो रही है। दो महिने एक नेपाली टेलीविजन ने खबर प्रसारित की थी कि प्रचंड के पलंग का मूल्‍य एक लाख नेपाली रूपए से भी अधिक है। प्रसिद्ध स्‍तंभकार खगेंद्र खानगरूला ने 'जब अपनी आंखों से देखना छोड देते हैं' नामक स्‍तंभ में इस संबंध में प्रचंड की खूब आलोचना की थी। इसके बाद यह मामला खूब गरमा गया है। एक अनिवासी नेपाली ने सिडनी से व्‍यंगात्‍मक लहजे में प्रचंड को 'श्री सात' की संज्ञा दे डाली। नेपाल में पूर्व राजा ज्ञानेंद्र को 'श्री पांच' की संज्ञा दी जाती थी। अनिवासी नेपाली ने लिखा कि प्रचंड को महंगे से महंगे पलंग पर सोना चाहिए। उन्‍होंने लिखा है कि उन्‍हें स्‍वर्ण के पलंग पर सोना चाहिए। आखिर 15,000 नेपाली नागरिक की मौत के बाद वे सत्‍ता में आए हैं।

7 comments:

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

हित चिन्तक यह भी ध्यान दे श्री सात आपके हित साधक शरद यादव के दोस्त है और माओवादी जब भरतीयों को नेपाल से भगा रह थे तब भी शरद यादव इनेह सहायता दे रहे थे

Smart Indian said...

माओ से स्तालिन और कास्त्रो से प्रचंड तक - कम्युनिस्टों का झंडा गरीबों के खून से ही लाल हुआ है. नेपाल की कहानीभारत के आदिवासी क्षेत्रों से बहुत अलग नहीं है. ये हिंसक दल जनता के असंतोष और टुच्चे नेताओं के कुशासन का पूरा लाभ अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए उठाते है.
आपको और सभी पाठकों को दीपावली पर्व और नए संवत्सर के लिए बधाई!

Vivek Gupta said...

सुंदर | दीपावली पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
दीवाली आप के लिए समृद्धि लाए।

Unknown said...

कम्युनिस्ट केवल नाम के कम्युनिस्ट होते हैं. हकीकत में वह केपिटलिस्ट से भी दो कदम आगे होते हैं. बहुत पहले मेरी एक कम्युनिस्ट से मुलाक़ात हुई थी. यह सज्जन पानी नहीं पीते थे, केवल कोका कोला पीते थे. इन का बेटा अमरीका में पढ़ता था. इस के पास कार नहीं थी पर एक टेक्सी हर समय इन के दरवाजे पर खड़ी रहती थी. चेन स्मोकर थे, उस समय की सब से महंगी सिगरेट पीते थे.

कुन्नू सिंह said...

दिपावली की शूभकामनाऎं!!


शूभ दिपावली!!


- कुन्नू सिंह

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

communiston ki kalai kholna ati aavashyak hai, aap ka lekhan aur teekha ho.

RK said...

this is offcourse an eye-opener. Keep it up. Happy Diwali!!!