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Wednesday 15 October, 2008

घुसपैठियों ने जलाया असम

उड़ीसा व कर्नाटक की हिंसा के नाम पर बजरंग दल को प्रतिबंधित करने के लिए बांहें चढ़ा रहे सत्तासीन संप्रग के घटक दलों के नेताओं का असम में हिंसा पर चुप्पी साधना आश्चर्यजनक है।

सरकार कह रही है कि शरणार्थी शिविरों में लगभग 2 लाख मुस्लिम हैं। आखिर ये कहां से आए हैं? इनकी पहचान की जाए और जो असमिया मुस्लिम हैं उन्हें वापस उनके घरों में भेजकर बाकी सब को सीमा पार बंगलादेश में वापस भेज दिया जाए।
असम में हुई हिंसा कहीं अधिक गंभीर और दूरगामी प्रभाव डालने वाली है। पाकिस्तान से सटे कश्मीर की तरह अब बंगलादेश (कभी पूर्वी पाकिस्तान) से सटे असम में देश के दुश्मनों द्वारा चिंगारी भड़काई जा रही है। विशेषज्ञों की नजर में यदि समय रहते इसे बुझाया नहीं गया तो यह चिंगारी भयंकर आग आग का रूप धारण कर एक और कश्मीर बन जाएगा। असम में फैली हिंसा बंगलादेश घुसपैठियों की एक सोची समझी साजिश है और उसके पीछे है हमेशा भारत को अस्थिर रखने की कोशिश में जुटा पाकिस्तान। इसीलिए असम में रह रहे बंगलादेशी घुसपैठियों ने उदालगिरी जिले के आइठनबारी, पूनिया, पानबारी, मोहनपुर और सोनाईपारा गांवों पाकिस्तान के झंडे लहराए, बंगलादेश के नहीं।

1979 से ही घुसपैठियों की समस्या से जूझते आ रहे असम और अब मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश तथा नागालैण्ड के लोग बंगलादेशी मुसलमानों की दादागिरी से तंग आ चुके हैं। ये अवैध बंगलादेशी न केवल उनकी भूमि, व्यवसाय और संसाधनों पर कब्जा कर रहे हैं बल्कि जिस भी क्षेत्र में उनकी संख्या 25 प्रतिशत से अधिक होती जा रही है वहां से हिन्दुओं को भगाने के लिए षडयंत्र रच रहे हैं। इसी कारण असम, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और नागालैण्ड के निवासी इन अवैध बंगलादेशियों को उनके राज्य से निकालने के लिए आंदोलित हैं। इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं वहां के छात्र संगठन। इन छात्र संगठनों ने बंगलादेशियों को भारत छोड़ने का 'अल्टीमेटम' दे दिया है। इसके विरुध्द बंगलादेशी मुसलमानों ने आल असम माइनारिटी स्टूडेन्ट्स यूनियन (आमसू) के बैनर तले गत 14 सितम्बर को 'असम बंद' की घोषणा की। इस बंद के दौरान कट्टरपंथी मुस्लिम युवक हिंसक हो गए। उन्होंने अनेक वाहन फूंक दिए और 8 हिन्दुओं को मौत के घाट उतार दिया। हिंसा का सिलसिला यहीं नहीं थमा, ईद के अगले ही दिन यानी 3 सितम्बर को पूर्व योजना के तहत उदालगिरी जिले में बंगलादेशी मुसलमानों ने हिन्दुओं और उनके गांवों के विरुध्द हिंसक अभियान छेड़ दिया। बोडो, गारो, खासी, राभा, संथाल जनजातियों के साथ असमिया, बंगला और हिन्दी बोलने वाली जनजातियों के गांवों पर योजनाबध्द ढंग से हमला बोला गया। 40 से अधिक हिन्दू बहुल गांवों पर हमला कर उन्हें आग के हवाले करने का प्रयास किया गया। इसमें इकबारी, बाताबारी, फाकिडिया, नादिका, चाकुआपारा, पूनिया, झारगांव, जेरुआ, बोरबागीचा, आइठनबारी, राउताबागान और सिदिकुआ के सैकड़ों घर जल गए और हजारों हिन्दू पलायन कर गए। उन्हें उदालगिरी डिग्री कालेज, उदालगिरी गर्ल्स हाईस्कूल, नलबाड़ी के एल.पी. स्कूल और कैलाइबारी के स्कूल में शिविर बनाकर रखा गया है। यह हिंसा निकटवर्ती दर्रांग जिले में भी फैल गई है और वहां भी हजारों लोग जान बचाने के लिए शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर हैं।

उदालगिरी के झाकुआपाड़ा में गांव बूढा (ग्राम प्रधान) को उसकी मां और बहन के साथ जिंदा जला देने की घटना ने सभी को हिला कर रख दिया। इसके बाद भड़के जनाक्रोश के कारण कांग्रेसी राज्य सरकार ने इस मामले पर मुंह खोला, वह भी अल्पसंख्यकों (अर्थात अवैध बंगलादेशी मुसलमानों) को मरहम लगाने के लिए। राज्य सरकार ने इसे बोडो और संथालों तथा मुसलमानों के बीच साम्प्रदायिक हिंसा के रूप में परिभाषित करने का प्रयास किया। यह भी कहा गया कि इसके लिए नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट आफ बोडोलैण्ड (एन.डी.एफ.बी.) दोषी है। जबकि सच्चाई यह है कि यह बंगलादेशी मुसलमानों और असमिया हिन्दुओं के बीच संघर्ष है। यह इससे भी साफ होता है कि दर्रांग जिले में जो हिंसा हुई उसमें ब्रह्मपुत्र नदी के पार मारीगांव के मुसलमानों ने भी साथ दिया, जो ब्रह्मपुत्र के छोटे-छोटे द्वीपों से नाव द्वारा दर्रांग जिले में घुसे थे। ये सब सेना की वर्दी पहने हुए थे। यह वही पध्दति है जो मुसलमानों ने 1983 के दंगों के समय अपनाई थी। सूत्रों के अनुसार इस बार की हिंसा के दौरान आल असम माइनारिटी स्टूडेन्ट्स यूनियन (आमसू), स्टूडेन्ट्स इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया (सिमी), आल असम मुस्लिम छात्र परिषद् और मुस्लिम स्टूडेन्ट्स ऐसोशिएशन (मूसा) के नेता मुस्लिम बहुल गांवों का लगातार दौरा करते रहे और उन्हें हिन्दुओं पर हमला करने के लिए निर्देशित करते रहे तथा हथियार उपलब्ध कराते दिखे। दर्रांग जिले में जलाए गए हिन्दुओं के घरों पर मारीगांव से नाव द्वारा ब्रह्मपुत्र पार करके आए मुस्लिमों द्वारा कब्जा जमा लेने की भी खबर है। सूत्रों के अनुसार उदालगिरी, दर्रांग और बक्सा जिलों के मुस्लिमबहुल क्षेत्रों में रमजान के दौरान ही गुप्त बैठकें हुईं। कट्टरपंथियों को इससे भी संबल मिला कि बदरुद्दीन अजमल द्वारा गठित असम यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के विधायक रसूल हक बहादुर तथा आमसू के अध्यक्ष अब्दुल अजीज ने निचले असम में अलग स्वायत्तशासी क्षेत्र की मांग की है और वहां से सभी असमिया लोगों को चले जाने की धमकी दी है।

इस संबंध में असम के एक वरिष्ठ पत्रकार, जो कि हिंसाग्रस्त क्षेत्रों का दौरा करके लौटे हैं, ने बताया कि 14 सितम्बर को आमसू द्वारा आहूत असम बंद के दौरान राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-58 पर स्थित रौटा (उदालगिरी) कस्बे में जबरन दुकानें बंद करने की कोशिश की। इस दौरान हुई झड़प में बोडो समुदाय के दो युवक मारे गए। तभी से पूरे क्षेत्र में तनाव चला आ रहा था लेकिन राज्य सरकार और जिला प्रशासन ने घोर लापरवाही बरती जिसके कारण यह आग इतनी तेजी से भड़की। यह भी समझना होगा कि उदालगिरी एक नया बना जिला है जो अति संवेदनशील है, क्योंकि यह सीमावर्ती राज्य है जिसकी सीमाएं भूटान और अरुणाचल प्रदेश से सटी हुई है। इस संवेदनशील जिले को सिर्फ एक उपायुक्त (डी.सी.), एक अतिरिक्त उपायुक्त (ए.डी.सी.) एवं एक क्षेत्राधिकारी (सी.ओ.) के भरोसे छोड़ रखा है। दो प्रखण्ड (सबडिवीजन) होने के बावजूद वहां किसी उप जिलाधिकारी (एस.डी.एम.) की नियुक्ति नहीं की गई। एक संवदेनशील जिले में राज्य सरकार द्वारा इतना लचर प्रशासन रखने का क्या औचित्य है, यह समझ से परे है। सूत्रों के अनुसार जब उदालगिरी जिला नहीं बना था तब इस विस्तृत दर्रांग जिले में ही 1962 में चीनी आक्रमण के समय पाकिस्तानी झण्डे मिले थे। 1965 और 1971 में पाकिस्तान से युध्द के दौरान पाकिस्तानी झण्डे यहां लहराए गए थे और 1983 में दंगों के दौरान भी। इसलिए अब फिर पाकिस्तानी झण्डे फहाराने पर आश्चर्य नहीं। लेकिन बंगलादेशी या कहें पूर्वी पाकिस्तानी आतंकवादियों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि वे खुलेआम 'पाकिस्तान जिंदाबाद' के नारे लगा रहे और हिंसक आक्रमण कर रहे हैं। इन हिंसक वारदातों के बाद असम के अन्य वरिष्ठ पत्रकार ने भी अपनी रपट में लिखा कि जो बंगलादेशी मुसलमान मारे गए हैं उनमें से अधिकांश पुलिस फायरिंग में मरे, क्योंकि वे सुरक्षा बलों पर हमला कर रहे थे। मुसलमानों को जान-माल की कम हानि हुई है, लेकिन इसके बावजूद वे जानबूझकर बड़ी संख्या में राहत शिविरों में भाग आए ताकि सरकार से मिलने वाली राहत सामग्री ले सकें। सरकार को भी यही दिखाई दे रहा है और वह बंगलादेशी घुसपैठियों को 'अल्पसंख्यकों पर अत्याचार' के रूप में प्रचारित कर रही है। बंगलादेशी घुसपैठियों के खिलाफ असम, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश में छात्र संगठनों द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन के कारण पाकिस्तानी गुप्तचर संस्था आई.एस.आई. के इशारे पर ये हिंसक वारदातें हुई हैं। लेकिन घुसपैठियों को असमिया मुसलमान बताकर कांग्रेस अपना वोट बैंक बचा रही है। ये सारी कोशिश इसलिए चल रही है कि बोडो, संथाल, गारो तथा खासी जनजातियों को उनके गांवों से भगाकर वहां बंगलादेशी मुसलमानों को बसाया जा सके। हम देख रहे हैं कि बंगलादेशी मुस्लिम गांवों की सुरक्षा के लिए पुलिस तैनात है पर असमिया लोगों के गांवों की सुरक्षा के कोई उपाय नहीं किए गए हैं। सरकार कह रही है कि शरणार्थी शिविरों में लगभग 2 लाख मुस्लिम हैं। आखिर ये कहां से आए हैं? इनकी पहचान की जाए और जो असमिया मुस्लिम हैं उन्हें वापस उनके घरों में भेजकर बाकी सब को सीमा पार बंगलादेश में वापस भेज दिया जाए।

जेएनयू में जारी विद्यार्थी परिषद का पर्चा 13.10.2008

7 comments:

Anonymous said...

बेहतरीन तहरीर...इससे साबित होता है कि गुजरात में मुसलमानों को निशाना बनने के लिए मोदी ने ख़ुद ही तथाकथित रामभक्तों को जिंदा जलाया होगा...इसी तरह ईसाइयों को निशाना बनाने के लिए तथाकथित स्वामी लक्ष्मणानन्द की हत्या की होगी...क्या ख्याल है आपका...

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

anonymous ji, phir to post-godhra ke baare me bhi yahi kaha ja sakta hai, aur 84 men sikhon ke baare men bhi

सुनील सुयाल said...

Nonymous ji लेख तो ठीक से पढ़ लेते आपकी टिपण्णी पड़कर तो इसका लेख से कोई सम्बन्ध ही नहीं लगता! और कृपया खीज न निकाले !

Sumit Karn said...
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Unknown said...

यह सत्य है कि घुसपैठियों ने जलाया है असम. यह हैं कौन? यह घुसपैठिये हैं कांग्रेस के वोट जिन्हें असम की कांग्रेस सरकारों ने देश हित को खतरे में डालने के लिए बेरोकटोक देश के अन्दर आने दिया.

सुनील सुयाल said...

मोसम के लेख "हिन्दू आतंकवाद " पर प्रतिक्रिया :--------------------------------------------------------- नही- नही- इतना ही नहीं हो सकता है ,गजनी ,गोरी ,लोधी ,तुगलक ,मुग़ल ने जो इतिहास मै किया वेह भी इन हिन्दुओ की ही कारस्तानी होगी !लानत है आप लोगो की सोच पर !जिन्हें जेहाद तो मुस्लिम समाज के नवयुवको की भडास दिखती है और जीहादियो के कुक्र्त्यो से व्यथित होकर किया गया हिंसक प्रहार हिन्दू आतंकवाद ,विश्व मै इस्लाम के प्रारंभ से अब तक हुआ कत्ले आम , इस्लामिक आतंकवाद कहलाने के लिए पर्याप्त नहीं है क्या ? कुछ और क्या साध्वी प्रज्ञा की प्रतिक्रिया के लिए ये जिहादी और आतंकवादी गतिविधियों के समक्ष घुटने टेकती सरकार दोषी नहीं है ??????????

सुनील सुयाल said...

लगता है मालेगाव के अलावा भारत मै कभी बम नही फटे !आप दिल्ली ,मुंबई ,असम,बेंगलूर ,उ.प्र,और अनेको बम विस्फोट पर क्यों चिंतित नहीं है कही उनसे जनता का ध्यान हटाने की साजिस तो नही ?और इतने दिनों की पूछताछ और टेस्टों मै कुछ साबित नहीं हुआ है और विपरीत इसके अफजल और अबू सलेम जेहादी जेसे सरकारी दामाद बने है ! इस सारे प्रकरण का मात्र उद्देश्य जेहादियों और उनके समर्थको को हिन्दुओ को दोषारोपण करने, और खुद की करतूतों से दुनिया का ध्यान हटाने है " ++++दिनांक ११.११.०८