हितचिन्‍तक- लोकतंत्र एवं राष्‍ट्रवाद की रक्षा में। आपका हार्दिक अभिनन्‍दन है। राष्ट्रभक्ति का ज्वार न रुकता - आए जिस-जिस में हिम्मत हो

Friday 23 January, 2009

भ्रष्‍ट हुआ लाल खून


भारत की कम्‍युनिस्‍ट पार्टी (मार्क्‍सवादी) के खून में हैं भ्रष्‍टाचार। भ्रष्‍टाचार बन गया हैं माकपा का शिष्‍टाचार। परत दर परत माकपा के भ्रष्‍टाचार की पोल खुल रही हैं। माकपा शासित प्रदेशों में घोटालों का अंतहीन सिलसिला जारी हैं। सीबीआई ने भ्रष्टाचार के एक मामले में मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की केरल इकाई के राज्‍य सचिव व पूर्व मंत्री पिनारई विजयन के खिलाफ आरोप पत्र दायर करने की पूरी तैयारी कर ली है। विजयन पर आरोप है कि वर्ष 1997 में उन्होंने एक कनाडियाई कंपनी को ठेका देने के एवज में पैसे लिए थे। हम यहां आज 'नईदुनिया' में प्रकाशित संपादकीय को साभार प्रस्‍तुत कर रहे हैं-

भ्रष्‍ट हुआ लाल खून
नईदुनिया की संपादकीय टिप्‍पणी

मार्क्‍सवादी कम्‍युनिस्‍ट पार्टी (माकपा) के पोलित ब्‍यूरो सदस्‍य और केरल के महासचिव पी विजयन का 110 करोड रुपए के घोटाले में फंसा होना और उन पर कार्रवाई के लिए सीबीआई की पहल ने एक बार फिर कम्‍युनिस्‍ट नेत्रित्‍व की ईमानदारी पर सवालिया निशान लगा दिया है।

इस मामले ने इस बात को उजागर कर दिया है कि भ्रष्‍टाचार माकपा में गहरी जडें जमा चुका है।

मामला पुराना है और इसमें सीबीआई ने 1000 पेज की रिपोर्ट उच्‍च न्‍यायालय में सौंप दी और राज्‍यपाल से विजयन के खिलाफ कार्रवाई की अनुमति मांगी है। यह साफ है कि इस बार माकपा बहुत गहरे फंसी है। इसमें खुद को पाक-साफ साबित करने के लिए विजयन को पद से हटाने के बजाय माकपा बेशर्मी से इसे अपने राजनीतिक विरोधियों की साजिश बता रही है।

यूं तो केरल में माकपा और उसके वरिष्‍ठ नेताओं पर बडे पैमाने पर संपत्ति अर्जि‍त करने के मामले पहले भी आते रहे हैं लेकिन इतना बडा मामला और वह भी खुद पार्टी के राज्‍य महा‍सचिव पर, इस बात को उजागर करता है कि भ्रष्‍टाचार वहां माकपा में गहरी जडें जमा चुका है। मामला 1996 का है जब राज्‍य के उर्जा मंत्री पी विजयन ने कनाडा की कंपनी एसएनसी-लेवलिन को तीन हाइडिल प्रोजेक्‍ट दुरुस्‍त करने का ठेका दिया था। सौदे में राज्‍य के उर्जा सुधार पैनल की सिफारिशों का उल्‍लंघन किया गया। उस समय भी विरोध माकपा के भीतर से ही हुआ था और सौदे में दलाली की बात उठी। सौदे के तहत समझौते पत्र पर हस्‍ताक्षर किए गए थे उसके मुताबिक कंपनी को 89 करोड रुपए थेलसरी में एक कैंसर अस्‍पताल को दिए जाने थे। इन 89 करोड रुपयों में से सिर्फ 8.98 करोड रुपए ही अस्‍पताल तक पहुंचे। इसके अलावा खुद कैग की रिपोर्ट में भी उजागर हुआ कि हाइडिल प्रोजेक्‍ट के पुनरुद्धार से कोई फायदा नहीं हुआ। शुरू से संदेह के घेरे में रहे इस सौदे में माकपा के शीर्ष नेत्रित्‍व की जो भूमिका रही वह निंदनीय है। गरीबों के हक के लिए लाल झंडा पार्टी करोडों रुपए की दलाली में लिप्‍त मिलेगी तो बाकी भ्रष्‍टाचारों पर कौन आवाज उठाएगा।

4 comments:

fgfgdg said...

आगे आगे ये क्या-क्या गुल खिलाते हैं

Jayram Viplav said...

ye lal rang to jabardasti dho rahe hain ye na to kabhi unka tha na ho payega..................
aaj kal to ye bhagat singh ko bhi apna batane lage ................pata nahi comredo ki satak gayi hai kya....?/
ye bhi sambhaw hai kuchh dino main modi ko bhi apna comred bhai batane lage.........................
kabhi wwww.sachbolnamanahai.blogspot.com par bhi aayeye mahoday..............

Swabhimaan said...

kya aap Swabhimaan ke sadasya banna chahte hain?

http://swabhimaan2008.blogspot.com

aarya said...

भाई साहब नमस्कार.
भ्रष्ट हुआ लाल खून पढ़कर यैसा लगता है की आपने काफी अद्ययन किया है. आपको सादुवाद .
रत्नेश त्रिपाठी
इतिहास संकलन योजना नई दिल्ली