1979 : सुंदरबन द्वीप में पुलिस और माकपा कार्यकर्ताओं ने पूर्वी बंगाल के सैकड़ों शरणार्थियों को मौत के घाट उतार दिया।
1982 : माकपा कार्यकर्ताओं ने कोलकाता में इस अंदेशे में 17 आनंदमार्गियों को जलाकर मार डाला कि निर्वाचन क्षेत्र में वे अपना आधार खो बैठेंगे।
2000 : भूमि विवाद को लेकर बीरभूमि जिले में माकपा कार्यकर्ताओं ने कम से कम 11 भूमिहीन श्रमिकों की हत्या कर दी।
2001 : माकपा कार्यकर्ताओं ने तृणमूल कांग्रेस के प्रायोजित राज्यव्यापी बंद के दौरान मिदनापुर में 18 लोगों को मार डाला। (साभार- इंडिया टुडे, 28 नवंबर,2007)
2007 : नंदीग्राम में अपना हक मांग रहे किसान, मजदूर और महिलाओं पर माकपा कार्यकर्ताओं ने जबरदस्त जुल्म ढ़ाए। महिलाओं के साथ बलात्कार किए। लाशों के ढेर लगा दिए। करीब 200 लोग मारे गए।
3 comments:
लज्जा आती है सीपीएम् पर
कमाल है, ये धर्मनिरपेक्षता के कथित रक्षक ऐसे है? आम आदमी के नाम पर तो खुब आँसू बहाते है. अरे कहाँ हैं, अरूंधती...सितलवाड़....शाबाना...तहलका...
कहा गया गुजरात पर चिल्लाने बाले देशद्रोहियों कि फौज। कंलक का ढीढोडा़ पीटने बाला मिडीया। काला अंग्रेज का एक भी सिपाही कुछ बोल क्यों नही रहा है।
थुकता हूं कम्युनिस्टों पर और उन पर भी जो आज नपुंसको की भाती मुह छुपा कर बैठा है।
Post a Comment