मानवाधिकार दिवस पर उजागर
मार्क्सवादी अमानुषिकता
दिल्ली में आए मार्क्सवादी बर्बरता के शिकार कार्यकर्ता
दिल्ली में आए मार्क्सवादी बर्बरता के शिकार कार्यकर्ता
-आलोक गोस्वामी
कण्णूर के सदानन्दन मास्टर के घुटने से नीचे दोनों पैर नहीं हैं। वे नकली पैरों के सहारे चलते हैं। उनके ये दोनों पैर मार्क्सवादी गुंडों ने 1994 में काट डाले थे। उस समय रा.स्व.संघ, त्रिशूर के बौध्दिक प्रमुख थे सदानन्दन। एक दिन स्कूल से पढ़ाकर घर लौट रहे थे कि रास्ते में कुछ गुंडों ने घेर कर सड़क पर गिरा दिया और तेज धार के हथियार से एक ही पल में दोनों पैर काट डाले। उनका कसूर क्या था? सदानन्दन मास्टर का कसूर केवल इतना था कि वे मार्क्सवादियों की हिंसक विचारधारा को छोड़कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राष्ट्रनिष्ठ विचारधारा से जुड़े थे, स्वयंसेवक बने थे। सदानन्दन के पिता अपने जिले के बड़े कम्युनिस्ट नेता थे और उस समय सदानन्दन भी कम्युनिस्ट छात्र संगठन एस.एफ.आई. के सक्रिय कार्यकर्ता थे। मगर 1975 में आपातकाल के दौरान मार्क्सवादियों की स्तरहीन राजनीति से मन ऐसा उखड़ा कि वे संघ की ओर आकर्षित हुए, बस यही बात हिंसक राजनीति के पक्षधर मार्क्सवादियों को रास नहीं आई और एक दिन ...।
प्रजिल की उम्र अभी 32 वर्ष ही है और वह संघ के सह जिला प्रचारक हैं। उनके शरीर पर तेज धार हथियार से 36 घाव किए गए थे जिनके निशान अब भी मिटे नहीं हैं। एक शाम सम्पर्क पर निकले प्रजिल पर मार्क्सवादी गुंडों ने यह घातक प्रहार किया था।
हरीन्द्रनाथ को भी संघ का स्वयंसेवक होने के कारण मार्क्सवादियों की हिंसा का शिकार होना पड़ा था। बी.एस.एन.एल. में ऊंचे पद पर कार्यरत हरीन्द्रनाथ के दफ्तर में घुसकर कम्युनिस्ट गुंडों ने उनके दाएं हाथ की दो उंगलियां काट डाली थीं।
भास्करन तो अब जीवन भर के लिए विकलांग हो गए हैं। चलने में बहुत कष्ट होता है। एक शाम हिंसक मार्क्सवादियों ने उनके घर हमला बोल दिया था। इस हमले में भास्करन के छोटे भाई की हत्या की गई। जब भास्करन अपने भाई के खून से लथपथ शरीर को लेकर अस्पताल जा रहे थे तो रास्ते में गुंडे पलटकर आए और इस बार भास्करन को निशाना बनाया। चाकुओं से इतने वार किए कि भास्करन के हाथ और पांव बुरी तरह घायल हो गए थे।
23 वर्षीय प्रसून का क्या कसूर था? उसका भी कसूर इतना ही था कि वह संघ शाखा में जाता था और इसी 'अपराध' के लिए 'सबक' सिखाने पर तुले मार्क्सवादी गुंडों ने प्रसून पर उस समय हमला कर दिया जब वह अन्य बच्चों के साथ क्रिकेट खेल रहा था। प्रसून के बाएं पैर पर गंडासे से प्रहार किया गया था। आज भी प्रसून को बाएं पैर और हाथ को सीधा करने में दर्द होता है।
नारियल के पेड़ पर चढ़कर नारियल तोड़ने वाले श्रमिक तिलकन की कहानी तो और भी दारूण है। संघ#भाजपा के कार्यकर्ता तिलकन पर 2002 में मार्क्सवादी तत्वों ने हमला करके सीधे हाथ की हथेली काट डाली थी। हथेली कट जाने से तिलकन नारियल नहीं तोड़ पाता था इसलिए उसको कोई अपने यहां मजदूरी पर नहीं रखता था। नौकरी छिन गई, पैसों के लाले पड़ गए। पेट भरने को घर में अन्न नहीं था। तिलकन की पत्नी से यह बर्दाश्त नहीं हुआ और अपने छोटे बच्चे के साथ उसने आत्महत्या कर ली। आज भी तिलकन उस घटना को याद करके सिहर उठता है।
पी.के. सुधीश, हरीन्द्रन, प्रकाश बाबू, अशोकन, प्रेमजीत, शालीन, विनोद, प्रसाद कवियूर.... कितने नाम गिनायें? कन्नूर से त्रिशूर तक और कोट्टायम से तिरुअनन्तपुरम् तक मार्क्सवादियों ने संघ, भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, भारतीय मजदूर संघ आदि हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों के कार्यकर्ताओं पर इस तरह हिंसक हमले किए हैं कि या तो उनकी हत्या हो गई नहीं तो वे जीवन भर के लिए विकलांग हो गए। और यह कोई नई बात नहीं है। 1967 में संघ के कार्यकर्ता रामकृष्णन की हत्या से हिंसा का जो ताण्डव कम्युनिस्टों ने केरल में रचा है वह आज तक जारी है। इस बीच 150 से ज्यादा कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है। यानी कम्युनिस्ट विचारधारा इतनी असहिष्णु है कि किसी भी दूसरी विचारधारा से जुड़े व्यक्ति को बर्दाश्त नहीं कर सकती। सदानन्दन मास्टर सहित ऊपर जिन लोगों का वर्णन किया गया है वे सभी गत 10 दिसम्बर को विश्व मानवाधिकार दिवस के अवसर पर नई दिल्ली आये थे ताकि यहां के मीडिया को मार्क्सवादियों के असली चेहरे और चाल से परिचित कराएं क्योंकि यहां का मीडिया नोएडा, कनाट प्लेस और गुड़गांव से परे कुछ देखता नहीं है। ये लोग आए थे केरल प्रदेश भाजपा द्वारा आयोजित मार्क्सवादी हिंसक राजनीति की असलियत उजागर करने वाले एक कार्यक्रम में। इन लोगों के अतिरिक्त इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में मार्क्सवादी हिंसा में शहीद हुए कार्यकर्ताओं के परिजन भी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। कार्यक्रम स्थल पर एक चित्र प्रदर्शनी भी लगाई गई थी जिसमें शहीद हुए कार्यकर्ताओं के चित्र और हिंसक हमलों में घायलों के सचित्र विवरण प्रदर्शित किए गए थे जिन्हें देखकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता था कि आज 21वीं सदी में भी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का चेहरा कितना वीभत्स है। इस अवसर पर इन सभी बहादुर संघ-भाजपा कार्यकर्ताओं का भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने अभिनंदन किया और कहा कि पूरी पार्टी अपने इन कार्यकर्ताओं के साथ है। उन्होंने कहा कि इन कार्यकर्ताओं के शारीरिक घावों की तो भरपाई नहीं की जा सकती मगर वे उनके साहस को सलाम करते हैं। श्री सिंह ने यह भी घोषणा की कि यदि केरल के इन कार्यकर्ताओं में से किसी को भी दिल्ली में इलाज की आवश्यकता है तो पार्टी की ओर से उन्हें हर प्रकार की सुविधा दी जाएगी। भाजपा अध्यक्ष ने प्रत्येक विकलांग कार्यकर्ता को 25 हजार रुपए की सहायता राशि देने की भी घोषणा की।
श्री राजनाथ सिंह ने इस अवसर पर कहा कि केरल और पश्चिम बंगाल में माकपा की हिंसक राजनीति जारी है। सेकुलर मीडिया भले ही कैसी भी तस्वीर पेश करे, वास्तव में इन मार्क्सवादियों का असली भद्दा चेहरा नंदीग्राम ने दिखा दिया है। पश्चिम बंगाल में पिछले 30 सालों से माकपा सरकार में है। वहां उसकी जीत क्या लोकतांत्रिक पध्दति से होती है? क्या उसकी जीत के पीछे पुलिस और प्रशासन की मिलीभगत तो नहीं है? माकपा की हिंसक राजनीति को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि केरल और बंगाल माकपा के 'यातना शिविर' बन गए हैं। माकपा की यह हिंसा उसकी असहिष्णु विचारधारा से उपजती है।
पूर्व राज्यसभा सांसद एवं वरिष्ठ स्तम्भकार श्री बलबीर पुंज ने कहा कि जो भी माकपा के विचारों से सहमत नहीं होता उसे ये मार्क्सवादी सह नहीं पाते। दिल्ली में माकपा का एक चेहरा है तो बंगाल और केरल में कुछ दूसरा ही है। नन्दीग्राम का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में नन्दीग्राम ने दिखा दिया है कि मार्क्सवादी किस हद तक जाकर हिंसा करते हैं। बंगाल, केरल, चीन और पूर्ववर्ती साम्यवादी रूस में कम्युनिस्टों की हिंसा में करोड़ों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। केरल और बंगाल में राजनीतिक हत्याएं होती हैं मगर दिल्ली का मीडिया इनकी कोई चर्चा नहीं करता।
राज्यसभा सांसद और द पायनियर के सम्पादक श्री चंदन मित्रा ने हिंसक मार्क्सवादी विचारधारा के संदर्भ में अपने नंदीग्राम दौरे का जिक्र करते हुए कहा कि वहां जिस तरह से मार्क्सवादी गुंडों ने हिंसा का माहौल बनाया था उसके कारण आज भी एक आम गांववासी भयभीत है। पूरा गांव सूना-सूना है। गांव के युवक गांव छोड़कर चले गए हैं क्योंकि उन्हें अपनी जान का खतरा है। यह नंदीग्राम ही है जिसके कारण देश का मीडिया और बुध्दिजीवी वर्ग कम्युनिस्ट हिंसा से परिचित हुआ है। केरल में तो मार्क्सवादी हिंसा इस कदर हावी है कि न तो पुलिस तंत्र, न समाज और न ही प्रशासन उसके सामने कुछ कर पाता है। कन्नूर का हर गांव नंदीग्राम बना हुआ है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे केरल प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष श्री पी.के. कृष्णदास ने मलयालम में अपनी बात रखते हुए कहा कि केरल के कन्नूर जिले में माकपा का वही हिंसक चेहरा दिखता है जो उसने नंदीग्राम में दिखाया है। माकपा की सोच फासीवादी है। हमारे कार्यकर्ताओं को मार्क्सवादी गुंडों ने अपनी हिंसा का शिकार बनाया है। केरल में आज भी संघ और भाजपा के कार्यकर्ताओं पर हिंसक हमले जारी हैं और ये हमले माकपा के पिनरई विजयन और कोडियरी बालकृष्णन जैसे नेताओं की शह पर हो रहे हैं। श्री कृष्णदास ने भाजयुमो के नेता स्वर्गीय के.टी. जयकृष्णन पर किए गए बर्बर हमले का वर्णन किया कि किस तरह कक्षा में पढ़ाते हुए मार्क्सवादी गुंडों ने जयकृष्णन की हत्या की थी और गवाही देने वालों को जान से मारने की धमकी दी थी। सदानन्दन मास्टर ने जब त्रिशूर और कन्नूर में मार्क्सवादियों द्वारा की जा रही हिंसक राजनीति का वर्णन किया तो वहां उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति हतप्रभ रह गया। उन्होंने कहा कि कन्नूर में 1950 में संघ का कार्य शुरू हुआ था और तब से ही माकपा का गढ़ माने जाने वाले इस क्षेत्र में मार्क्सवादियों को यह बात रास नहीं आई थी। वहां 1967 में संघ कार्यकर्ता रामकृष्णन की हत्या की गई थी। और उसके बाद से यह सिलसिला अब तक थमा नहीं है। कन्नूर वही इलाका है जहां कम्युनिस्ट पार्टी की भारत में स्थापना हुई थी। 1964 में कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में विभाजित हुई। 1967 में ई.एम.एस. नम्बूदिरीपाद कम्युनिस्ट सरकार में मुख्यमंत्री बने थे। तब से आज तक इन 40 सालों में हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों के 150 से अधिक कार्यकर्ताओं की हत्या की गई, सैकड़ों विकलांग बना दिए गए, अनेक के परिवार उजाड़ दिए गए, उनके घर जलाए गए, उनकी रोजी-रोटी का माध्यम छीना गया। खुद को सर्वहारा की पार्टी बताने वाले इन मार्क्सवादियों ने मजदूरों और किसानों पर ही सबसे ज्यादा हमले किए हैं। सदानन्दन जी ने बताया कि आपातकाल के बाद जब उनका मार्क्सवादी पार्टी से मोहभंग हुआ और वे संघ के सक्रिय कार्यकर्ता बने तभी से उनके विरुध्द मार्क्सवादी तत्व सक्रिय हो गए थे। उन्हें यह बर्दाश्त नहीं था कि कोई उनकी पार्टी छोड़कर संघ का कार्यकर्ता बने। श्री सदानन्दन को संघ के जिला सह कार्यवाह की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। यह 1994 की बात है। एक दिन स्कूल से घर लौटते हुए मार्क्सवादी गुंडों ने उन पर हमला करके उनके दोनों पैर काट दिए। इसी तरह कभी माकपा सरकार में मंत्री रहे श्री एम.वी. राघवन ने जब माकपा से अलग होकर अपनी पार्टी बनाई तो उन पर भी हिंसक हमले किए गए थे। श्री सदानन्दन ने कहा कि मार्क्सवादी उन्हें घातक हथियारों से शारीरिक चोट पहुंचा सकते हैं, उनकी हत्या कर सकते हैं मगर वे हिन्दुत्वनिष्ठ विचारधारा के प्रसार में बाधा नहीं पहुंचा सकते। कार्यक्रम में भाजपा संसदीय दल के उपनेता श्री विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्री राजीव प्रताप रूढी, भाजपा महामंत्री (संगठन) श्री रामलाल, दिल्ली भाजपा अध्यक्ष डा. हर्षवर्धन, केरल प्रदेश भाजपा के महासचिव श्री राधाकृष्णा, कन्नूर जिला भाजपा अध्यक्ष श्री वेलायुधन सहित अनेक गण्यमान्यजन उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन केरल प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष श्री पी. मुरलीधरन ने किया।
2 comments:
इससे पहले गुजराती मानवीयता को देश-दुनिया जान चुका है....
और उससे पहले वाजपेयी का स्वतंत्रता संघर्ष पढ़-सुन चुका है
और उसके बाद आडवाणी का अयोध्या अट्टहास सुन चुका है
और उससे पहले........
नारायण जी कभी गुजरात के बाहर निकल कर भी सोचो,ये हिंसा पहली बार नहीं हुइ,दंगे पहली बार नहीं हुए.पर शायद यह पहली बार हुआ कि मुसलमानों का नुकसान थोङा ज्यादा था,दंगे होना कहीं भी ठीक नहीं पर इनको देखने के लिये हर बार वही काला चश्मा काम लिया जाये ...हिंदु ...मुसलमान.अलीगढ,मऊ.जयपुर और भी बहुत जगह ऐसा हुआ,कशमीर तो पूरा खाली हो गया ,यहां बात हो रही है राजनैतिक निष्ठुरता और असहिष्णुता की.यदि कोइ भी पीङित हो तो हमें सहानुभुति तो कम से कम दिखानी ही चाहिये.भगवान आपको सद्बुद्धी दे ....शायद आप मानते हों
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