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Wednesday 13 August, 2008

भाजपा और मुसलमानों के बीच रिश्ता : बदलाव की बयार

-फ़िरदौस ख़ान

सुश्री फिरदौस खान युवा पत्रकार है। आपने दैनिक भास्कर और हरिभूमि में वरिष्‍ठ उप संपादक के नाते कार्य किया है। आपके लेख देश के विभिन्न प्रतिष्ठित पत्रिकाओं और समाचार-पत्रों में छपते है। निर्भीकता और ग्रामोन्‍मुख पत्रकारिता आपके लेखन की विशेषता है। फिलहाल आप स्‍वतंत्र लेखन कार्य में अनवरत् जुटी हुई है। निम्न लेख में उन्होंने भाजपा के प्रति मुस्लिम समुदाय की सोच में आ रहे बदलाव पर विचार प्रस्‍तुत किए है-

कभी मुसलमानों के लिए अछूत मानी जाने वाली भारतीय जनता पार्टी के प्रति अब लोगों की सोच में खासा बदलाव आया है। इसकी वजह यह भी मानी जा सकती है कि जिस एजेंडे के कारण भाजपा पर सांप्रदायिक पार्टी होने का ठप्पा लगा हुआ था, वह अब उस मुद्दे को दरकिनार कर देश के विकास और सुरक्षा की बात करने लगी है। इसके साथ ही मतदाताओं में भी जागरूकता आई है और वे इस चीज को समझने लगे हैं कि कौन उनके हित की बात कर रहा है और कौन उन्हें महज वोट बैंक मानकर इस्तेमाल करना चाहता है। यह कहना कतई गलत न होगा कि भाजपा ने हमेशा तुष्टिकरण और धर्म आधारित केवल उन्हीं नीतियों का विरोध किया है, जो देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा रही हैं।

हाल ही में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पूर्व उपप्रधानमंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी द्वारा दिया गया बयान भी इस बात को साबित करता है। उन्होंने जनसंपर्क में तेजी लाने के साथ इस बात पर खासा जोर दिया कि मुसलमानों और ईसाइयों को भी पार्टी से ज्यादा से ज्यादा संख्या में जोड़ा जाए। उन्होंने कहा कि भाजपा समाज को अलग-अलग हिस्सों में बांटे बगैर अल्पसंख्यकों का चौतरफा विकास और उनकी भागीदारी चाहती है। लेकिन उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भाजपा के समन्वित एजेंडे में तुष्टिकरण और मजहब आधारित आरक्षण के लिए कोई जगह नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि जनसंपर्क अभियानों में लोगों को यूपीए सरकार की विफलताओं से अवगत कराने के साथ-साथ पार्टी के एजेंडे के बारे में भी जानकारी दी जाए।

बैठक में श्री आडवाणी ने कहा कि अगर भाजपा को पर्याप्त समर्थन मिल जाए तो निश्चित रूप से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के विस्तार और शक्ति पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने गठबंधन में नए दलों के शामिल होने की उम्मीद जताते हुए कहा कि हमें यह याद रखना चाहिए कि राजग का विस्तार, स्थिरता और मेल-मिलाप हमारी इस योग्यता पर निर्भर करता है कि हम उन गुटों को भी आकृष्ट करें और जोड़े रखें, जो सभी मुद्दों पर भारतीय जनता पार्टी से सैध्दांतिक रूप से नहीं जुड़ सके हैं। उन्होंने कहा कि जनता आज ऐसी सरकार चाहती है जो भ्रष्टाचार मुक्त शासन दे सके और देश को विकास और सुरक्षा के मामले में सुदृढ़ बनाने के प्रति वचनबध्द हो। इस सच्चाई की अनुभूति और एक सांझा एजेंडे के आधार पर एक गठबंधन के रूप में मिलकर काम करने की इच्छा शक्ति वर्ष 1998 और 1999 में राजग की सफलता के लिए महत्वपूर्ण थी। दरअसल, भाजपा विभिन्न राजनीतिक दलों से कश्मीर में धारा-370 हटाने और समान नागरिक संहिता लागू करने जैसे मुद्दों पर मतभेदों को दरकिनार कर एक ऐसी सरकार बनाना चाहती है, जो देश के विकास और सुरक्षा को महत्व देते हुए भारत को स्थायी सरकार देने के प्रति वचनबध्द हों। श्री आडवाणी द्वारा दिए गए इन स्पष्ट बयानों से कांग्रेस की चिंता बढ़ी है। राजग गठबंधन का विस्तार न हो और भाजपा व उसके मित्र दलों के बीच सेकुलरिज्म के मुद्दे पर दरार पड़े, कांग्रेस की यह साजिश नाकाम होती नजर आ रही है।

पिछले दिनों भारतीय जनता पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चे की हैदराबाद में हुई बैठक में पारित प्रस्ताव में भी इस बात पर जोर दिया कि कार्यकर्ता अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों के बीच जाकर काम करें और उन्हें पार्टी की नीतियों से अवगत कराएं। मोर्चे के अध्यक्ष व भागलपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद शाहनवाज हुसैन ने मुसलमानों से आह्वान किया कि वे पूर्वाग्रहों को छोड़कर देश व कौम की तरक्की के लिए आगे आएं। उन्होंने श्री आडवाणी की आत्मकथा 'माई कंट्री माई लाइफ' के शीघ्र ही उर्दू अनुवाद वाली पुस्तक लाने की घोषणा भी की।

इसमें कोई दो राय नहीं कि कांग्रेस और अन्य तथाकथित सेकुलर दलों ने अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हमेशा से ही लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया है। इसका सबसे ज्यादा खामियाजा अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों को उठाना पड़ा। देश की आजादी के बाद करीब पांच दशकों से भी ज्यादा समय तक कांग्रेस सत्ता पर काबिज रही है। इसके बावजूद मुसलमानों की हालत इतनी बदतर कैसे हो गई कि सरकार को उनकी आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक हालत जानने के लिए सच्चर कमेटी गठित करनी पड़ी? सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में भी इस बात पर चिंता जताई गई कि देश के मुसलमानों की हालत दलितों से भी बदतर है। यहां गौर करने लायक बात यह भी है कि भाजपा शासित राज्यों में मुसलमानों की हालत बेहतर पाई गई। मुसलमानों की हितैषी होने का दम भरने वाली माकपा शासित राज्य पं. बंगाल में भी मुसलमानों की हालत बेहद दयनीय है।

बढ़ती महंगाई, भ्रष्टाचार और अराजकता के इस दौर में लोगों का जीना मुहाल हो गया है, लेकिन प्रधानमंत्री डॉ। मनमोहन सिंह केवल मूकदर्शक बनकर देखने के सिवा और कुछ नहीं कर पा रहे हैं। परमाणु करार के नाम पर सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकी देने वाले वामपंथी दल भी चुप्पी साधे बैठे हैं। नंदीग्राम और सिंगुर कांड भी वामपंथी दलों की कथनी और करनी के अंतर को बयां करने के लिए काफी है। सरकार की इससे ज्यादा कमजोरी और क्या होगी कि वाजपेयी सरकार द्वारा मई 1998 में पोखरण में कराए गए परमाणु बम के परीक्षण की दसवीं वर्षगांठ तक नहीं मनाई गई। सरकार दोषपूर्ण भारत-अमेरिकी परमाणु समझौते के जरिये देश की रणनीतिक रक्षा क्षमता को निष्क्रिय करने में लगी हुई है। सवाल यह है कि जिस सरकार की लोकतंत्र में आस्था और विश्वास ही संदिग्ध हो, उसके हाथों में देश कितना सुरक्षित है? क्या देश उन्नति के उस शिखर को छू पाएगा, जिसका सपना हर भारतवासी की आंखों में बसा है?

ऐसे में भाजपा विकल्प के तौर पर आज सबसे ज्यादा सक्षम पार्टी नजर आती है। वाजपेयी सरकार के कार्यकाल के दौरान किए गए कार्य सबके सामने हैं। पहले रसोई गैस सिलेंडर लोगों को उनके दरवाजे पर मिल जाया करता था, लेकिन अब कई दिन पहले बुकिंग करने के बाद भी घंटों लाइनों में लगने के बाद ही मिल पाता है। इतना ही नहीं गैस कीमतों में भी लगातार भारी इजाफा हो रहा है, जिसने महंगाई से जूझ रहे लोगों की परेशानियां और ज्यादा बढ़ा दी हैं। इन्हीं गलत नीतियों के कारण आज कांग्रेस के साथ उसके सहयोगी दल भी जनाधार खो रहे हैं। गौरतलब है कि मई 2004 से अब तक कांग्रेस को 12 राज्यों के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है, जबकि भाजपा व उसके सहयोगी दलों ने बिहार, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, नागालैंड और अब कर्नाटक में जीत हासिल की। कर्नाटक में एक मुस्लिम को मंत्रिमंडल में कैबिनेट रैंक का मंत्री बनाने से मुसलमानों में भी भाजपा के प्रति विश्वास बढ़ा है।

कर्नाटक में पार्टी की शानदार जीत और कांग्रेस की हार से पैदा हुई स्थिति को 'बदलाव का मोड़' बताते हुए श्री आडवाणी ने इसकी तुलना वर्ष 1989 में आए उस बदलाव से की जब भाजपा ने 1984 में केवल दो सांसदों के मुकाबले पांच वर्ष बाद 86 सांसदों से लोकसभा में अपनी बढ़ोतरी दर्ज कराई। इसके बाद भाजपा के सांसदों की संख्या में लगातार वृध्दि होती गई और 1998 में एक दशक के भीतर ही श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में पार्टी केंद्र में सरकार बनाने में कामयाब रही।

युवाओं और महिलाओं को साथ लेकर चलने की भाजपा की नीति भी बेहतर नतीजे सामने लाएगी, ऐसी उम्मीद की जा सकती है। हाल ही में भाजपा के युवा मोर्चे ने 'प्रथम मतदाता सम्मान अभियान' नाम से एक मुहिम शुरू की है। इसका मकसद देश के उन दस करोड़ युवा मतदाताओं को पार्टी से जोड़ने का प्रयास करना है, जो आगामी लोकसभा चुनाव में पहली बार मतदान करेंगे। अलबत्ता, उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले समय में भाजपा समाज के उन वर्गों और समुदायों में अपनी पैठ बनाने में कामयाब रहेगी, जो अब तक इससे अछूते रहे हैं।

3 comments:

Unknown said...

बहुत बढ़िया आलेख. भाजपा और अन्य दलों के दृष्टिकोण में ही मूलभूत अन्तर हैं. भाजपा मुसलमानों को हिंदू जैसे ही एक नागरिक के तौर पर देखती हैं. जबकि अन्य दल मुसलमानों को वोटर के तौर पर. भाजपा का तो प्रारम्भ से ही नारा रहा हैं- सभी को न्याय, तुष्टिकरण किसी का नहीं. कांग्रेस ने आजादी के बाद से मुसलमानों को सिर्फ़ गुमराह करने की कोशिश की हैं. माकपा शासित पश्चिम बंगाल में तो मुसलमानों की दयनीय हालत हैं. अच्छी बात हैं कि मुसलमानों में भाजपा को लेकर बदलाव की बयार चल रही हैं.

MEDIA GURU said...

bahut sundar aalekh hai . bajpa aur anya political parti ke beech samnvay sthapit ho.

MEDIA GURU said...

bahut sundar aalekh hai . bajpa aur anya political parti ke beech samnvay sthapit ho.