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Thursday, 21 August 2008

कश्‍मीर में हिन्दू और भारत के सभी चिन्ह मिटाने का षडयंत्र अंतिम चरण में

चित्र-याहू जागरण से साभार

भारत के सभी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और धार्मिक चिन्हों को समाप्त करके, कश्‍मीर को पूर्णत: हिन्दूविहीन करने का षडयंत्र अपने अंतिम दौर में पहुंच चुका है। ऐतिहासिक स्थलों, नदियों और शहरों के नाम बदलने, कश्‍मीर के चार लाख हिन्दुओं को उनके घरों से भगाने, मुस्लिम धार्मिक आदारों और राजनीतिक नेताओं को कौड़ियों के भाव जमीन देने, हज यात्रियों के लिए हज हाउस बनाने और उन्हें ढेरों सुविधाएं देने, प्रशासनिक और आर्थिक सुविधाओं के ढेर कश्‍मीर में लगाने के बाद घाटी के इन नेताओं ने अब बाबा अमरनाथ यात्रा को नुकसान पहुंचाने के हिन्दू/भारत विरोधी षडयंत्र को कामयाब करने का फैसला कर लिया है।

प्रदेश सरकार के वन विभाग द्वारा बाकायदा मंत्रिमण्डल की मोहर लगने के बाद श्री अमरनाथ श्राईन बोर्ड को बालटाल में दी जा रही 800 कनाल जमीन का विरोध करने के लिए पूरे कश्‍मीर में साम्प्रदायिक आग लगा दी गई। हुर्रियत कांफ्रेंस के कथित उदारवादी चेयरमैन मीरवायज उमर फारूख ने कहा कि श्राईन बोर्ड को जमीन देकर भारत की सरकार कश्‍मीर में हिन्दू कालोनी बनाकर जनसंख्या अनुपात को बदलना चाहती है। अगर सरकार ने यह फैसला नहीं बदला तो खुली बगावत होगी। तहरीके हुर्रियत के नेता सईद अली शाह गिलानी ने बोर्ड को जमीन देने के सरकारी फैसले को इस्लाम विरोधी करार देते हुये अवाम से इसके विरोध में छेड़ी जा रही जंग में कूद पडने का आह्वान कर दिया। जम्मू-कश्‍मीर लिबरेशन फ्रंट के नेता यासिन मलिक, डेमोक्रेटिक फ्रीडम पार्टी के शबीरशाह इत्यादि अलगाववादी नेताओं ने भी अपने सभी भेदभाव बुलाकर खुली बगावत पर उतरने का ऐलान कर दिया। इन नेताओं के अनुसार कश्‍मीरी मुसलमानों को अल्पसंख्यक बनाने और इस्लाम को नुकसान पहुंचाने की साजिश अमरनाथ श्राईन बोर्ड कर रहा है। माहौल को शांत करने की बजाय यह अलगाववादी नेता जलती आग पर तेल छिड़कने का काम कर रहे हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने सरकार से अपना फैसला वापिस लेने के लिए दबाव बनाया। उन्होंने जम्मू-कश्‍मीर की गठबंधन सरकार से इस मुद्दे पर समर्थन वापिस लेने की धमकी दे डाली। मुफ्ती सईद और उनकी बेटी पीडीपी की अध्यक्षा मुफ्ती महबूबा के अनुसार अमरनाथ यात्रा से कश्‍मीर में प्रदूषण फैलता है। पूर्व मुख्यमंत्री डा। फारूख अब्दुल्ला ने भी कहा कि उनकी हकुमत आई तो अमरनाथ श्राईन बोर्ड को दी जाने वाली जमीन वापिस ले ली जायेगी। जबकि फारूख अब्दुल्ला ने एक दिन पहले ही जम्मू में कहा था कि बोर्ड को जमीन देने से किसी का कोई नुकसान नहीं होगा। अमरनाथ यात्रा के कारण कश्‍मीरियों को रोजगार मिलता है। कुछ राजनीतिक दल और अलगाववादी नेता इसका राजनीतिक फायदा उठाने के लिए बेमतलब इसे एक मुद्दा बना रहे हैं। श्रीनगर में जाते ही फारूख अपना पैंतरा बदल गये।

उपमुख्यमंत्री अफजल बेग ने तो एक बहुत ही घटिया बात कह दी कि आर।एस.एस. के इशारे पर ही राज्यपाल और बोर्ड के अध्यक्ष डा. अरूण कुमार प्रदेश में फिरकापरस्ती फैला रहे हैं। संघ ने दोनों को संसद के चुनावों में टिकट देने का आश्‍वासन दिया है। भीतरी सच्चाई यह है कि किसी मुसलमान को जम्मू-कश्‍मीर का राज्यपाल और मुसलमान को ही अमरनाथ श्राईन बोर्ड का अध्यक्ष बनाकर यह कश्‍मीरी नेता हिन्दुओं के धार्मिक स्थलों और यात्राओं पर कब्जा करना चाहते हैं।

उल्लेखनीय है कि श्रीअमरनाथ बोर्ड को जमीन सौंपने का फैसला मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री की मौजूदगी में मंत्रीमण्डल में लिया गया था। वन विभाग ने जो शर्तें बोर्ड के आगे रखीं उन सबसे बोर्ड सहमत भी हो गया था। श्राईन बोर्ड ने जमीन का मूल्य 2 करोड़ 31 लाख 30 हजार 400 रूपये वन विभाग को देना स्वीकार किया। यात्रा के बाद बोर्ड को यह जमीन वन विभाग को वापिस करनी थी। यहां पर कोई स्थाई ढांचा भी नहीं बनाया जा सकता। जमीन का टाईटल भी नहीं बदलेगा। श्राईन बोर्ड इस जमीन को लीज अथवा किराये पर भी नहीं दे सकता। उधर विधानसभा की पर्यावरण समिति के अध्यक्श डा। मुस्तफा कमाल ने भी स्पष्‍ट कर दिया था कि अमरनाथ श्राईन बोर्ड को अस्थाई रूप से जमीन देने का फैसला कश्‍मीरी आवाम और किसी धर्म के खिलाफ नहीं है।

इस सबके बावजूद भी कश्‍मीर के सभी वर्गों और विचारों के नेताओं का सड़कों पर उतरना उनके भारत और हिन्दू विरोधी इरादों का परिचायक नहीं है तो और फिर क्या है? दरअसल अमरनाथ यात्रियों की बढ़ती संख्या, अमरनाथ श्राईन बोर्ड की भारी सफलता और हिन्दुओं के इस आस्था केन्द्र की बढ़ती गरिमा को यह कट्टरपंथी नेता बर्दाश्‍त नहीं कर पा रहे हैं। इन नेताओं को अपने वोट बैंक मजबूत करने और कष्मीर की पुरानी और हिन्दुओं की सांस्कृतिक विरासत के चिन्हों तक को मिटाने की चिंता है। पूरे भारत में हज यात्रियों के लिए बने स्थाई केन्द्रों और कश्‍मीर में किसी प्रकार के स्थाई इंतजामों से प्रदूषण नहीं फैलता परन्तु अमरनाथ यात्रियों के लिए की जा रही अस्थाई व्यवस्था से प्रदूषण भी फैलता है और इस्लाम को खतरा भी पैदा होता है।

इधर हिन्दू संगठनों के नेताओं ने कश्मीरी नेताओं के इन हिन्दू विरोधी बयानों और खुली बगावत पर उतरने की धमकी को भारत विरोधी करार देकर दृढ़ता के साथ इसका मुकाबला करना और इस षडयंत्र को सफल न होने देने की ठान ली। हिन्दू नेता अनेक सवाल खड़े कर रहे हैं। वे पूछते हैं कि यदि राजौरी में बाबा गुलामशाह इस्लामिक विश्‍वविद्यालय बनाने के लिए वन विभाग की जमीन दी जा सकती है, गुलमर्ग में रोशनी एक्ट के अंतर्गत 550 कनाल जमीन कश्‍मीर के धन्ना सेठों को होटल बनाने के लिए दी जा सकती है, जब मुगलरोड़ के निर्माण के लिए हजारों पेड़ काटे जा सकते हैं और इसके लिए वाइल्ड लाईफ केन्द्रों को तबाह किया जा सकता है और इधर जम्मू के आसपास बठिंडी, सुंजवा और नरवाल इत्यादि स्थानों पर सैंकड़ों कनाल जमीन बड़े-बड़े कष्मीरी नेताओं को कोठियां बनाने के लिए कौढ़ियों के भाव दी जा सकती है तो अमरनाथ यात्रियों की सुविधा के लिए जमीन देने से इस्लाम को कौन सा खतरा पैदा हो गया है? कश्‍मीर में सार्वजनिक स्थलों के निर्माण के बहाने कश्‍मीरी पंडितों की जमीनों पर सरकारी कब्जे किये जा रहे हैं। उनके घरों, बाग-बगीचों और आस्था स्थलों पर आतंकवादी काबिज हो गये हैं। यह सारी गतिविधियां कश्‍मीरी नेताओं को क्यों दिखाई नहीं देती? लोग पूछते हैं कि जब मंत्रिमण्डल ने वन विभाग के प्रस्ताव को स्वीकार किया था तो उपमुख्यमंत्री और कानून मंत्री अफजल बेग वहां मौजूद थे तब उन्होंने विरोध क्यों नहीं किया?

हैरानी की बात है कि अमरनाथ यात्री तो कष्मीर में प्रदूषण फैलाते हैं परन्तु राजस्थान के अजमेर-शरीफ पर एकत्रित होने वाले दुनिया भर के मुसलमान प्रदूषण नहीं फैलाते। भारत में हजारों स्थानों पर मुसलमान भाई अपनी धार्मिक गतिविधियों को हिन्दुओं के सहयोग और सरकारी मदद से चलाते हैं। क्या कभी किसी हिन्दू नेता ने भी उन पर उंगली उठाई है? कश्‍मीर के लोग पूरे देश में जमीन जायदाद खरीद सकते हैं, अपनी राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक और व्यापारिक गतिविधियों को स्वतंत्रतापूर्वक अंजाम दे रहे हैं। फिर कश्‍मीर में हिन्दुओं की धार्मिक गतिविधियों पर इतना बवाल क्यों मचाया जा रहा है? कश्‍मीर की धरती अलगाववादियों, आतंकवादियों अथवा कश्‍मीर के राजनीतिक दलों की निजी जायदाद नहीं है। उस पर सारे देशवासियों का हक है। अपने इस हक के लिए यदि समस्त भारतवासी खासतौर पर हिन्दू प्रयास करते हैं तो कश्मीर में एक विशेष समुदाय के नेताओं को कष्‍ट क्यों होता है?

सचाई तो यह है कि कश्‍मीर के इस्लामीकरण की प्रक्रिया को पूरा करने के षडयंत्र रचे जा रहे हैं। अमरनाथ श्राईन बोर्ड को दी जाने वाली जमीन तो एक बहाना है अन्यथा श्राईन बोर्ड द्वारा यात्रा को पूर्णत: प्रदूषण मुक्त बनाने के सभी आधुनिक, वैज्ञानिक तौर-तरीकों को अपनाने और बालटाल में मिली भूमि से संबंधित सभी सरकारी शर्तों को मानने के बावजूद भी कश्‍मीरी नेताओं का सड़कों पर उतरकर खुली बगावत करना उनके असली इरादों का ही प्रतीक है। (आस्था पर आघात पुस्तक से साभार)

2 comments:

Anonymous said...

yeah! its much better,

Anonymous said...

bahut achchha likha hai aapne.