कम्युनिस्ट हमेशा इस देश की संस्कृति का अपमान करने में गौरवान्वित महसूस करते हैं। वे भारतीय कहलाने और हिंदू कहे जाने पर शर्म महसूस करते हैं। विडम्बना यह है कि वे फिलीस्तीन में मारे जा रहे मुस्लिमों के लिए धरना-प्रदर्शन तो करते हैं, लेकिन उन्हें कश्मीरी हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार नहीं दिखायी देते।
जो वामपंथ को ठीक से नहीं जानते उन्हें आश्चर्य होता है कि अमुक मुद्दे पर वामपंथ ने ऐसा रवैया क्यों अपनाया। लेकिन जो वामपंथ के इतिहास का जरा सा भी ज्ञान रखते हैं वे कतई आश्चर्य नहीं करते। यह बात कला, साहित्य और राजनीति, तीनों के विषय में सच है।बस, राष्ट्रविरोध और हिंदूविरोध ही दो ऐसे मापदण्ड हैं जिन पर वामपंथ का पूरा ढर्रा निर्भर करता है। वस्तुत: इसके कारण भी कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना में ही निहित हैं। जिस तरह देश में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी आदि पार्टियां हैं उस तरह से कम्युनिस्ट पार्टी नहीं है। यह भारत की कम्युनिस्ट पार्टी है। अर्थात् यह कम्युनिस्ट पार्टी की भारत स्थित 'शाखा' है। अत: इसके निर्णय स्वतंत्र नहीं हो सकते। वास्तव में भारतीय कम्युनिस्टों ने देशभक्ति सीखी ही नहीं। चाहे वह वंदेमातरम् का विरोध हो या सरस्वती वन्दना का अपमान। कम्युनिस्ट हमेशा इस देश की संस्कृति का अपमान करने में गौरवान्वित महसूस करते हैं। वे भारतीय कहलाने और हिंदू कहे जाने पर शर्म महसूस करते हैं। विडम्बना यह है कि वे फिलीस्तीन में मारे जा रहे मुस्लिमों के लिए धरना-प्रदर्शन तो करते हैं, लेकिन उन्हें कश्मीरी हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार नहीं दिखायी देते।
वास्तव में भारतीय वामपंथी लगातार रूस और चीन की कम्युनिस्ट पार्टियों द्वारा बेवकूफ बनाये जाते रहे। इन्हीं कम्युनिस्टों की युवा विकृति 'आइसा' (ऑल इण्डिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन) के कार्यकर्ता अपने संस्कारों को भूलकर नशे की तरंग में सामाजिक स्तर पर बदलाव की मांग करते हैं। वैसे तो 'आइसा' अहिंसा की बात करती है लेकिन इसके ही कार्यकर्ता नक्सलियों की वैचारिक खुराक बनते हैं। मजे की बात यह है कि 'आइसा' कार्यकर्ता 'नाइक' के जूते और 'ली' की जींस पहनकर अमरीकी पूंजीवाद का विरोध करने की बाते करते हैं। 'आइसा' के ब्रांड अम्बेसडर गोरख पांडेय जिस 'बिरटेन हाथ बिकानी' की चर्चा करते हैं उसके हाथों भी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी कई बार बिकी है। भारत में श्रमिक और कृषक दल की स्थापना करनेवाले लोगों में पर्सी ई ग्लैडिंग्स, फिलिप स्पैट आदि अंग्रेज थे। आज भी कम्युनिस्ट पार्टी को बाहर से ही दिशा-निर्देश मिलते हैं।
अभी हाल में टाटा का प. बंगाल छोड़कर गुजरात जाना कम्युनिस्टों के मुंह पर करारा तमाचा है। प. बंगाल के मुख्यमंत्री बुध्ददेव भट्टाचार्य ने अपने आका स्टालिन के दिखाये रास्ते पर चलकर तानाशाही दिखाई है। वे भूल गये कि यह रूस नहीं, भारत है। कम्युनिस्टों की तानाशाही को यह करारा जवाब है। पर कम्युनिस्ट और गैर कम्युनिस्ट में यही फर्क है कि गैर कम्युनिस्ट अपनी भूल पर अफसोस करता है, लेकिन कम्युनिस्ट अपनी शर्मिंदगी को भी बौध्दिकता का जामा पहनाकर सही सिध्द करता है।
-अंजनी कुमार श्रीवास्तव
208, चन्द्रभागा, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
3 comments:
कम्युनिष्ट है ही कितने आप जैसे लोग रोज़ उनेह चर्चा मे ले आते है . अगर चर्चा करनी हो तो संघ परिवार की गलतियों की करो ,भजपा की करो जैसे कमुनिष्ट खत्म हो रहे है वैसे ही आप लोग भी खात्मे की ओर बढ़ रहे हो . संघ का मुख्य कार्य शाखा था कहाँ लग रही है किताबों मैं .आप भी फर्जी हो गए हो
अंजनीजी ने कम शब्दों में ही भारतीय कम्युनिस्टों की अच्छी खबर ले ली हैं। हिंदूविरोधी और भारतविरोधी कम्युनिस्टों को लगातार बेनकाब करने की जरूरत है। धीरू भाई संघ परिवार खात्मे की ओर नहीं बढ रहा अपितु आज अपने स्वर्णिम काल में है। भाजपा आज सात राज्यों में स्वयं के बलबूते पर शासन कर रही है और पांच में राज्यों में गठबंधन दलों के साथ। और अगले महिने यह संख्या बढनेवाली है दिल्ली में भाजपा का शासन होगा और जम्मू-कश्मीर में भाजपा गठबंधन का।
@'कम्युनिस्ट पार्टी का इतिहास गलतियों का इतिहास है।'
मैं कहूँगा, कम्युनिस्ट पार्टी का इतिहास देशद्रोह का इतिहास है
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