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Saturday, 13 October 2007

माकपा शासन में दलितों से भेदभाव




शोर मचाने में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी(माक्र्सवादी) का कोई जवाब नहीं है। गोयबल्स के सच्चे अनुयायी ये ही हैं। दलितों के साथ कहीं (पश्चिम बंगाल और केरल छोड़कर) भेदभाव की भनक मिले तो वामपंथी मुट्ठियां भींचकर मुर्दाबाद के नारे लगाने लगेंगे। ये बहुत शोर मचाते थे कि पश्चिम बंगाल और केरल में दलितों और अल्पसंख्यकों की स्थिति बहुत अच्छी है। लेकिन सच्चर समिति ने इनकी पोल खोल दी। दलित और अल्पसंख्यक सबसे तंगहाल जीवन पश्चिम बंगाल में ही जी रहे है।

आज टाइम्स ऑफ इंडिया में एक खबर पढ़ी। पश्चिम बंगाल और केरल के विद्यालयों में भेदभाव। केरल सरकार द्वारा संचालित विद्यालयों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय के छात्रों को कहा गया है कि वे समाज के अन्य छात्रों से अलग रंग के यूनीफॉर्म पहनकर स्कूल आएं।

1 comment:

अनुनाद सिंह said...

कम्यूनिज्म का सारा दर्शन ही गरीबी के उत्पादन, उसके समान वितरण, गरीबों को शब्जबाग दिखाने, धुंआधार प्रोपेगैण्डा करने, एक वर्ग को दूसरे के विरुद्ध भड़काने और चन्द लोगों की मनमानी पर टिका हुआ है।

पिछड़ेपन का सबसे बड़ा अभिशाप यह है कि पिछड़े लोग अपना असली शत्रु चिन्हित करने में सदा असफल रहते हैं।