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Saturday, 31 May 2008

कर्नाटक का जनादेश- दैनिक भास्कर

कर्नाटक में भाजपा की शानदार विजय को सभी समाचार पत्रों ने संपादकीय टिप्पणी में ऐतिहासिक और दूरगामी संदेश देने वाला बताया है। प्रस्तुत है संपादकीय टिप्पणी के प्रमुख अंश-

कर्नाटक का जनादेश


कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों से जितना संतोष राज्य के पैंसठ वर्षीय भाजपा नेता वीएस येदीयुरप्पा को हुआ होगा उतना शायद उनकी पार्टी को भी न हुआ हो। गंभीर व धार्मिक स्वभाव वाले येदीयुरप्पा के लिए यह प्राकृतिक न्याय से कम नहीं कि पिछले साल उनके साथ हुए राजनीतिक हादसे का उन्हें यह प्रतिसाद मिला। अब वे न केवल एक बहुमत वाली सरकार का प्रतिनिधित्व करेंगे, बल्कि दक्षिण भारत में अपनी पार्टी का परचम लहराने वाले पहले मुख्यमंत्री भी होंगे। कर्नाटक में जनता ने जो जनादेश दिया है, उससे यह तो साफ ही है कि विश्वासघात जैसा भावनात्मक मुद्दा अभी भी बहुत मायने रखता है। साथ ही, भाजपा के ऊपर चस्पा सांप्रदायिकता का ठप्पा अब शायद अपना मतलब खोता जा रहा है। इसमें कोई शक नहीं कि भाजपा की यह जीत जहां एक ओर लोगों में इस पार्टी के प्रति सहानुभूति का प्रदर्शन है, वहीं राज्य में एक लंबे समय से वर्चस्व बनाए हुए जनता दल(एस) की मौकापरस्त राजनीति को नकारने का एक संदेश भी है। राज्य में पिछले साल की विचित्र राजनीतिक गतिविधियां अभी लोग भूले नहीं हैं। पहले तो जनता दल(एस) और भाजपा के बीच बीस-बीस महीनों तक गठबंधान सरकार चलाने का करार, फिर नवंबर में भाजपा की बारी आने पर जनता दल(एस) द्वारा समर्थन देने से इंकार के पीछे जो भी कारण रहे हों, पर उस निर्णय का राजनीतिक खामियाजा जनता दल(एस) के मुखिया देवेगौड़ा को महंगा पड़ा। इस घटनाक्रम में येदीयुरप्पा राज्य के पहले भाजपा मुख्यमंत्री बने तो सही पर केवल एक सप्ताह के लिए और उनका यह कार्यकाल एक उपलब्‍धियों से ज्यादा हास्यास्पद बनकर रह गया और इसी के साथ जनता दल(एस) का विश्वासघात और गठबंधन धर्म का पालन न करना ही भाजपा के चुनाव प्रचार का प्रमुख मुद्दा बना।


आज जब लोगों ने अपना निर्णय दे दिया है, तो देखना यह है कि इन नतीजों का व्यापक अर्थ क्या है? जहां एक ओर वामदलों ने इन्हें यूपीए पर हमला बोलने के एक और मौके के तौर पर इस्तेमाल किया है, वहीं राज्य कांग्रेस के नेता एस एम कृष्णा ने बड़ी साफगोई से इसे अपनी और पार्टी में सबकी जिम्मेदारी के तौर पर स्वीकार किया है। उन्हें महाराष्ट्र के राज्यपाल के पद से हटाकर बड़ी उम्मीदों के साथ राज्य कांग्रेस की चुनाव प्रचार नीति को नेतृत्व देने के लिए बुलाया गया था। अगले कुछ दिनों में जब येदीयुरप्पा अपना पद संभालेंगे, तब उनके अनुशासन पसंद स्वभाव की परीक्षा होना तय है। उनकी सरकार से कर्नाटक के लोगों को काफी उम्मीदें हैं। भावनात्मक समर्थन की चमक से जल्दी ही निकलकर उन्हें इन सबसे जूझना होगा।
(दैनिक भास्कर 26 मई 2008)

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