वर्ष 2004 के विधानसभा चुनाव में 58 स्थानों पर विजयी रहे जनता दल(एस) को 30 से भी कम सीटों तक सीमित कर कर्नाटक के मतदाता ने गठबंधन राजनीति के दौर में घोर अवसरवादिता के लिए पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा के अनुयायियों को सबक सिखाने की कोशिश की है। दक्षिण भारत के सबसे तेजी से विकास कर रहे राज्य कर्नाटक में पिछले विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा स्थान पाने के बावजूद जोड़-तोड़ की राजनीति के चलते सिर्फ सात दिन तक सत्ता में रह सकी भारतीय जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत के करीब पहुंचाकर कर्नाटक के मतदाता ने जोड़-तोड़ की राजनीति को भी नकार दिया है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिला जन समर्थन राष्ट्रीय राजनीति में कुछ नयी संभावनाओं का संकेत माना जा रहा है। 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी से दर्जनभर से कम स्थानों के अंतर के कारण सत्ता से वंचित रहने को हज्म करने में लंबे समय तक विफल रही भाजपा कर्नाटक में अपने प्रत्याशियों को मिले बेहतर जन समर्थन के बाद इसे लोकसभा चुनाव के संकेत के रूप में देखने को उत्सुक है और कांग्रेस ने खामोशी ओढ़ ली है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तथा कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एस.एम. कृष्णा ने हार की जिम्मेदारी ओढ़ते हुए विपक्ष में रहते हुए अपनी पार्टी के लिए नयी रणनीति बनाने की जरूरत बतायी है। उन्होंने जायज ही कर्नाटक जैसे विभिन्नताओं से भरपूर राज्य का शासन चलाने की चुनौतियों तथा भाजपा से लोगों की व्यापक अपेक्षाओं की तरफ धयान दिलाया है। कर्नाटक में पहली बार अपने बूते पर सत्ता संभालने जा रही भाजपा के ज्यादातर स्थानीय नेताओं को प्रशासनिक अनुभव नहीं होने के चलते उनका काम निश्चय ही मुश्किल हो सकता है। कर्नाटक में कांगेस पार्टी को 2004 से कुछ ज्यादा इलाकों में मिली जीत तथा जनता दल(एस) को मतदाता द्वारा दिया गया झटका क्षेत्रीय दलों की अवसरवादिता की राजनीति को नकारने के मतदाता के संदेश की गूंज देश भर में भावी चुनावों में सुनायी दे तो ज्यादा हैरानी नहीं होगी।
(26 मई, 2008)
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