भगत सिंह जन्मशताब्दी पर विशेष
भगत सिंह देश के ऐसे विरले क्रांतिनायक हैं जिसकी छवि और स्मृति रक्त में राष्ट्रीयता का जोश भरती है, अन्याय को खत्म करने का मन बनाती है और तेजस्वी आंखों के अंगारों से देशद्रोही को भस्म करने की ताकत देती है। जैसे स्वामी विवेकानंद ने गुरुगोविंद सिंह को प्रत्येक भारतीय का आदर्श नायक बताया था। वैसे ही, दुनिया के सबसे अधिक युवाओं वाले देश भारत में युवाओं के नायक भगत सिंह बन चुके हैं।
कुछ लोग उन्हें वैचारिक बाड़ेबंदी में घेरना चाहते हैं, वे अंग्रेज सार्जेंट का काम कर रहे हैं। भगत सिंह जिस बगावत की आवाज बने, वही बागी स्वर आज उन श्वेताम्बरी, पीताम्बरी, पाखंडी-व्रतधारी वर्ग के खिलाफ गुंजाने की जरुरत है जो न केवल भारतीय एकता को भीतर से खोखला कर रहे हैं बल्कि राममंदिर और रामसेतु जैसे प्रश्नों पर जिहादी सेकुलर-तालिबानियों के विरुध्द प्रतिरोध को भी कमजोर कर रहे हैं। याद रखना चाहिए आखिर भगत सिंह को फांसी पर चढ़ाने में मदद करने वाले 457 गवाह भारतीय ही थे। भगत सिंह को समझना हो तो जो उन्होंने कहा व किया उसी से समझा जा सकता है।
'तेरी माता, तेरी प्रात: स्मरणीया, तेरी परम वन्दनीया, तेरी जगदम्बा, तेरी अन्नपूर्णा, तेरी त्रिशूलधारिणी, तेरी सिंहवासिनी, तेरी शस्य श्यामलांचला आज फूट-फूटकर रो रही है। क्या उसकी विकलता तुझे तनिक भी चंचल नहीं करती? धिक्कार है तेरी निर्जीवता पर! तेरे पितर भी शर्मसार है इस नपुंसत्व पर! यदि अब भी तेरे किसी अंग में कुछ हया बाकी हो, तो उठकर माता के दूध की लाज रख, उसके उध्दार का बीड़ा उठा, उसके आंसुओं की एक-एक बूंद की सौगंध ले, उसका बेड़ा पार कर और बोल मुक्त कंठ से- वंदेमातरम्!
(स्रोत: भगत सिंह के सम्पूर्ण दस्तावेज, सम्पादक-चमन लाल)
भगत सिंह का परिवार आर्य समाज के संस्कारों से आप्लावित था। उनका यज्ञोपवीत संस्कार भी हुआ था और सुप्रसिध्द साहित्यकार श्री विष्णु प्रभाकर ने अपनी पुस्तक 'अमर शहीद भगत सिंह' में लिखा है कि भगत सिंह के दादा सरदार अर्जुन सिंह ने अंग्रेजों की फूट की राजनीति को विफल करते हुए आर्य समाजियों पर चले मुकदमे के जवाब में ऐसे उध्दरणों के ढेर लगा दिए थे जो प्रमाणित करते थे कि वेद और गुरुग्रंथ साहिब दोनों एक ही बात कहते हैं और दोनों ही आदरणीय हैं। उन्होंने एक पुस्तक भी लिखी थी कि जिसका शीर्षक था- 'हमारे गुरु साहिबान वेदों के पैरोकार थे।' सरदार भगत सिंह के आदर्श नायकों में वीर सावरकर, छत्रपति शिवाजी, सरदार उधम सिंह, मदन लाल धींगरा और भारतेन्दु हरिश्चन्द्र थे। उन्होंने श्रीमद्भगवद् गीता से प्रेरणा ली थी और लोकमान्य तिलक रचित 'गीता रहस्य' का अध्ययन किया था। सरदार भगत सिंह ने वीर सावरकर की अमर कृति 'वार ऑफ इंडिपेंडेस-1857' का पुन: प्रकाशन करवाया था। इस पुस्तक के प्रति उनके मन में गहरी श्रध्दा और क्रांतिकारी भावना थी। भगत सिंह ने ऋग्वेद का भी अध्ययन किया था। जो क्रांतिकारी जेल में 'मेरा रंग दे वसंती चोला' गाता रहा हो उसकी भारतीय संस्कृति और वैचारिक परंपरा के बारे में कितनी गहरी निष्ठी होगी यह स्वयं ही प्रमाणित है। अपने पत्र और सामान्य अभिवादन में वंदे मातरम् का उल्लेख करने वाले उस आग्नेय भारतीय के मन को लेनिन और स्टालिन के खूंटे से बंधे लाल सलाम वाले समझ ही नहीं सकते।
भगत सिंह को वैचारिक खेमेबंदी में धकलने की कोशिश वैसी ही गर्हित और शब्द-हिंसा का प्रतीक है जैसी स्टालिनवादी वामपंथी मानसिकता है जो साइबेरिया और गुलाग रचे बिना अपनी यात्रा पूरी नहीं कर सकती। भगत सिंह भारतीयता और भारत माता के सच्चे आराधक थे और वे पूर्ण अर्थों में भारत तत्व के प्रतीक थे। क्या इतना ही मानना उचित नहीं होगा?
भगत सिंह देश के ऐसे विरले क्रांतिनायक हैं जिसकी छवि और स्मृति रक्त में राष्ट्रीयता का जोश भरती है, अन्याय को खत्म करने का मन बनाती है और तेजस्वी आंखों के अंगारों से देशद्रोही को भस्म करने की ताकत देती है। जैसे स्वामी विवेकानंद ने गुरुगोविंद सिंह को प्रत्येक भारतीय का आदर्श नायक बताया था। वैसे ही, दुनिया के सबसे अधिक युवाओं वाले देश भारत में युवाओं के नायक भगत सिंह बन चुके हैं।
कुछ लोग उन्हें वैचारिक बाड़ेबंदी में घेरना चाहते हैं, वे अंग्रेज सार्जेंट का काम कर रहे हैं। भगत सिंह जिस बगावत की आवाज बने, वही बागी स्वर आज उन श्वेताम्बरी, पीताम्बरी, पाखंडी-व्रतधारी वर्ग के खिलाफ गुंजाने की जरुरत है जो न केवल भारतीय एकता को भीतर से खोखला कर रहे हैं बल्कि राममंदिर और रामसेतु जैसे प्रश्नों पर जिहादी सेकुलर-तालिबानियों के विरुध्द प्रतिरोध को भी कमजोर कर रहे हैं। याद रखना चाहिए आखिर भगत सिंह को फांसी पर चढ़ाने में मदद करने वाले 457 गवाह भारतीय ही थे। भगत सिंह को समझना हो तो जो उन्होंने कहा व किया उसी से समझा जा सकता है।
'तेरी माता, तेरी प्रात: स्मरणीया, तेरी परम वन्दनीया, तेरी जगदम्बा, तेरी अन्नपूर्णा, तेरी त्रिशूलधारिणी, तेरी सिंहवासिनी, तेरी शस्य श्यामलांचला आज फूट-फूटकर रो रही है। क्या उसकी विकलता तुझे तनिक भी चंचल नहीं करती? धिक्कार है तेरी निर्जीवता पर! तेरे पितर भी शर्मसार है इस नपुंसत्व पर! यदि अब भी तेरे किसी अंग में कुछ हया बाकी हो, तो उठकर माता के दूध की लाज रख, उसके उध्दार का बीड़ा उठा, उसके आंसुओं की एक-एक बूंद की सौगंध ले, उसका बेड़ा पार कर और बोल मुक्त कंठ से- वंदेमातरम्!
(स्रोत: भगत सिंह के सम्पूर्ण दस्तावेज, सम्पादक-चमन लाल)
भगत सिंह का परिवार आर्य समाज के संस्कारों से आप्लावित था। उनका यज्ञोपवीत संस्कार भी हुआ था और सुप्रसिध्द साहित्यकार श्री विष्णु प्रभाकर ने अपनी पुस्तक 'अमर शहीद भगत सिंह' में लिखा है कि भगत सिंह के दादा सरदार अर्जुन सिंह ने अंग्रेजों की फूट की राजनीति को विफल करते हुए आर्य समाजियों पर चले मुकदमे के जवाब में ऐसे उध्दरणों के ढेर लगा दिए थे जो प्रमाणित करते थे कि वेद और गुरुग्रंथ साहिब दोनों एक ही बात कहते हैं और दोनों ही आदरणीय हैं। उन्होंने एक पुस्तक भी लिखी थी कि जिसका शीर्षक था- 'हमारे गुरु साहिबान वेदों के पैरोकार थे।' सरदार भगत सिंह के आदर्श नायकों में वीर सावरकर, छत्रपति शिवाजी, सरदार उधम सिंह, मदन लाल धींगरा और भारतेन्दु हरिश्चन्द्र थे। उन्होंने श्रीमद्भगवद् गीता से प्रेरणा ली थी और लोकमान्य तिलक रचित 'गीता रहस्य' का अध्ययन किया था। सरदार भगत सिंह ने वीर सावरकर की अमर कृति 'वार ऑफ इंडिपेंडेस-1857' का पुन: प्रकाशन करवाया था। इस पुस्तक के प्रति उनके मन में गहरी श्रध्दा और क्रांतिकारी भावना थी। भगत सिंह ने ऋग्वेद का भी अध्ययन किया था। जो क्रांतिकारी जेल में 'मेरा रंग दे वसंती चोला' गाता रहा हो उसकी भारतीय संस्कृति और वैचारिक परंपरा के बारे में कितनी गहरी निष्ठी होगी यह स्वयं ही प्रमाणित है। अपने पत्र और सामान्य अभिवादन में वंदे मातरम् का उल्लेख करने वाले उस आग्नेय भारतीय के मन को लेनिन और स्टालिन के खूंटे से बंधे लाल सलाम वाले समझ ही नहीं सकते।
भगत सिंह को वैचारिक खेमेबंदी में धकलने की कोशिश वैसी ही गर्हित और शब्द-हिंसा का प्रतीक है जैसी स्टालिनवादी वामपंथी मानसिकता है जो साइबेरिया और गुलाग रचे बिना अपनी यात्रा पूरी नहीं कर सकती। भगत सिंह भारतीयता और भारत माता के सच्चे आराधक थे और वे पूर्ण अर्थों में भारत तत्व के प्रतीक थे। क्या इतना ही मानना उचित नहीं होगा?
6 comments:
यकीनन भगत सिंह आजादी के आंदोलन के सबसे प्रखर क्रांतिकारी थे। उनकी परंपरा अक्षुण्ण है। जो लोग भगत सिंह के असली जुड़ाव रखते हैं, उन्हें इस सातत्य की पहचान करने में कोई दिक्कत नहीं होगी। और जो भगत सिंह के बस नाम की माला जपते रहते हैं, वे अपनी स्वार्थसिद्धि में नाकाम रहेंगे क्योंकि भगत सिंह के व्यक्तित्व का आयतन इतना बड़ा है कि उनके पैमाने में फिट ही नहीं हो सकता।
kya aap ne bhagat singh kee rachnaa 'mai nastik kyon hoon' padhee hai?
kya aap ne unkee we tamaam rachnayen padhee hain, jinme unhone samprdayik hinduwadee rahneeti ko desh ke prati sabse badee gaddaree bataayaa hai?lajpat rai ke hinduwadee udgaron par likha unka marmik lekh- lost leader- padhaa hai?
padh len ,taki pataa chal jaye ki bhagat singh kaise bhartiy the aue we kaisaa bharat banaanaa chahte the!
हम ईश्वर में विश्वास रखने वालों से कुछ सवाल करते हैं _
अगर, जैसा कि आपका विश्वास है, कि एक परमात्मा है, विश्वव्यापी, त्रिकालदर्शी, सर्वशक्तिमान ईश्वर - जिसने धरती या संसार की रचना की, लेकिन कृपया मुझे यह बतायें कि उसने इसकी रचना क्यों की? जबकि यह संसार शोक और पीडाओं तथा यथार्थ, असंख्य विपदाओं का अनन्त संयोजन है। कोई एक आत्मा तक पूरी तरह संतुष्ट नहीं है। पूजा करो लेकिन यह मत कहो कि यह ईश्वर का नियम है: अगर वह किसी नियम से बंधा है, तो वह सर्वशक्तिमान नहीं। वह भी हमारी तरह एक दास है। यह कदापि न कहें कि इस सब में उसकी कोई खुशी छिपी है। नीरो ने तो सिर्फ एक रोम जलाया था। उसने तो कुछ ही संख्या में लोगों को मारा था। उसने तो बहुत कम संख्या में विपदाओं को जन्म दिया, सिर्फ अपने मनोरंजन के लिये। लेकिन उसका इतिहास में क्या स्थान है? इतिहासकारा उसे किस नाम से सम्बोधित करते हैं? सारे जहरीले विशेषणों से उसे सुशोभित किया गया। पन्नों पर पन्ने नीरो के काले कारनामों की भर्त्सना से रंगे पडे है, गद्दार, हृदयहीन, दुष्ट।
मेरे एक मित्र ने प्रार्थना करने के लिये कहा। जब उसे बताया गया कि मैं नास्तिक हूं तो उसने कहा, '' तुम्हारे आखिरी दिनों में तुम विश्वास करने लगोगे।'' मैं ने कहा, '' नहीं प्रिय श्रीमान ऐसा नहीं होगा।'' मैं सोचूंगा कि यह एक निम्नस्तर तथा हतोत्साहित करने वाला कृत्य है। स्वार्थी प्रवृत्ति के कारण मैं प्रार्थना नहीं करने वाला। पाठकों और मित्रों, '' क्या यह मिथ्याभिमान है?'' और अगर है भी तो, मैं इसी में विश्वास करता हूं।
kahan to tay tha chiragan har ek ghar ke liye
kahan chiragh mayassar nahi shahar ke liye.
yahan darakhton ke saaye main dhoop lagti hai
chalo yahan se chalen aur umr bhar ke liye.
na ho kameez to paon se pet dhak lenge
ye log kitne munasib hain, is safar ke liye.....
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