-प्रदीप कुमार
केरल में मलप्पुरम की 18 वर्षीय रूबिया और उसके परिवार को मुस्लिम समाज के कठमुल्लाओं ने जिहादी फरमान जारी करके समाज से बहिष्कृत करने का ऐलान किया है। उसका कसूर क्या है? उसका कसूर केवल इतना है कि उसे भरतनाटयम नृत्य से लगाव है और वह यह नृत्य सीखती है। बस इस 'जुर्म' के लिए स्थानीय मस्जिद कमेटी (महाल्लू) ने उसके परिवार से किसी भी तरह का व्यवहार न करने का 'फतवा' जारी कर दिया है।
केरल में मलप्पुरम की 18 वर्षीय रूबिया और उसके परिवार को मुस्लिम समाज के कठमुल्लाओं ने जिहादी फरमान जारी करके समाज से बहिष्कृत करने का ऐलान किया है। उसका कसूर क्या है? उसका कसूर केवल इतना है कि उसे भरतनाटयम नृत्य से लगाव है और वह यह नृत्य सीखती है। बस इस 'जुर्म' के लिए स्थानीय मस्जिद कमेटी (महाल्लू) ने उसके परिवार से किसी भी तरह का व्यवहार न करने का 'फतवा' जारी कर दिया है।
स्थानीय महाल्लू से जुड़े रहना यहां के हर मुस्लिम परिवार के लिए आवश्यक होता है क्योंकि इस कारण उसे कुछ अधिकार मिलते हैं, जैसे, स्थानीय कब्रिस्तान में किसी परिजन के इंतकाल के बाद दफनाने की इजाजत। रूबिया के परिवार को यहां 'इजाजत' नहीं है और न ही उसके निकाह को समाज 'मान्य' ही करेगा।
हाल ही में केरल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय उत्सव में वी.पी. रूबिया भरतनाटयम नृत्य में प्रथम रही थी। वह मुस्लिम बहुल मलप्पुरम के मोरायूर स्थित वीरन हाजी मेमोरियल हायर सेकेन्डरी स्कूल की नृत्य प्रतियोगिता में भी सर्वश्रेष्ठ घोषित की गई थी। उसके पिता सैयद अलविकुट्टी कहते हैं कि उसे मशहूर नृत्यांगना मृणालिनी साराभाई की नृत्य संस्था 'दर्पण' से न्योता भी मिला है।
मलप्पुरम के मुस्लिम बहुल क्षेत्र वल्लुवमबरम में अपने जीर्ण-शीर्ण घर में इस संवाददाता से बातचीत में श्री अलविकुट्टी ने बताया, 'यहां की मस्जिद कमेटी मेरी बेटी की इस उपलब्धि से खुश नहीं है। अगर वह 'ओप्पाना' और 'माप्पीला पट्टू' जैसी पारम्परिक मुस्लिम कलाओं में ईनाम जीतती तो अब तक उसे ढेरों पुरस्कार मिले होते। आज हम समाज-बाहर कर दिए गए हैं मगर महाल्लू नेता खुलकर यह नहीं स्वीकारेंगे कि भरतनाटयम के कारण उन्होंने ऐसा 'आदेश' दिया है।
रूबिया के घर की बैठक की दीवारें उसके नृत्य की तारीफ में मिले प्रमाण पत्रों, ट्राफियों और स्मृति चिन्हों से पटी पड़ी थीं। रूबिया तमिलनाडु की प्रसिध्द चेन्नै नृत्य अकादमी की ओर से जारी प्रमाणपत्र सगर्व दिखाते हुए बताती है, 'जब मैं वहां मयलापुर के पास हिन्दू बहुल क्षेत्र में एक मंदिर में नृत्य करने गई तो वहां के ब्राह्मणों को हिन्दी देवी-देवीताओं के भजनों पर एक मुस्लिम लड़की के नृत्य से कोई आपत्ति नहीं थी। कार्यक्रम के बाद उन्होंने मुझे बधाई दी। मगर समझ नहीं आता कि यहां मेरे घर के पास मेरे माता-पिता को दुत्कारा क्यों जाता है।' रूबिया की आंखें डबडबाने लगी थीं।
जब वह महज तीन साल की ही थी, तब उसने नृत्य सीखना शुरू किया था। आज भी वह पढ़ाई के बीच समय निकाल कर स्थानीय मंदिरों में नृत्य प्रदर्शन के लिए जाती है। परिवार पैसे वाला नहीं है अत: रूबिया के नृत्य कार्यक्रमों से सहारे के लिए कुछ पैसा मिलता है तो राहत महसूस होती है। कुछ समय पहले रूबिया की अम्मी का कैंसर के कारण इंतकाल हो चुका है। घर में उसके पिता के अलावा एक बड़ा भाई और एक छोटी बहन भी है। स्थानीय मुल्लाओं की नाराजगी उसे पहली बार तब झेलनी पड़ी थी जब वह प्रसिध्द गुरुवायूर मन्दिर के सामने नृत्य प्रदर्शन करके लौटी थी। तब स्थानीय 'महाल्लू' ने उस पर जमकर लानतें भेजी थीं। उन्हें रूबिया के एक हिन्दू मंदिर में भजन पर नृत्य करने से चिढ़ छूटी थी। 'मगर', रूबिया के पिता आगे कहते हैं, 'इस नाराजगी ने मेरे इरादे को और मजबूत ही किया और मैंने रूबिया के साथ उसकी छोटी बहन मनसिया को भी इस नृत्य में पारंगत करने का फैसला कर लिया।' वे बताते हैं, रमजान के बाद महाल्लू की ओर से पूरे इलाके में चावल और दूसरे खाद्य पदार्थ बांटे गए, केवल हमारा ही घर छोड़ दिया गया।'
यह पूछने पर कि हिन्दू समाज ने उसकी क्या मदद की, रूबिया कहती है, 'हिन्दुओं ने बहुत मदद की है। कई मंदिरों से मुझे नृत्य प्रदर्शन के निमंत्रण आते हैं। स्कूल के मेरे दोस्त, शिक्षक, गुरु सबको मुझ पर नाज है।'
रूबिया इस नृत्य में पारंगत होने के लिए गुरुओं से सीखना चाहती है, मगर अपनी गरीबी के कारण ऐसा कर पाएगी, इसे लेकर दुविधा में है। स्थानीय महाल्लू के बारे में अलविकुट्टी कहते हैं, उनके दिमागों में बहुत जहर भरा है। हम अगर पैसे वाले होते तो कोई हम पर अंगुली नहीं उठाता, हम भूखे रह लेंगे मगर रूबिया का नृत्य प्रशिक्षण जारी रखेंगे। रूबिया के कमरे में नटराज के बगल में ही शिव की एक अन्य मुद्रा 'कीरतमूर्ति' लगी है जिसकी वह नमाज के साथ-साथ पूजा करती है। वह बताती है, 'हर नृत्य से पहले मैं इस शिव प्रतिमा के आगे कुछ कुछ मिनट बैठती हूं। इससे मुझे ताकत मिलती है। नटराज से ही तो नृत्य की की भंगिमाएं उपजी हैं। मैं चिदम्बरम के प्रसिध्द नटराज मंदिर में भी गई थी।'
अम्मी अमीना की याद में रूआंसी होकर रूबिया कहती है, 'उन्होंने ही मुझे नृत्य के लिए प्रेरणा दी थी। मेरी अम्मी के कैंसर के इलाज के लिए हमारे मिलने वालों ने पैसे भेजे थे, मगर मस्जिद के मुल्लाओं ने हमारी मदद के सारे रास्ते बंद कर दिए थे। जब उनका इंतकाल हुआ तब उन मुल्लाओं ने यहां के कब्रिस्तान में उनको दफनाने की इजाजत नहीं दी।' रूबिया और उसके अब्बा गरीब हैं मगर झुकने को तैयार नहीं हैं। उन्हें उम्मीद है कि वल्लुवमबरम से बाहर के लोग उनकी मदद को आगे आएंगे। रूबिया का पता है-
द्वारा-वी.पी. अलविकुट्टी, गांव-पोस्ट-वल्लुवमबरम, जिला मलप्पुरम, केरल-673651, दूरभाष-09387507601
1 comment:
नृत्य आदि कलाओं को धर्म की सीमाँओं में बाँधने वाले लोगों की बुद्धि पर तरस ही किया जा सकता है। ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दे।
Post a Comment