हमारी संसदीय शासन व्यवस्था में प्रधानमंत्री को सरकार का सर्वोपरि माना जाता है। जिसके पास राजनीतिक और प्रशासनिक दोनों अधिकार होते हैं। भारत का प्रधानमंत्री ऐसा नहीं होता है, जैसे कि वह किसी भारतीय कम्पनी का कोई प्रमुख निदेशक हो, वह अपनी राजनैतिक अधिकारों को किसी अन्य व्यक्ति को नहीं सौंप सकता है। आज देश पर एक ऐसी असंवैधानिक व्यवस्था लाद दी गई है कि प्रधानमंत्री के पास अपनी ही सरकार को नियंत्रण में रखने के अधिकार नहीं है और वह हर महत्वपूर्ण मुद्दे पर संसद की बजाय अपने बॉस के प्रति अधिक उत्तरदायी बना रहता है।
डा. मनमोहन सिंह की एक और दुर्बलता है कि उसके मंत्रीगण किसी महत्वपूर्ण नीतिगत मामले की घोषणा करने से पहले उन्हें विश्वास में नहीं लेते हैं। बहुत से ऐसे अवसर आए हैं कि प्रधानमंत्री के लिए कोई नीति उनके पास एक खबर बनकर पहुंची है जो उन्हें समाचार पत्रों अथवा इलैक्ट्रोनिक मीडिया से मिलती है। इसी कारण उन्हें अपने मंत्रियों को लिखना पड़ा कि वे इस प्रकार की सभी नीतिगत घोषणाओं के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय से अपना सम्पर्क बनाए रखें।
कांग्रेस को जनता ने नकारा
यूपीए के प्रति जनता का आक्रोश पिछले वर्षों के दौरान दिखाई पडा। विगत दो वर्षों में 17 राज्यों के विधानसभा चुनाव संपन्न हुए, जिनमें से 11 राज्यों में यूपीए हारा और कांग्रेस को अपने बल पर केवल चार राज्यों में विजय हासिल हुई।
संप्रग सरकार का अधिनायकवादी रवैया
संप्रग सरकार अभी तक अधिनायकवादी रवैए से कार्य कर रही है। राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे पर वह आम सहमति बनाने का न तो प्रयास किया और न ही विपक्ष के साथ-साथ अपने सहयोगी दलों को विश्वास में लिया। मामला अमेरिका के साथ परमाणु समझौते का हो या अरूणाचल प्रदेश में चीनी घुसपैठ का। दोनों मसलों पर संप्रग सरकार अपनी बात रखने में सफल नहीं हुई। केंद्र सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद को प्रभावी ढंग से नहीं उठाया। आईएमडीटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद भी बंगलादेशी घुसपैठ के मामले में यूपीए सरकार पूरी तरह निष्क्रिय रही। संप्रग सरकार की कमजोर नीति के चलते नेपाल में राजनीतिक संकट गहराया।
महिला आरक्षण
यूपीए सरकार के चार वर्ष पूरे होने के पश्चात् भी महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित नहीं हो सका। वास्तव में महिला विरोधी यूपीए सरकार महिलाओं को आरक्षण का लाभ देना ही नहीं चाहती। चौथे वर्ष के बजट सत्र के दौरान यूपीए ने महिला आरक्षण को लोकसभा के स्थगित होने के पश्चात राज्यसभा के अंतिम कार्यदिवस में बड़े ही नाटकीय ढंग से प्रस्तुत किया। जिसका उसके ही सहयोगी दलों ने जमकर विरोध किया व बिल फाड़ कर फेंक दिया। यह दर्शाता है कि यूपीए सरकार इस बिल को लेकर महज खानापूर्ति कर रही है। वह महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए गंभीर नहीं है।
तेलंगाना के साथ धोखा
आंध्रप्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस और तेलंगाना राष्ट्रीय समिति ने तेलंगाना राज्य गठन के मुद्दे पर चुनावी गठबंधन किया था कि यदि वे विजयी होते हैं तो वे आंध्रप्रदेश के वर्तमान राज्य को बांट कर एक संपूर्ण तेलंगाना राज्य बना देंगे। दोनों पार्टियां विधानसभा चुनाव में विजयी रहे परंतु कांग्रेस ने लोगों के जनादेश के साथ विश्वासघात किया और कांग्रेस ने अपने इस वायदे को नहीं निभाया। आंध्र के लोगों को मूर्ख बनाने के लिए यूपीए ने रक्षा मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी की अधयक्षता में इस विषय पर एक समिति गठित कर दी है। समिति और यूपीए सरकार जैसे-तैसे समय काट रही हैं। हताश होकर तेलंगाना राष्ट्रीय समिति केंद्र और आंध्र सरकार की कैबिनेट दोनों से अपने इन बुनियादी नीतिगत मतभेदों के कारण बाहर निकल आयी।
1 comment:
आपकी इस फेहरिस्त में "अफज़ल गुरु को फांसी नहीं देना" भी शामिल कर लीजिये और "तथाकथित हिंदू आतंकवाद" भी जिसका जवाब जनता यूपीऐ सरकार को चुनावों में दे देगी।
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