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Saturday, 14 February 2009

पब कल्चर के बीच पिसता समाज व शालीनता

भारतीय संस्कृति के समुद्र में अनेक संस्कृतियां समाहित हैं। भारत की धरती पर अब एक नई संस्कृति उभर रही है पब कलचर। इस नई संस्कृति के उदगम में समाज नहीं वाणिज्य और बाज़ारभाव का योगदान अमूल्य है। पर मंगलौर में एक पब में जिस प्रकार से महिलाओं और लड़कियों पर हाथ उठाया गया वह तो कोई भी संस्कृति –और कम से कम भारतीय तो बिल्कुल ही नहीं– इसकी इजाज़त नहीं देती। इसकी व्यापक भर्त्सना स्वाभाविक और उचित है क्योंकि यह कुकर्म भारतीय संस्कृति के बिलकुल विपरीत है।

पब एक सार्वजनिक स्थान है जहां कोई भी व्यक्ति प्रविष्ट कर सकता है। यह ठीक है कि पब में जो भी जायेगा वह शराब पीने-पिलाने, अच्छा खाने-खिलाने और वहां उपस्थित व्यक्तियों के साथ नाचने-नचाने द्वारा मौज मस्ती करने की नीयत ही से जायेगा। पर साथ ही किसी ऐसे व्यक्ति के प्रवेश पर भी तो कोई पाबन्दी नहीं हो सकती जो ऐसा कुछ न किये बिना केवल ठण्डा-गर्म पीये और जो कुछ अन्य लोग कर रहे हों उसका तमाशा देखकर ही अपना मनोरंजन करना चाहे।

व्यक्तिगत स्वतन्त्रता और उच्छृंखलता में बहुत अन्तर होता है। जनतन्त्र में व्यक्तिगत स्वतन्त्रता की तो कोई भी सभ्य समाज रक्षा व सम्मान करेगापर उच्छृंखलता सहन करना किसी भी समाज के लिये न सहनीय होना चाहिये और न ही उसका सम्मान। व्यक्तिगत स्वतन्त्रता की दोहाई के पीछे है हमारी गुलामी की मानसिकता जिसके अनुसार पश्चिमी तथा विदेशी संस्कृति में सब कुछ अच्छा है और भारतीय में बुरा। हम इस हीन भावना से अभी तक उबर नहीं पाये हैं। इसलिये हम उस सब की हिमायत करते हैं जो हमारे संस्कार व संस्कृति के विपरीत है और बाहरी संस्कृति में ग्राहय। इसलिये पब जैसे सार्वजनिक स्थान पर तो हर व्यक्ति को मर्यादा में ही रहना होगा और ऐसा सब कुछ करने से परहेज़ करना होगा जिससे वहां उपस्थित कोई व्यक्ति या समूह आहत हो। क्या स्वतन्त्रता और अधिकार केवल व्यक्ति के ही होते हैं समाज के नहीं? क्या व्यक्तिगत स्वतन्त्रता और अधिकार के नाम पर समाज की स्वतन्त्रता व अधिकारों का हनन हो जाना चाहिये? क्या व्यक्तिगत स्वतन्त्रता (व उच्छृंखलता) सामाजिक स्वतन्त्रता से श्रेष्ठतम है?


व्यक्तिगत स्वतन्त्रता की दोहाई के पीछे है हमारी गुलामी की मानसिकता जिसके अनुसार पश्चिमी तथा विदेशी संस्कृति में सब कुछ अच्छा है और भारतीय में बुरा। हम इस हीन भावना से अभी तक उबर नहीं पाये हैं। इसलिये हम उस सब की हिमायत करते हैं जो हमारे संस्कार व संस्कृति के विपरीत है और बाहरी संस्कृति में ग्राहय।

एक सामाजिक प्राणी को ऐसा कुछ नहीं करना चाहिये जो उसके परिवार, सम्बन्धियों, पड़ोसियों या समाज को अमान्य हो। व्यक्तिगत स्वतन्त्रता की दोहाई देने का तो तात्पर्य है कि सौम्य स्वभाव व शालीनता व्यक्तिगत स्वतन्त्रता व अधिकार के दुश्मन हैं।

जो व्यक्ति अपना घर छोड़कर कहीं अन्यत्र –बार, पब या किसी उद्यान जैसे स्थान पर — जाता है, वह केवल इसलिये कि जो कुछ वह बाहर कर करता है वह घर में नहीं करता या कर सकता। कोई व्यक्ति अपनी पत्नी से किसी सार्वजनिक स्थान पर प्रेमालाप के लिये नहीं जाता। जो जाता है उसके साथ वही साथी होगा जिसे वह अपने घर नहीं ले जा सकता। पब या कोठे पर वही व्यक्ति जायेगा जो वही काम अपने घर की चारदीवारी के अन्दर नहीं कर सकता।

व्यक्ति तो शराब घर में भी पी सकता है। डांस भी कर सकता है। पश्चिमी संगीत व फिल्म संगीत सुन व देख सकता है। बस एक ही मुश्किल है। जिन व्यक्तियों या महिलाओं के साथ वह पब या अन्यत्र शराब पीता है, डांस करता है, हुड़दंग मचाता है, उन्हें वह घर नहीं बुला सकता। यदि उस में कोई बुराई नहीं जो वह पब में करता हैं तो वही काम घर में भी कर लेना चाहिये। वह क्यों चोरी से रात के गहरे अन्धेरे में वह सब कुछ करना चाहता हैं जो वह दिन के उजाले में करने से कतराता हैं? कुछ लोग तर्क देंगे कि वह तो दिन में पढ़ता या अपना कारोबार करता हैं और अपना दिल बहलाने की फुर्सत तो उसें रात को ही मिल पाती है। जो लोग सारी-सारी रात पब में गुज़ारते हैं वह दिन के उजाले में क्या पढ़ते या कारोबार करते होंगे, वह तो ईश्वर ही जानता होगा। वस्तुत: कहीं न कहीं छिपा है उनके मन में चोर। उनकी इसी परेशानी का लाभ उठा कर पनपती है पब संस्कृति और कारोबार।

व्यक्तिगत स्वतन्त्रता की दोहाई के पीछे है हमारी गुलामी की मानसिकता जिसके अनुसार पश्चिमी तथा विदेशी संस्कृति में सब कुछ अच्छा है और भारतीय में बुरा। हम इस हीन भावना से अभी तक उबर नहीं पाये हैं। इसलिये हम उस सब की हिमायत करते हैं जो हमारे संस्कार व संस्कृति के विपरीत है और बाहरी संस्कृति में ग्राहय।

इसके अन्य पहलू भी हैं। यदि हम पब कल्चर को श्रेयस्कर समझते हैं तो यह स्वाभाविक ही है कि जो व्यक्ति रात को –या यों कहिये कि पौ फटने पर– पब से निकलेगा वह तो सरूर में होगा ही और गाड़ी भी पी कर ही चलायेगा। कई निर्दोष इन महानुभावों की मनमौजी कल्चर व स्वतन्त्रता की बलि पर शहीद भी हो चुके हैं। तो यदि शराब पीने की स्वतन्त्रता है तो शराब पी कर गाड़ी चलाना –और नशे में गल्ती से अनायास ही निर्दोषों को कुचल देना– क्यों घोर अपराध है?

एक गैर सरकारी संस्‍थान द्वारा किए गए हालिया सर्वेक्षण ने तो और भी चौंका देने वाले तथ्‍यों को उजागर किया है। दिल्‍ली में सरकार ने शराब पीने के लिए न्‍यूनतम आयु 25 वर्ष निर्धारित की है। परन्‍तु इस सर्वेक्षण के अनुसार, दिल्‍ली के पबों में जाने वाले 80 प्रतिशत व्‍यक्ति नाबालिग हैं। इस सर्वेक्षण ने आगे कहा है कि दिल्‍ली में प्रतिवर्ष लगभग 2000 नाबालिग शराब पीकर गाडी चलाने के मामलों में संलिप्‍त पाये गये हैं। वह या तो शराब पीकर गाडी चलाने के दोषी हैं या फिर उसके शिकार।

हमारी ही सरकारों ने –जिनके नेता पब कल्चर का समर्थन कर रहे हैं– शराब पीकर गाड़ी चलाने को घोर अपराध घोषित कर दिया है और उन्हें कड़ी सज़ा दी जा रही है । हमारी अदालतों –कुछ विदेशों में भी– शराब पी कर गाड़ी चलाने वालों को आतंकवादियों से भी अधिक खतरनाक बताते है जो निर्दोष लोगों की जान ले लेते हैं।

पब कल्चर एक बाज़ारू धंधा है। इसे संस्कृति का नाम देना किसी भी संस्कृति का अपमान करना है। यही कारण है कि इसके विरूध्द प्रारम्भिक आवाज़ चाहे हिन्दुत्ववादियों ने ही उठाई हो पर उनके सुर में उन लोगों नें भी मिला दिया है जिन्हें भारत की संस्कृति से प्यार है।

केन्द्रिय स्वास्थ मन्त्री श्री अंबुमानी रामादोस ने पब कल्चर को भारतीय मानस के विरूध्द करार दिया है और एक राष्ट्रीय शराब नीति बनाकर इस पर अंकुश लगाने का अपना इरादा जताया है। उन्होंने कहा कि देश में 40 प्रतिशत सड़क दुर्घटनाओं का कारण शराब पीकर गाड़ी चलाना है और इसमें पब में शराब पीकर लौट रहे नौजवानों की संख्या बहुत हैं। उन्होंने आगे कहा कि एक विश्लेषण के अनुसार पिछले पांच-छ: वर्षों में युवाओं में शराब पीने की लत में 60 प्रतिशत की वृध्दि हुई है जिस कारण युवाओं द्वारा शराब पीकर गाड़ी चलाने और दुर्घनाओं में मरने वालों की संख्या में वृध्दि हुई है जिनमें बहुत सारे युवक होते हैं।

कर्नाटक के मुख्य मन्त्री श्री बी0 एस0 येदियुरप्पा, जहां यह घटनायें हुईं, ने अपने प्रदेश में पब कल्चर को न पनपने देने का अपना संकल्प दोहराया है।

उधर राजस्थान के कांग्रेसी मुख्य मन्त्री श्री अशोक गहलोत भी इस कल्चर को समाप्त करने में कटिबध्द हैं। इसे राजत्थान की संस्कृति के विरूध्द बताते हुये वह कहते हैं कि वह प्यार के सार्वजनिक प्रदर्शन के विरूध्द हैं। ”लड़के-लड़कियों के सार्वजनिक रूप में एक-दूसरे की बाहें थामें चलना तो शायद एक दर्शक को आनन्ददायक लगे पर वह राजस्थान की संस्कृति के विरूध्द है। श्री गहलोत ने भी इसे बाज़ारू संस्कृति की संज्ञा देते हुये कहा कि शराब बनाने वाली कम्पनियां इस कल्चर को बढ़ावा दे रही है जिन पर वह अंकुश लगायेंगे।

अब तो पब कल्चर ने ‘सब-चलता-है’ मनोवृति व व्यक्तिगत अधिकारों और राष्ट्रीय संस्कृति, संस्कारों और शालीनता के बीच एक लड़ाई ही छेड़ दी है। अब यह निर्णय देश की जनता को करना है कि विजय किसकी हो। ***

1 comment:

Anonymous said...

आपकी बात से सहमत हूँ । नारी स्वतंत्रता केवल पब जाकर शराब पीने और नाचने में है क्या और यह किसी के देने से नही मिलती । झांसी की रानी ने अंग्रेजों से लोहा अपने बल पर लिया । लडना हे तो आतंक के खिलाफ लडे चाहे वह घरेलू हो, देशी हो या विदेशी ।